Mahua: छत्तीसगढ़ के महुआ उत्पादों को देशभर में पहुंचा रहीं शेख रज़िया, आदिवासी किसानों के हक के लिए कर रहीं काम

छत्तीसगढ़ के बस्तर की तस्वीर बदल रही शेख रज़िया

छत्तीसगढ़ की रहने वाली शेख रज़िया ने आदिवासी किसानों को अपने साथ जोड़ा है। उन्होंने 2018 में Bastar Foods के नाम से एक पहल शुरू की। इस वेबसाइट के ज़रिए छत्तीसगढ़ के महुआ उत्पादों से लेकर कई प्रॉडक्ट्स की बिक्री की जाती है। ये प्रॉडक्ट्स आदिवासी किसान ही तैयार करते हैं।

छत्तीसगढ़ के महुआ उत्पादों को देशभर में पहुंचा रहीं शेख रज़िया: इस बात में कोई दोराय नहीं है कि बढ़ते शहरीकरण के दौर में अंधाधुंध जंगलों की कटाई हुई है, लेकिन यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जहां पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में जंगलों की संख्या में कमी आई है, वहीं भारत में इसकी संख्या बढ़ी है। भले ही यह सुकून देने वाली बात है, मगर जंगलों को बचाने के लिए अभी और प्रयास करने की ज़रूरत है ताकि मानव जाति को बचाया जा सके और वनीय इलाकों में रहने वाले आदिवासियों की आमदनी भी बढ़े।

किसान ऑफ़ इंडिया ने छत्तीसगढ़ लघु वनोपज में रिसर्च एंड डेवलपमेंट का कार्यभार संभालने वाली शेख रज़िया से ख़ास बात की। उन्होंने आदिवासी किसानों द्वारा तैयार छत्तीसगढ़ के महुआ उत्पादों को बाज़ार पहुंचाने का काम किया है। 

स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए तैयार किया बिज़नेस मॉडल

शेख रज़िया आदिवासी लोगों की आय बढ़ाने में मदद कर रही हैं। बस्तर फूड्स (Bastar Foods) के नाम से उन्होंने अपने इस पहल की शुरुआत 2018 में की थी। उनका कहना है कि वह और उनकी टीम पहले यह देखती है कि जंगल से आने वाली चीज़ों से क्या उत्पाद बन सकते हैं। इसका स्वास्थ्य श्रेत्र में क्या फ़ायदे हैं। इसे कैसे डिज़ाइन कर सकते हैं। इन सब चरणों के बाद फिर बिज़नेस मॉडल तैयार किया जाता है।

बिज़नेस मॉडल में प्रोडक्ट, उसकी पैकेजिंग, लेबलिंग, ब्रांडिंग, लाइसेंसिंग, मार्केट लिंकिंग शामिल है। शेख रज़िया गाँव के लोगों को बिज़नेस मॉडल तैयार करके देती हैं, जिससे लोग गांव को छोड़कर न जाए और जंगलों का विकास भी होता रहे। वनीय क्षेत्र के लोग कच्चा माल इकट्ठा कर खुद की यूनिट में उत्पाद तैयार करते हैं। फिर उसे बेच देते हैं। इस तरह से पैसे सीधा जेब में पहुंचता है। आम लोगों को भी जंगल से आने वाली चीज़ों की वैल्यू पता चलती है। 

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तस्वीर साभार: शेख रज़िया

वनोपज से कौन-कौन से उत्पाद तैयार?

छतीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी महिलाएं महुआ (Mahua) के लड्डू तैयार करती हैं। ये सबसे लोकप्रिय प्रॉडक्ट है। महुआ लड्डू बनाने में गुड़, लौंग, इलायची, सौंफ, जीरा, सूखी अदरक(सोंठ), घी, बादाम और काजू का इस्तेमाल होता है। इस महुआ लड्डू के बिक्री के लिए पहले बड़े-बड़े आयोजनों में स्टॉल लगाना शुरू किया गया।

फिर धीरे-धीरे मांग बढ़ने लगी। महुआ से सिर्फ लड्डू ही नही, बल्कि महुआ से कैंडी, जेली, हनी नट्स, महुआ जूस बार और करीब 8 से ज्यादा प्रॉडक्टस तैयार किए जा रहे हैं। सभी प्रॉडक्ट देश के अलग-अलग राज्यों में भी पसंद किए जा रहे हैं। इनके सारे प्रोडक्टस FSSAI से प्रमाणित है। 

