यूकेलिप्टस और मालाबार नीम जैसे वानिकी पौधों से भी किसान कर सकते हैं लाखों की कमाई, जानिए खेती का तरीका

यूकेलिप्टस और मालाबार नीम जैसी पौधों की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। जानें इन पौधों की फ़सल से संबंधित जानकारी और बिक्री के तरीके, गोविंद जोशी से।

यूकेलिप्टस और मालाबार खेती Eucalyptus and Malabar farming

पारंपरिक फ़सलों से इतर भी बहुत से ऐसे पौधे हैं जिसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसमें यूकेलिप्टस और मालाबार नीम जैसे पौधे भी शामिल हैं। यूकेलिप्टस जिसे सफेदा भी कहते हैं, के पौधे 4-5 सालों में तैयार हो जाते हैं और इसकी लकड़ी का उपयोग सबसे ज़्यादा कागज़ और प्लाई उद्योग में किया जाता है। इसलिए इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। ITC कंपनी इस तरह के पौधों के साथ ही बागवानी के पौधे भी बेचती है। इस कंपनी के सेल्स एग्ज़ीक्यूटिव गोविंद जोशी ने बागवानी और वानिकी पौधों और इसे लगाने के तरीकों पर खास चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

कौन-कौन सी वैरायटी के पौधे हैं?

अनाज, दलहनी और तिलहनी फ़सलों के अलावा वानिकी और बागवानी फ़सलों की खेती भी किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। हां, वानिकी पौधों को लगाने के बाद उपज के लिए कुछ साल इंतज़ार करना पड़ता है, लेकिन फैक्ट्रियों में बढ़ती अच्छी किस्म की लकड़ियों की मांग के चलते किसानों के लिए इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। तभी तो ITC कंपनी किसानों  लिए ढेर सारे वानिकी और बागवानी पौधों की पौध तैयार कर रही है।

कंपनी के सेल्स एग्ज़ीक्यूटिव गोविंद जोशी बताते हैं कि उनकी कंपनी यूकेलिप्टस, मालाबार नीम, पोपलर जैसे पौधे तैयार करती है, साथ ही बागबानी में लीची, अमरूद, सेब, कागज़ी नींबू आदि की पौध तैयार कर रही है। यूकेलिप्टस में उनके पास कई वैरायटी है जैसे- BCM405, BCM 288, BCM 2135, BCM1804, BCM 2045, BCM 2023 यूकेलिप्टस, मालाबार, पोपलर जैसे पेड़ों से अच्छी लकड़ी मिलती है और इन लकड़ियों की कागज़ और प्लाई उद्योग में भारी मांग है।

यूकेलिप्टस लगाने का सही समय

गोविंद जोशी कहते हैं कि यूकेलिप्ट्स के पौधों को पूरे साल में कभी भी लगया जा सकता है। इसके पौधे दो तरीके से तैयार किए जाते हैं, एक तो सीडलिंग से और दूसरे पौधे का क्लोन बनाकर जिसे क्लोनल प्लांट कहा जाता है। अधिकांश लोग क्लोनल प्लांट ही लगाते हैं। उनकी कंपनी भी क्लोनल प्लांट ही तैयार करती है, क्योंकि सीडलिंग प्लांट का मैच्योरिटी पीरियड बहुत लंबा होता है यानी उसे परिपक्व होने में 10-11 साल का समय लग जाता है, जबकि क्लोनल पौधे 5 साल में ही तैयार हो जाता हैं और सीडलिंग के मुकाबले इनकी विकास भी जल्दी होती है।

क्लोनल पौधे जैसे-जैसे बड़े होते हैं उनमें ऊपर की ओर नई टहनियां आती हैं और नीचे की टहनियां गिरती जाती हैं यानी इसमें छंटाई की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। जहां तक पौधों को पोषक तत्व देने की बात है तो DAP और NPK डालना चाहिए। वो आगे कहते हैं कि किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौधे लगाने के तुरंत बाद या 10 दिन बाद जड़ों में फंगीसाइड की ड्रेंचिंग ज़रूर करें। 2 ग्राम फंगीसाइड को 1 लीटर पानी में घोलकर जड़ों में डालें। 6 महीने तक इस प्रक्रिया को दोहराएं, क्योंकि अगर ऐसा न किया जाए तो मिट्टी में मौजूद फंगस की वजह से पेड़ सूख सकता है।

कितनी दूरी पर लगाएं यूकेलिप्टस

यूकेलिप्टस के पौधों को बहुत घना नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इससे लकड़ी का वज़न कम हो जाता है। गोविंद जोशी कहते हैं कि इसके पौधों को 10X5 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए और एक एकड़ में 771 पौधे ही लगाएं, ज़्यादा घना न लगाएं। घना लगाने पर पेड़ मोटा नहीं होगा और विकास भी ठीक तरह से नहीं हो पाएगा।

यदि आप 3X5 या 5X5 फीट पर पौधे लगाते हैं तो वो लग तो जाएगा, मगर विकास सही तरीके से नहीं होगा। एक एकड़ में 771 पौधा लगाने पर इससे 1500 क्विंटल लकड़ी निकलती है, वहीं अगर आप इतने ही क्षेत्र में 1000-1200 पौधे लगाते हैं तो भी उतनी ही लकड़ी मिलेगी, क्योंकि पौधों की संख्या बढ़ाने से लकड़ी का वज़न कम हो जाता है।

