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पाले की समस्या से कैसे पाएं निजात? सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती को कैसे प्रभावित करती है?

भारत में सर्दियों के वक़्त फसलों के रखरखाव पर देना होता है अतिरिक्त ध्यान

किसान सर्दियों की इन चुनौतियों से पार पाने के लिए रणनीतियां अपनाते हैं, और सरकार टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सहायता देती है।

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भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है, इसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। हालांकि, सर्दियों का मौसम भारत में कृषि क्षेत्र के लिए चुनौतियां लेकर आता है। जैसे-जैसे सर्दियां बढ़ती जाएंगी, वैसे-वैसे पाले की समस्या बढ़ेगी। इस लेख में हम आपको सर्दियों में खेती से जुड़ी किन समस्याओं का सामना अक्सर किसानों को करना पड़ता है, इसके बारे में बताएंगे। साथ ही पाले की समस्या से कैसे किसान निजात पा सकते हैं, इसको लेकर किसान ऑफ़ इंडिया ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज पश्चिम चंपारण के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ एवं हेड डॉ आर.पी. सिंह से बातचीत की।

खेती में सूरज की रोशनी की भूमिका

सर्दियों में किसानों के सामने आने वाली प्राथमिक चुनौतियों में से एक सूरज की रोशनी की कमी है। दिन के उजाले के घंटे कम होने से फसलों का बढ़ना और उनकी उत्पादकता, सीमित हो सकती है। 

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

फसल उत्पादन पर तापमान का असर

सर्दियों में फसल उत्पादन (Crop Production) पर तापमान का प्रभाव भी चुनौती है। कुछ फसलें, जैसे चावल और गेहूं के विकास के लिए विशेष तापमान की ज़रूरत होती है। कम तापमान इन फसलों के विकास में बाधा बन सकता है, जिसके कारण पैदावार कम हो सकती है। उन क्षेत्रों में जहां सर्दियों का तापमान इन फसलों के लिए बहुत कम होता है, किसानों को अक्सर वैकल्पिक फसलों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो सर्दियां झेल सके। 

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

पानी की कमी से फसल उत्पादन पर प्रभाव

सर्दियों के दौरान सामने आने वाली एक और चुनौती सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता है। भारत के कई हिस्सों में, सर्दियों में कम वर्षा और सीमित जल संसाधन होते हैं। इससे कृषि गतिविधियों के लिए पानी की कमी हो सकती है, जिससे किसानों के लिए अपनी फसलों की पर्याप्त सिंचाई करना मुश्किल हो जाएगा। सर्दियों के दौरान पानी की कमी से फसल उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे पैदावार कम हो सकती है और समग्र कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

सर्दियों में कीट-रोगों की समस्या

इसके अलावा, सर्दियां कृषि क्षेत्र में कीट और रोग संबंधी समस्याएं भी लेकर आती है। कुछ कीट और बीमारियां ठंडे तापमान में पनपती हैं, जो फसलों के लिए खतरा पैदा करती हैं। किसानों को अपनी फसलों को इन कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए उचित उपाय करने होंगे, जिसमें अक्सर कीटनाशकों और अन्य नियंत्रण उपायों का इस्तेमाल हो सकता है। हालांकि, कीटनाशकों के ज़्यादा इस्तेमाल से नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव पड़ सकते हैं।

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

जलवायु परिवर्तन से कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है?

हाल के सालों में जलवायु परिवर्तन भी भारत में शीतकालीन कृषि के लिए चिंता का विषय रहा है। बदलते मौसम का मिजाज और तापमान में उतार-चढ़ाव पारंपरिक फसल कैलेंडर को बाधित कर सकते हैं। रोपण और कटाई के समय को प्रभावित कर सकते हैं। इससे किसानों के लिए अतिरिक्त चुनौतियां पैदा हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ढलना होगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए उपयुक्त कृषि पद्धतियों को लागू करना होगा।

