Integrated Pest Management: क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक) फसलों के लिए है ज़रूरी? जानिए विशेषज्ञ से

खेती की लागत को कम करने और इसे ज़्यादा लाभदायक बनाने के लिए प्रमाणित व उपचारित बीजों का इस्तेमाल, सही मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ ही एकीकृत कीट प्रबंधन यानि Integrated Pest Management भी ज़रूरी है।

Integrated Pest Management क्यों एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM तकनीक)

जायद की फसलों की बुवाई मार्च महीने से शुरू हो गई है। ऐसे में जायद फसलों की सही देखरेख ज़रूरी है। किसान ऑफ़ इंडिया ने आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर (एग्रोनॉमी) पद पर कार्यरत कृषि विशेषज्ञ डॉ. विशुद्धानंद से एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) पर बात की। उन्होंने बातचीत में जायद की फसलों में लगने वाले रोग-कीटों का ज़िक्र किया। 

जायद की फसल में लगने वाले रोग और उपचार

लीफ़ कर्ल रोग क्या होता है? – जायद की फसल में लीफ़ कर्ल रोग वायरस की वजह से होता है। कद्दू और लौकी जैसी बेल वाली फसलों में इस रोग के लगने का खतरा रहता है। इसमें पत्तियों के नीचे की ओर भूरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। किनारे झुलस जाते हैं। पौधे की विकास की रफ़्तार में असर पड़ता है और उत्पादन में भी कमी आती है।

उपचार: पौधों में ये लक्षण दिखने पर पौधे को उखाड़ के खेत में गाड़ देना चाहिए। किसान को फसल चक्र अपनाना चाहिए। फसल के बीज या पौध के चुनाव में रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए।

डंपिंग ऑफ रोग क्या होता है? – इस बीमारी में अंकुर बनने की अवस्था में पौधे का तना गलने लगता है। ये बीमारी प्याज और लहसुन के पौधों में ज़्यादा देखने को मिलती है।

उपचार: इसके लिए ज़रूरी है कि बीजों का पहले से ही उपचार कर लें। कैप्टान की मात्रा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के साथ में ट्रीटमेंट करते हैं। ऐसा करने से इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। बीजोपचार करने से पहले किसी जानकार से ज़रूर संपर्क करें। 

पाउडरी मिल्ड्यू रोग क्या होता है?- लौकी, तोरई, परवल, भिंडी जैसी फसलों में पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी ज़्यादा पाई जाती है। इस बीमारी की वजह से पौधों की निचली पत्तियों पर सफेद और ग्रे रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है। पौधे के विकास पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

उपचार: फूलों का गुच्छा 8 से 10 से.मी. आकार का हो जाने पर घुलनशील सल्फर 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पहला छिड़काव करना चाहिए । इसके बाद दूसरा छिड़काव डिनोकैप का पहले छिड़काव के 10 से 15 दिनों के बाद करना चाहिए। तीसरा छिड़काव ट्राईडीमार्फ का दूसरे छिड़काव के 10 से 16 दिनों के बाद करना चाहिए। अगर इस बीमारी का असर कम हो तो तीनों छिड़काव में घुलनशील सल्फर का इस्तेमाल करना चाहिए।

रोग व कीटों से फसल को बचाने के लिए आजकल पेस्टीसाइड यानि कीटनाशकों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे न सिर्फ़ फसल की पौष्टिकता कम हो रही है, बल्कि वो सेहत के लिए भी हानिकारक होते हैं। ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि किसानों को इसके साइड इफेक्ट बताने के साथ ही कीट और बीमारियों से बचाव के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन के बारे में बताया जाए और रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ़ अंतिम विकल्प के रूप में ही किया जाए।

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क्या है इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट?

