खेती में नई तकनीक से राजेश सैनी ने बनाई मिसाल, बढ़ाई उत्पादकता और पर्यावरण संरक्षण

राजेश सैनी ने खेती में नई तकनीक का सफल उपयोग कर अपनी खेतों की उत्पादकता बढ़ाई और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो किसानों के लिए प्रेरणा है।

खेती में नई तकनीक new technology in farming

पंजाब के होशियारपुर जिले के मुकैरियन गांव के निवासी राजेश सैनी ने अपने 6-10 एकड़ के खेतों में पारंपरिक खेती के साथ खेती में नई तकनीक का सफल उपयोग करके एक नई मिसाल कायम की है। उन्होंने न केवल अपने खेतों की उत्पादकता बढ़ाई बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कहानी उन किसानों के लिए प्रेरणा है जो खेती में नई तकनीक (new technology in farming) को अपनाने का साहस रखते हैं।

शुरुआत और प्रेरणा

राजेश ने खेती के पारंपरिक तरीकों से शुरुआत की। लेकिन फसल अवशेष प्रबंधन की समस्याओं ने उन्हें खेती में नई तकनीक की ओर प्रेरित किया। 2018 में, उन्होंने पूसा डीकंपोजर तकनीक को अपनाया, जो उनके खेतों और मिट्टी की उर्वरता के लिए क्रांतिकारी साबित हुई।
राजेश बताते हैं:
“पारंपरिक तरीके से पराली को जलाना मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण के लिए हानिकारक था। खेती में नई तकनीक (new technology in farming) जैसे पूसा डीकंपोजर ने न केवल इस समस्या का समाधान किया, बल्कि मेरी मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार किया।”

पूसा डीकंपोजर: एक सफल तकनीक

पूसा डीकंपोजर, जिसे राजेश ने 2018 में अपनाया, एक जैविक विधि है जो फसल अवशेषों को 30-40 दिनों में सड़ाकर मिट्टी में परिवर्तित कर देती है।
इस तकनीक के प्रभाव:

  1. मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार: जैविक पदार्थों के समृद्ध होने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ी।
  2. रसायनिक उर्वरकों का कम उपयोग: मिट्टी की संरचना में सुधार के कारण उर्वरकों की जरूरत कम हुई।
  3. पर्यावरण संरक्षण: पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने में मदद मिली।

राजेश ने बताया, “शुरुआती दिनों में यह चुनौतीपूर्ण था क्योंकि किसान नई तकनीक को लेकर हमेशा संशय में रहते हैं। लेकिन जब परिणाम सामने आए, तो अन्य किसान भी इसे अपनाने लगे।”

नवाचार के विस्तार और खेती में नई तकनीक का प्रभाव

2018 में पूसा डीकंपोजर के सफल परिणामों के बाद, शारदा लॉन्चपैड फेडरेशन ने उनके खेतों को प्रयोग के लिए चुना। 2021 में हुए इस प्रयोग ने भी असाधारण परिणाम दिए। इसके अलावा, साउथ पोल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने पूसा डीकंपोजर तकनीक का मूल्यांकन किया और इसे कार्बन क्रेडिट के लिए स्वीकार किया।
राजेश बताते हैं, “कार्बन क्रेडिट के तहत यह तकनीक जलवायु परिवर्तन के लिए एक बड़ा योगदान है। इससे किसानों को आर्थिक लाभ भी हो सकता है।”

सम्मान और उपलब्धियां

राजेश को उनके कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार मिले। इनमें शामिल हैं:

  1. 2018: ब्लॉक कृषि कार्यालय और कृषि विभाग द्वारा “नई तकनीक अपनाने और पराली प्रबंधन” के लिए सम्मानित।
  2. 2019: केवीके बहोवाल, होशियारपुर द्वारा “ऑन फार्म रेजिड्यू मैनेजमेंट” के लिए पुरस्कार।
  3. 2020: जिला उपायुक्त, होशियारपुर द्वारा “क्रॉप रेजिड्यू मैनेजमेंट” में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रशंसा पत्र।
  4. 2022: आईसीएआर-आईएआरआई द्वारा “इनोवेटिव फार्मर अवार्ड”।
  5. 2024: आईसीएआर-आईएआरआई द्वारा “फेलो फार्मर अवार्ड”।

राजेश कहते हैं, “इन सम्मानों ने मेरी मेहनत को और मजबूती दी और मुझे खेती में नई तकनीक (new technology in farming) के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया।”

पर्यावरण संरक्षण में योगदान

राजेश ने न केवल अपनी खेती में सुधार किया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी बड़ा योगदान दिया। पराली जलाने की समस्या को हल करने के लिए उन्होंने अपने गांव में पूसा डीकंपोजर के उपयोग को बढ़ावा दिया।
उनका कहना है, “पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी कम होती है। जैविक तरीके अपनाने से हमें दोनों समस्याओं का समाधान मिला।”

किसानों के लिए प्रेरणा

राजेश के खेतों को अब एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में देखा जाता है। यहां किसान पूसा डीकंपोजर और खेती में नई तकनीक (new technology in farming) का उपयोग करना सीखते हैं।
उन्होंने बताया, “मैं चाहता हूं कि अधिक से अधिक किसान इस तकनीक को अपनाएं और पर्यावरण और अपनी फसलों के लिए इसे लाभकारी बनाएं।”

सरकारी योजनाओं का उपयोग

हालांकि राजेश ने सरकारी योजनाओं का लाभ सीमित रूप से लिया, लेकिन उनकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि सरकारी तकनीकों और संसाधनों का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है।
वे बताते हैं, “सरकार की योजनाएं किसानों के लिए बहुत मददगार हो सकती हैं, लेकिन इसे सही तरीके से लागू करना और उपयोग करना जरूरी है।”

भविष्य की योजनाएं और खेती में नई तकनीक की दिशा

राजेश का लक्ष्य है कि उनके क्षेत्र के सभी किसान पूसा डीकंपोजर और अन्य नई तकनीक को अपनाएं। वे अपने उत्पादों की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने की योजना बना रहे हैं।

निष्कर्ष

राजेश सैनी की कहानी इस बात का प्रमाण है कि सही दृष्टिकोण, मेहनत और खेती में नई तकनीक का उपयोग कैसे खेती और पर्यावरण को लाभ पहुंचा सकता है। उनकी मेहनत और नवाचार ने न केवल उनकी फसल उत्पादकता बढ़ाई, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बने। उनकी यह यात्रा यह सिखाती है कि खेती में नई तकनीक (new technology in farming) और पर्यावरण संरक्षण को साथ लेकर चलने से ही भविष्य का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

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