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जिस रफ्तार से पानी की किल्लत हो रही है और भूजल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है, ऐसे में खेती के लिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग यानी बरसात के पानी का सरंक्षण बहुत ज़रूरी हो गया है। राजस्थान के जोबनेर के श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय ने रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय के आसपास का इलाका पहाड़ी है और यहां की मिट्टी रेतीली जिससे यहां पानी की समस्या हमेश बनी रहती है।
इसे ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय परिसर में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से ऐसे कृत्रिम तालाब बनाए गए हैं, जिनमें बरसात का पानी एकत्र होता है, इन तालाबों में 20 करोड़ लीटर से अधिक पानी सरंक्षित किया जाता है। ये पहल राजस्थान में जल सरंक्षण के क्षेत्र में एक नई मिसाल बन रही है। सर्वेश बुंदेली की ख़ास रिपोर्ट।
क्या है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग?
बरसात के पानी को सरंक्षित करना है रेन वॉटर हार्वेस्टिंग कहलाता है। पानी की कमी की समस्या को दूर करने के लिए ये किया जाता है। पानी की कमी वाले इलाकों में खेती में सिंचाई के लिए ये बहुत ज़रूरी है, इससे जिससे भूजल स्तर बढ़ता है और फ़सल उत्पादन बढ़ता है। यदि कोई चाहे को अपने घर की छत या आसपास के इलाके में गड्ढा, टैंक या तालाब बनाकर बारिश का पानी जमा कर सकता और बाद में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। राजस्थान जैसे रेगिस्तानी इलाकों के लिए तो ये तकनीक वरदान साबित हो सकती है।
श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय का रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
राजस्थान के जोबनेर का श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय में कृत्रिम तालाब बनाकर बारिश के पानी को एकत्र किया जा रहा है। दरअसल, इस इलाके में पानी की बहुत समस्या है। रेतीली मिट्टी होने के कारण बरसात का पानी भी रुकता नहीं हैं और रुकता भी है तो ज़मीन में जल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि बोरवेल और ट्यूबवेल से निकालना भी मुश्किल हो जाता है। जोबनेर एक पहाड़ी इलाका है और यहां पर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का वैज्ञानिक तरीके से सेटअप लगाया गया है। एक तालाब में 11 करोड़ लीटर तक पानी स्टोर करने की व्यवस्था की गई है।
यहां कई छोटे-बड़े तालाब है जिसमें 20 करोड़ लीटर पानी जमा होता है। किसान अगर चाहे तो खेत तालाब योजना के तहत किसान साथी अपने रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए तालाब बना सकते हैं। किसान अपने खसरा नंबर के हिसाब से तालाब बनवा सकते हैं। इसके लिए उन्हें सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिलती है।
कैसे बनवाएं तालाब?
तालाब बनवाने के लिए राजस्थान सरकार के ई-पोर्टल पर जाकर आपको अप्लाई करना होगा। तालाब की लंबाई-चौड़ाई अपन हिसाब से तय कर सकते हैं। इसके बाद आपको जितना भी लंबा-चौड़ा तालाब बनाना हो उसके हिसाब से पहले खुदाई करनी होती है, खुदाई इस तरह से होती है कि चारों तरफ से ढाल हो और नीचे समतल। उसके बाद इसमें काली प्लास्टिक शीट डाली जाती है, जो 500 साइक्रोन और 420 GSM वाली होती है। यूनिवर्सिटी के अंदर जो तालाब बना है उसमें पानी इंस्टीट्यूट की छतों और पहाड़ियों से आकर एकत्र होता है और सालभर बीज उत्पादन में इसका इस्तेमाल होता है।
इस विश्वविद्यालय में सबसे ज़्यादा रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की जाती है। जिसका उपयोग बीज उत्पादन के साथ ही अलग-अलग तरह की रिसर्च में होता है। रोज़मर्रा के काम में भी इस पानी का इस्तेमाल किया जाता है। यूनिवर्सिटी के अंदर तालाब में पानी जाए इसके लिए कई नालियों बनाई गई है और ये इस तरह से डिज़ाइन की गई है जिसे सबसे छोटा तालाब पहले भरे, फिर उससे बड़ा और 11 करोड़ लीटर की क्षमता वाला सबसे आखिर में भरता है।
खेत में मेड़ बनाना है अच्छा विकल्प
रेगिस्तानी इलाकों को छोड़कर बाकी जगह के किसान खेत में मेड़ बनाकर बरसात के पानी को सरंक्षित कर। ये पानी कुछ दिन तक खेत में रहता है फिर वो ज़मीन के नीचे चला जाता है। जिससे भूजल स्तर ऊपर आ जाता है यानी थोड़ी खुदाई पर ही पानी मिल जाता है। जिन जगहों पर किसान मेड़ नहीं बना सकतें, वहां बारिश के पानी को सरंक्षित करने के लिए सरकार की खेत तालाब योजना का लाभ उठा सकते हैं।
जिसमें राज्य सरकार अलग-अलग लंबाई-चौड़ाई के तालाबों के लिए योजना बनाती है और सब्सिडी देती है। उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग के पोर्टल पर जाकर आप इसकी जानकारी ले सकते हैं। राजस्थान के ई-मित्र पोर्टल में जाकर इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं। इन योजनाओं का लाभ उठाकर आप खेती के लिए जल सरंक्षण कर सकते हैं।
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधि
राजस्थान में पानी की कमी है, तो यहां मूंगफली, मूंग और दूसरी दलहनी फ़सलें अधिक उगाई जाती है, क्योंकि इनमें पानी कम लगता है। साथ ही सिंचाई के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधि का इस्तेमाल करते हैं जिससे पानी की बचत होती है और तालाब के एक किनारे पर ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम लगाना आसान होता है।
रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के फ़ायदे
- बारिश के पानी को बर्बाद होने से बचाकर एकत्र किया जाता है।
- फिर इसे गड्ढों, कुओं या बोरहोल के ज़रिए ज़मीन में नीचे भेजा जाता है, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है।
- इस पानी का इस्तेमाल खेतों की सिंचाई के लिए किया जा सकता है, जिससे कम बारिश के समय भी फ़सलें लगाना संभव होता है।
- इसका फ़ायदा ये होता है कि गर्मियों में या पानी की कमी वाले इलाकों, जहां बारिश कम होती है, वहां पर खेती के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है।
- क्योंकि इससे भूजल स्तर में सुधार होता है, इससे पानी निकालने के लिए ज़्यादा ऊर्जा की खपत नहीं होती है।
- पानी को ज़मीन के अंदर जमा करने से वाष्पीकरण रुक जाता है और पर्यावरण का संतुलन बना रहता है।
बरसात के पानी को सरंक्षित करने के तरीके
रूफटॉप हार्वेस्टिंग- इसमें घर की छत से बारिश के पानी को एकत्र करके उसे टैंक में जमा किया जाता है।
तालाबों और पोखर बनाना- खेत के पास तालाब या पोखर बनाकर बारिश के पानी को संरक्षित किया जा सकता है।
भूजल पुनर्भरण गड्ढे (Recharge Pit)- छत या किसी अन्य सतह से आने वाले पानी को छानकर ऐसे गड्ढों में भेजा जाता है, जो पानी को ज़मीन के अंदर रिसने देते हैं। इससे भूजल स्तर में सुधार होता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।