Nadru Ki Kheti: कश्मीर के किसान बर्फीली झील में जान जोखिम में डालकर कैसे निकालते हैं कमल ककड़ी जानिए

कश्मीर में सर्दियों में नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है, जो बर्फीले पानी में मेहनत से उगाई जाती है और स्वाद में अद्भुत होती है।

Nadru Ki Kheti नादरू की खेती

क्या आपने कभी कमल ककड़ी की सब्ज़ी खाई है? अगर नहीं तो एक बार ज़रूर इसका स्वाद चखिएगा। सर्दियों के मौसम में कश्मीर के लोगों के भोजन का ये अहम हिस्सा है। श्रीनगर की खूबसूरत डल झील में खिले गुलाबी कमल न सिर्फ़ इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, बल्कि ये इलाके के किसानों की आजीविका का भी मुख्य स्रोत है। इसी कमल के तने जिसे स्थानीय भाषा में नादरू या कमल ककड़ी भी कहा जाता है, किसानों की रोज़ी रोटी का साधन है। मगर नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) करना हर किसी के बस की बात नहीं है, माइनस 10-12 डिग्री के तापमान में बर्फीले पानी में उतकर तनों को निकालना पड़ता है।

कहां की जाती है नादरू की खेती? (Where do Nadru Ki Kheti)

कमल ककड़ी को कश्मीर में नादरू के नाम से जाना जाता है और यहां के भोजन का अहम हिस्सा है। ख़ासतौर पर सर्दियों में इसे खाया जाता है। नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) मुख्य रूप से श्रीनगर में डल झील और आंचर झील तथा गांदरबल जिले के मानसबल झील में की जाती है। नादरू इस क्षेत्र के कई किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है। किसान बर्फीली कंपकपाती सर्दियों की सुबह अपना शिकारा लेकर झील में निकल पड़ते हैं नादरू की कटाई के लिए।

आंचर झील में नादरू की कटाई करने वाले किसान शब्बीर अहमद कहते हैं कि पढ़ाई के बाद जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वो नादरू की कटाई का काम करने लगे, उनके पिता और दादा जी नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) करते थे और 2007 से वो भी अपने मामा के साथ मिलकर नादरू की कटाई कर रहे हैं। उनका कहना है कि नादरू कश्मीरी पंडितों का मुख्य भोजन है।

नादरू की खेती का उपयोग (Uses of Nadru Ki Kheti)

नादरू यानी कमल ककड़ी का इस्तेमाल कश्मीर के पारंपरिक व्यंजनों में होता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इससे अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। इसकी चटनी, सब्ज़ी के साथ ही सूप भी बनाया जाता है। साथ ही ये पोषक तत्वों से भरपूर होती है इसलिए औषधीय रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है। कमल ककड़ी कश्मीरी संस्कृति का अहम हिस्सा है। यहां ख़ासतौर पर त्योहारों के मौकों पर ख़ासतौर पर नादरू के व्यंजन बनाए जाते हैं।

नादरू की खेती करना बेहद मुश्किल है (Nadru Ki Kheti is extremely difficult)

कमल ककड़ी का स्वाद जितना अच्छा है, उसकी नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) उतनी ही मुश्किल है। किसान शब्बीर अहमद कहते हैं कि ये काम करना हर किसी के बस का नहीं है, क्योंकि माइनस 10-14 डिग्री के तापमान में बर्फीली झील में उतरकर नादरू की तैयार तने का पता लगाकर उसे काटना बहुत मुश्किल होता है। ठंड की वजह से हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं। वो कहते हैं कि कपड़ों की कई लेयर के ऊपर पानी में उतरने से पहले वो लोग वॉटर प्रूफ जैकेट पहनते हैं।

नादरू की खेती – काम नहीं कला है (Nadru Ki Kheti – it is not work but art)

नादरू की कटाई कोई मामूली काम नहीं है, बल्कि ये एक कला है। क्योंकि किसान झील के जमे हुए पानी के अंदर अपने पैरों से नादरू के तनों का पता लगाते हैं कि वो तैयार है या नहीं, तैयार तनों को ही काटा जाता है। काटने के बाद तनों को सावधानी से एकत्र करके बंडल बनाया जाता है। हर बंडल में 15-16 नादरू होते हैं।

