बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड, चुनें अपने इलाके के लिए सही प्रजाति और पाएँ ज़्यादा फ़ायदा

बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। लागत के मुकाबले बकरी पालन से होने वाली कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए। बकरी पालन के विशेषज्ञों ने देश के विभिन्न इलाकों की जलवायु के अनुकूल 8 नयी और ख़ास नस्लों की बकरियों की पहचान करके उन्हें पंजीकृत भी करवाया है। ताकि बकरी पालक किसान अपने इलाके की जलवायु के अनुरूप उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव करके उसके पालन से ज़्यादा से ज़्यादा आमदनी पा सकें।

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड

बकरी पालन को भूमिहीनों, खेतीहर मज़दूरों, छोटे और सीमान्त किसानों तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े करोड़ लोगों की जीविका का प्रमुख आधार माना जाता है। बकरी पालन, हर लिहाज़ से किफ़ायती और मुनाफ़े का काम है। फिर चाहे इन्हें दो-चार बकरियों के घरेलू स्तर पर पाला जाए या छोटे-बड़े व्यावसायिक फॉर्म के तहत दर्ज़नों, सैकड़ों या हज़ारों की तादाद में। बकरी पालन में न सिर्फ़ शुरुआती निवेश बहुत कम होता है, बल्कि बकरियों की देखरेख और उनके चारे-पानी का खर्च भी बहुत कम होता है। लागत के मुकाबले बकरी पालन से होने वाली कमाई का अनुपात 3 से 4 गुना तक हो सकता है, बशर्ते इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए।

पशुपालकों की पहली पसन्द है बकरी

बड़े पशुओं की तुलना में बकरी पालन को आर्थिक रूप से ज़्यादा फ़ायदे का पेशा माना जाता है। तभी तो ज़्यादा से ज़्यादा पशुपालक किसानों की पहली पसन्द बकरी पालन बनी हुई है। यही वजह है कि पशु गणना 2019 में देश में बकरियों की संख्या 14.9 करोड़ दर्ज़ हुई जबकि पशु गणना 2012 में ये 13.52 करोड़ थी। राष्ट्रीय पशुधन में गाय-भैंस का बाद बकरियों और भेड़ों का ही स्थान है। देश के कुल दूध और माँस उत्पादन में बकरी पालन का शानदार योगदान है। दूध उत्पादन में ये हिस्सेदारी जहाँ करीब 3 प्रतिशत (46.7 लाख टन) है माँस उत्पादन में भागीदारी करीब 13 फ़ीसदी (9.4 लाख टन) है।

बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड

दुनिया में बकरी की कम से कम 103 नस्लें हैं। इनमें से 21 नस्लें भारत में पायी जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं – बरबरी, जमुनापारी, जखराना, बीटल, ब्लैक बंगाल, सिरोही, कच्छी, मारवारी, गद्दी, ओस्मानाबादी और सुरती। इन नस्लों की बकरियों की बहुतायत देश के अलग-अलग इलाकों में मिलती है। इनके अलावा, बकरी पालन के विशेषज्ञों ने देश के विभिन्न इलाकों की जलवायु के अनुकूल 8 नयी और ख़ास नस्लों की बकरियों की पहचान करके उन्हें पंजीकृत भी करवाया है। ताकि बकरी पालक किसान अपने इलाके की जलवायु के अनुरूप उन्नत नस्ल की बकरियों का चुनाव करके उसके पालन से ज़्यादा से ज़्यादा आमदनी पा सकें।

बकरियों की सही नस्ल को कैसे चुनें?

बकरियों की ज़्यादातर नस्लों को घूमते-फिरते हुए चरना पसन्द होता है। इसीलिए इनके साथ चरवाहों का रहना ज़रूरी होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश और गंगा के मैदानी इलाकों में बहुतायत से पायी जाने वाली बरबरी नस्ल की बकरियों को कम जगह में खूँटों से बाँधकर भी पाला जा सकता है। इसी विशेषता की वजह से वैज्ञानिकों की सलाह होती है कि यदि किसी किसान या पशुपालक के पास बकरियों को चराने का सही इन्तज़ाम नहीं हो तो उसे बरबरी नस्ल की बकरियाँ पालनी चाहिए और यदि चराने की व्यवस्था हो तो सिरोही नस्ल की बकरियाँ पालने से बढ़िया कमाई होती है।

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बकरी पालन का वैज्ञानिक तरीका

