बकरी पालन, हर लिहाज़ से किफ़ायती और मुनाफ़े का काम है। फिर चाहे इन्हें दो-चार बकरियों के घरेलू स्तर पर पाला जाए या छोटे-बड़े व्यावसायिक फॉर्म के तहत दर्ज़नों, सैकड़ों या हज़ारों की तादाद में।
बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। बकरी पालन से चार से पाँच महीने में आमदनी मिलनी शुरू हो जाती है। लागत के मुकाबले बकरी पालन की कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए।
पशुपालकों की पहली पसन्द है बकरी
बकरी पालन को भूमिहीनों, खेतीहर मज़दूरों, छोटे और सीमान्त किसानों तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े करोड़ लोगों की जीविका का प्रमुख आधार माना जाता है। बड़े पशुओं की तुलना में बकरी पालन को आर्थिक रूप से ज़्यादा फ़ायदे का पेशा माना जाता है।
तभी तो ज़्यादा से ज़्यादा पशुपालक किसानों की पहली पसन्द बकरी पालन बनी हुई है। यही वजह है कि पशु गणना 2019 में देश में बकरियों की संख्या 14.9 करोड़ दर्ज़ हुई जबकि पशु गणना 2012 में ये 13.52 करोड़ थी।
राष्ट्रीय पशुधन में गाय-भैंस का बाद बकरियों और भेड़ों का ही स्थान है। देश के कुल दूध और माँस उत्पादन में बकरी पालन का शानदार योगदान है। दूध उत्पादन में ये हिस्सेदारी जहाँ करीब 3 प्रतिशत (46.7 लाख टन) है माँस उत्पादन में भागीदारी करीब 13 फ़ीसदी (9.4 लाख टन) है। बकरी पालन की इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए ICAR-केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मथुरा के विशेषज्ञों ने ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए ख़ास मंत्र सुझाये हैं।
बकरी पालकों के लिए वैज्ञानिकों के 20 मंत्र
- बकरी की प्रजाति का चुनाव स्थानीय वातावरण को ध्यान में रखकर करना चाहिए। दुनिया में बकरी की कम से कम 103 नस्लें हैं। इनमें से 21 नस्लें भारत में पायी जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं – बरबरी, जमुनापारी, जखराना, बीटल, ब्लैक बंगाल, सिरोही, कच्छी, मारवारी, गद्दी, ओस्मानाबादी और सुरती। इन नस्लों की बकरियों की बहुतायत देश के अलग-अलग इलाकों में मिलती है।
- आमतौर पर जो बकरी ज़्यादा मेमनों को जन्म देती है उसके बच्चों का वजन कम होता है। जबकि कम बच्चों को जन्म देने वाली बकरियों के मेमनों का वजन ज़्यादा होता है। इस तरह, बकरियों की सभी प्रजातियों से कुलमिलाकर एक जैसी ही कमाई होती है।
- बकरी पालन के तहत यदि उन्नत नस्ल के मेमने चाहिए तो प्रजनन के लिए इस्तेमाल होने वाले बकरे को बाहर से लाकर ही स्थानीय बकरियों के सम्पर्क में लाना चाहिए।
- प्रजनक बकरे की माँ को ज़्यादा दूध देने वाली और ज़्यादा मेमनों को जन्म देने वाली होना चाहिए। इसके अलावा, ऐसे बकरे को शारीरिक रूप से विकसित, स्वस्थ और उन्नत नस्ल का होना चाहिए।
- बकरी को गर्मी में आने या कामातुर होने के 12 घंटे बाद गाभिन कराना चाहिए। अप्रैल-मई तथा अक्टूबर-नवम्बर में गाभिन कराने पर बच्चे अनुकूल मौसम में प्राप्त होते हैं।
- बकरियों को अन्त:प्रजनन (इन ब्रीडिंग) से बचाना चाहिए। यानी, जिस बकरे से बकरी को गाभिन कराया गया हो उसी से उसके बच्ची को गाभिन नहीं कराना चाहिए।