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तस्वीर साभार: Bastar Foods (facebook)

कोरोना के बाद बढ़ी वनोपज के प्रॉडक्ट्स की मांग

शेख रज़िया बताती हैं कि जंगलों में बहुत सारी वन औषधियों के साथ ही कई वनोपज भी होते हैं।  आदिवासी समुदाय के लोग बहेड़ा, इमली, महुआ, चिरौंजी जैसी वनोपज को पहले बिचौलियों को औने-पौने दाम में बेच दिया करते थे। अब स्थितियां बदली हैं। सरकार सीधे आदिवासियों से इनकी खरीद कर रही है। इससे बिचौलियों की भूमिका तो खत्म हुई ही, साथ ही आदिवासियों को अच्छी कीमत मिल जाती है। 

छत्तीसगढ़ में वन क्षेत्र काफ़ी बड़ा है। इसपर वहां की एक बड़ी आबादी आजीविका के लिए निर्भर है। सरकार के इस कदम से उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। यहां महुआ बड़े पैमाने पर होता है।

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तस्वीर साभार: Bastar Foods (facebook)

क्यों ज़रूरी है जंगल?

शेख रज़िया के मुताबिक, मानव जाति के जीवित रहने के लिए जंगल बहुत ज़रूरी है। आज भी राज्य की एक तिहाई आबादी जंगलों में रहती है और आजीविका के लिए इसी पर निर्भर है। साथ ही जंगलों की अंधाधुंध कटाई से मौसम चक्र बिगड़ चुका है। मानव के अस्तित्व को बचाने के लिए जंगल को बचाना बहुत ज़रूरी है। आदिवासी जंगल की अहमियत को बखूबी समझते हैं तभी तो एक पेड़ काटने पर 10 नए लगाते हैं और उसकी देखभाल करते हैं। जबकि शहरी लोग ऐसा नहीं करते। यदि सड़क बनाने के लिए एक पेड़ काटा जा रहा है तो 10 नए लगाने भी चाहिए, जिससे संतुलन बना रहे।

छत्तीसगढ़ के महुआ उत्पादों chhattisgarh mahua products bastar foodजंगल से आमदनी कैसे बढ़ सकती है?

शेख रज़िया का कहना है कि जंगल से बहुत सी चीज़ें जैसे वन औषधि, लघु वनोपज, लकड़ी आदि प्राप्त होती है। वनोपज से कई तरह के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। हमें स्वस्थ रहने के लिए कई तरह के सप्लीमेंट्स की ज़रूरत होती है, जो जंगलों से मिलते है। बहेड़ा एक हर्ब के रूप में जाना जाता है। इसे यदि खाली पेट आधा चम्मच शहद के साथ खा लें तो इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होगा, मगर इसके बारे में जागरुकता की कमी है।

सरकार के कई आउटलेट्स हैं जो हर्बल प्रोडक्ट्स बनाते हैं, लेकिन लोकप्रिय नहीं है। प्राइवेट कंपनी विज्ञापन पर अधिक खर्च करती हैं, इसलिए लोकप्रिय हो जाती है। इसलिए सरकारी आउटलेट्स का विज्ञापन ज़रूरी है और ब्रांड एंबेस्डर भी बनाना ज़रूरी है।

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तस्वीर साभार: Bastar Foods (facebook)

जंगल के साथ खेती

रज़िया का कहना है कि खेती के लिए जंगल काटने की बजाय हमें जंगल के साथ खेती करने के तरीके ढूंढ़ने की ज़रूरत है। उनके मुताबिक, बहुत से पढ़े-लिखे युवा जंगल की अहमियत समझ चुके हैं और वह शिक्षा प्राप्त करके अपने गांव लौटकर वहां खेती में नए-नए एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। कम जगह में अधिक खेती की तकनीकों को अपनाया जा रहा है। जंगल में कई मसालें लगाए जा सकते हैं जिनके पौधे लता की तरह पेड़ों पर चढ़कर फलते-फूलते हैं। रज़िया कहती हैं कि बस थोड़ी जागरुकता की ज़रूरत है, जिससे जंगल के साथ ही यहां रहने वाले लोगों का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है।

ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ का महुआ फूल महक रहा है फ्रांस की सरजमीं

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल। 
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