केन्द्रीय बकरी अनुसन्धान संस्थान, मथुरा के पशु आनुवांशिकी और उत्पाद प्रबन्धन विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एम के सिंह के अनुसार, ‘वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन करके पशुपालक किसान अपनी कमाई को दोगुनी से तिगुनी तक बढ़ा सकते हैं। इसके लिए बकरी की उन्नत नस्ल का चयन करना, उन्हें सही समय पर गर्भित कराना और स्टॉल फीडिंग विधि को अपनाकर चारे-पानी का इन्तज़ाम करना बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। उत्तर भारत में बकरियों को सितम्बर से नवम्बर और अप्रैल से जून के दौरान गाभिन कराना चाहिए। सही वक़्त पर गाभिन हुई बकरियों में नवजात मेमनों की मृत्युदर कम होती है।’

बकरियों का प्रजनन प्रबन्धन कैसे करें?

समान नस्ल की मादा और नर में ही प्रजनन करवाएँ। प्रजनन करने वाले परिपक्व नर बकरों की उम्र डेड़ से दो साल होनी चाहिए। ध्यान रहे कि एक बकरे से प्रजनित सन्तान को उसी से गाभिन नहीं करवाएँ। यानी, बाप-बेटी का अन्तः प्रजनन नहीं होने दें। इससे आनुवांशिक विकृतियाँ पैदा हो सकती हैं। 20 से 30 बकरियों से प्रजनन के लिए एक बकरा पर्याप्त होता है। मादाओं में गर्मी चढ़ने के 12 घंटे बाद ही उसका नर से मिलन करवाएँ। प्रसव से पहले बकरियों के खाने में दाने का मात्रा बढ़ा दें।

बकरियों की 8 नयी नस्लें पंजीकृत

सलेम ब्लैक बकरी:
सलेम ब्लैक बकरी
  1. सलेम ब्लैक बकरी: सलेम ब्लैक बकरियाँ तमिलनाडु के सलेम, धर्मपुरी, कृष्णागिरी और एरोड़ ज़िलों में कौंगू और गौन्डर समुदाय के लोग माँस, खाल और खाद के लिए पालते हैं। इस नस्ल की संख्या करीब एक लाख है। ये बकरियाँ लम्बी, दुबली और लम्बे पैरों वाली होती हैं। इनका रंग मुख्य रूप से काला होता है। इनके कान मध्यम आकार के और पत्ते जैसे होते हैं। सींग आकार में मध्यम, रंग धुमैला, ऊपर और नीचे की ओर घुमावदार होते हैं। नर में सींग मोटे और लम्बे होते हैं। नर की गर्दन मोटी और मज़बूत होती है। वयस्क नर का औसत वजन 48.64 किलोग्राम और मादा का 31.76 किलोग्राम होता है। इस नस्ल में यौन परिपक्वता जल्दी आती है। मादाओं का दो या अधिक मेमनों को जन्म देना और उनकी मृत्यु दर कम होना इस नस्ल की ख़ासियत है।
  2. कहमी बकरी: कहमी नस्ल की बकरी का नाता गुजरात के सौराष्ट्र इलाके से है। इनकी गर्दन और मुँह का रंग लाल भूरा, जबकि पेट के पीछे का भाग काला होता है। इनके कान लम्बे और माथा उभरा हुआ होता है। सींग आगे या पीछे की ओर निर्देशित होते हैं। इन्हें दूध और माँस दोनों के लिए पाला जाता है, क्योंकि इसके दूध का औसत उत्पादन रोज़ाना 1.7 लीटर का है। इसकी औसत सालाना प्रजनन दर 1.4 मेमने की है। वयस्क नर का वजन 56 किलोग्राम और मादा का 48 किलोग्राम तक होता है।
  3. असोम हिल बकरी: ये असम और मेघालय के इलाके की नस्ल है। इनका रंग ज़्यादातर सफ़ेद होता है और शरीर के पिछले हिस्सों पर अक्सर काले धब्बे पाये जाते हैं। ये बकरियाँ छोटे पैरों और छोटे शारीरिक आकार की होती हैं। नर और मादा की दाढ़ी और सींग बेलनाकार होते हैं। ये ऊपर और नीचे की ओर निर्देशित होते हैं। कान आकार में मध्यम और नुकीले होते हैं। इन्हें मुख्यतः माँस उत्पादन के लिए पाला जाता है। इसके वयस्कों का वजन 15 से 26 किलोग्राम तक होता है। इनकी औसत सालाना प्रजनन दर 1.6 मेमने की है।
  4. नन्दीदुर्गा बकरी: सफ़ेद रंग की यह बकरी दक्षिणी कर्नाटक में पायी जाती है। इसकी थूथन, पलक और खुर काले होते हैं। कान परतदार और लटकते हुए होते हैं। सींग हल्के मुड़े हुए, कुछ पशुओं में पीछे, नीचे और अन्दर गर्दन को छूते हुए होते हैं। ये बकरियाँ सिर्फ़ माँस के लिए पाली जाती हैं। इस नस्ल की बकरियों में जुड़वाँ बच्चे सामान्य बात है। वयस्क नर का वजन 26 से 56 किलोग्राम और मादा का भार 24 से 41 किलोग्राम होता है।
  5. रुहेलखंडी बकरी: रुहेलखंडी बकरी उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड इलाके की है। इसे माँस और दूध के लिए पाला जाता है। इसका रंग मुख्यतः काला होता है। कुछ बकरियों की गर्दन और चेहरे पर धब्बे भी पाये जाते हैं। सींग गोलाकार और बाहर की तरफ झुके होते हैं। वयस्क नर का वजन 25 से 36 किलोग्राम और मादा का भार 21 से 31 किलोग्राम तक होता है। इस नस्ल में जुड़वाँ और तीन बच्चों का जन्म सामान्य बात है। इनकी औसत सालाना प्रजनन दर 1.57 मेमने की है । दैनिक दूध उत्पादन 450 से 740 मिलीलीटर होता है।
  6. सूमी-ने बकरी: ये नगालैंड की लम्बे बालों वाली बकरियाँ हैं। इनको नगालैंड के जुनेहबोटो ट्यूनसेंग ज़िलों में सूमी जनजाति के लोग परम्परागत खुली पद्धति में तरकरीब शून्य लागत पर पालते हैं। इसकी बकरियों की आबादी करीब 5 हज़ार है। यह एक मध्यम आकार की बकरी है। इसे मुख्यतः इसके रेशमी बालों के लिए पाला जाता है। इनका रंग सफ़ेद होता है, लेकिन सिर, गर्दन और पैरों पर काले धब्बे होते हैं। सिर सीधा, कान मध्यम आकार और खड़े होते हैं।
बकरी की नस्लें
सूमी-ने बकरी (left-top), बिदरी बकरी (left-bottom), भाखरवाली बकरी (right-top), रुहेलखंडी बकरी(right-bottom)

