सर्दियों वाले गुलदाउदी (Chrysanthemum) के दिलकश फूलों को गर्मियों में उगाने की तकनीक विकसित

गुलदाउदी उगाने की नयी तकनीक से जहाँ घरेलू बाग़ीचों की रौनक बदल सकती है, वहीं नसर्री मालिकों, फूल उत्पादक किसानों और फूलों के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए भी आमदनी के नये मौके विकसित हो सकते हैं। NBRI का उद्यानिकी प्रभाग लम्बे अरसे से जुलाई में ही गुलदाउदी को खिलाने की तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहा था। ज़ाहिर है मई-जून में खिलने वाली किस्म से ये मुराद पूरी हो गयी। अपनी उपलब्धि से उत्साहित NBRI के वैज्ञानिकों का इरादा जल्द ही गुलदाउदी की ऐसी किस्मों की पहचान करके उनका ऐसा कलेंडर बनाना है जिससे गुलदाउदी के चाहने वालों को पूरे साल इसके फूलों से सुकून हासिल करने का मौका मिल सके।

गुलदाउदी की खेती

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान (NBRI) के वैज्ञानिकों ने सर्दियों में खिलने वाले गुलदाउदी के फूलों के लिए ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे इन्हें मई-जून वाली गर्मियों में भी उगाया जा सके। अपनी उपलब्धि से उत्साहित वैज्ञानिकों का इरादा जल्द ही गुलदाउदी की ऐसी किस्मों की पहचान करके उनका ऐसा कलेंडर बनाना है जिससे गुलदाउदी के चाहने वालों को पूरे साल इसके फूलों से सुकून हासिल करने का मौका मिल सके।

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गुलदाउदी उगाने की नयी तकनीक से जहाँ घरेलू बाग़ीचों की रौनक बदल सकती है, वहीं नसर्री मालिकों, फूल उत्पादक किसानों और फूलों के कारोबार से जुड़े लोगों के लिए भी आमदनी के नये मौके विकसित हो सकते हैं। NBRI के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने बताया कि संस्थान का उद्यानिकी प्रभाग लम्बे अरसे से जुलाई में ही गुलदाउदी को खिलाने की तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहा था। ज़ाहिर है मई-जून में खिलने वाली किस्म से ये मुराद पूरी हो गयी।

क्या है नई तकनीक? 

नयी तकनीक के बारे में NBRI के उद्यानिकी प्रभारी डॉ. एसके तिवारी बताते हैं कि गुलदाउदी की शीघ्र खेलने वाली किस्मों का सकर यानी ‘पुराने पौधों से निकलने वाले नये पौधे’ को फरवरी-मार्च में ही सबसे पहले मोरंग, गोबर और पत्ती की खाद के मिश्रण से भरे 10 इंच के गमलों में लगाया गया। तीन हफ़्ते बाद जब इनमें जड़ें पनप गयीं तो इन्हें अलग-अलग करके 6 इंच वाले गमलों में लगा दिया गया।

इसके 15 से 20 दिनों के बाद गुलदाउदी के इन्हीं पौधों की पिंचिंग की गयी यानी टहनियों के ऊपरी भाग को तोड़ दिया गया। इस दौरान नियमित तौर पर पौधों में ख़ास तौर पर तैयार किये गये पोषक तत्वों का घोल डाला गया तो करीब 20 दिनों बाद पौधों में कलियाँ आने लगीं और फिर यही कलियाँ मई में गुलदाउदी के खूबसूरत फूलों में तब्दील हो गयीं। इन्हीं पोषक तत्वों को गुलदाउदी की फूलों की पूरी उम्र तक पौधों में पहले की तरह ही डालते रहना है। साथ ही नियमित रूप से सिंचाई जारी रखनी होगी।

सर्दियों वाले गुलदाउदी (Chrysanthemum) के दिलकश फूलों को गर्मियों में उगाने की तकनीक विकसित

क्या है गुलदाउदी का विशेष पोषक तत्व?

