Greenhouse Farming Techniques: ग्रीनहाउस खेती क्या है? सब्सिडी से लेकर प्रशिक्षण तक जानें सब कुछ

इतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी।

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ग्रीनहाउस खेती (Greenhouse Farming) आज के समय में काफ़ी फ़ेमस हो रही है। ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग दुनियाभर के देशों में बड़े पैमान पर की जा रही है। मौसम की मार से अपनी फसलों को बचाने के लिए किसानों के लिए एक वरदान के जैसा है। ग्रीनहाउस फार्मिंग ओलावृष्टि, आंधी-तूफान, धूप से फसलों को बचा लेती है। इसके साथ ही इसकी मदद से किसान उन फसलों की भी खेती कर सकते हैं जो बाकी महीनों में नहीं उगाई जाती है। Greenhouse Cultivation में किसान उन फल और सब्जियों के स्वाद के मज़े ले सकते हैं जो उस मौसम में नहीं मिलती है। आइए जानते हैं कि ग्रीनहाउस खेती क्या है और ये कैसे की जाती है, साथ ही किसान ग्रीनहाउस फार्मिंग से कैसे ज़्यादा फ़ायदा उठा सकते हैं।

ग्रीनहाउस क्या होता है?

ग्रीनहाउस को आप शीशे के ग्रीनहाउस और प्लास्टिक ग्रीनहाउस में विभाजित कर सकते हैं, लेकिन जो तकनीक सबसे ज़्यादा प्रचलन में है, वो है प्लास्टिक जाली से बना ग्रीनहाउस। ये घेरे के आकार के फ़्रेम की तरह होता है। ग्रीनहाउस में अधिकतर नुकीली छत तैयार की जाती है। जिनके ऊपर कांच या पॉलीकार्बोनेट पैनल लगाये जाते हैं। ग्रीनहाउस में खेती करने के लिए उन फसलों को सेलेक्ट किया जाता है, जिन्हें कम रोशनी की ज़रूरत होती है। साथ ही ऐसी उपज जिसको ज़्यादा तापमान की आवश्यकता नहीं होती है। ग्रीनहाउस में खेती अपनी ज़रूरत के अनुसार पूरे साल या फिर साल के कुछ महीनों में फसल का उत्पादन कर सकते हैं। ग्रीनहाउस फार्मिंग में किसान उन फसलों को आराम से उगा सकते हैं जो ऑफ़-सीज़न प्रोडक्शन से जुड़ी होती हैं। ग्रीनहाउस में हाइड्रोपोनिक्स पद्धति का भी इस्तेमाल होता है।

शेड नेट हाउस (Shade Net House)

शेड हाउस ऐसे डिज़ाइन होते हैं जो बुने हुए या फिर किसी तैयार सामग्री से ढके होते हैं, जिससे सूरज की रोशनी, नमी और हवा का वेंटिलेशन सही तरह से हो सके। शेड हाउस का इस्तेमाल अधिकतर हाइड्रोपोनिक सिस्टम के लिए किया जाता है, जहां का मौसम गर्म हो। कवरिंग मटैरियल का इस्तेमाल एक ख़ास पर्यावरणीय संशोधन प्रदान करने के लिए किया जाता है, जैसे कम रोशनी या खराब मौसम की स्थिति से सुरक्षा करना। शेड हाउस की ऊंचाई वहां उगाने वाली फसल अनुसार अलग-अलग होती है, जो करीब 8 मीटर तक ऊंची जा सकती है।

मल्टी-स्पैन शेप

मल्टी-स्पैन ग्रीनहाउस (Greenhouse) का एरिया एक जैसे उत्पादन क्षमता वाले कई सिंगल स्पैन ग्रीनहाउस से छोटा होता है। इसकी वजह से ताप की हानि कम होती है, और ऊर्जा की बचत होती है। मल्टी-स्पैन डिज़ाइनों का इस्तेमाल करके बडे़ पैमाने और उत्पादन क्षमता के साथ ज़्यादा का फ़ायदा होता है। मल्टी-स्पैन की सबसे ख़ास बात ये हैं कि इसके डिज़ाइन ज़्यादा मजबूत होते हैं, जिससे तूफानों और तूफानी हवाओं के दौरान कम नुकसान होता है।