भारत में सर्दियों की फसलें 

रबी फसलें वो होती हैं, जो सर्दियों में बोई जाती हैं और वसंत ऋतु में काटी जाती हैं। अरबी में रबी का मतलब ‘वसंत’ होता है, इसलिए ये आम बोलचाल में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। रबी की फसलें नवंबर और अप्रैल के बीच उगाई जाती हैं और पानी के लिए बारिश पर निर्भर रहती हैं। 

रबी फसलों और सब्जियों में गेहूं, दालें, मटर, गाजर, प्याज, मूली और पालक शामिल हैं। गेहूं देश की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है। दालें वे फसलें हैं जो सूखे अनाज पैदा करती हैं। उन्हें फसलों के लिए सही परिस्थितियां बनाते हुए नमी, आर्द्रता और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को विनियमित करने की ज़रूरत होती है।

मटर ठंडे मौसम की फसल है, जिसे सर्दियों से लेकर गर्मियों की शुरुआत तक लगाया जा सकता है। छोटे किसान किचन गार्डन में मटर की खेती के लिए मैनुअल हैंड स्प्रेयर का उपयोग करते हैं। ऐसे ही गाजर दृष्टि और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए बहुत अच्छा है। इनमें एंटीऑक्सीडेंट अच्छी मात्रा में होते हैं और इन्हें कीटों से बचाने की आवश्यकता होती है।

प्याज उगाना आसान है और इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। एक बीज बोने की मशीन खेती की प्रक्रिया में मदद कर सकती है। मूली सर्दियों में खूब उगाई और खाई जाती है और इसकी खेती किचन गार्डन में की जा सकती है। पालक भी किचन गार्डन में उगाया जा सकता है। 

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

सर्दियों में खेती के विकल्प

सर्दियां किसानों के लिए एक चुनौती भरा समय होता है, क्योंकि ठंड का मौसम और दिन के उजाले में कमी किसानों के लिए फसल उगाने में बाधा बन जाती है। इसलिए किसान इन चुनौतियों से निपटने और सर्दियों में अपनी खेती को बेहतर करने के लिए तरह-तरह की रणनीतियां अपना रहे हैं। 

ग्रीनहाउस तकनीक

सूरज की रोशनी की समस्या से निपटने के लिए, कई किसानों ने ग्रीनहाउस खेती तकनीक अपनाई है। ग्रीनहाउस का मकसद एक नियंत्रित वातावरण बनाना है, जहां पौधों का सूरज की रोशनी और ठंडे मौसम की स्थिति से बचाव किया जा सकता है। ग्रीनहाउस के अंदर कृत्रिम प्रकाश प्रणालियों का इस्तेमाल करके, किसान दिन के उजाले की अवधि बढ़ा सकते हैं। इससे पौधों के विकास को बढ़ावा मिलता है। इससे किसान सर्दियों के पूरे मौसम में अलग-अलग तरह के फसलों की खेती कर सकते हैं। 

सर्दियों की शुरुआत भारत में खेती

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पशुधन खेती के फ़ायदे

किसानों ने शीतकालीन-विशिष्ट फसल किस्मों को भी अपनाया है, जो ठंड के मौसम की स्थिति को लेकर ज़्यादा प्रतिरोधी हैं। इन किस्मों को ठंड का सामना करने और कम परिपक्वता अवधि के लिए उगाया जाता है, जिससे गंभीर सर्दियों की स्थिति की शुरुआत से पहले एक सफल फसल सुनिश्चित होती है।

इसके अतिरिक्त, कुछ किसानों ने पारंपरिक फसल की खेती के साथ-साथ पशुधन खेती को भी शामिल करने के लिए अपने कृषि कार्यों में विविधता लाई है। पशुधन खेती सर्दियों के दौरान एक अतिरिक्त आय स्रोत देती है, क्योंकि जानवरों को घर के अंदर पाला जा सकता है और उनके उत्पाद, जैसे दूध, अंडे या मांस, साल भर बेचे जा सकते हैं। ये विविधीकरण किसानों को सर्दियों के दौरान अपनी आय बनाए रखने में मदद करती है, जब फसल की खेती सीमित हो सकती है।

डेयरी फ़ार्मिंग dairy farming

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कृषि उत्पादन में मौसम पूर्वानुमान का क्या महत्व है?

