Fisheries: घरेलू तरीके से कम लागत में कैसे तैयार होता है मछलियों का आहार, बताया डॉ. मीरा ने

डॉ. मीरा डी. अंसल बताती हैं कि गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय लुधियाना  (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Science College Ludhiana, Punjab) की ओर किसानों की मदद के लिए साल में दो बार पशु मेले का आयोजन किया जाता है, जहां डेमोस्ट्रेशन यूनिट लगाई भी जाती है और यहां किसानों को मछली पालन (Fisheries) से जुड़ी तकनीक के बारे बताया जाता है। उनका कहना है कि यूनिवर्सिटी का मकसद किसानों को ये बताना है कि वो अपने क्षेत्र में कितने तरह की मछलियां पालन (Fisheries) सकते हैं।

Fisheries: घरेलू तरीके से कम लागत में कैसे तैयार होता है मछलियों का आहार, बताया डॉ. मीरा ने

मछली पालन (Fisheries) के क्षेत्र में किसानों की लागत का एक बड़ा हिस्सा मछलियों के आहार (Diet of fish) पर खर्च होता है, ऐसे में अगर वो घरेलू तरीके से खुद ही मछलियों का आहार (Diet of fish) तैयार कर लें तो लागत बहुत कम हो सकती है। मछली पालकों (fish farmers) के लागत को कम करने के मकसद से ही गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय लुधियाना, पंजाब (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Science College Ludhiana, Punjab) का मात्स्यिकी महाविद्यालय (College of Fisheries) घरेलू नुस्खे से मछलियों का दाना (Fish feed) तैयार करती है।

इस फॉर्मूले को अपनाकर मछली पालक (fish farmers) कम लागत में अपने घर में उपलब्ध चीज़ों से ही मछलियों का दाना तैयार कर सकते हैं। इस बारे में मात्स्यिकी महाविद्यालय (College of Fisheries) की डीन डॉ. मीरा डी. अंसल ने विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

किसानों को तकनीकी जानकारी

डॉ. मीरा डी. अंसल बताती हैं कि गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय लुधियाना  (Guru Angad Dev Veterinary and Animal Science College Ludhiana, Punjab) की ओर किसानों की मदद के लिए साल में दो बार पशु मेले का आयोजन किया जाता है, जहां डेमोस्ट्रेशन यूनिट लगाई भी जाती है और यहां किसानों को मछली पालन (Fisheries) से जुड़ी तकनीक के बारे बताया जाता है। उनका कहना है कि यूनिवर्सिटी का मकसद किसानों को ये बताना है कि वो अपने क्षेत्र में कितने तरह की मछलियां पालन (Fisheries) सकते हैं।

मछलियां भी दो तरह की होती हैं, एक खाने वाली और दूसरी ऑरनामेंटल यानी सजावटी मछली। तो खाने वाली मछलियों में कितनी किस्में हैं और उन्हें किस तरह से पाल सकते हैं, उसका बीज कहां से लेना है, उसे क्या आहार देना है, उसकी सेहत की देखभाल कैसे करनी है, उसकी मार्केटिंग और उससे मूल्य संवर्धन उत्पाद कैसे बनाना हैं, इस तरह की सारी तकनीकी जानकारी किसानों को दी जाती है।

हर तरह के किसानों के लिए तकनीक

कॉलेज ऑफ फिशरीज़ (College of Fisheries) की डीन डॉ. मीरा बताती हैं कि मछली पालन (Fisheries) के क्षेत्र में कई तरह के सिस्टम हैं, जैसे तालाब में मछली पालन (पॉन्ड एक्वाकल्चर), इनडोर मछली पालन जिसमें रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम और बायोफ्लॉक सिस्टम शामिल है। इनडोर मछली पालन (Fisheries) सिस्टम में टैंक में कम जगह में ज़्यादा मछली पाल सकते हैं।

वो बताती हैं कि यूनिवर्सिटी के पास अलग-अलग तरह के एक्वाकल्चर सिस्टम (Aquaculture Systems) भी हैं जिसकी प्रदर्शनी लगाई जाती है और छोटे, मध्यम, बड़े किसानों को उनके पास उपलब्ध संसाधनों और धन के हिसाब से तकनीक अपनाने के लिए जानकारी दी जाती है। जिससे वो सही जानकारी लेकर ये काम कर सकें और अच्छा मुनाफा कमा सकें।