स्क्रीन हाउस

स्क्रीन हाउस ऐसे डिज़ाइन वाले ग्रीनहाउस होते हैं, जो प्लास्टिक या कांच के बजाय कीट स्क्रीनिंग सामग्री से ढके होते हैं। वे पर्यावरणीय संशोधन और गंभीर मौसम कंडीशन के साथ कीटों को अंदर ना आने देने से सुरक्षा देते हैं। इनका इस्तेमाल ज़्यादातर गर्म मौसम वाले स्थानों पर किया जाता है।

ग्रीनहाउस का वर्गीकरण

मांग और लागत के आधार पर ग्रीनहाउस (Greenhouse) को वर्गीकृत किया जाता है। इसकी मदद से उन किसानों को काफ़ी मदद मिलती है जो ग्रीनहाउस के ज़रीये फसलें उगाना चाहते हैं।

कम लागत वाला ग्रीनहाउस

कम लागत वाले ग्रीनहाउस (Low Cost Greenhouse) के अंतर्गत बांस और लकड़ी के साथ स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है। क्लैडिंग मैटेरियल पराबैंगनी (यूवी) फिल्म से बनती हैं। इस तरह के ग्रीनहाउस के अंदर पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रबंधन किसी ख़ास तरह से नहीं होता है, लेकिन शेडिंग मटैरियल की मदद से रोशनी को कम किया जाता है।

मध्यम लागत और तकनीक वाला ग्रीनहाउस

इस तरह के ग्रीनहाउस (Greenhouse) में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें वहां की इनवॉयरमेंटल कंडीशन को कंट्रोल करते हैं। मीडियम साइज़ वाला ग्रीनहाउस ज़्यादातर 2 मीटर से अधिक लेकिन 4 मीटर से कम ऊंचा होता है। इसकी कुल ऊंचाई आमतौर पर 5.5 मीटर से नीचे होती है। इसमें छत या फिर दीवार की मदद से वेंटिलेशन होता है। मध्यम स्तर के ग्रीनहाउस सिंगल या डबल स्किन प्लास्टिक फिल्म या ग्लास से ढके होते हैं। मध्यम-लागत और तकनीक वाला ग्रीनहाउस हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पानी के उपयोग की अनुकूलता को बढ़ाते हैं।

हाई टेक्नोलॉजी ग्रीनहाउस

हाई टेक्नोलॉजी ग्रीनहाउस (Greenhouse) की दीवारें कम से कम 4 मीटर मोटी होती है, साथ ही इसकी ऊंचाई भी ज़मीन से करीब 8 मीटर ऊपर उठी होती हैं। इस तरह के तैयार डिज़ाइन के कारण फसल बेहतर होने के साथ ही पर्यावरण अनुकूल होती है। छत पर वेंटिलेशन की अच्छा व्यवस्था होती है। इसके साथ ही साथ साइड वॉल वेंट भी बनाये जाते हैं। इसको पॉलीकार्बोनेट शीटिंग या ग्लास से तैयार किया जाता है। उच्च प्रौद्योगिकी संरचनाएं आमतौर पर प्रभावशाली दृश्य प्रदान करती हैं और इसमें अधिक पूंजी की ज़रूरत होती है, लेकिन इससे आने वाला मुनाफ़ा कई गुना होता है।

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ग्रीनहाउस में खेती करने के फ़ायदे

ग्रीनहाउस (Greenhouse) में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा खुले वातावरण की तुलना में कहीं अधिक होती है, जिससे पौधों में फोटोसेंथिसिस की प्रक्रिया बढ़ जाती है। इससे फसल की पैदावार तेजी से होती है। इसके अलावा, ग्रीनहाउस में स्वायल स्टेरेलाईजेशन अच्छी मात्रा में होता है, इससे मृदा जनित फफूंद और अन्य रोगों का प्रकोप कम हो जाता है।

उत्पादन जोखिमों को न्यूनतम करना

एक बंद जगह में रहने से फसलों को अत्यधिक जलवायु संबंधी घटनाओं जैसे तापमान में अचानक वृद्धि या गिरावट से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। ये फसलों को पक्षियों और अन्य जानवरों से भी दूर रख सकता है जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

उत्पादन में बढ़ोत्तरी

ग्रीनहाउस में खेती (Greenhouse Farming) करने से फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। इसमें एक नियंत्रित वातावरण में फसल उगाते हैं। जहां पौधों के विकास के लिए सर्वोत्तम जलवायु परिस्थितियों का निर्माण कर सकते हैं।