किसानों को सर्दियों की चुनौतियों से उबरने में प्रौद्योगिकी की मदद भी मिल रही है। ग्रीनहाउस में मौजूद जलवायु नियंत्रण प्रणालियां किसानों को तापमान और आर्द्रता के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती हैं, जिससे फसल के विकास के लिए इष्टतम वातावरण मिलता है। इसके अलावा, किसान पाले की घटनाओं की भविष्यवाणी करने और पहले से ज़रूरी उपाय करने के लिए मौसम पूर्वानुमान प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर रहे हैं। इससे उन्हें अपनी फसलों की प्रभावी ढंग से रक्षा करने और नुकसान को कम करने में मदद मिलती है। 

सर्दियों के महीनों के दौरान किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें कम धूप, ठंड का तापमान और सीमित फसल की खेती शामिल है। हालांकि, उन्होंने इन चुनौतियों से पार पाने और अपने कृषि कार्यों की सफलता सुनिश्चित करने के लिए कई रणनीतियां विकसित की हैं। इन रणनीतियों को नियोजित करके, किसान अपनी कृषि गतिविधियों पर सर्दियों के प्रभाव को कम करने में सक्षम हैं। 

सरकार किसानों को सहायता देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे कि सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना और जलवायु-स्मार्ट कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना। इन चुनौतियों का समाधान करके और टिकाऊ खेती के तरीकों को अपनाकर, भारत में शीतकालीन कृषि फलती-फूलती रह सकती है और देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान कर सकती है। 

खेती में पाले की समस्या का समाधान 

सर्दियों के दौरान किसानों के सामने एक और बड़ी चुनौती तापमान है। पाला और ठंड का मौसम फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है और मिट्टी को खेती के लिए कम अनुकूल बना सकता है। इससे निपटने के लिए किसान अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। पौधों को ज़्यादा ठंड से बचाने के लिए प्लास्टिक शीट का उपयोग करना एक आसान और अच्छा तरीका है।

ये ठंड से बचाव करते हैं और पौधों के चारों ओर एक माइक्रॉक्लाइमेट बनाते हैं, जिससे गर्मी बनी रहती है और नुकसान को रोका जा सकता है। इसके अलावा, किसान सिंचाई तकनीकों, जैसे स्प्रिंकलर या मिस्टिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो पौधों के चारों ओर बर्फ़ की एक परत बनाते हैं। ये बर्फ़ की परत इन्सुलेशन का काम करती है और फसलों को ठंडे तापमान से बचाती है।

पाले से फसलों को कैसे बचाएं? 

डॉ. आर.पी. सिंह ने सलाह देते हुए पाले से बचाव के निम्न तरीके बताए:

  • खेतों की मेड़ों पर घास-फूस जलाकर धुआं करें, ऐसा करने से फसलों के आसपास का वातावरण गर्म हो जाता है। पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं।
  • पाले से बचाव के लिए फसलों में सिंचाई करें। सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है ।
  • फसल को पाले से बचाने के लिए एक रस्सी लें। रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें। इससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है।
  • अगर किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो उसको घास-फूस की टाटिया बनाकर या प्लास्टिक से ढके। साथ ही, ध्यान रखें कि दक्षिण पूर्व भाग खुला रहे ताकि सुबह और दोपहर धूप मिलती रहे।
  • पाले से बचाव के लिए उत्तर पश्चिम मेड़ पर तथा बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम तथा जामुन आदि को लगाएं। इस तरह से लंबे समय के लिए सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है।
  • अगर किसान भाई फसलों पर गुनगुने पानी का छिड़काव करते हैं तो फसलें पाले से बच जाती हैं।
  • पाला पड़ने के दिनों में यूरिया का 20 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें, अथवा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है। ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है। वह जम नहीं पाता और फसलें पाले से बच जाती हैं।
  • फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं।
  • किसान भाई फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम एवं 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।
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