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केरल में कोकोनट वेस्ट यानी नारियल के कचरे (Coconut Waste) से खूबसूरत और इको फ्रेंडली डेकोर प्रोडक्ट्स बन रहे हैं। यहां के स्थानीय कलाकार नारियल के बेकार हिस्सों से हैंडमेड बास्केट, डोरमैट और कई दूसरी चीज़ें तैयार कर रहे हैं। ये पहल न सिर्फ़ इको फ्रेंडली है, बल्कि लोकल कारीगरों को रोज़गार भी दे रही है। ये उत्पाद हर घर की शोभा बढ़ाने के लिए परफेक्ट हैं। देखिए कैसे केरल के हुनरमंद कारीगर नारियल के कचरे (Coconut Waste) से बेहतरीन चीज़ें बना रहे हैं।
कमाल की कारीगरी (awesome workmanship)
कारीगर सिर्फ़ दिमाग से नहीं, बल्कि दिल से काम करते हैं, तभी तो उनकी बनाए चीज़ें इतनी आकर्षक होती है कि दिल को छू लेती है। ऐसी ही कमाल की कारीगरी केरल में देखने को मिली जहां के कलाकारों ने नारियल के कचरे (Coconut Waste) से कमाल की चीज़ें तैयार की हैं। केरल स्टेट कॉयर कॉरपोरोशन लिमिटेड (Kerala State Coir Corporation Limited) की मदद केरल में नारियल के कचरे (Coconut Waste) से खूबसूरत और इको फ्रेंडली उत्पाद बनाए जा रहे हैं। केरल स्टेट कॉयर कॉरपोरोशन लिमिटेड से जुड़े विक्रम मिश्रा बताते हैं कि कंपनी का मकसद छोटे कारीगरों को आगे बढ़ाना और अपशिष्ट पदार्थों का बेहतर इस्तेमाल करना है ताकि पर्यावरण को साफ-सुथरा रखा जा सके।
रोज़गार के साथ पर्यावरण की हिफाज़त (Protecting the environment while providing employment)
विक्रम बताते हैं कि केरल में समुद्री तटों पर नारियल का बहुत कचरा होता है जिसका इस्तेमाल कारीगर अपनी रोजी रोटी के लिए करते हैं। सरकार की पहल से उनके इस प्रयास को बढ़ावा मिला है और नारियल वेस्ट से अलग-अलग तरह के उत्पाद बना रहे कारीगरों क रोज़गार के नए अवसर मिले है। ये उत्पाद पर्यावरण के लिए भी किसी वरदान से कम नहीं है। स्थानीय कारीगर इससे टोकरी, डोरमैट्स और गमले जैसे कई ज़रूरी उत्पाद बना रहे हैं।
नारियल के छिलके और रबर से बने गमले पानी को अच्छी तरह अवशोषित कर लेते हैं, गर्मियों के मौसम में इसमें पौधे लगाने से वो सूखते नहीं है, क्योंकि ऐसे गमलों में नमी बनी रहती है। सरकार के इस प्रयास से एक तो कचरे का सही इस्तेमाल हो जा रहा है और रोज़गार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं।
बढ़ते प्रदूषण को देखकर आया आइडिया (The idea came after seeing the increasing pollution)
विक्रम मिश्रा का कहना है कि इको फ्रेंडली उत्पाद को बढ़ावा देने का आइडिया दरअसल, बढ़ते प्रदूषण के मद्देनर लिया गया, ख़ासकर दिल्ली की बात करें तो यहां हर साल प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने ये पहल की है। नारियल के छिलके और रबर को मिलाकर गार्डन आर्टिकल्स के साथ ही सुंदर-सुंदर डोरमैट्स भी बना रहे हैं। कुछ डोरमैट्स मशीन से बनते हैं और कुछ मैट्स कारीगर हाथ से भी बनाते हैं।
ज़्यादा तक बिक्री की बात है तो मशीन वाला ही ज़्यादा बिकता है, क्योंकि ये हैंडमेड मैट के मुकाबले सस्ता होता है, मगर किसी को अगर अच्छी चीज़ चाहिए तो हैंडमेड ही लेगा, क्योंकि ये टिकाऊ होता है और क्वालिटी भी अच्छी होती है। दरअसल, एक हैंडमेड मैट बनाने में करीब दो घंटे लगते हैं। पहले नारियल से यार्न निकाला जाता है, फिर उसे रस्सी में बदला जाता है। इस रस्सी को मशीन से रोल किया जाता है और फिर इससे मैट बनता है। इस पूरी प्रक्रिया में मेहनत और समय अधिक लगता है।
कोको पीट है पौधों का टॉनिक (Coco peat is a tonic for plants)
