Nitrogen Management: कैसे स्मार्ट नाइट्रोजन प्रबंधन सफल कृषि की कुंजी है?

जहां तक ​​नाइट्रोजन प्रबंधन का संबंध है, कृषि क्षेत्र एक दुष्चक्र में है। मिट्टी में नाइट्रोजन मौजूद होता है जो पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से उर्वरकों और कीटनाशकों में किया जाता है जो पौधों को बढ़ने में और बेहतर उपज पाने में मदद करते हैं।

Nitrogen Management: कैसे स्मार्ट नाइट्रोजन प्रबंधन सफल कृषि की कुंजी है?

किसान अपने खेत की योजना बनाते हैं, बीज बोते हैं और फसल के खिलने का इंतज़ार करते हैं। ये प्रक्रिया अक्सर खेत में एक ही फसल या अलग-अलग फसलों के लिए कई बार दोहराई जाती है। ऐसे कई ज़रूरी तत्व होते हैं जिनकी फसल के विकास के दौरान ज़रूरत होती है। उनमें से एक और कहा जाता है कि सबसे महत्वपूर्ण तत्व है नाइट्रोजन प्रबंधन

नाइट्रोजन प्रबंधन पौधे और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है। फसलों और पौधों के सही विकास के लिए मिट्टी में दूसरे पोषक तत्व जैसे फॉस्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, आदि और सूक्ष्म पोषक तत्व के साथ नाइट्रोजन का संतुलित इस्तेमाल होना चाहिए। यहाँ हम नाइट्रोजन प्रबंधन और नाइट्रोजन घटक के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पौधों को नाइट्रोजन प्रबंधन की ज़रूरत क्यों?

किसान अपने बच्चों की तरह ही अपने खेत और फसल की देखभाल करते हैं। वे खेत में फसलों की जरूरतों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। वे अपनी फसलों को स्वस्थ रखने के लिए अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इन्हीं में से एक है पौधों को उपयुक्त मात्रा में नाइट्रोजन देना। ये एक फसल की सैकड़ों जरूरतों में से एक है जिसका किसानों को ध्यान रखना पड़ता है।

  • पौधों को वृद्धि और विकास के लिए नाइट्रोजन प्रबंधन की ज़रूरत होती है।
  • नाइट्रोजन प्रबंधन आवश्यक है क्योंकि ये क्लोरोफिल का एक घटक है जो पौधे को बढ़ने में मदद करता है।
  • ये अमीनो एसिड का एक प्रमुख तत्व है जो प्रोटीन बनाने में मदद करता है।
  • नाइट्रोजन प्रबंधन पौधों में पत्तियों के बढ़ने, पत्ती के क्षेत्र-विस्तार, तनों और बायोमास-उपज के विकास को बढ़ाती है।
  • नाइट्रोजन पौधे को सुन्दर गहरा हरा रंग देता है।

पौधों और फसलों के लिए नाइट्रोजन के प्रमुख स्रोत क्या हैं?

  • किसान खाद में जैविक रूपों में या सिंथेटिक उर्वरकों जैसे अकार्बनिक रूप में नाइट्रोजन का इस्तेमाल करते हैं।
  • नाइट्रोजन मिट्टी में नाइट्रेट के रूप में मौजूद रहता है। नाइट्रोजन को बैक्टीरिया, शैवाल और यहां तक ​​कि बिजली गिरने से उपयोगी नाइट्रेट आयन्स में बदला जा सकता है। 
  • वातावरण में नाइट्रोजन का विशाल भंडार है। आणविक नाइट्रोजन भी पौधों और फसलों के लिए अच्छा स्रोत है। 
  • नाइट्रोजन उर्वरकों (मुख्य रूप से यूरिया) और जैव उर्वरकों आदि को मिट्टी में मिलाया जाता है और पौधे नाइट्रोजन को अमोनियम और नाइट्रेट आयन दोनों रूपों में बदल देते हैं। 
  • सोयाबीन, अल्फा-अल्फा और क्लोवर जैसे फलदार फसल नाइट्रोजन को पौधों के इस्तेमाल करने लायक नाइट्रोजन में बदल सकते हैं। 
  • नाइट्रोजन उर्वरकों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियां मिट्टी में नाइट्रोजन मिलाती हैं जिससे किसान और बागवान अपनी फसलों को “फ़ीड” करते हैं। 
  • खाद उत्कृष्ट नाइट्रोजन स्रोत हैं जो मिट्टी को भी सुधारते हैं। 
  • पशुधन अपशिष्ट पौधों और फसलों में नाइट्रोजन जोड़ने में मदद करता है। 
  • खाद में कार्बनिक नाइट्रोजन और यूरिया होता है जो अमोनिया और अंततः नाइट्रेट में बदल दिया जाता है। 

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कैसे पहचानें फसल को नाइट्रोजन प्रबंधन की ज़रूरत है या नहीं?

पत्तियों और पौधों का पीला पड़ना नाइट्रोजन की कमी का संकेत है। वैसे तो पत्तियों के पीले होने के दूसरे कारण भी हो सकते हैं, लेकिन नाइट्रोजन पोषण की कमी को अहम माना जाता है। जैसे ही किसान इसे देखते हैं, उन्हें अपनी फसल को नाइट्रोजन की खुराक देना शुरू कर देना चाहिए। कभी फसल पोषण से सुधर जाती है तो कभी ठीक नहीं हो पाती है। फिर किसानों को विशेषज्ञ से परामर्श करने और फसल विकास के प्रबंधन के लिए उनके निर्देशों का पालन करना ज़रूरी हो जाता है।

क्या नाइट्रोजन कृषि को हानि पहुंचा सकता है?