डॉ. तिवारी बताते हैं कि गर्मी के मौसम में गुलदाउदी के पौधों को विशेष पोषण की ज़रूरत पड़ती है, जिसे तरल खाद से पूरा किया गया। तरल खाद बनाने के लिए 20 लीटर के एक टब में 5 किलो कच्चा गोबर और मदार के साथ आम, खस, शरीफ़ा, कटहल, अशोक, पीपल, बेल, नीम, शीशम और अमरूद की 250-250 ग्राम पत्तियों के साथ DAP, नीम की खली, सुपर फास्फेट, पोटाश और बोन मील की भी 100-100 ग्राम मात्रा को मिलाया गया। फिर टब के मुँह को पॉलिथीन से बाँधकर तेज़ धूप में रखा गया।

इससे महीने भर बाद जो तरल खाद तैयार हुई उसकी 100 मिलीलीटर मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर 10-10 दिनों के अन्तराल पर उन गमलों की मिट्टी में डाला गया जिनमें सकर की रोपाई की गयी थी। जब पौधों में गलियाँ फूटने लगें तो 6 इंच वाले गमलों के पौधों को फिर से 10 इंच या इससे बड़े गमलों में लगाया जाना चाहिए।

Chrysthanemum
गर्मी के मौसम में गुलदाउदी के पौधों को विशेष पोषण की ज़रूरत पड़ती है

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गुलदाउदी की परम्परागत बाग़वानी

मौसम और रोपाई – परम्परागत गुलदाउदी के अनेक किस्में हैं। इसके फूल छोटे-बड़े और अनेक रंगों वाले होते हैं। लेकिन जो फूल अक्टूबर से आने शुरू होते हैं उनकी तैयारी अगस्त से की जाती है। तो नवम्बर आते-आते गुलदाउदी के गमले लहलहा उठते हैं। इसके लिए जुलाई-अगस्त की बारिश के मौसम में गुलदाउदी के पौधों की 2 से 3 इंच तक की कटिंग करके उन्हें नये सिरे से रोपा जाता है। कटिंग ज़्यादा बड़ी नहीं लगानी चाहिए। वर्ना, वो सड़ सकती है। इसका साइज जितना मोटा होगा, पौधे उतना ही मज़बूत होंगे और उन पर ज़्यादा संख्या में फूल आएँगे।

मिट्टी और खाद – गुलदाउदी का पौधा लम्बे समय तक फूल देता है। इसे अधिक पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है। इसीलिए यदि बार-बार पौधों को खाद देने से बचने के लिए शुरुआत में ही पर्याप्त खाद देना चाहिए। मिट्टी और खाद के बीच 60-40 का अनुपात बेहतर रहता है। वर्ना पौधे और फूल ज़्यादा टिकाऊ नहीं रह पाते। छोटी प्रजाति वाली गुलदाउदी के लिए भी 6-8 इंच वाला गमला होना चाहिए। बड़ी फूलों वाली की प्रजाति का गमला 10-12 इंच या इससे बड़ा भी होना चाहिए।

जैविक खाद है सबसे उम्दा – गुलदाउदी के पौधों के लिए जैविक खाद सबसे बेहतर होती है। गोबर खाद वर्मी कम्पोस्ट या अच्छे तरीके से तैयार कम्पोस्ट पौधों के विकास के उत्तम रहता है। इससे बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है और मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहती है। यदि शुरुआत में ही ज़मीन में खूब पोषक तत्व नहीं मिलाये गये हों तो फूल आने के बाद भी गुलदाउदी को हर हफ़्ते थोड़ी-थोड़ी खाद दी जानी चाहिए।

रासायनिक उर्वरक – DAP, NPK, यूरिया, पोटाश और सुपर सल्फेट की सीमित मात्रा भी गुलदाउदी के लिए उपयुक्त रहती है। जैसे हरेक गमले में महीने में एक बार DAP के 5-10 दाने,  एक लीटर पानी में दो ग्राम मिलाकर NPK महीने में एक बार, एक लीटर पानी में दो ग्राम पोटाश घोलकर महीने में एक बार दे सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि कोई भी दो खाद से ज़्यादा पौधों को नहीं दें और इनके बीच में कम से कम हफ़्ते भर का अन्तर ज़रूर रखें।

पानी और धूप – गुलदाउदी के अच्छे फूल लेने के लिए पौधे को ज़्यादा से ज़्यादा धूप में रखें और दो दिन में एक बार पानी देना चाहिए। अगर मिट्टी ज़्यादा नम हो जाए तो कुछ दिन पानी नहीं दें। महीने में एक बार गमले कि गुड़ाई ज़रूर करें। गुलदाउदी के पौधे की फूल आने से पहले कटिंग या pruning करना बहुत ज़रूरी है। इससे फूल ज़्यादा आते हैं।

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