नारियल के अपशिष्ट से खूबसूरत उत्पाद तो बन ही रहे हैं, साथ ही इससे कोको पीट भी बनाया जा रहा है, तो पौधे लगाने के काम आता है। कोकोपीट होम गार्डनिंग के लिए बेस्ट है, क्योंकि इसमें वज़न नहीं होता है और इसमें पौधों का विकास मिट्टी के मुकाबले अच्छा होता है, ख़ासतौर पर इनडोर प्लांट्स की।
विक्रम का कहना है कि अगर कोकोपीट से बने गमलों को पहाड़ी इलाकों में लगाया जाए तो भी इनका अच्छा विकास होगा, क्योंकि ये कम पानी में पौधों को अच्छी नमी देते हैं। यही नहीं नारियल के कचरे (Coconut Waste) से इको फ्रेंडली घोंसले भी बनाए जा रहे हैं, जिसे कोई भी अपनी बालकनी ये घर के बाहर रख सकता है, इससे पक्षियों के आने की संख्या बढ़ेगी। प्रदूषण को कम करने की सरकार की इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए विशेषज्ञ और टेक्निकल टीम लगातार मिलकर नए-नए उत्पाद बना रही है।
इसके साथ ही सरकार शहर में अनोखे गार्डन बनाकर पर्यावरण बचाने की दिशा में काम कर रही है। इसकी एक बेहतरीन मिसाल है दिल्ली के निज़ामुद्दीन फ्लाईओवर पर बना वर्टिकल गार्डन है, मगर विक्रम का मानना है कि अगर इस गार्डन प्लास्टिक के गमलों की बजाय अगर नारियल के वेस्ट से बने गमलों का इस्तेमाल किया जाता तो यह ज़्यादा टिकाऊ होगा और पानी की बचत के साथ ही पौधों की विकास भी अच्छा होगा।
लाखों लोगों को मिला रोज़गार (Lakhs of people got employment)
इको फ्रेंडली उत्पाद बनाने की इस पहल से अब तक 5 लाख लोग जुड़ चुके हैं और 80 से ज़्यादा सोसाइटीज़ इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, जहां गांव की महिलाएं और युवक ऐसे उत्पाद बना रहे हैं। विक्रम बताते हैं कि चार मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स भी लगाई गई हैं, जहां मशीन से उत्पाद बन रहे हैं और इन्हें देश और विदेश में निर्यात किया जा रहा है।
आगे वो बताते हैं कि नई टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया की मदद से इन उत्पादों की मांग बढ़ रही है। आज ये उत्पाद विशाल मेगा मार्ट जैसी कंपनियों में भी सप्लाई किए जा रहे हैं। हालांकि उनका मानना है कि अगर स्थानी बाज़ार तक इनकी पहुंच हो तो ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसका फ़ायदा उठा सकते हैं।
कम लागत में बेहतरीन उत्पाद (Best product at low cost)
नारियल के अपशिष्ट से बने उत्पाद ज़्यादा महंगे नहीं होते हैं, इसलिए हर कोई इसे खरीद सकते है। मैट्स की क़ीमत 200 रुपये से शुरू होती है, जबकि गमले की क़ीमत 50 रुपये से और कोको पीट की क़ीमत 30 रुपये प्रति किलोग्राम से शुरू होती है। यदि कोई अपने घर से हैंडमेड मैट्स बनाने का काम शुरू चाहता है, तो उसे सबसे पहले कच्चे माल यानी नारियल के वेस्ट या रेशे की ज़रूरत होगी। नारियल के रेशे आमतौर पर उन इलाकों में आसानी से मिल जाता है जहां नारियल की खेती होती है, तो वो इसे वहां से मंगवा सकता है फिर क्रोशिया वर्क जैसी तकनीकों से इन्हें घर पर भी तैयार किया जा सकता है।
केरल में नारियल के कचरे (Coconut Waste) से बने इको फ्रेंडली उत्पाद पर्यावरण सरंक्षण के साथ ही रोज़गार को बढ़ावा देने का भी काम कर रहे हैं। इसकी बदौलत कचरे को खूबसूरत चीज़ों में तब्दील करके रोज़गार पैदा किया जा रहा है, जिससे कारीगरों को तो अच्छी आमदनी हो ही जाती है, साथ ही लोगों को इको फ्रेंडली टिकाऊ उत्पाद मिल रहा है।
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