गेरोल नस्ल: भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर ये आदिवासी महिला किसान बनी मिसाल

गरीब किसानों के लिए भेड़ व बकरी पालन आजीविका का मुख्य साधन होता है, क्योंकि इसमें लागत भी कम आती है और मुनाफ़ा जल्दी मिलने लगता है। सुंदरबन के आदिवासी किसान भी भेड़ और बकरी पालन से अपने जीवन स्तर को सुधार रहे हैं। भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर आरती ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया।

गेरोल नस्ल भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक

भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक | पश्चिम बंगाल के सुंदरबन इलाके में रहने वाले आदिवासी किसानों की ज़िंदगी बहुत मुश्किल हैं, इनके पास खेती के लिए पर्याप्त ज़मीन नहीं है। ऐसे में जीवनयापन के लिए ये दूसरे विकल्प की तलाश में रहते हैं। भेड़ व बकरी पालन इन किसानों के लिए अच्छा विकल्प है, इससे उन्हें स्थायी आजीविका का साधन मिल जाता है।

भेड़ से क्या लाभ होता है?

अगर किसान के पास थोड़ी ज़मीन है जिस पर चारा उगाया जा सके तो भेड़ और बकरियों को खिलाने पर भी कुछ खर्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। भेड़ को दूध, ऊन और मांस के लिए पाला जाता है।

गेरोल भेड़ की ख़ासियत

भेड़ की कई नस्लें होती हैं, लेकिन सुंदरबन इलाके में गेरोल भेड़ अधिक मिलती है। इनका आकार छोटा होता है और खासतौर पर इन्हें मांस के लिए पाला जाता है। सुंदरबन की आदिवासी महिला किसान आरती मंडी हेम्ब्रम भी इसी नस्ल की भेड़ पाल रही हैं और अब तो वो एक सफल भेड़ पालक बनकर अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं।

गेरोल नस्ल के भेड़ दिखने में छोटे होते हैं। इनके शरीर का वजन मध्यम होता है जो भारी नस्ल की भेड़ों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। गेरोल नस्ल का छोटा सिर, मध्यम कान और छोटी पतली पूंछ वाला शरीर होता है। वयस्क नर का औसतन वजन 15 किलोग्राम और मादा के शरीर का औसतन वजन 13.7 किलोग्राम होता है।

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भेड़ और बकरी पालन शुरू करने से पहले ट्रेनिंग

सुंदरबन का गोसाबा ब्लॉक नदी और जंगलों से घिरा है। आरती मंडी हेम्ब्रम इसी इलाके के नफरगंज गांव की रहने वाली हैं। उनके पास सिर्फ़ 2 बीघा ज़मीन हैं और परिवार में 6 लोग हैं जिनका खर्च चलाना आरती के लिए बहुत मुश्किल था, लेकिन बायोटेक किसान हब की ओर से आयोजित कई प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के बाद आरती की मुश्किलें कम होती चली गईं।

आरती मंडी ने प्रशिक्षण में मिली जानकारी और तकनीकी कौशल के आधार पर वैज्ञानिक भेड़ और बकरी पालन शुरू किया और यहां से उनकी ज़िंदगी बदल गई। सुरक्षित आजीविका के साथ ही उन्हें स्थायी आमदनी मिलने लगी।

भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी

प्रशिक्षण के दौरान आरती मंडी को भेड़ों के प्राथमिक उपचार, रहने की व्यवस्था, समग्र प्रबंधन, आहार, सामान्य बीमारियों और उनके इलाज के साथ ही डीवॉर्मिंग और टीकाकरण की जानकारी दी गई। साथ ही गेरोल नस्ल की भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी दी गई। इससे आरती को बहुत मदद मिली। उन्हें 3 गेरोल भेड़ और एक मेढ़ा दिया गया। इसके अलावा, उन्होंने स्थानीय बा़ज़ार से 4 गायें भी खरीदीं।

