Dragon Fruit: ड्रैगन फ़्रूट की खेती में किन बातों का ध्यान रखें कि फ़ायदा हो? जानिए डॉ. सुनीला कुमारी से

ड्रैगन फ़्रूट (Dragon Fruit) वैसे तो विदेशी फल है, मगर पिछले कुछ सालों में भारत में भी ड्रैगन फ़्रूट की खेती लोकप्रिय हुई है और किसान इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं। मगर इसकी खेती अगर सही तरीके से न की जाए तो नुकसान हो सकता है। जानिए कौन से हैं वो कारक, जिनपर किसान को ध्यान देने की ज़रूरत है।

ड्रैगन फ़्रूट की खेती (Dragon Fruit)

ड्रैगन फ़्रूट की खेती (Dragon Fruit) थाईलैंड, वियतनाम, इजरायल, श्रीलंका जैसे देशों के साथ ही अब भारत के किसानों की पसंदीदा फसल बनती जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है इसकी ऊंची कीमत। साथ ही ये हर तरह की मिट्टी और जलवायु में भी उगाया जा सकता है।

सबसे अहम बात ये है कि ड्रैगन फ़्रूट पूरे साल फल देता है, मगर अच्छे उत्पादन और मुनाफ़े के लिए किसानों को किन चीज़ों का ध्यान रखना ज़रूरी है इस पर ड्रैगन फ़्लोरा फ़ार्म एलएलपी की फ़ाउंडर डॉक्टर सुनीला कुमारी ने विस्तार से बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।

ड्रैगन फ़्रूट की खेती में व्यवसाय क्यों चुना?

डॉक्टर सुनीला की कंपनी ड्रैगन फ़्लोरा फ़ार्म एलएलपी ड्रैगन फ़्रूट की खेती करने वाले किसानों को प्लांट उपलब्ध कराने से लेकर मार्केटिंग तक में मदद करती है। इस कंपनी के बारे में सुनीला बताती हैं कि 2019 में उन्होंने इसकी शुरुआत की। इससे पहले 2012 में उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र में सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जॉइन किया था। जहां उन्हें किसानों की कई समस्याओं के बारे में पता चला। उन्होंने किसानों की दो समस्याएं जानीं। पहली तो ज़मीन बटी हुई है और दूसरी किसानों के पास इन्वेस्टमेंट के लिए पैसे कम हैं।

उन्होंने बताया कि किसान जो फसल लगाता है उससे रिटर्न मिलने में भी बहुत वक्त लग जाता है। इन सारी समस्याओं का हल ड्रैगन फ़्रूट की खेती से किया जा सकता है। यही सोचकर 2019 में किसानों की मदद और उन्हें सही जानकारी देने के लिए कंपनी की शुरुआत की।

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ड्रैगन फ़्रूट से एक साल में ही होने लगती है आमदनी (Income From Dragon Fruit)

डॉक्टर सुनीला आगे बताती हैं कि अगर किसान अच्छी क्वालिटी का पौधा लगाए तो एक साल में ही आदमनी शुरू हो जाती है। 3 साल में किसान स्टेबल हो जाता है। ड्रैगन फ़्रूट मई जून से शुरू होकर दिसबंर तक चलती है यानि आम, अमरूद की तरह इसका फल एक साथ नहीं पकता है। यही नहीं इसकी ख़ासियत है कि अगर खराब मौसम की वजह से एक महीने में अगर कोई समस्या होती है, तो बस उसी महीने की फसल का नुकसान होगा और अगले महीने से फिर से उत्पादन शुरू हो जाता है।

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वैज्ञानिक तरीके से बनाते हैं नर्सरी (Dragon Fruit Nursery)

डॉक्टर सुनीला बताती हैं कि उनकी कंपनी वैज्ञानिक ढंग से नर्सरी तैयार करती हैं। किसानों को अच्छी क्वालिटी के पौधे गारंटी के साथ दिये जाते हैं। जब तक फल नहीं आने लगते उनकी कंपनी किसानों के साथ रहती है।

 

ड्रैगन फ़्रूट की मार्केटिंग (Dragon Fruit Marketing)

प्लांट मटेरियल देने के साथ ही वो किसानों को मार्केटिंग के गुण भी सिखाती हैं। उनके उत्पाद खरीदती हैं और किसानों को सोशल मीडिया पेज बनाना सिखाती हैं ताकि वो उद्यमी बन सकें।

सुनीला का कहना है कि उनकी कंपनी ड्रैगन फ़्रूट (Dragon Fruit) से जैम, जूस बनाना भी सीखा रही है। जिन किसानों का उत्पादन ज़्यादा होता है, उन्हें प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग दी जाती है।

ऑर्गेनिक के लिए लोगों को मोटिवेट करना

सरकारी नौकरी छोड़कर अपनी कंपनी शुरू करने के सफ़र के बारे में सुनीला बताती हैं कि  उनके मन में पहले से ही अपना काम शुरू करने को लेकर ख्याल था इसलिए उन्होंने कैलकुलेटेड रिस्क उठाया। पहले इस बारे में पूरी जानकारी जुटाई, पीएचडी हॉर्टीकल्चर के साथ ही एमबीए इन इंटरनेशनल बिज़नेस किया और उन्हें जो अच्छे मेंटॉर मिले उनसे सारी जानकारी लेकर ही उन्होंने रिस्क उठाया। उनका कहना है कि ऐसा रिस्क लेना ज़रूरी है, क्योंकि तभी आपको आगे फ़ायदा होता है।