नहीं होती है ज़मीन बंजर

कुछ लोगों को डर रहता है कि सफेदा की खेती से कहीं उनकी ज़मीन बंजर न हो जाए। तो ऐसे लोगों को गोविंद जोशी बताते हैं कि ये डर निराधार है। इसकी खेती से भूमि बंजर नहीं होती है। यूकेलिप्टस की जड़े बहुत गहरी नहीं जाती हैं। साथ ही इसमें पानी भी दूसरी फ़सल से कम लगता है प्रति किलो 785 लीटर पानी की खपत होती है।

कितनी होती है आमदनी

यूकेलिप्टस की खेती करने वाले किसानों को भले ही लंबा इंतज़ार करना पड़ता है, मगर एक बार पेड़ तैयार हो जाए तो मुनाफ़ा अच्छा होता है। गोविंग जोशी बताते हैं कि 5 साल बाद जब पेड़ तैयार हो जाता है, तो एक एकड़ से करीब 17,50,000 लाख की आमदनी होती है। यूकेलिप्टस की खेती में खर्च बहुत ज़्यादा नहीं होता है, इसकी कटाई-छंटाई की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है, बस फंगीसाइड और फर्टिलाइज़र का ही खर्च होता है। ऐसे में किसानों को मुनाफ़ा अधिक होता है।

मालाबार नीम की खेती कैसे करें

यूकेलिप्टस की तरह ही मालाबार नीम की खेती भी लकड़ी के लिए की जाती है। गोविंद जोशी का कहना है कि इसे सूखे जगहों पर लगाया जा सकता है, क्योंकि इसमें पानी की ज़्यादा ज़रूरत नहीं होती है। इसके पौधों को 10X10 फीट की दूरी पर लगाएं और एक एकड़ में 430 पौधे लगाएं। पौधों की रोपाई के बाद एक महीने तक इसे सिंचाई की ज़रूरत होती है ताकि जड़ मज़बूत हो जाए। उसके बाद ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती। मालाबार नीं की लकड़ी से प्लाई के ऊपर वाली पतली लेयर बनती है। इसकी खासियत यह है कि इसमें दीमक नहीं लगता है, इसलिए इसका इस्तेमाल फर्नीचर बनाने मे किया जा सकता है। लकड़ी हल्की और चमकदार होती है।

कितनी मिलती है लकड़ी

गोविंद जोशी बताते हैं कि मालाबार नीम की लकड़ी 1300-1400 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकती है। इसका पौधा 6 साल में तैयार हो जाता है और एक पेड़ से 3 से 3.5 क्विंटल लकड़ी निकलती हैं। वैसो तो इसके पौधों को भी कभी भी लगाया जा सकता है, लेकिन लीफ फॉल के समय यानी जनवरी फरवरी में इसे लगाना ज़्यादा अच्छा होता है।

लकड़ी के लिए खेती के लिए बेस्ट पौधे

जो किसान लकड़ी के खेती के मकसद से पौधें लगाना चाहते हैं उन्हें गोविंद जोशी पोपलर, यूकेलिप्टस और मालाबार नीम की खेती की सलाह देते हैं। क्योंकि इनसे मिलने वाली लकड़ियां पेपर और प्लाई दोनों ही बनाने में इस्तेमाल होता है, इसलिए दोनों ही इंडस्ट्री में इसकी बहुत मांग है।

मार्केटिंग की समस्या

वैसे तो किसानों के लिए मार्केटिंग हमेशा से एक समस्या रही है, मगर गोविंद जोशी का कहना है कि मार्केटिंग कोई समस्या नहीं है, लकड़ियां आसानी से बिक जाती है। लकड़ी आधारित कई इंडस्ट्री खुल चुकी हैं, जिससे इनकी मांग और खपत बढ़ी है।

मैदानी इलाके के लिए सेब की किस्म

ITC कंपनी ने मैदानी इलाकों के लिए सेब की खास किस्म हरमन 99 तैयार की है। गोविंद जोशी का कहना है कि इसमें लगाने के 3 साल बाद ही फल लगने लगते हैं और अभी तक उन्होंने जहां भी इसके पौधे दिए हैं सब जगह फल लग रहे हैं। हां, इसे थोड़ी देखभाल की ज़रूरत पड़ती है और समय-समय पर छंटाई करनी पड़ती है।

किसानों को कार्बन क्रेडिट

सरकार एग्रो फॉरेस्ट्री यानी कृषि वानिकी को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार काम कर रही है। वह TERI (The Energy and Resources Institute) के साथ मिलकर किसानों को 50000 रुपए प्रति एकड़ के  हिसाब से कार्बन क्रेडिट दे रही है। दरअसल, कार्बन क्रेडिट किसानों को ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए दिया जाता है। कार्बन क्रेडिट को बेचकर किसान अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। सरकार सारे वानिकी पौधों के लिए ये सब्सिडी देती है और इसका पैसा पौधा लगाने के तीसरे और छठे साल में आता है। इसके ज़रिए ग्लोबल वॉर्मिंग के असर को कम करने की एक छोटी सी कोशिश की जा रही है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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