बायोटेक किसान हब द्वारा उन्हें टीकाकरम, स्वास्थ्य देखभाल, पशु चारा और मिनरल्स सप्लीमेंट्स जैसे इनपुट भी दिए गए। सुंदरबन जैसे आदिवासी इलाकों में जहां किसानों को तकनीकी जानकारी नहीं है वहां बायोटेक किसान हब उन्हें गुणवत्ता पूर्ण पशुओं उपलब्ध करवा रहा है।

भेड़ों की बाज़ार की समस्या को किया दूर 

आरती अपने इलाके की प्रगतिशील महिला किसान बन चुकी हैं। उनके पास 16 गेरोल भेड़ और एक मेंढा है। एक सफल उद्यमी बनने के साथ ही परिवार और समाज में सम्मान भी मिला। इतना ही नहीं, गेरोल भेड़ों को बेचकर उन्होंने गांव में 1 बीघा खेत भी खरीदा। अब वो फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन की सदस्य भी बन चुकी हैं, जिससे भेड़ों की मार्केटिंग की समस्या दूर हो गई। भेड़ पालन की वैज्ञानिक तकनीक के साथ ही वह खेती भी कर रही हैं।

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भेड़ और बकरी पालन का फ़ार्म बना मॉडल

आरती ने बायोटेक किसान हब द्वारा आयोजित कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और उनके द्वारा दी गई अन्य सुविधाओं का भी लाभ उठाया जिससे कम समय में ही वह एक सफल भेड़ पालक बन चुकी हैं। जिले के अन्य किसान और छात्र उनके मॉडल फार्म का दौरा करने आते हैं। उनकी सफलता देखकर दूसरे किसान भी भेड़ व बकरी पालन के लिए आगे आ रहे हैं।

गेरोल नस्ल भेड़ के प्रबंधन के तरीके

ज़्यादातार  सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूर गेरोल भेड़ पालते हैं। गेरोल भेड़ के झुंड का आकार 2 से 27 के बीच होता है। हालांकि, ज़्यादातार किसान 3 से 5 के बीच छोटे झुंड रखते हैं। भेड़ों को सामान्य भूमि, बांधों और सड़कों के किनारे और पानी के स्रोतों के पास प्राकृतिक घास के मैदान में चरने के लिए पाला जाता है। भेड़ पालन में अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल होते हैं।

बरसात के मौसम में अधिकांश खेतों में पानी भर जाता है। गेरोल भेड़ में दलदली भूमि में घुटने तक की स्थिति में तैरने और चरने की क्षमता होती है। आम तौर पर भेड़ों को अलग घर उपलब्ध नहीं कराया जाता है और उन्हें मवेशियों के साथ रखा जाता है। कुछ किसानों का मानना है कि भेड़ और बकरियाँ एक साथ अच्छी तरह जीवित नहीं रह पातीं। इसलिए, या तो वे गाय-बैल और भेड़ पालते हैं या गाय-बैल और बकरियां। हालांकि, कुछ किसान भेड़ और बकरियां दोनों पालते हैं। दिन के समय भेड़ों के लिए घर के सामने या सड़क के किनारे खूंटा गाड़ दिया जाता है।

गेरोल नस्ल से जुड़ी अहम बातें

गेरोल नस्ल की भेड़ मुख्य तौर पर ग्रे और सफ़ेद रंग में पाई जाती हैं। 90 फ़ीसदी से ज़्यादा भेड़ें सफेद रंग की होती हैं और बाकी 10 फ़ीसदी भेड़ें भूरे काले रंग की होती हैं। नर आमतौर पर सींग वाले होते हैं। गेरोल भेड़ का जन्म के समय वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। थन काफी अच्छी तरह से विकसित होता है और जुड़वा बच्चों को भेड़ से उपलब्ध दूध पर आसानी से पाला जा सकता है।

गेरोल नस्ल में ऊन खुला और बहुत मोटा होता है। कोट पर ऊन का आवरण घना नहीं है, लेकिन लगभग पूरे शरीर और पैरों के बड़े हिस्से को ढकता है। आमतौर पर किसान अपने जानवरों का ऊन नहीं काटते और उनका उपयोग केवल मांस के लिए करते हैं।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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