एकीकृत कीट प्रबंधन में रोग व कीटों के नियंत्रण के लिए रसायन अंतिम विकल्प के रूप में इस्तेमाल होते हैं। इसके पहले कीट व रोगों को अलग-अलग तरीके से नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है या नाशीजीवों की संख्या को एक निश्चित सीमा से कम रखने की कोशिश की जाती है ताकि वो फसलों को नुकसान न पहुंचाए।

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट का उद्देश्य

-फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक हानिकारक कीटों, बीमारियों और उनके प्राकृतिक शत्रुओं की लगातार निगरानी करना।
-कीटों और बीमारियो को उनके आर्थिक हानि स्तर से नीचे रखने यानि फसल को नुकसान पहुंचाने के स्तर से नीचे रखने के लिए सभी उपलब्ध नियंत्रण विधियों जैसे व्यवहारिक, यांत्रिक, अनुवांशिक, जैविक, संगरोध और रासायनिक नियंत्रण का जितना संभव हो सके, इस्तेमाल करना।
-अगर कीट व बीमारियों का स्तर इतना बढ़ गया है कि वो फसल को नुकसान पहुंचाने लगे हैं तो, सुरक्षित कीटनाशकों का सही समय पर और सही मात्रा में इस्तेमाल करना।
-कृषि लागत को कम करना, मुनाफ़ा बढ़ाना और साथ ही वातावरण को प्रदूषण से बचाना।

क्यों ज़रूरी है इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट?

पहले के मुकाबले खेती करना अब अधिक चुनौतीपूर्ण और किसानों के लिए ज़िम्मेदारी का काम हो गया है, क्योंकि वो जिस रफ़्तार से कीटनाशकों का इस्तेमाल फसलों पर कर रहे हैं, उससे खतरनाक बीमारियां बढ़ रही है। साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में ये उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वो फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनों पर कम निर्भर रहे और कीट व बीमारियों को नियंत्रित करने के कदुरती तरीकों की तलाश करें। इसके लिए किसानों को जागरुक किए जाने की आवश्यकता है।

कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल का एक नुकसान ये भी हो रहा है कि इससे कीटों व रोगों में प्रतिरोध क्षमता बढ़ रही है, जिससे रसायन के इस्तेमाल के बाद भी ये मरते नहीं है, बल्कि कुछ दिनों में इनकी संख्या और बढ़ जाती है। यही नहीं कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से मित्र कीड़े यानि प्रकृति में मौजूद वो कीट भी मर जाते हैं जो हानिकारक कीटों को मारकर उनकी संख्या नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इस तरह से पूरा संतुलन गड़बड़ा जाता है। इसलिए इन समस्याओं से निजात पाने के लिए इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट ज़रूरी है।

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (IPM) का इस्तेमाल कैसे किया जाता है?

इसके तहत कोई एक विधि या तकनीक नहीं अपनाई जाती है, बल्कि बीजों के चुनाव से लेकर, बुवाई और फसल की कटाई तक के विभिन्न चरणों में अलग-अलग विधियों का इस्तेमाल समय के हिसाब से और एक क्रम में किया जाता है। इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट की अलग-अलग विधियां इस प्रकार हैं-

व्यवहारिक नियंत्रण

इसका मतलब है कि परंपरागत रूप से अपनाए जाने वाले खेती के काम में ऐसे क्या बदलाव लाए जाए कि कीट व रोगों के आक्रमण को या तो रोका जा सके या कम किया जा सके। कीट व रोग नियंत्रण के परंपरागत तरीके हमारे पूर्वजों द्वारा इस्तेमाल किये जाते थे, लेकिन रसायनों के अधिक इस्तेमाल के कारण इन पुराने तरीकों का इस्तेमाल कम हो रहा है। इसमें शामिल हैं-
– खेतों से पुराने फसल अवशेषों को हटाना और मेड़ को साफ़ रखना।
– खेत की गहरी जुताई करना ताकि कोई कीट व रोग या खरपतवार हो तो उसे खत्म किया जा सके।
– मिट्टी का परीक्षण करने के बाद उसके हिसाब से खाद और उर्वरकों की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना।
– साफ, उपयुक्त और कीट प्रतिरोधी बीजकी किस्मों का चुनाव करना और बुवाई से पहले बीजोपचार करना।
– उचित बीज दर और पौधों से पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखना।
– फसल की बुवाई और कटाई का समय इस तरह निश्चित करना कि वो मुख्य कीट व बीमारियो के प्रकोप से बच सके।
– पानी की उचित व्यवस्था।
– फसल चक्र को अपनाना यानि एक फसल के बाद दूसरी फसल लगाना ताकि कीट व रोगों के प्रकोप से बचा जा सके।
– समय-समय पर खरपतवारों का नियंत्रण करने के लिए निराई-गुड़ाई करना।

