एकीकृत कृषि को अपनाकर आप कैसे ले सकते हैं फ़ायदा? रिटायर्ड फौजी का रहे लाखों की कमाई

मूल्यसंवर्धन और एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाया

अगर इंसान में कुछ करने की चाहत हो, तो उम्र या हालात कोई मायने नहीं रखते। इसकी बेहतरीन मिसाल हैं जम्मू-कश्मीर के रिटायर्ड फौजी नसीब सिंह, जो 78 साल की उम्र में भी खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से लाखों की कमाई कर रहे हैं।

एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) अपनाकर नसीब सिंह ने अपने व्यवसाय को बुलंदियों पर पहुंचाया।जम्मू कश्मीर के भटियारी पंचायत, दंसल ब्लॉक के कोरगा गांव के रहने वाले नसीब सिंह ने सालों फौज की नौकरी की और 1989 में रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद भी वह आराम से बैठे नहीं, बल्कि अपने बचपन के शौक को पूरा करने में जुट गए। दरअसल, उन्हें बचपन से ही खेती में बहुत दिलचस्पी थी और पशुओं से लगाव भी था। इसीलिए  अपनी दूसरी इनिंग की शुरुआत उन्होंने बतौर किसान की और इसमें वो न सिर्फ़ सफल रहे, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन गए। उन्होंने अपने खेत में मक्का और गेहूं उगाए और उनसे अधिक मुनाफा कमाने के लिए मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाए। इसके लिए आटा चक्की और तेल-कोल्हू  भी स्थापित किये।

एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)
एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

सेविंग से की खेती की शुरुआत
फौजी से किसान बन चुके नसीब सिंह ने रिटायरमेंट के बाद अपनी बचत का इस्तेमाल खेती को अधिक लाभदायक बनाने और खेती से जुड़ी अन्य गतिविधियों जैसे डेयरी, पोल्ट्री, बागवानी, सब्ज़ियों और मशरूम के उत्पादन के लिए किया। उन्होंने खेती की शुरुआत तो पारंपरिक तरीके से ही की, लेकिन धीरे-धीरे उससे  जुड़ी कई गतिविधियों में शामिल होने लगे। कृषि विभाग से सलाह लेकर दरअसल वह ऐसे मॉडल को अपना रहे थे, जो कि एकीकृत कृषि प्रणाली के काफी करीब था।  वो खेती से निकले अपशिष्ट को चारे के रूप में इस्तेमाल करते थे, भूसे से मशरूम उगाते थे और पशुओं के अपशिष्ट का इस्तेमाल खाद के रूप में करते थे। ये  सारी गतिविधियां एक-दूसरे के लिए लाभदायक सिद्ध हो रही थीं। यही नहीं वह स्थानीय किसानों की मदद भी करते थे।


कितना होता है उत्पादन
नसीब सिंह की डेयरी में प्रतिदिन 40 लीटर दूध का उत्पादन होता है।  इसे  वो नज़दीकी बाज़ार में बेचते हैं, क्योंकि दूध  बेचने के लिए कोई संगठित चैनल नहीं है। बागवानी फसलों में दशहरी आम के 40, नींबू के 20 और कीनू के 30 पेड़ हैं। मशरूम यूनिट में 3000 बैग बटन मशरूम और डिंगरी मशरूम के 100 बैग का उत्पादन होता है। इसे  वो जम्मू, उधमपुर और नज़दीकी बाज़ार में बेचते हैं। मशरूम उत्पादन की औसत कीमत 40-45 रुपए प्रति किलो है और इसे वो 90-100 रुपए प्रति किलो की दर से बेचते हैं। मक्का और गेहूं से औसत फसल क़रीब 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है। सब्ज़ियों के खेत में पानी की  बचत के लिए FYM स्वदेशी  मल्च का उपयोग किया। नसीब सिंह एक प्रगतिशील किसान हैं, जो साथी किसानों को नई-नई तकनीक अपनाने में मदद करने के साथ ही ज़रूरतमंदों को रोज़गार भी प्रदान करते हैं।

तस्वीर साभार: dailyexcelsior.

लागत कम और मुनाफा अधिक
एक हेक्टेयर में खेती से उन्हें 80-90 हज़ार रुपए की आमदनी होती है, लेकिन अन्य गतिविधियों से वह सालाना 5 से 5.5 लाख तक की कमाई कर लेते हैं। उनकी खेती की लागत काफी कम आती है।  इसकी वजह है एक गतिविधि से निकले अपशिष्ट का दूसरे में इस्तेमाल ।  वो मक्के  का इस्तेमाल मुर्गियों के दाने के रूप में करते हैं, गोबर का इस्तेमाल बायोगैस के लिए, गेहूं के भूसे का उपयोग मशरूम की  खाद के रूप में और फसल के अपशिष्ट को प्राकृतिक मल्च की तरह इस्तेमाल करते हैं। नसीब सिंह का मशरूम उत्पादन में अहम योगदान है। उनकी वजह से ही दंसल ब्लॉक में भटियारी पंचायत को मशरूम का केंद्र बिंदु कहा जाता है।

नसीब सिंह का कहना है कि ज़िंदगी में कुछ भी आसानी से नहीं मिलता ।  अगर आप कुछ हासिल करना चाहते हैं, तो आपको कुछ नया और अभिनव करना ही होगा,  तभी आप भीड़ से अलग नज़र आएंगे। नसीब सिंह की सफलता यह बताती है कि किसी भी काम के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती, बशर्ते कि आप पूरे पैशन के साथ उसे करें।

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