घरेलू तरीके से तैयार मछलियों का आहार

डॉ. मीरा बताती हैं कि किसान पारंपरिक रूप से मछलियों को जो आहार देते हैं उन्हें ही मिलाकर मछलियों का आहार तैयार किया जा सकता है, जैसे राइस ब्रान (चावल की भूसी), या उसके क्षेत्र में जो तेल होता है उसकी खली जैसे पंजाब में सरसों की खली का इस्तेमाल होता है। फिर मिनरल मिश्रण, नमक मिलाकर आहार तैयार किया जा सकता है।

इसे अधिक पौष्टिक बनाने के लिए किसान इसमें थोड़ा फिश मील भी मिला सकते हैं। अब तैयार मिश्रण को आटे की तरह गूंधकर उसकी गोलियां बनाकर मछलियों को देते हैं। ये सबसे आम तरीका है मछलियों को भोजन देने का।

आहार तैयार करने के लिए सही मात्रा

मछलियों की सही खुराक तैयार करने के लिए डॉ. मीरा सभी चीज़ों की सभी मात्रा की जानकारी देते हुए कहती हैं कि यदि 100 किलो खुराक बना रहे हैं तो उसके लिए 44 किलो राइस ब्रान, 44 किलो सरसों की खली,10 किलो फिश मील, डेढ़ किलो के करीब मिनरल मिश्रण और आधा किलो के करीब नमक मिलाया जाता है।

यदि कोई फिश मील नहीं डालना चाहे, तो राइस ब्रान और सरसों की खली दोनों 49-48 किलो डाल सकते हैं। इसमें जो मिनरल मिश्रण इस्तेमाल किया जाता है इसे यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किया जाता है और इसे खास मछलियों के विकास को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है, इसलिए ये बाज़ार में मिलने वाले मिनरल मिश्रण से बहुत अधिक फायदेमंद होता है।

आहार देने का तरीका

आमतौर पर मछिलयों को आटे की गोलियां बनाकर भोजन के रूप में दी जाती हैं, मगर आहार देने के दूसरे तरीके भी हैं। डॉ. मीरा बताती हैं कि मछलियों के आहार को सेवईयों की तरह भी तैयार किया जा सकता है, इसे पेलेट फीड कहते हैं। ये दो तरह की होती हैं एक पानी में तैरती रहती हैं और दूसरी डूब जाती हैं। जो मछलियां पानी की ऊपरी सतह पर रहती हैं वो तैरते पेलेट फीड को खा लेती हैं और जो मछलियां निचली सतह में रहती हैं वो डूबे हुए पेलेट फीड को खाती हैं।

इस फीड की खासियत है कि ये बहुत देर तक खाने योग्य स्थिति में रहती हैं, खराब कम होती है और पानी की गुणवत्ता को भी खराब नहीं करती हैं। बायोफ्लॉक या रिसर्कुलेटरी सिस्टम में इस फीड का इस्तेमाल किया जाता है।

मछलियों के साइज के हिसाब से दाने का साइज़

मछलियों को किसी साइज़ के दाने देने हैं ये उनके आकार पर निर्भर करता है। छोटी मछलियों को छोटा दाना और बड़ी मछलियों को बड़ा दाना दिया जाता है। डॉ. मीरा का कहना है कि दाने का साइज़ मछलियों की साइज़ के हिसाब से बढ़ाते रहना ज़रूरी है। दाने का साइज इसलिए अलग-अलग रखा जाता है ताकि मछलियां उसे आसानी से खा सकें।

जड़ी-बूटियों से बढ़ेगा मछलियों का उत्पादन

डॉ. मीरा किसानों को आवंला, गिलोए, एलोवेरा, अदरक, लहसुन जैसी जड़ी-बूटियों को भी इस्तेमाल करने की सलाह देती हैं, जो सालों से हमारी रसोई का हिस्सा हैं। इन जड़ी-बूटियों को 10 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से यदि मछलियों के आहार में मिलाया जाता है तो मछलियों की सेहत अच्छी रहती है, उन्हें दवाई देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, मछलियों का विकास तेजी से होता है और उनकी प्रजनन शक्ति भी बढ़ती है।

यदि कोई मछली एक लाख अंडे देती है तो ये जड़ी-बूटियां देने के बाद वो डेढ़ लाख तक अंडे दे सकती है। इसे इस्तेमाल करने के बारे में डॉ. मीरा कहती हैं कि लहसुन, अदरक, अश्वगंधा, शतावरी, आंवला, एलोवेरा सब चीज़ों को सुखाकर पाउडर बनाकर रख लें। किसान इन्हें अप्रैल-मई के महीने में सुखा सकते हैं क्योंकि तब नमी नहीं होती है।