पौधों में फोटोसेंथिसिस की प्रक्रिया में तेज़ी

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा काफ़ी ज़्यादा होती है, जिसकी वजह से पौधों में फोटोसेंथिसिस की प्रक्रिया बढ़ती है और वो तेज़ी से पैदावार करने के लिए तैयार हो जाते हैं। साथ ही स्वायल स्टेरेलाईजेशन भी अच्छा होता है, जिसकी वजह से मिट्टी के कारण लगने वाले रोग जैसे फफूंद का अटैक कम हो जाता है।

ख़ास मौसम में उगने वाली फसलों की सालभर खेती

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में बाहरी खेतों की उपज से 10-12 गुना अधिक फसल होती है। ये सब्जियों और फलों वाली फसलों के लिए आदर्श हैं, जो सिर्फ़ एक ख़ास मौसम में ही उगती हैं। किसान ग्रीनहाउस की बदौलत सालभर फूलों की खेती भी कर सकते हैं। फसलों में पानी की ज़रूरत बहुत अधिक मात्रा में नहीं होती है।

उत्पादन जोखिमों को कम करना

एक कंट्रोल एनवायरमेंट में रहने से फसलों को बाहरी खेती के होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। मौसम संबंधी घटनाओं जैसे तापमान में अचानक तेजी या गिरावट, या फिर आंधी, बारिश, ओला, पाले से होने वाले नुकसान से फसलों को बचाया जा सकता है। जंगली जानवरों और पक्षियों से भी फसल की रक्षा होती है।

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग से मुनाफ़ा

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में हाइड्रोपोनिक्स जैसी उन्नत तकनीकों के इस्तेमाल से फसलों की उपज को बढ़ाया जा सकता है। ग्रीनहाउस खेती से किसान दो से तीन गुना मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

ग्रीनहाउस में खेती कैसे शुरू करें?(How To Start Greenhouse Farming)

ग्रीनहाउस में खेती (Greenhouse Farming) के लिए आपको कुछ शुरूआती चीजों की ज़रूरत होती है, जैसे ढांचा तैयार करने के लिए संबंधित उपकरण, श्रमिक, कच्चे माल के लिए अच्छी रकम की ज़रूरतहोती है। इसके साथ ही किसानों को टेक्नोलॉजी, ट्रेनिंग और मार्केटिंग की नॉलेज भी बहुत ज़रूरी है। इन सबके साथ आप अपना ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग शुरू कर सकते हैं।

ग्रीनहाउस में उगने वाली फसलें

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में फसलों में जरबेरा, शिमला मिर्च, डट रोज़, ककड़ी, टमाटर, लिली, स्ट्रॉबेरी, ऑर्किड, जिप्सोफिला, लिमोनियम, पत्तेदार सब्जियां उगाई जा सकती हैं। ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग मार्केट, श्रम और कच्चे माल की उपलब्धता पर भी निर्भर करता है।

भारत में ग्रीनहाउस खेती (Greenhouse Farming In India)

कर्नाटक में ग्रीनहाउस खेती (Greenhouse Farming) के अंतर्गत हर तरह की सब्जियां और फल ग्रीनहाउस में उगाए जाते हैं। इसके साथ ही भारत के दूसरे राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात,आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराभारत में (Greenhouse Farming In India) कर्नाटक राज्य में सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस खेती की जाती है। महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, केरल और हरियाणा में भी ग्रीनहाउस खेती किसानों के द्वारा की जा रही है।

ग्रीनहाउस के निर्माण पर सब्सिडी

ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में तैयार करने की लागत ज़्यादा होती है, जिसके लिए सरकार की ओर से इस पर सब्सिडी भी दी जाती है। भारत में कई राज्य सरकारें अपने सूबे के किसानों को ग्रीनहाउस बनाने के लिए उनकी मदद के लिए 50 फ़ीसदी तक सब्सिडी देती है। भारत में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड 12 लाख अधिकतम, 50 फ़ीसदी सब्सिडी देता है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन 50 लाख तक 50 फ़ीसदी सब्सिडी दे रहा है।  

ग्रीनहाउस के निर्माण के लिए लोन

अगर आप ग्रीनहाउस फ़ार्मिंग (Greenhouse Farming) में रुचि लेते हैं तो इसके लिए आप बैंक से लोन ले सकते हैं। आपको बैंक को अपनी ग्रीनहाउस फार्मिंग की प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना कर दिखानी होती है।  इसके बाद ही बैंक आपको लोन मुहैया कराता है, साथ ही सब्सिडी लेने में मदद मिलती है। बैंक आपको 5 से 7 साल के लिए 12 फ़ीसदी से लेकर 14 फ़ीसदी ब्याज पर लोन देता है।

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ग्रीनहाउस सब्सिडी के लिए आवेदन कैसे करें? 