कुछ कारक जो पौधों और फसलों में नाइट्रोजन पोषण को प्रभावित कर सकते हैं वे हैं नाइट्रोजन की मात्रा और नाइट्रोजन देने का समय। विषय के इस पहलू को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में कृषि विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. आर एस बाना ने संबोधित किया है। वो सुझाते हैं कि “किसी भी चीज का अंधाधुंध इस्तेमाल हमेशा हानिकारक होता है। फसल को ठीक से पोषण नहीं मिलने पर पौधों में इसके निशान दिख सकते हैं। इसी तरह, नाइट्रोजन के ज़्यादा इस्तेमाल से मिट्टी, ज़मीन में मौजूद पानी, पौधों और वातावरण पर ग़लत असर पड़ सकता है। पानी के स्रोतों में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ने का असर भी साफ़ देखा जा सकता है, जैसे वाष्पीकरण और उर्वरकों की लीचिंग, फसलों का गिरना, कीट कीटों का ज़्यादा संक्रमण, आदि।

कुछ चिंताओं को यहां बताया गया है

  • प्रदूषक फसल विकास और प्रकाश संश्लेषण को बाधित करते हैं।
  • ग्राउंड-लेवल ओजोन पौधों के ऊतकों को जलाती है और धीरे-धीरे पौधों को धूप और ताजी हवा से वंचित करती है।
  • नाइट्रोजन ऑक्साइड स्मॉग और अम्लीय वर्षा बनाता है जो खेतों पर हवा और मिट्टी को प्रभावित करता है।
  • नाइट्रोजन का असंतुलन सीधे तौर पर पैदावार को सीमित कर रहा है और पौधों की जड़ों और पत्तियों को बर्बाद कर रहा है।
  • अमोनिया कृषि पर बुरा प्रभाव डालता है। ये मिट्टी में बहुत अधिक पोषक तत्व जोड़ सकता है जो पौधों के लिए नुक़सानदायक हो सकता है। अमोनिया जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचाता है।
  • फसल हटाने की वजह से नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा मिट्टी से खो जाती है।
  • मिट्टी के कटाव की वजह से कृषि भूमि से नाइट्रोजन ख़त्म हो सकता है।

कृषि में नाइट्रोजन के इस्तेमाल को कैसे संतुलित करें?

आईसीएआर-आईएआरआई में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. भूपिंदर सिंह बताते हैं कि “किसान मिट्टी में अलग-अलग तरह के पोषक तत्वों के स्तर की जांच के लिए लीफ चार्ट, मृदा परीक्षण मीटर, उर्वरक अनुशंसा मीटर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इनके इस्तेमाल से अच्छी उपज पाने में मदद मिल सकती है। लीफ कलर चार्ट एक जाना-पहचाना टूल है। पत्ती के रंग को देखकर किसान ये पता लगा सकते हैं कि पौधे को नाइट्रोजन की जरूरत है या नहीं। इसके आधार पर किसान आवश्यक मात्रा में नाइट्रोजन डाल सकते हैं।” डॉ. आर एस बाना बताते हैं कि “क्षेत्रवार, हर एक फसल के लिए, उस विशेष क्षेत्र की मिट्टी में नाइट्रोजन की मौजूदगी के आधार पर, अनुशंसित खुराक तय की जाती है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे सभी उर्वरकों एवं खादों का इस्तेमाल संतुलित तरीक़े से करें। उदाहरण के लिए – जैसलमेर जिले में मूंग के लिए अनुशंसित नाइट्रोजन खुराक जयपुर क्षेत्र से अलग होगी। कृषि विज्ञान केंद्र इसके लिए किसानों का मार्गदर्शन करता है। राज्य के कृषि विभागों का सभी राज्यों में जमीनी स्तर तक अच्छा नेटवर्क है। इसी तरह, आईसीएआर संस्थान, दूरदर्शन केंद्र, ऑल इंडिया रेडियो, कई पत्रिकाएं आदि किसानों के लिए सूचना के स्रोत हैं।

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पौधों और फसलों के लिए संतुलित पोषण

हालांकि विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ज़्यादा पैदावार पाने के लिए अकेले नाइट्रोजन का इस्तेमाल काफ़ी नहीं है। उर्वरक, खाद और संशोधन के माध्यम से पौधों के पोषक तत्वों का संतुलित इस्तेमाल ही इसका उपाय है। डॉ. भूपिंदर सिंह ने बताया कि “मुद्दा ये है कि विभिन्न क्षेत्रों में किसान ये महसूस नहीं करते हैं कि वर्षों से मिट्टी कम हो रही है। और एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम) पर ज़्यादा जोर देने से दूसरे पोषक तत्वों का असंतुलन हो गया है।  मिट्टी में कई पोषक तत्वों की कमी भी हो गई है। उदाहरण के लिए, 49% मिट्टी में सल्फर की कमी है। मिट्टी में अकेले नाइट्रोजन बेहतर फसल को बनाए रखने या सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी नहीं होगी। इसलिए, पौधों और फसलों के लिए मिट्टी में संतुलित पोषक तत्व होना ज़रूरी है।” थोड़ी सी जागरूकता किसानों को उनके पौधों और फसलों में नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों के असंतुलन के कारण होने वाले नुकसान से बचाने में मदद कर सकती है। इस लेख में यहां विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए समाधानों का संदर्भ लें और हमारे विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए केंद्रों से जुड़ें। इससे आपको सही समय पर सही फसल बोने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, पोषक तत्वों का बुद्धिमानी से उपयोग करें और अपनी फसल की बेहतर उपज पाएं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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