यांत्रिक नियंत्रण

इस विधि को बीज की बुवाई के बाद अपनाना ज़रूरी होता है। इसमें शामिल हैं-

  • कीटों के अंडों के समूह, सूंडियों, प्यूपा और व्यस्क कीटों को इकट्ठा करके नष्ट करना। रोगग्रस्त पौधों या उनके रोगग्रस्त हिस्से को नष्ट करना।
  • खेत में बांस के पिंजरे लगाकर उसमें कीटों के अंडों के समूह को एकत्र करके रखना ताकि मित्र कीटों का सरंक्षण किया जा सके और हानिकारक कीटों को खत्म किया जा सकते।
  • प्रकाश प्रपंच की मदद से रात में कीटों को आकर्षित करना और उन्हें खत्म करना।
  • कीटों की निगरानी और उन्हें आकर्षित करने के लिए फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल करना और जो कीट आकर्षित हुए हैं, उन्हें नष्ट करना।
  • हानिकारक कीट सफेद मक्खी और तेला के नियंत्रण के लिए यलो स्टिकी ट्रैप का उपयोग करना।

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अनुवांशिक नियंत्रण

इस तरीके में नर कीटों को नपुंसक बनाया जाता है। इसके लिए प्रयोगशाला में या तो रसायन या फिर रेडिऐशन तकनीक अपनाकर उन्हें नंपुसक बनाया जाता है और फिर बड़ी संख्या में वातावरण में छोड़ दिया जाता है ताकि वे वहां मौजूद दूसरे नर कीटों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें। लेकिन यह तरीका द्वीप समूहों में ही सफल रहा है।

जैविक नियंत्रण

इस तरीके में फसलों में नाशीजीवों या पेस्ट को नियंत्रित करने के लिए मित्र कीटों का इस्तेमाल किया जाता है। जो कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं उन्हें नाशीजीव कहते हैं और जो कीट इन हानिकारक कीट को मारकर फसलों की सुरक्षा करते हैं उन्हें मित्र कीट कहा जाता है।

जैव नियंत्रण में एकीकृत नाशीजीव, प्रबंधन का अहम अंग है। इस विधि में नाशीजीवी व उनके प्राकृतिक शत्रुओ के जीवनचक्र, भोजन, मानव सहित अन्य जीवों पर उनके प्रभाव आदि का अध्ययन करके एकीकृत कीट प्रबंधन का फैसला लिया जाता है। कीटों को नियंत्रित करने के लिए जिन मित्र कीटों का इस्तेमाल किया जाता है उसमें शामिल हैं परजीवी, परभक्षी, रोगाणु।

जैव नियंत्रण के फ़ायदे

  • इससे पर्यावरण दूषित नहीं होता है।
  • प्राकृतिक होने के कारण इसका असर लंबे समय तक बना रहता है।
  • अपने आप बढ़ने (गुणन) और फैलने के कारण इसका इस्तेमाल घनी तथा ऊंची फसलों जैसे गन्ना, फलीदार पौधों, जंगलों आदि में आसानी से किया जा सकता है।
  • इसमें सिर्फ विशिष्ट नाशीजीवों पर ही हमला होता है और अन्य जीव प्रजातियों, कीटों, पशुओं, वनस्पतियों और मानव पर इसका काई असर नहीं होता है।
  • इनका इस्तेमाल सस्ता होता है। किसान अपने घर पर भी इनका उत्पादन कर सकते हैं।
    रासायनिक नियंत्रण

रोग, कीट और खरपतवार के साथ ही दूसरे पेस्ट को नियंत्रित करने के लिए भी हर दिन बाज़ार में नए-नए रसायन आ रहे हैं। विभिन्न तरह के कीटों का आसानी से प्रबंधन किया जा सकता है। लेकिन किसानों को ये याद रखना चाहिए कि इनका इस्तेमाल अंतिम विकल्प के रूप में करें। सारे प्राकृतिक तरीके जब फेल हो जाएं, तभी इनका इस्तेमाल करें।

वैज्ञानिकों द्वारा सर्टिफाइड कीटनाशक सुरक्षित होते हैं, बशर्ते किसान उसका उपयोग बताए गए तरीके से और सही मात्रा में करें। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कीटनाशकों का इस्तेमाल कभी भी फसल की कटाई या तुड़ाई के 15 दिन के अंदर ना करें और साथ ही उसके पैकेट पर लिखे हुए निर्देशों को अच्छी तरह पढ़ने के बाद ही बताए गए तरीके से इस्तेमाल करें।

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