Modern Farming Methods: खेती की आधुनिक तकनीकें जिसे अपनाकर किसान कर सकते हैं सफ़ल खेती

आज के इस मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है, ऐसे में भला कृषि कैसे इससे पीछे रह सकती है। आधुनिक तकनीकों से लेकर उपकरणों तक के इस्तेमाल ने किसानों के लिए खेती को न सिर्फ आसान बना दिया है, बल्कि इसे अधिक मुनाफे का सौदा बना दिया है।

Modern Farming Methods in india खेती की आधुनिक तकनीक

Modern Farming Methods In India: हम आधुनिक खेती के बारे में बहुत सुनते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में आधुनिक खेती का मतलब क्या है? क्या इसमें सिर्फ़ उपकरणों का इस्तेमाल शामिल है? नहीं, आधुनिक खेती में कई चीज़ें शामिल हैं, इसमें उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत बीजों का इस्तेमाल किया जाता है, बुवाई की आधुनिक तकनीक अपनाई जाती है, सिंचाई की उन्नत व्यवस्था के साथ ही उपकरणों के इस्तेमाल से समय और श्रम की बचत शामिल है।

दरअसल, कई सर्वेक्षणों के अनुसार, 2030 तक भोजन की मांग 25% तक बढ़ने की उम्मीद है, जबकि 2050 तक ये बढ़ोतरी 70% तक होने की उम्मीद है। ऐसे में इस बढ़ती भोजन की मांग को पारंपरिक खेती के ज़रिए पूरा करना असंभव है, इसे सिर्फ़ आधुनिक खेती के ज़रिए ही पूरा किया जा सकता है। कई कृषि पद्धतियां ऐसी हैं, जिनमें कम जगह में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, आधुनिक खेती में और भी बहुत सी चीज़ें शामिल हैं, तो आइए, जानते हैं कि असल में खेती की आधुनिक तकनीक है क्या?

खेती की आधुनिक तकनीके (Modern Farming Methods In India)

हमारे देश के कई पिछड़े और ग्रामीण इलाकों में आज भी आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी का अभाव है। वहां के किसान पारंपरिक तरीके से ही खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें बहुत मुनाफ़ा नहीं होता है। इसके विपरित पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों का बड़ा तबका आधुनिक खेती को प्राथमिकता देता है। किसानों को समृद्ध बनाने के लिए आधुनिक खेती बेहतरीन तरीका है। आजकल जिन तकनीकों का इस्तेमाल खेती में करके किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं और उनके समय और श्रम की बचत हो रही है, उसमें शामिल हैं-

ड्रोन तकनीक (Agri Drone Technology)

किसी समारोह में फ़ोटोग्राफ़ी और वीडियोग्राफ़ी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल आजकल आम हो गया है। इसी तरह खेती में भी ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है। कीटनाशकों का छिड़काव मैनुअली करने पर किसानों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कीटनाशकों का पूरी क्षमता से इस्तेमाल भी नहीं हो पाता है। इसलिए अब कई जगहों पर कीटनाशकों का छिड़काव ड्रोन से किया जा रहा है। इसकी मदद से कुछ ही मिनटों में काम हो जाता है, कृषि ड्रोन सामान्य ड्रोन जैसा ही होता है।

इस ड्रोन को किसानों की ज़रूरतों के हिसाब से तैयार किया गया है। इसमें कीटनाशकों के छिड़काव के लिए टैंकर लगा होता है जिसमें कीटनाशकों को स्टोर किया जाता है और फिर रिमोट के ज़रिए इसे कंट्रोल किया जाता है। सरकार ने देश में ड्रोन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। सरकार किसानों को ड्रोन खरीदने पर सब्सिडी तो देती ही है, साथ ही ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स फ़ार्मिंग (Hydroponics Farming)

अगर पुराने ज़माने में कोई किसानों से कहता कि बिना मिट्टी के भी खेती की जा सकती है, तो क्या कोई विश्वास करता? शायद नहीं, लेकिन आधुनिक तकनीक ने इसे सच कर दिखाया है। हाइड्रोपोनिक्स खेती की ऐसी ही तकनीक है जिसमें बिना मिट्टी के जलवायु को नियंत्रित करके पौधे उगाए जाते हैं। इसमें केवल पानी के ज़रिए ही सभी ज़रूरी खनिज और उर्वरक पौधों को दिए जाते हैं।

हाइड्रोपोनिक्स फार्मिंग में फसल के उत्पादन के लिए सिर्फ़ पानी, पोषक तत्व और प्रकाश की ज़रूरत होती है। इस तकनीक से पौधे मिट्टी में लगे पौधों की अपेक्षा 20-30% बेहतर तरीके से बढ़ते हैं। हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग में खेती पाइपों के ज़रिए की जाती है। पाइप में ऊपर की तरफ़ से छेद किए जाते हैं और उन्हीं छेदों में पौधे लगाए जाते हैं। पाइप में पानी होता है और पौधों की जड़ें उसी पानी में डूबी रहती हैं। इस पानी में वो हर पोषक तत्व घोला जाता है, जिसकी पौधे को ज़रूरत होती है। ये तकनीक छोटे पौधों वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है। इसमें गाजर, शलजम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूजा, अनानास, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल आसानी से उगाए जा सकते हैं। यूरोपीय देशों में बड़े पैमाने पर इस तकनीक का इस्तेमाल होता है।

पॉलीहाउस तकनीक (Polyhouse Farming Technique)