फिर इस पाउडर को मछलियों की फीड में मिलाया जाता है। वो कहती हैं कि किसान इन जड़ी-बूटियों को बिना ज़्यादा खर्च के तालाब के किनारे-किनारे ही उगा सकते हैं।

कितनी कम होती है लागत

डॉ. मीरा बताती हैं कि मछलियों के आहार में जब इन जड़ी-बूटियों को सप्लीमेंट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, तो मछलियों का उत्पादन 40 से 80 फीसदी तक बढ़ जाता है। इसके इस्तेमाल से आहार का खर्च तो बढ़ता है, लेकिन उत्पादन इतना बढ़ जाता है कि वो खर्च को कवर कर लेता है और किसानों को 20 प्रतिशत अधिक मुनाफा होता है।

ये चीज़ें केमिकल फ्री होती हैं तो इससे मछलियों की सेहत ठीक रहती है और जब मछलियों की सेहत ठीक रहेगी तो इसे खाने वालों की सेहत भी अच्छी रहेगी। इन चीज़ों से पर्यावरण को भी किसी तरह का नुकसान नहीं होता और किसानों का भी मुनाफा बढ़ता है, तो क्यों न हर किसान इसे अपनाए।

अजोला और पानी में उगने वाले पौधे

डॉ. मीरा का कहना है कि पानी में उगने वाले पौधें भी मत्स्य पालन का ही हिस्सा होते हैं। वो किसानों को अजोला की खेती के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनका कहना है कि अजोला एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो वातावरण से नाइट्रोजन लेकर बहुत तेज़ी से बढ़ती है। इसके अलावा किसान पानी के ऊपर तैरने वाले दूसरे पौधे भी उगा सकते हैं।

अजोला की खेती में ज़्यादा लागत भी नहीं आती है, कोई भी देशी खाद इस्तेमाल करके किसान बाग में या तालाब में इसे उगा सकते हैं। अजोला को उसी रूप में मछली, बतख, मुर्गी, सुअर या गाय को सप्लीमेंट के रूप में दिया जा सकता है। इसमें प्रोटीन के साथ ही सभी तरह के अमीनों एसीड होते हैं।

अजोला को सुखाकर भी रख सकते हैं और मछलियों का आहार बनाते समय उसमें मिलाया जा सकता है। अजोला से खाद भी बनाई जा सकती, इसके अलावा इससे स्टिक्स भी तैयार किया जाता है जिसे गमले में रखा जाता है, क्यारियों में डालने के लिए इसके फ्लेक्स बनाए जाते हैं। इस तरह किसान इस काम से अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

महिलाओं की भूमिका

डॉ. मीरा का मानना है कि मछली पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे आसानी से किया जा सकता है। खेती-बाड़ी, डेयरी आदि में तो महिलाओं का योगदान पहले से ही हैं और वो मछली पालन में भी योगदान कर सकती हैं, न सिर्फ सीधे तौर पर मछली पालन से जुड़कर, बल्कि वो ओरनामेंटल फिश का काम घर में रहकर भी ही कर सकती हैं, घर की छत, पीछे की जगह में। इसके अलावा मछलियों से मूल्य संवर्धन उत्पादन तैयार करने यानी प्रोसेसिंग का काम भी महिलाएं कर सकती हैं जैसे मछली का आचार आदि बनाना।

ट्रेनिंग की व्यवस्था

किसानों के लिए यूनिवर्सिटी की तरफ से ट्रेनिंग प्रोग्राम का भी आयोजन किया जाता है जिसमें मछली पालन, सजावटी मछली पालन और प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग शामिल है। डॉ. मीरा बताती हैं कि इसके लिए इच्छुक किसानों को यूनिवर्सिटी का एक ट्रेनिंग फॉर्म भरना होगा और जब भी 20-30 किसानों का एक कैटेगरी में ग्रुप बन जाता है तो उन्हें फोन करके ट्रेनिंग के लिए बुलाया जाता है। महिलाओं के लिए तो ये प्रशिक्षण बिल्कुल मुफ्त है, मगर बाकी लोगों को 3 दिन के प्रशिक्षण के लिए 750 रुपए और 5 दिन के लिए 1000 रुपए की फीस देनी होती है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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