जानिए कैसे एकीकृत कृषि मॉडल से 5 गुना हो सकती है कमाई, डॉ. राजीव कुमार सिंह ने दी जानकारी

बाज़ार संबंधी जोखिम को कम करने में मददगार एकीकृत कृषि मॉडल

किसानों के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल किस तरह से वरदान साबित हो सकता है, इसके प्रचार-प्रसार में देश के कृषि वैज्ञानिक लगे हुए हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान सस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह से एकीकृत कृषि के बारे में विस्तार से बात की। 

खेती में विविधीकरण अपनाकर कई किसानों ने अपनी आजीविका में सुधार किया है। जहां पहले लागत तक निकाल पाना मुश्किल हो जाता था, अब एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से लागत से कई गुना मुनाफ़ा हो रहा है। देश के 80 प्रतिशत ऐसे छोटे किसान हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इन किसानों के लिए एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल किस तरह से वरदान साबित हो सकता है, इसके प्रचार-प्रसार में देश के कृषि वैज्ञानिक लगे हुए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली ने छोटे एवं सीमान्त किसानों के लिए 1.0 हेक्टेयर भूमि पर एकीकृत कृषि का एक मॉडल तैयार किया है। किसान ऑफ़ इंडिया ने भारतीय कृषि अनुसंधान सस्थान के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह से एकीकृत कृषि के बारे में विस्तार से बात की। 

एकीकृत कृषि का उद्देश्य

डॉ. राजीव कुमार सिंह ने कहा कि एकीकृत कृषि मॉडल कृषि के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़ाने, परिवार के लिये सन्तुलित पौष्टिक आहार जुटाने, पूरे साल आमदनी के अवसर पैदा करता है। साथ ही मौसम और बाज़ार संबंधी जोखिम को भी कम करने में मददगार है। 

एकीकृत कृषि मॉडल

एकीकृत कृषि में जोखिम कम

डॉ. राजीव कुमार सिंह कहते हैं कि इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य किसानों की आमदनी को बढ़ाना है। किसान अपनी मुख्य फसल के साथ-साथ मुर्गी पालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन, सब्जी-फल उत्पादन, मशरूम की खेती एक साथ एक जगह पर कर सकते हैं। इसमें एक घटक दूसरे घटक के उपयोग में लाया जाता है। यानी कि पशुओं का अपशिष्ट फसलों के लिए खाद का काम करता है। इससे खाद पर लगने वाली लागत में कमी आती है। एक फसल पर ही निर्भरता न होकर घाटे की संभावना कम हो जाती है। 

IFS खेती से आमदनी में इज़ाफ़ा

कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव ने बताया कि एकीकृत कृषि की ख़ास बात है कि इससे किसानों को सालभर आमदनी होती है। डॉ. राजीव ने आइएफएस तकनीक को एक उदाहरण के साथ समझाते हुए बताया कि मान लीजिए एक किसान के पास एक हेक्टयर ज़मीन है। इस पर वो पारंपरिक तरीके से धान और गेहूं की खेती करता आ रहा है। इससे उसे साल में डेढ़ से दो लाख लाख रुपये की आमदनी होती है। यही किसान अगर पारंपरिक खेती को छोड़कर एक हेक्टयर में बागवानी, मछली पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन, गौपालन, मशरूम उत्पादन मधुमक्खी पालन जैसी गतिविधियों को अपनाता है तो उसे 4 से 5 लाख रुपये की सालाना आमदनी हो सकती है।  

एकीकृत कृषि मॉडल

IFS तकनीक में पानी की उपलब्धता ज़रूरी

प्रधान वैज्ञानक डॉ. राजीव के अनुसार, आईएफएस खेती के लिए पानी की उपलब्धता होना अति आवश्यक है। खेत की ज़मीन में ही पानी के लिए एक तालाब खोदें, क्योकि उससे तीन फ़ायदे होते हैं। पहला, फसलों की सिंचाई, दूसरा मछली पालन और तीसरा बत्तख पालन कर सकते हैं। खेत के बीच में या अन्य जगह में अपनी ज़रूरत के हिसाब से एक छोटा तालाब बना सकते हैं। तालाब के चारों तरफ लता वाले पौधे लगा सकते हैं, जिनसे उनकी पानी की आवश्यकता पूरी की जा सके। अमरूद, लीची, आम, सब्जियां आदि के पेड़ जगह के हिसाब से लगाए जा सकते हैं। खेत के ही पास में गौशाला बनाई जा सकती है, जिसमें गाय-भैंस और बकरी पालन कर सकते हैं।

एकीकृत कृषि मॉडल

आप सब्जियां उगाएंगे या फल उगाएंगे तो उसके अवशेष जैसे कि गिरे हुए पत्ते, खराब सब्जियां, खरपतवार आदि का इस्तेमाल गाय-बकरियों के लिए चारे के रूप में कर सकते हैं। गाय के गोबर से ज़मीन को और उपजाऊ बनाया जा सकता है। ठीक इसी तरह मुर्गी पालन से मीट के अलावा अंडो की भी प्राप्ति होती है। मछलियों के लिए चारे का इंतजाम भी इसी मॉडल से हो जाता है।  

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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