आप अपने प्रदेश के बागवानी डिपार्टमेंट के ज़रीये ग्रीनहाउस फार्मिंग पर सब्सिडी पा सकते हैं। सरकार ग्रीनहाउस बनाने पर 50से -60 फीसदी सब्सिडी देती है। ये प्रतिशत अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। सब्सिडी से जुड़ी ज़्यादा जानकारी के लिए सरकारी कृषि अधिकारी से संपर्क करें, साथ ही अपने राज्य की बागवानी की आधिकारिक वेबसाइट पर भी विज़िट कर सकते हैं।

भारत में ग्रीनहाउस खेती में प्रशिक्षण

अगर आप भी ग्नीनहाउस खेती (Greenhouse Farming) करने की इच्छा रखते हैं तो आपको इसके लिए ग्रीनहाउस खेती प्रशिक्षण लेना होगा। ग्रीनहाउस खेती के लिए प्रशिक्षण आप भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, गोविंद ग्रीनहाउस प्राइवेट लिमिटेड, एनआईपीएचटी बागवानी प्रशिक्षण केंद्र, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलोर, बागवानी प्रौद्योगिकी संस्थान, नोएडा, ऑल इंडिया ऑर्गेनिक फार्मिंग सोसायटी – हिसार से ट्रेनिंग लेने के बाद आराम से ग्रीनहाउस खेती की शुरूआत कर सकते हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस कैंपस

आपको बता दें कि अभी दुनिया का सबसे बड़े ग्रीनहाउस कैंपस स्पेन के अल्मरिया का ग्रीनहाउस है। इस स्थान पर ग्रीनहाउस लगभग 50,000 एकड़ में फैला हुआ है। जिसे प्लास्टिक का समुद्र भी कहा जाता है। वहीं नीदरलैंड में दुनिया के कुछ सबसे बड़े ग्रीनहाउस हैं, जहां पर बड़े मैपाने पर फसल उत्पादन होता है।

ग्रीनहाउस की शुरूआत कैसे हुई ?

पर्यावरण में कंट्रोल क्षेत्रों को तैयार करके पौधों, फसलों को उगाने का आइडिया रोमन काल से अस्तित्व में आया था। इतिहास की किताबों के अनुसार, रोमन किंग टाइबेरियस ककड़ी जैसी दिखने वाली एक सब्जी रोज़ खाते थे, रोमन किसान सालभर इसे उगाते थे, जिससे वो सब्जी उनकी खाने की प्लेट में हमेशा रहे। ये सब्जी ग्रीनहाउस तकनीक के ज़रिये ही उगाई जाती थी। प्लीनी द इल्डर के मुताबिक, ककड़ियों को स्पेकुलारिया नामक तेल से सने कपड़ों चमकाया जाता था। वहीं आधुनिक ग्रीनहाउस फार्मिंग के विकास के लिए फ्रांसीसी वनस्पतिशास्त्री चार्ल्स लुसियन बोनापार्ट को व्यावहारिक आधुनिक ग्रीनहाउस बनाने का श्रेय दिया जाता है।

ग्रीनहाउस प्रौद्योगिकी को अपनाना क्यों महत्वपूर्ण है?

भविष्य में भूमि की कमी और भोजन की बढ़ती मांग के साथ मौसम में परिवर्तनों के कारण ग्रीनहाउस की अधिक ज़रूरत होगी। कम और उपलब्ध संसाधनों में ही वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल करना ज़रूरी हो जाएगा।

ग्लासगो सम्मेलन में ग्रीनहाउस तकनीक पर ज़ोर

आपको बता दें कि साल 2021 में जलवायु परिवर्तन पर ग्लासगो में हुए सम्मेलन में ग्रीनहाउस गैसों को कम करने पर जोर दिया गया था। जिसके मद्देनज़र CO2 उत्सर्जन कम करने की बात की गई थी। इसी कारण से अब कृषि क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण को निम्न स्तर पर लाने के लिए कई देशों की सरकारें परंपरागत ग्रीन हाउस (Greenhouse) तकनीक के इस्तेमाल पर ज़ोर दे रही हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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