नादरू की खेती – स्वाद और सेहत का खजाना (Nadru Ki Kheti – A treasure of taste and health)

कमल ककड़ी को सेहत का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इसमें कोलेस्ट्रॉल और शुगर बिल्कुल नहीं होता है। इसमें विटामिन-सी, पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है जो शरीर को कई स्वास्थ्य समस्याओं से दूर रखने में मददगार है। नादरू के सेवन से शरीर में आई सूजन को भी कम किया जा सकता है, साथ ही इससे त्वचा पर निखार भी आता है। किसान शब्बीर अहमद कहते हैं कि नादरू बहुत सी बीमारियों की दवा है। अस्थमा और गाउट रोग में भी इसका सेवन करना चाहिए। उनका कहना है कि डॉक्टर नादरू की सब्ज़ी और साग खाने की सलाह देते हैं।

नादरू की खेती – कीमत (Nadru Ki Kheti – Price)

नादरू की कीमत उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है। ये 100 से 500 रुपए प्रति किलो तक बिकती है। डल झील में मिलनी वाली कमल ककड़ी बेहतरीन गुणवत्ता वाली होती है, इसलिए ये 500 रुपए प्रति किलो तक बिकती है। शब्बीर अहमद अहमद कहते हैं कि उनके इलाके में 160-170 रुपए प्रति किलो तक नादरू बिक जाता है। नादरू की कटाई सितंबर से मार्च के बीच की जाती है। इसे पानी से निकालकर साफ करके बंडल बनाकर तुरंत ही बेचा जाता है। कमल की ख़ासियत है कि एक बार बीज बोने के बाद सालों-साल इसकी फ़सल मिलती रहती है।

आज के समय में जब खेती में हर जगह मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं कमल ककड़ी की कटाई के लिए अभी तक कोई मशीन नहीं बनी है। इसलिए किसानों को बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में कंकपाती ठंड में पानी में जाकर इसकी कटाई करनी पड़ती है।

कमल ककड़ी के उत्पादक राज्य (Lotus cucumber producing states)

सबसे ज़्यादा कमल ककड़ी जम्मू-कश्मीर में उगाई जाती है। इसके अलावा भारत के तक़रीबन सभी राज्यों में कमल की खेती होती है, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में कमल की खेती अधिक होती है।

नादरू की खेती में लागत (cost of farming in Nadru Ki Kheti)

कमल ककड़ी की खेती में लागत अधिक नहीं आती है। एक एकड़ में इसकी खेती में क़रीब 30,000 रुपए का खर्च आता है। और 3 महीने में ही किसान इसकी खेती से 60 से 70 हजार तक की कमाई कर सकते हैं। इस तरह से सालाना 2 लाख की कमाई किसान कर सकते हैं एक एकड़ में खेती करके। जहां तक इसकी उपज का सवाल है तो एक एकड़ में लगभग 60 क्विंटल कमल ककड़ी का उत्पादन हो सकता है।

ऐसे में अगर कमल ककड़ी 100 रुपए किलो के हिसाब से भी बिके तो भी अच्छी आमदनी हो सकती है। कमल ककड़ी के अलावा कमल के बाकी अंग जैसे बीज जिसे कमल गट्टा भी कहते है, की भी बाज़ार में बहुत मांग रहती है, क्योंकि इसका उपयोग पूजा में होता है। कमल के फूल से लेकर बीज और तना तक इसके हर हिस्से के काम में आने की वजह से ही इसकी खेती बहुत फ़ायदेमेंद मानी जाती है।

नादरू की खेती के उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Nadru Ki Kheti)

नादरू का पौधा दलदली पौधा है। इसकी ख़ासियत है कि ये कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में भी आसानी से उग जाता है। इसके लिए धीमे बहने वाले या रुके हुए पानी की ज़रूरत होती है। नादरू के बीज 20 डिग्री तापमान पर भी अच्छी तरह से अंकुरित हो जाते हैं। जबकि पौधे के विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान अच्छा होता है। नादरू की खेती (Nadru Ki Kheti) वैसे तो पानी में होती है लेकिन पानी के नीचे अगर काली मिट्टी बिछा दी जाए तो बीज जल्दी अंकुरित होंगे और किसानों को अधिक पैदावार मिलेगी।

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