लॉकडाउन में कद्दू बना किसानों का सहारा, कर्नाटक में ही बना डाला आगरा का पेठा

विश्वनाथ एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वो हमेशा से अपना कोई बिजनेस करना चाहते थे। उन्होनें कहा कि पेठा बनाने के लिए जैसी मशीन उन्हें चाहिए थी, वैसे बाज़ार में मिलना मुश्किल था। इसलिए उन्होनें अपनी ही कंपनी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट करके मशीन बनाई। अब इस मशीन की वजह से उत्पादन क्षमता बढ़ गई और ज्यादा से ज्यादा किसान अपनी फसल उन्हें बेच सकते हैं।

लॉकडाउन में कद्दू agra petha business idea

लॉकडाउन में कद्दू: आप जब भी आगरा का नाम सुनते हैं तो अक्सर आपके दिमाग में दो चीजें आती होंगी, एक तो ताजमहल दूसरा आगरा का मशहूर पेठा। आपको जानकर हैरानी होगी की यह मिठाई एक सब्जी से बनाई जाती है जिसे उत्तर भारत में पेठा और कई जगह सफेद कद्दू के नाम से जानते हैं।

हम सब इस मिठाई से रूबरू हैं पर क्या आपको मालूम है इस मिठाई को सफेद कद्दू से बनाया जाता है और इसे बनाने के लिए सफेद कद्दू दक्षिण भारत से आगरा आता है।

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कर्नाटक के शिमोगा जिले का तीर्थहल्ली शहर कद्दू के उत्पादन के लिए काफी मशहूर है। यहां के किसान कद्दू ज्यादा मात्रा में उगाते हैं और ट्रेडर्स के जरिए दिल्ली व आगरा में बेचते हैं। इन किसानों के लिए कद्दू कमाई का एक अच्छा जरिया है। आगरा में पेठे का निर्माण होने की वजह से उन्हें वहां पर अपनी फसलों का अच्छा दाम मिलता है। लेकिन कोरोना के कहर में इस बार फसलों की बिक्री ही नहीं होने के वजह से किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

किसानों की मदद के लिए पेठा बनाना सीखा, फिर लगाई प्रोसेसिंग यूनिट

तीर्थहल्ली के किसानों ने इस बार भी लगभग 2000 टन सफेद कद्दू की खेती की लेकिन लॉकडाउन की वजह से वह अपनी फसल को दिल्ली और आगरा तक नहीं पहुंचा पाए। किसान बेहद परेशान हो गए और इस मुश्किल वक्त में किसानों का मसीहा बनकर निकले 39 वर्षीय विश्वनाथ कुंटावल्ली।

विश्वनाथ कुंटावल्ली ने दो साल पहले अपना खाद्य उद्यम, इब्बनी फ़ूड इंडस्ट्रीज की शुरूआत की थी। उनका ये स्टार्टअप शुद्ध और बिना किसी केमिकल के प्रयोग से बनी मिठाइयों के लिए चर्चित है।

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विश्वनाथ ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनका काम बंद था, लेकिन किसानों की परेशानी को देखते हुए उन्होने अपनी प्रोसेसिंग यूनिट में आगरा पेठा बनाने की कोशिश की। उनका मानना था कि इससे किसानों को भी बाजार मिल जाएगा। उन्होंने आगरा पेठा बनाने की विधि पर रिसर्च करना शुरू किया। वह कहते हैं कि उन्हें यूट्यूब से काफी कुछ सीखने को मिला।

मई से शुरू हुआ पेठा बनाने का काम

मई महीने से ही इस पेठा बनाने की शुरूआत हो गई और लगभग एक हफ्ते में इसकी उन्होंने रेसिपी तैयार कर ली। पहली बार में तो कम पेठे बनाए गए और बेहतरीन रिजल्ट के बाद दूसरी बार में इनकी संख्या बढ़ाई गई। लगभग एक-डेढ़ हफ्ते में पहला पेठा का बैच तैयार हो गया और इसे सबने काफी पसंद भी किया। इसके बाद और भी किसानों ने उनके साथ जुड़ना शुरू कर दिया।

किसानों ने कद्दू अपने ही शहर में बेचें

पेठे की सफलता के बाद किसानों ने कद्दू अपने ही शहर में बेचना शुरू कर दिया। वह प्रत्येक दिन लगभग 7 से 10 टन कद्दू किसानों से खरीद सकते हैं क्योंकि उन्होंने प्रोसेसिंग के लिए मशीन लगा रखी है। विश्वनाथ बताते हैं कि पेठे के लिए प्रोसेसिंग मशीन भी उन्होंने खुद ही तैयार की है।

इंजीनियरिंग छोड़ शुरू किया खुद का बिजनेस

विश्वनाथ एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं। वो हमेशा से अपना कोई बिजनेस करना चाहते थे। उन्होनें कहा कि पेठा बनाने के लिए जैसी मशीन उन्हें चाहिए थी, वैसे बाज़ार में मिलना मुश्किल था। इसलिए उन्होनें अपनी ही कंपनी में रिसर्च एंड डेवलपमेंट करके मशीन बनाई। अब इस मशीन की वजह से उत्पादन क्षमता बढ़ गई और ज्यादा से ज्यादा किसान अपनी फसल उन्हें बेच सकते हैं।

विश्वनाथ ने अब तक लगभग 1500 किलोग्राम पेठा तैयार किया है और 30 छोटे किसानों से उनकी फसल खरीदी है। विश्वनाथ इस साल लगभग 1000 टन सफेद कद्दू से पेठा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। जिससे गांव के लगभग 200 किसानों को मदद मिलेगी।

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