पॉलीहाउस तकनीक को ग्रीन हाउस नाम से भी जाना जाता है। ये खेती की अत्याधुनिक तकनीक है, जिसकी मदद से किसान पूरे साल किसी भी तरह के फल, सब्ज़ी या फूलों की खेती कर सकते हैं। ये एक ढकी हुई संरचना है यानि टेंट की तरह ही एक ख़ास क्षेत्र को प्लास्टिक शीट से पूरी तरह से ढक दिया जाता है और उपकरणों के ज़रिए अंदर के तापमान को फसल के हिसाब से नियंत्रित किया जाता है।

इस सरंचना का एक फ़ायदा ये भी है कि बाहरी कीट और रोगों का इस पर असर नहीं होता जिससे बहुत अधिक रसायन और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ती।  इसमें अच्छी गुणवत्ता वाली फसल और सब्ज़ियों का उत्पादन होता है। आधुनिक समय के पॉलीहाउस जीआई स्टील फ्रेम पर बने होते हैं और प्लास्टिक से ढके होते हैं। जो एल्यूमीनियम ग्रिपर के साथ फ़्रेम पर फ़िक्स होते हैं।

ढकने के लिए जिस सफेद प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है वो उच्च गुणवत्ता वाली होती है। इसके अंदर फसलों को पानी देने के लिए ज़्यादातर ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाई जाती है। आमतौर पर अधिकांश किसान पॉलीहाउस में टमाटर, खीरा और शिमला मिर्च की खेती करते हैं, क्योंकि इनकी मांग सालभर बनी रहती है। इनके अलावा, पत्तेदार सब्जियां, कद्दू वर्गीय सब्जियां, गोभी वर्गीय सब्जियां आदि भी पॉलीहाउस में लगाकर किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। पॉलीहाउस में किसान बेमौसमी सब्ज़ियों के साथ ही गेंदा, जरबेर, गुलदाउदी, रजनीगंधा, कारनेशन, गुलाब, एन्थूरियम आदि जैसे फूलों की खेती पॉलीहाउस में भी कर सकते हैं। पॉलीहाउस में खेती करने से किसानों को खुले खेतों के मुकाबले 5 से 10 गुना अधिक पैदावार होती है।

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भारत में एरोपोनिक फ़ार्मिंग (Aeroponics Farming In India)

खेती की ये अत्याधुनिक तकनीक पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद है, क्योंकि इसमें कीटनाशकों और रसायनों के इस्तेमाल के बिना उच्च पौष्टिकता वाली सब्ज़ियां उगाई जा सकती हैं। दरअसल, एरोपोनिक तकनीक एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पौधौ को कोहरे और हवा वाले वातावरण में उगाया जाता है। एरोपोनिक तकनीक में पौधौ को उगाने के लिए पानी, मिट्टी और सूरज की रोशनी की ज़रूरत नहीं पड़ती है। अब आप सोच रहे होंगे कि भला इन सबके बिना पौधे कैसे उग सकते हैं। दरअसल, एरोपोनिक तकनीक में पौधों को बड़े-बड़े बॉक्स में लटका दिया जाता हैं और हर बॉक्स में पौधौ के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व और पानी डाला जाता है। इससे पौधौ की जड़ों में नमी बनी रहती है और कुछ समय के बाद फसल का उत्पादन होने लगता है।

भारत में वर्टिकल फ़ार्मिंग (Vertical Farming In India)

जिस रफ़्तार से जनसंख्या बढ़ रही है और कृषि योग्य ज़मीन घट रही है, ऐसे में खेती के वैकल्पिक साधनों की तलाश ज़रूरी है। इसलिए कृषि वैज्ञानिक लगातार अनुसंधान में लगे रहते हैं कि कैसे कम ज़मीन पर अधिक से अधिक फसल उगाई जा सके। ज़मीन की कमी की समस्या को दूर करने का ही एक तरीका है वर्टिकल फार्मिंग, जो इज़राइल में बड़े पैमाने पर की जा रही है, क्योंकि वहां खेती योग्य भूमि बहुत कम बची है।

वर्टिकल फ़ार्मिंग में वर्टिकल तरीके से फसलें उगाई जाती हैं। इसमें कई लेयर बनाई जाती हैं और उन सब लेयर में फसल लगाई जाती है। अलग-अलग तरह की फसलों के लिए अलग-अलग तरह का स्ट्रक्चर बनता है। हल्दी-अदरक जैसी फसलों के लिए एक के ऊपर एक जीआई से बने बड़े-बड़े लंबे गमले जैसा स्ट्रक्चर बनाया जाता है। वहीं लेट्यूस, बेसिल, पालक जैसी फसलों के लिए वर्टिकल फार्मिंग हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से की जा सकती है। हां, ये तकनीक थोड़ी महंगी है क्योंकि स्ट्रक्चर बनाने में खर्च ज़्यादा होता है, लेकिन ये बस एक बार का खर्चा होता है। एक बार स्ट्रक्चर बन जाने पर ये करीब 24 साल तक चलता है। इस तकनीक की ख़ासियत ये है कि बंजर भूमि पर भी वर्टिकल फ़ार्मिंग की जा सकती है। अच्छी गुणवत्ता वाली फसल मिलती है और क्योंकि वर्टिकल फ़ार्मिंग तकनीक से पॉलीहाउस में भी खेती की जा सकती है, तो तेज़ धूप, बारिश, ठंड, आंधी-तूफान समेत कीटों से भी पौधों का बचाव होता है। सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का इस्तेमाल होता है, जिससे पानी की बचत होती है।

खेती की इन आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए शुरू में किसानों को थोड़ा खर्च ज़रूर करना पड़ता है, लेकिन ये खर्च बस एक बार के लिए ही होता है, उसके बाद किसान लंबे समय तक मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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