मटर की खेती (Peas Farming) ही नहीं बल्कि किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज ज़रूरीहैं। इसके लिए ज़रूरी है कि किसानों को बीज उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाए। बेलपड़ाव नैनीताल से करीब 50 किलोमीटर दूर बसा हुआ एक छोटा स कस्बा है को कॉर्बेट नैशनल पार्क (Corbett National Park) इलाके में आता है।
नैनीताल ज़िले के बेलपड़ाव इलाके में मटर तो काफ़ी होती है लेकिन मटर की उन्नत किस्मों का अभाव है। इसे दूर करने के लिए ICAR-VPKAS, अल्मोड़ा (ICAR-Vivekananda Parvatiya Krishi Anusandhan Sansthan, Almora) ने मटर की दो उन्नत किस्मों वीएल 13 और वीएल 15 का विकास किया।
उत्तराखंड के लिए ख़ासतौर पर विकसित इन दोनों किस्मों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए संस्थान, किसान सहभागी बीज उत्पादन कार्यक्रम के ज़रिए, किसानों में जागरुकता फैलाने की कोशिश कर रहा है। इसके पीछे सोच यही है कि राज्य में मटर की उन्नत किस्मों के बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहें और सभी किसान इसका फ़ायदा उठा सकें।
मटर की दो उन्नत किस्में
ICAR-VPKAS, अल्मोड़ा ने मटर की खेती के लिए मटर की दो उन्नत किस्मों, वीएल 13 और वीएल 15 को ख़ासतौर पर उत्तराखंड के लिए विकसित किया है। वीएल 15 मटर की फलियां आकर्षक, हरी, लंबी और घुमावदार होती हैं। एक फली में 8-10 दाने होते हैं और इसका औसत उत्पादन 11-13 टन प्रति हेक्टेयर है। दोनों ही किस्में जैविक (organic) और अजैविक (inorganic) खेती के लिए उपयुक्त हैं।
उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में मटर की उन्नत किस्मों के बीजों की कमी थी। इसलिए ICAR ने किसान सहभागी बीज उत्पादन कार्यक्रम के माध्यम से इन दोनों उन्नत किस्मों के प्रति जागरुकता फैलाने का काम किया।
मटर की खेती में मिले संतोषजनक परिणाम
किसानों को मटर की खेती के लिए जागरुक करने और मटर बीज उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रदर्शन-और-बीज उत्पादन का आयोजन किया गया। 2019-20 के दौरान रबी सीज़न में नैनीताल ज़िले में बेलपड़ाव के किसान राहुल सिंह ने नई किस्मों में दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद संस्थान ने उनके दो एकड़ खेत में प्रदर्शन-सह-बीज उत्पादन किया। इतना ही नहीं, संस्थान ने उन्हें विश्वास भी दिलाया की उनकी फसल संस्थान द्वारा खरीद ली जाएगी ताकि उन्हें नुकसान न उठाना पड़े।
संस्थान द्वारा निगरानी
राहुल को मटर की दोनों उन्नत किस्मों वीएल 13 और वीएल 15 के बीज दिए गए। वैज्ञानिक समय-समय पर उन्हें सही सलाह देने के साथ ही फ़सल के बढ़ने की निगरानी भी करते रहे। आसपास के अन्य किसान भी मटर की नई किस्म के उत्पादन के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए वैज्ञानिकों के दौरों के दौरान उनसे मिलने आते।
वैज्ञानिकों ने राहुल को बीज उत्पादन से जुड़ी सभी तरह की ज़रूरी तकनीकी सलाह भी दी। इसका नतीजा ये हुआ कि उपज संतोषजनक रही। राहुल को पहले ही साल 6.155 क्विंटल बीज प्राप्त हुए, जिनकी आपूर्ति उन्होंने संस्थान को की। राहुल सिंह को वीएल 13 किस्म से 4.695 क्विंटल और वीएल 15 किस्म की मटर से 1.460 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हुआ।
संतु्ष्ट हैं किसान
राहुल सिंह मटर बीज उत्पादन से खुश और संतुष्ट हैं। बीज की सीधी बिक्री के साथ साथ संस्थान को की गई बिक्री से उन्हें लगभग 75,000 रुपयों की आमदनी होने की उम्मीद है। संस्थान 120 रुपए प्रति किलो की दर से उनसे मटर खरीदता है। उन्नत बीज इस्तेमाल करने की वजह से पहले के मुक़ाबले राहुल अब न सिर्फ़ ज्यादा उपज ले रहे हैं, बल्कि उनकी आमदनी भी बढ़ी है।
मटर की उन्नत किस्मों के उत्पादन से संतुष्ट राहुल अपने साथी किसानों को भी इसके फ़ायदे गिनाकर इसके उत्पादन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मटर का सबसे अधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश और असम में होता है। मटर की खेती के लिए दोमट व हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।