ज़्यादा उपज वाली सोयाबीन की नयी किस्म विकसित, प्रति हेक्टेयर 39 क्विंटल पैदावार

नयी किस्म का नाम MACS-1407 है। इसकी पैदावार 14 से 19 प्रतिशत ज़्यादा है और ये इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अन्य किस्मों से बेहतर बतायी गयी है। मौजूदा उन्नत किस्मों के मुकाबले MACS-1407 को पकने में करीब 10-15 ज़्यादा लगते हैं लेकिन इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 39 क्विंटल बतायी गयी है, जबकि 90-95 दिन में पकने वाली उन्नत किस्मों की पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

सोयाबीन का उत्पादन

भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक किस्म विकसित करने में सफलता पायी है। खरीफ की तिलहन वाली फसलों में सोयाबीन का मुख्य स्थान है। देश में इसकी कम से कम 19 उन्नत किस्मों पहले से प्रचलित हैं। नयी किस्म का नाम MACS-1407 है। इसकी पैदावार 14 से 19 प्रतिशत ज़्यादा है और ये इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अन्य किस्मों से बेहतर बतायी गयी है।

इसे पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम और उत्तर पूर्वी राज्यों की जलवायु के लिए बेहतरीन बताया गया है। आगामी खरीफ सीज़न से इसके बीज किसानों के लिए सुलभ होंगे।

नयी किस्म की खूबियाँ

सोयाबीन की नयी किस्म MACS-1407 को अग्रहार रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI), पुणे के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के सहयोग और क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक से विकसित किया है। मौजूदा उन्नत किस्मों के मुकाबले MACS-1407 को पकने में करीब 10-15 ज़्यादा लगते हैं लेकिन इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 39 क्विंटल बतायी गयी है, जबकि 90-95 दिन में पकने वाली उन्नत किस्मों की पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

MACS-1407 को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि सोयाबीन की फसलों पर लगने वाले प्रमुख कीटों जैसे गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, व्हाइल फ्लाई और एफिड्स के मुकाबलों के लिए नयी किस्म में रोग प्रतिरोधक क्षमता कहीं बेहतर है। इसका तना अपेक्षाकृत मोटा होता है। इसमें सतह से करीब 7 सेंटीमीटर ऊपर फलियाँ उगती हैं। इस वजह से इसकी यांत्रिक कटाई आसान होती है।

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अलग इलाका, अलग किस्म

सोयाबीन को किसानों का पीला सोना भी कहते हैं। इसकी खेती में देश में व्यापक स्तर पर होती है। इसीलिए राष्ट्रीय सोयाबीन अनुसन्धान केन्द्र, इन्दौर और अनेक कृषि विश्वविद्यालय विभिन्न इलाकों की जलवायु के अनुरूप इसकी किस्में विकसित करती रही हैं। क्योंकि बेहतर पैदावार में उन्नत किस्म के बीजों की अहम भूमिका होती है, इसीलिए किसानों को उनके इलाके के अनुरूप किस्म इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।

हिमाचल और उत्तराखंड की प्रमुख किस्में – शिलाजीत, पूसा-16, वी एल सोया-2, वी एल सोया-47, हरा सोया, पालम सोया, पंजाब-1, पी एस-1241, पी एस-1092, पी एस- 1347, वी एल एस-59 और वी एल एस-63.

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार की प्रमुख किस्में – PK-416, पूसा-16, PS-564, SL-295, SL-525, पंजाब-1, PS-1024, PS- 1042, DS-9712, PS-1024, DS-9814, DS-1241 और PS-1347.

मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तरी महाराष्ट्र और गुजरात की प्रमुख किस्में – JS-93-05, JS-95-60, JS-335, ARC-7, NRC-37, JS-80-21, समृद्धि और MAUS-81.

दक्षिणी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तामिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश की प्रमुख किस्में – पूजा, प्रतिकार, फूले कल्याणी, KO-1, KO-2, MACS-24, PS-1029, KHSB-2, SLB-1 और प्रसाद।

पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम और मेघालय की प्रमुख किस्में – बिरसा सोयाबीन-1, इन्दिरा सोया-9, प्रताप सोया-9, MAUS-71 और JS-80-21.

सोयाबीन की खेती के लिए उपयोगी नुस्ख़े

सोयाबीन को शुष्क गर्म जलवायु पसन्द है। सोयाबीन मुख्यतः खरीफ की फसल ज़रूर है लेकिन कुछ इलाकों में इसे रबी तथा जायद की फसल के रूप में भी उगाते हैं, क्योंकि सोयाबीन में कमाई अच्छी है। हालाँकि, इसके लिए कई सावधानियाँ ज़रूरी हैं। मसलन, बारिश से पहले गहरी जुताई करके खेतों की कीट से बचाव और नमी सोखने की क्षमता को बढ़ाना चाहिए।

बुआई – बुआई से पहले खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ट या अन्य उर्वरकों का मिट्टी के गुणों के हिसाब से इस्तेमाल होना चाहिए। बुआई से पहले बीज की अंकुरण क्षमता के बारे में जानकारी कर लेनी चाहिए। सोयाबीन की बुआई कतारों में करनी चाहिए। हालाँकि, अलग-अलग इलाकों में कतार के बीच की दूरी में फ़र्क भी रखा जाता है।

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सिंचाई – खरीफ की फसल को सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती। अलबत्ता, सितम्बर में जब फलियों में दानों के पनपने का वक़्त आता है तब यदि खेती में नमी कम लगे तो हल्की सिंचाई ज़रूर करनी चाहिए। इससे पैदावार अच्छी मिलती है।

रोग – सोयाबीन में पीलिया और सूत्रक्रमी रोग की आशंका रहती है। इससे बचाव के लिए रोग रोधी किस्में चुनकर और बीजों को उपचारित करके ही बुआई करनी चाहिए।

कटाई – सोयाबीन की पत्तियाँ जब पीली पड़कर झड़ने लगें तब इसकी कटाई करनी चाहिए। सही समय पर कटाई से दानों के चटखने और बिखरने का नुकसान कम होता है।

बिक्री – कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन तक धूप में सुखाकर धीमी गति पर थ्रेशर चलाकर गहाई करनी चाहिए। फिर उपज को 3-4 दिन धूप में सुखाकर ही भंडारण करें और उपज को बेचें। इससे दाम बेहतर मिलता है।

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