बकरी पालन (Goat Farming): बकरियों की 8 नयी नस्लें रजिस्टर्ड, चुनें अपने इलाके के लिए सही प्रजाति और पाएँ ज़्यादा फ़ायदा

नरों के सींग मोटे, नुकीले, छोटे आकार के तथा आगे या हल्के पीछे की तरफ बढ़े होते हैं। मादाओं की सींग छोटी होती है। नरों में दाढ़ी भी पायी जाती है। नर का थूथन काला या भूरा होता है जबकि सफ़ेद रंग की मादाओं में ये ग़ुलाबी रंग सा होता है। नरों का औसत वजन 31.48 किलोग्राम और मादाओं का 25.79 किलोग्राम। वयस्क नरों में लम्बे बाल पाये जाते हैं। मादाओं में लम्बे बाल सामान्यतः जाँघ वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं। स्थानीय लोग इसके बालों से कई परम्परागत वस्तुएँ बनाते हैं।

  1. भाखरवाली बकरी: ये जम्मू-कश्मीर में पायी जाती हैं। इनका रंग सफ़ेद और काला होता है और पूरा शरीर लम्बे बालों से ढका रहता है। ये बड़े आकार की उभरे हुए सिर वाली बकरियाँ होती हैं। इनके कान लटके हुए होते हैं। सींग ऊपर और नीचे की तरफ झुके हुए और पेंचदार होते हैं। ये दूध और माँस के लिए पाली जाती हैं। इनके वयस्क नर का वजन 35 से 60 किलोग्राम और मादा का 30 से 50 किलोग्राम तक होता है। इनका औसत दैनिक दूध उत्पादन 900 मिलीलीटर है।
  2. बिदरी बकरी: ये उत्तर-पूर्वी कर्नाटक में पायी जाने वाली काले रंग की बकरी है। सींग पीछे और नीचे की ओर निर्देशित होते हैं। कान झुके होते हैं। इन्हें मुख्यतः माँस के लिए पाला जाता है। इनमें जुड़वाँ बच्चे पैदा करना इनके सामान्य गुण है। हालाँकि, पहले प्रसव में अक्सर एक ही मेमना पैदा होता है। इनकी सालाना औसत प्रजनन दर 1.7 मेमनों की है। वयस्क नर का वजन 23 से 52 किलोग्राम और मादा का 19 से 45 किलोग्राम तक होता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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