NABARD की प्लानिंग: अब दूध, मछली और झींगा पालन वालों को भी मिलेगा मौसम बीमा, जानिए कैसे बदलेगी किसानों की तकदीर

National Bank for Agriculture and Rural Development यानी NABARD, एक ऐसी क्रांतिकारी पहल पर काम कर रही है जो कृषि बीमा (Agricultural Insurance) के दायरे को बदल कर रख देगी। अब मौसम आधारित बीमा का फायदा सिर्फ फ़सल उगाने वाले किसानों को ही नहीं मिलेगा बल्कि डेयरी फार्मिंग, मत्स्य पालन और झींगा पालन जैसे कृषि से संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोग भी इसके दायरे में आ जाएंगे।

NABARD की प्लानिंग: अब दूध, मछली और झींगा पालन वालों को भी मिलेगा मौसम बीमा, जानिए कैसे बदलेगी किसानों की तकदीर

भारत के किसानों के लिए एक बड़ी ख़बर है। देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली संस्था, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट National Bank for Agriculture and Rural Development यानी NABARD, एक ऐसी क्रांतिकारी पहल पर काम कर रही है जो कृषि बीमा (Agricultural Insurance) के दायरे को बदल कर रख देगी। अब मौसम आधारित बीमा का फायदा सिर्फ फ़सल उगाने वाले किसानों को ही नहीं मिलेगा बल्कि डेयरी फार्मिंग, मत्स्य पालन और झींगा पालन जैसे कृषि से संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोग भी इसके दायरे में आ जाएंगे। ये कदम देश के ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था में एक नए युग की शुरुआत कर सकता है।

क्यों ज़रूरी है ये बदलाव?

आज मौसम आधारित फसल बीमा योजनाओं की एक बड़ी कमी सामने आई है। नाबार्ड के एक सीनियर ऑफिसर के मुताबिक, मौजूदा बीमा मॉडल में किसानों को नुकसान का आकलन होने में 1 से 2 साल तक का वक्त लग जाता है। जब तक किसान को मुआवजा मिलता है, तब तक वो आर्थिक तंगी से जूझ चुका होता है। ये देरी किसानों के लिए बीमा योजनाओं के प्रति भरोसे को कमजोर करती है। इसी का नतीजा है कि बीमा कवरेज में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। सरकारी आंकड़े चौंकाने वाले हैं:

खरीफ सीजन में आवेदन: 2023 में 21.85 लाख आवेदन, 2024 में घटकर 16.99 लाख और 2025 में अब तक महज 11.15 लाख आवेदन ही मिले हैं।

बीमित क्षेत्र: 2023 के 11.13 लाख हेक्टेयर से गिरकर 2025 में 5.99 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है।

इन चुनौतियों को देखते हुए नाबार्ड न केवल बीमा प्रोसेस को तेज़ और पारदर्शी बनाना चाहता है, बल्कि इसका दायरा भी बढ़ाना चाहता है।

नए बीमा प्रोडक्ट: किसे मिलेगा फायदा?

नाबार्ड (NABARD) और एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AICIL) के बीच चल रही बातचीत में तीन मेन एरिया पर फोकस किया जा रहा है-

1.दूध उत्पादन के लिए THI आधारित बीमा

डेयरी बिजनेस में गर्मी के तनाव से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इस नई योजना में दूध उत्पादन को तापमान और आर्द्रता सूचकांक (THI) से जोड़ा जाएगा। जब भी तापमान और आर्द्रता एक निश्चित स्तर से ऊपर पहुंचेगी, जिससे पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आएगी, बीमा कंपनी खुद से डेयरी किसानों को मुआवजा दे देगी। इससे उन्हें आमदनी के नुकसान की तुरंत भरपाई हो सकेगी।

2.मत्स्य पालन और झींगा पालन बीमा

मछली और झींगा पालन (एक्वाकल्चर) मौसम के काफी ज़्यादा प्रभाव में रहते हैं। अचानक बारिश, बाढ़, सूखा या पानी का तापमान बदलना इन उद्योगों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। ख़ासकर झींगा पालन, जो इंटरनेशनल मार्केट में उतार-चढ़ाव (जैसे अमेरिकी टैरिफ) का सामना कर रहा है, के लिए ये बीमा एक सुरक्षा कवच का काम करेगा।

3.FPOs के लिए बीमा और ‘खेत स्कोर’

नाबार्ड किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के लिए स्पेशल बीमा स्कीम लाने की भी योजना बना रहा है। इसके साथ ही, जल्द ही “खेत स्कोर” नामक एक AI-आधारित क्रेडिट स्कोरिंग सिस्टम लॉन्च किया जाएगा। ये टूल किसान की ज़मीन, पिछली प्रोडक्टिविटी, मौसमी जोखिम और दूसरे डेटा का ऐनालाइज करके एक स्कोर जनरेट करेगा। इस स्कोर के आधार पर किसानों को आसानी से कर्ज़ और बीमा की सुविधा मिल सकेगी।

नाबार्ड क्या है और कैसे काम करता है?

National Bank for Agriculture and Rural Development (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई 1982 को भारत सरकार द्वारा ग्रामीण भारत के विकास के लिए एक टॉप इन्टिट्यूट के रूप में की गई थी। ये भारत के सेंट्रल बैंक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की एक एक्सपर्ट यूनिट थी, जिसे अलग करके एक स्वतंत्र विकास बैंक का दर्जा दिया गया। इसका मुख्यालय मुंबई में है। 

नाबार्ड के प्रमुख काम:

1.रिफरेंस (Refinance): नाबार्ड का सबसे अहम काम ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कमर्शियल बैंकों, सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) को रिफरेंस उपलब्ध कराना है। इसका मतलब है, ये बैंक किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को जो लोन देते हैं, नाबार्ड उन बैंकों को उस लोन के लिए फंड उपलब्ध कराता है।

2.विकास और परियोजना फाइनेंस: नाबार्ड सीधे तौर पर बड़ी रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट , सिंचाई परियोजनाओं, एग्रीकल्चर प्रोसेसिंग यूनिट वगैरह के लिए फाइनेंस प्रोवाइड करता है।

3.सुपरविजन: ये सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कामकाज पर नज़र रखता है और उन्हें मार्गदर्शन देता है। 

4.किसान क्लब और FPOs को समर्थन: नाबार्ड देश भर में किसान क्लबों और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को बनाने और मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई गति

नाबार्ड की ये नई पहल भारतीय कृषि के लिए एक सुनहरे भविष्य की ओर इशारा करती है। ये मान्यता है कि किसान की आमदनी सिर्फ फसल से ही नहीं, बल्कि पशुपालन और मत्स्य पालन जैसे सहायक व्यवसायों से भी आती है। अगर ये योजना सफलतापूर्वक लागू होती है, तो इससे न केवल किसानों की आय में इज़ाफा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई गति मिलेगी।

 

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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