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पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) के लिए जंगलों को बचाना बहुत ज़रूरी है और ये बात पर्यावरणविदों (Environmentalists) के साथ ही सरकार भी अच्छी तरह समझ चुकी है। तभी तो बांस (Bamboo) से बने उत्पादों को प्रमोट करने पर ज़ोर दिया जा रहा है ताकि जंगल की अंधाधुंध कटाई को रोका जा सके और लोगों को इको-फ़्रेंडली उत्पाद (Eco-friendly Products) मिले।
सरकार की इसी मुहिम को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बांदा कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वानिकि महाविद्यालय के छात्र। यहां के छात्र कैसे बांस और बेकार की लकड़ियों से सुंदर कलाकृतियां और रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें बना रहे हैं और कैसे ये उन्हें आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा, इस बारे में वानिकि महाविद्यालय (कॉलेज ऑफ़ फ़ॉरेस्ट्री) असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. मोहम्मद नासिर ने विस्तार से किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से बात की।
छात्रों को आत्मनिर्भर बना रहा कॉलेज ऑफ़ फ़ॉरेस्टी
बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वानिकि महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. मोहम्मद नासिर बताते हैं कि उनके कॉलेज में अलग-अलग तरह के कोर्स हैं। इन्हीं कोर्स में से एक है फॉरेस्ट प्रोडक्ट यूटिलाइजेशन प्रोग्राम (Forest Product Utilization Program), जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर होता है इस कोर्स में बच्चों को जंगल के उत्पादों का सही इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।
4 साल के इस अंडरग्रेजुएट कोर्स के तीसरे साल में छात्रों से प्रैक्टिकल कराया जाता है और एक खास प्रोग्राम के तहत उन्हें सारी सुविधाएं और चीज़ें मुहैया कराई जाती हैं, जिससे वो अपना प्रॉडक्ट बना सकें। इस अभ्यास से बच्चे आत्मनिर्भर बनते हैं। इसका फ़ायदा ये होता है कि आगे चलकर अगर वो नौकरी न करना चाहे, तो अपना खुद का बिज़नेस शुरू कर सकते हैं।
डॉ. नासिर का कहना है कि वानिकि महाविद्यालय के इस कोर्स का मकसद ही है बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना। इस कोर्स के तहत बच्चों को बताया जाता है कि वन से मिलने वाले उपज को किस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है।
बांस पर है पूरा फोकस
डॉ. नासिर का कहना है कि उन लोगों का पूरा फ़ोकस बांस से अलग-अलग तरह के उत्पाद बनाने में है। दरअसल, बांस का पौधा बहुत जल्दी बड़ा हो जाता है। इसलिए इसे 3 साल में काटकर इस्तेमाल किया जा सकता है, जबकि जंगल के बाकी पेड़ 20-30 साल में परिपक्व होते हैं। इसलिए बांस के ज़्यादा इस्तेमाल से जंगल और पर्यावरण को बचाया जा सकता है। सरकार भी चाहती है कि जंगल को बचाया जाए इसलिए बांस के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है।
दरअसल, 2017 में बांस को सरकार ने नॉन फ़ॉरेस्ट प्रॉडक्ट कैटेगरी (Non Forest Product Category) में डाल दिया था। यानि पहले पेड़ काटकर आप जंगल से बाहर नहीं ले जा सकते थे, जिससे बहुत दिक्कत होती थी, लेकिन अब बांस को इस कैटेगरी से हटा दिया गया है। इससे आसानी से इसे जंगल से काटकर ले जाया जा सकता है और अब आसानी से ट्रांसपोर्ट कर सकते हैं।
आसान है बांस के उत्पाद बनाना
