क्या हवा में आलू उग सकता है? अफ्रीका में रवांडा के करेगेया से जानिये एरोपोनिक्स तकनीक

न मिट्टी की ज़रूरत और न ही ज़मीन की, फिर भी मिलेगा ज़्यादा उत्पादन

अगर बड़े पैमाने पर एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique) को अपनाया जाए, तो ये किसानों को कम समय में अच्छी आमदनी देने का ज़रिया बन सकती है। इस तकनीक की मदद से किसान सालभर में तीन फसल ले सकते हैं।
Story Courtesy: UN News

खेती से जब तकनीक मिलती है तो नामुमकिन दिख रही चीज़ भी मुमकिन हो जाती है। हेडलाइन पढ़कर आपको भी शायद अचरज हुआ होगा कि आखिर हवा में आलू कैसे उग सकता है? लेकिन ऐसा मुमकिन है। एक ऐसी तकनीक है, जिसमें आलू उगाने के लिए किसान को ज़मीन और मिट्टी की ज़रूरत नहीं पड़ती और पानी की बचत भी होती है। इस तकनीक का नाम है एरोपोनिक्स (Aeroponics)।

परंपरागत तरीके से खेती छोड़ी, अपनाई एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)

पूर्वी अफ़्रीका के देश रवांडा के रहने वाले अपोलिनेयर करेगेया इस तकनीक से ही आलू की खेती कर रहे हैं। रवांडा की करीबन 67 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है। वहां करीब 1.56 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है। यूएन न्यूज़ के मुताबिक, करेगेया का परिवार आलू की खेती से ही जुड़ा हुआ है। करेगेया शुरू से ही पारंपरिक तरीके से आलू की खेती करते आए, लेकिन खराब जलवायु के कारण फसल का कम उत्पादन होता था।

करेगेया हमेशा से खेती को और बेहतर बनाने के लिए नए विकल्पों की तलाश में रहते थे। खेती के क्षेत्र में कुछ नया सीखना उन्हें पसंद था। उन्होंने सरकारी संस्थानों में जाना शुरू किया, जो किसानों के लिए काम कर रहे थे। ऐसे उन्हें यूरोप में ट्रेनिंग करने का मौका मिला। ट्रेनिंग के दौरान ही करेगेया ने एरोपोनिक्स तकनीक के बारे में जाना। सरकार के सहयोग से करेगेया ने 2015 में एरोपोनिक्स तकनीक अपनाकर आलू की खेती शुरू कर दी।

एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)
तस्वीर साभार: UN News

क्यों चुनी एरोपोनिक्स तकनीक?

2032 तक रवांडा की जनसंख्या 10.5 मिलियन (2012 का आंकड़ा) से बढ़कर 16.9 मिलियन होने का अनुमान है। जैसे-जैसे शहरीकरण हो रहा है, आने वाले वक़्त में कृषि योग्य भूमि कम होने का अंदेशा है। ऐसे में रवांडा की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करना के लिए कम जगह में ही उच्च उत्पादन मिल सके, ऐसी तकनीकों पर काम करना ज़रूरी है। ऐसे में बिना मिट्टी और कम पानी से अच्छी क्वालिटी देने वाली एरोपोनिक्स तकनीक कारगर है। इसी तकनीक को रवांडा के रहने वाले अपोलिनेयर करेगेया ने अपनाया।

एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)
तस्वीर साभार: UN News

ढाई महीने में ही तैयार हो जाती है फसल

एरोपोनिक्स तकनीक के ज़रिए करेगेया अपने ग्रीनहाउस में लगभग 2500 पौधे उगाते हैं। इन पौधों से ढाई महीने में ही आलू का उत्पादन हो जाता है। अपने फ़ार्म में तैयार किए गए पौधों को वो इलाके के दूसरे किसानों को भी बेचते हैं। करेगेया, एरोपोनिक्स तकनीक से आलू की खेती साल में तीन बार करते हैं। आज  करेगेया अपने क्षेत्र के दूसरे किसानों को एरोपोनिक्स तकनीक से खेती करने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। अब तक रवांडा के करीबन 42 किसानों को उन्होंने ट्रेनिंग दी है।

आलू की खेती में सबसे कारगर एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)

मिट्टी, पानी नहीं लगता इसलिए एरोपोनिक्स तकनीक से खेती करना पर्यावरण के लिए भी अच्छा माना गया है। आलू की खेती के लिए तो ये तकनीक सबसे कारगर मानी जाती है। ये तकनीक उन किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है, जिनके पास खेती के लिए ज़्यादा ज़मीन नहीं होती।

एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)
तस्वीर साभार: UN News

कैसे काम करती है एरोपोनिक्स तकनीक?

एरोपोनिक्स तकनीक में एक बंद वातावरण जैसे पॉलीहाउस या ग्रीनहाउस में पौधों को बिना मिट्टी के विकसित किया जाता है। अब आपके ज़हन में सवाल आया होगा कि बिना मिट्टी के पौधों को पोषक तत्व कैसे मिलेगा? दरअसल, इस तकनीक में फसल की जड़ें हवा में लटकी होती हैं।

एरोपोनिक्स तकनीक में जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह लटकती हुई जड़ों से ही दिए जाते हैं। जड़ों पर पोषक तत्वों से भरपूर पानी का छिड़काव किया जाता है। इसकी मदद से पौधे की तनों की कोशिकाओं ( cells )  का विकास होता है।

क्या हैं इस तकनीक के फ़ायदे?

Aeroponics Technique में मिट्टी से फसलों पर पनपने वाले रोगों का खतरा न के बराबर हो जाता है। एरोपोनिक्स तकनीक उन सब्जियों की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी गई है, जिनकी जड़ें ऑक्सीजन और नमी को सोख सकती हैं। इस तकनीक की मदद से किसान पोषक तत्वों से भरपूर फसल प्राप्त कर सकते हैं। ये तकनीक पानी की बर्बादी को सीमित कर देती है।

एरोपोनिक्स तकनीक (Aeroponics Technique)
तस्वीर साभार: potatonewstoday

विदेश में हो रहा है इस तकनीक का इस्तेमाल

हरियाणा के करनाल जिले  में स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र में एरोपोनिक्स तकनीक से आलू उगाने का प्रयोग हुआ। ये प्रयोग सफल भी रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि बिना ज़मीन और मिट्टी के ही खेती करके आलू की पैदावार 10 गुना तक बढ़ाया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से इस तकनीक के इस्तेमाल से खेती करने को मंजूरी भी मिली हुई है।

लेकिन जानकारी के अभाव में किसानों को इसके बारे में पता ही नहीं है। एरोपोनिक्स तकनीक से आलू की खेती करने के लिए इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर और आलू प्रौद्योगिकी केंद्र करनाल के बीच एक एमओयू भी हुआ है।

अगर भारत में बड़े पैमाने पर एरोपोनिक्स तकनीक को बढ़ावा मिले तो इससे पर्यावरण को हो रहे नुकसान और पानी की बचत की जा सकती है। इस तकनीक में प्रकृति के खिलाफ काम करने के बजाय, उसके साथ मिलकर कृषि क्षेत्र के लिए काम किया जाता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल। 
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