- सम्भव हो तो बकरी का आवास (बाड़ा) पूर्व से पश्चिम दिशा में ज़्यादा फैला होना चाहिए। बाड़े की लम्बाई वाली दीवार की ऊँचाई एक मीटर होनी चाहिए और इसके ऊपर के हिस्से को जालीदार होना चाहिए। 80 से 100 तक बकरियों के लिए 20×60 वर्ग फ़ीट बाड़ा होना चाहिए और इसके झालीदार हिस्से की पैमाइश 40×60 वर्ग फ़ीट का होना चाहिए।
- बकरियों के बाड़े का फर्श कच्चा यानी मिट्टी वाला तथा रेतीला होना चाहिए। इसे रोकमुक्त रखने के लिए समय-समय पर बिना बुझे चूने का छिड़काव करते रहना चाहिए।बकरियों तथा उनके बाड़े की साफ़-सफ़ाई का ख़ास ख़्याल रखने से ही बकरी पालन में ज़्यादा कमाई हासिल होगी।
- बकरियों के ब्याने के एक हफ़्ते बाद उसे और उसके मेमनों को अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए। मेमनों को दूध पिलाने के वक़्त की बकरी के पास लाना चाहिए।
- बकरी को उसके वजन के अनुपात में रोज़ाना 3 से 5 प्रतिशत भार जितना सूखा आहार खिलाना चाहिए। एक वयस्क बकरी को रोज़ाना एक से तीन किलोग्राम हरा चारा, 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक भूसा और 150 से 400 ग्राम तक दाना रोज़ाना खिलाना चाहिए। भूसा यदि दलहनी फसलों का हो तो सबसे अच्छा है।
- बकरियों को साबुत अनाज नहीं खिलाना चाहिए।उन्हें खिलाये जाने वाले दाने हमेशा दला हुआ और सूखा ही होना चाहिए। इसमें पानी नहीं मिलाना चाहिए। दाने में 60-65 प्रतिशत दला हुआ अनाज, 10-15 प्रतिशत चोकर, 15-20 प्रतिशत खली, 2 प्रतिशत मिनरल मिक्सचर (खनिज तत्व) तथा एक प्रतिशत नमक का मिश्रण होना चाहिए। बकरियों को सरसों की खली नहीं खिलानी चाहिए।
- बकरी के पीने का पानी साफ़ होना चाहिए। बकरियों को नदी, तालाब और गड्ढे में जमा गन्दे पानी को पीने से बचाना चाहिए।
- बकरियों में PPR, ET, खुरपका, मुँहपका, गलघोंटू तथा बकरियों के चेचक जैसे पाँच संक्रामक रोगों के टीके अवश्य लगवाने चाहिए। ये टीके मेमनों के 3-4 महीने की उम्र के बाद ही लगाये जाते हैं।
- यदि कोई भी बकरी बीमार हो तो उसे फ़ौरन बाड़े से अलग कर देना चाहिए और उसका इलाज़ करवाना चाहिए। इलाज़ के बाद ठीक होने पर ही उन्हें वापस बाड़े में रखा जा सकता है।
- बकरियों को अन्त:परजीवी नाशक दवाईयाँ साल में दो बार ज़रूर पिलानी चाहिए। बरसात के मौसम के बाद ये दवाई ज़रूर पिलाएँ।
- बाह्य परजीवी नाशक दवाईयों के घोल से यदि बकरियों को सावधानीपूर्वक नहलाया जाए तो परजीवी मर जाते हैं। ऐसा घोल बनाने के लिए पानी में दवा की निर्धारित मात्रा ही मिलानी चाहिए।
- ज़्यादा सर्दी, गर्मी और बरसात के दुष्प्रभाव से बकरियों को बचाने के लिए समुचित इन्तज़ाम करना चाहिए। वर्ना, ये बीमार पड़ सकती हैं।
- बकरी के ब्याने पर मेमने की नाल दो इंच ऊपर से किसी नये और साफ़ ब्लेड से काटना चाहिए। इसके बाद नाल पर टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए।
- नवजात मेमने को आधे घंटे के भीतर बकरी का पहला दूध (खीस) पिला देना चाहिए। इससे मेमनों की रोग प्रतिरोधकता क्षमता बहुत बढ़ जाती है।
- बकरी के बच्चों को 9-12 महीने की उम्र पर त्यौहारों के आसपास बेचना ज़्यादा लाभकारी होता है।बकरी के दूध से बनाये गये पनीर से भी बढ़िया कमाई होती है।
बकरी पालन से जुड़ी किसी भी समस्या पर विशेषज्ञों से ज़्यादा जानकारी लेने के लिए ICAR-केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मथुरा के हेल्पलाइन नम्बर 0565-2763320 पर सम्पर्क किया जा सकता है। वेबसाइट : www.cirg.res.in
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