प्रोफ़ेसर नासिर का कहना है कि बाकि लकड़ियों की तुलना में बांस से चीज़ें बनाना आसान होता है। इसे छोटे हैंड टूल से आसानी से बनाया जा सकता है। दरअसल, बांस बहुत हल्का होता है और इसे काटना-छांटना भी आसान है। औरतें भी घर पर ही इसे आसानी से बनाकर अपना लघु उद्योग शुरू कर सकती है।
बेकार पड़ी लकड़ियों का खूबसूरत इस्तेमाल
प्रोफ़ेसर नासिर ने बताया कि उनके छात्रों ने टूटे-फूटे और सड़े-गले बेकार के पेड़ों से भी बेहद सुंदर और क्रिएटिव चीज़ें बनाई हैं। छात्रों ने लकड़ी के वेस्ट मटेरियल से बैठने के लिए बेंच बनाए हैं। प्रोफ़ेसर नासिर ने आगे कहा कि कॉलेज के बाहर एक आउटडोर पार्क बनाने का भी उनका विचार है, जिसमें वेस्ट मटेरियल से बनी चीज़ें रखी जाएंगी, जिससे लोगों को पता चलेगा कि कैसे बेकार की लकड़ियों से भी पार्क और घर को सजाया जा सकता है। इससे कचरा कम होगा।
किसानों के लिए ख़ास कोर्स करेंगे शुरू
डॉ. नासिर का कहना है कि बेकार की लकड़ियों का क्रिएटिव तरीके से इस्तेमाल करने के लिए उनका विश्वविद्यालय डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने वाले हैं, जिसमें बांस और वेस्ट मटेरियल से अलग-अलग चीज़ें बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी।
बांस की हर तरह की जलवायु में पनप जाता है
बांस की एक ख़ासियत ये भी है कि ये हर तरह की जलवायु में आसानी से उग जाता है। उत्तर-पूर्वी भारत से लेकर राजस्थान तक सब जगह आपको बांस मिलेगा। बांस से टॉयलेट पेपर, बांस का फर्श, बांस का टूथब्रश, बांस का धागा, कागज़, बांस की चादरें, तौलिया, बोतल, बांस की लकड़ी का कोयला बैग, टॉयलेटरीज़, बांस के कपड़े जैसी कई चीज़ें बनाई जा सकती हैं।
बांस से जुड़ी कुछ अहम बातें
- बांस में कार्बन सोखने की क्षमता बहुत ज़्यादा होती है। इसमें कीट नहीं लगते, जिससे कीटनाशक का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इससे मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी रहती है।
- ये मिट्टी के कटाव को भी रोकने में मदद करता है और ये बंजर भूमि को उत्पादक बनाने में भी मददगार है।
- बांस भले ही पेड़ जैसा दिखता हो, लेकिन ये असल में तेज़ी से बढ़ने वाली एक घास है जो 3 साल में ही परिपक्व हो जाती है।
- इसका पेड़ 130 फ़ीट तक ऊंचा हो सकता है। पेड़ की ऊंचाई उसकी अलग-अलग किस्मों पर निर्भर करती है।
- सिंगल यूज़ प्लास्टिक का बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
- बांस से बने उत्पाद फेंकने के बाद मिट्टी में मिल जाते हैं यानि इससे किसी तरह का कचरा नहीं होता।
- बांस की खेती में ज़्यादा खर्च नहीं आता है और न ही इसको ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है।
- बांस की खेती करने पर एक पेड़ से करीब 40 साल तक बांस मिलता रहता है। सरकार इस फसल पर भी सब्सिडी देती है।
- बांस की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी नहीं चाहिए। इसे खेत की मेड़ पर भी लगाया जा सकता है। ऐसा करने से खेत का तापमान भी कम रहता है और जानवरों से भी इसे बचाया जा सकता है।
खेती से लेकर मार्केटिंग तक के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission)
एक बहुद्देश्यीय योजना है। ये योजना उत्तर प्रदेश में बांस विकास को बढ़ावा दिये जाने, नई किस्मों को विकसित करने, अनुसंधान को प्रोत्साहन करने, हाईटेक नर्सरी स्थापित किये जाने, पौधों में कीट और बीमारी प्रबंधन, बांस हस्तकला (Bamboo Handicraft) को बढ़ावा दिये जाने, बांस उत्पादकों की आय में बढ़ोतरी किये जाने, बांस उत्पादों के लिए मार्केटिंग नेटवर्क बनाने और कच्चा माल उपलब्ध कराये जानेउद्देश्य के साथ शुरू की गई है।
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