सुनीला बताती हैं कि उन्हें खेतों में घूमना, किसानों से बात करना, लोगों को सशक्त करना पसंद है। उनका सोशल एंटरप्राइज़ है। कम्यूनिटी डेवलपमेंट के लिए भी उनका रुझान है। वो कहती हैं कि उनकी कंपनी के ज़्यादातर फ़ार्म ऑर्गेनिक फ़ार्म हैं और वो लोगों को भी ऑर्गेनिक के लिए मोटिवेट करती हैं।

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ड्रैगन फ़्रूट का पौधा कब लगाना चाहिए?

ड्रैगन फ़्रूट का पौधा कब तक फल देने लगता है इस पर सुनीला कहती हैं कि ये इस बात पर निर्भर करता है कि वैरायटी कौन-सी है और जो पौधा लगाया गया है वो कितना मैच्योर है। जहां तक इसे लगाने का सवाल है तो इसे पूरे साल लगाया जा सकता है। सुनीता बताती हैं कि अगर बहुत छोटे पौधे लगाए जाते हैं, तो 18 महीने बाद फूल आने लग जाते हैं। जबकि मैच्योर पौधों में 8-9 महीने में फ्लावरिंग शुरू हो जाती है। सुनीला कहती हैं कि उनकी कंपनी किसानों को जानकारी देती है कि कैसे खेती करें जिससे एक साल में पौधों पर फल आने लग जाएं।

ड्रैगन फ़्रूट पर रिसर्च की कमी

डॉक्टर सुनीला का कहना है कि ड्रैगन फ़्रूट (Dragon Fruit) पर बहुत अधिक शोध नहीं हुआ है। इसलिए इसकी वैरायटी वेरिफ़ाइड नहीं है। भारत में रेड और व्हाइट फ्लेश और ऊपर से यलो स्किन होगी यही बोलकर फल बेचा जाता है। उनकी कंपनी के पास रॉयल रेड, वियेतनामी जाइंट व्हाइट, वियेतनामी रेड, मोरक्कन रेड वैरायटी है।

आम और अंगूर की तरह इस फल की सर्टिफ़ाइड वैरायटी है लेकिन इस दिशा में अभी शोध का काम चल रहा है। वो किसानों को सलाह देती हैं कि हमेशा किसी भरोसेमंद व्यक्ति से ही पौधे खरीदें, वर्ना कई बार किसानों को फल-फूल न आने की भी शिकायत रहती है।

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ड्रैगन फ़्रूट की खेती में लागत

सुनीला बताती है कि इसकी खेती में पहला खर्च तो पौधे का है। मार्केट में 40 से 70-80 रुपए तक के पौधे मिलते हैं, जो कटिंग के साइज़ पर निर्भर करता है। इसकी ख़ासियत ये है कि ये असम से लेकर हिमाचल और कन्याकुमारी तक उगाया जा सकता है।

ये बेल की तरह होता है तो इसे सहारे की ज़रूरत होती है। सहारे के लिए जहां जो भी सामग्री उपलब्ध हो उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए सीमेंट के कंक्रीट पोल का आमतौर पर इस्तेमाल होता है, लेकिन आप बैम्बू, टिम्बर, पीवीसी पाइप जो भी मिले उसका इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़्यादा तो सीमेंट के कंक्रीट पोल ही इस्तेमाल होते हैं जिसकी कीमत 300 से 700 रुपए होती है। वहीं एक एकड़ में 50 से 70 हज़ार रुपए का खाद लग जाती है।

अगर किसान एक एकड़ में 2 हज़ार पौधे की खेती करता है, तो लागत 4 से 5 लाख रुपए आती है। अगर सही तरीके से खेती की जाए तो 2 साल में इतना उत्पादन हो जाता है कि इनपुट कॉस्ट पूरी हो जाती है।

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कैसे शुरू कर सकते हैं ड्रैगन फ़्रूट की खेती? 

सुनीला का कहना है कि उनकी कंपनी पैन इंडिया में काम करती है। 13 से ज़्यादा राज्यों में वो मटेरियल दे चुके हैं जो किसान कमर्शियली खेती करना चाहते हैं, उनके साथ तो वो जुड़ती हैं, लेकिन छोटे लेवल पर खेती करने वालों को वो डिजिटली सपोर्ट करती हैं।

कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के लिए किसान को कम से कम 10 हज़ार पौधे लेने होते हैं। छोटे स्केल पर इसे लगाने में नुकसान होता है, क्योंकि ऐसे में बेचना मुश्किल हो जाता है। अगर कोई चाहे तो एक्सपेरिमेंट के लिए छोटे पैमाने पर इसे लगाकर देखे और बाद में कमर्शियली इसका उत्पादन करें।

किसानों की हर तरह से करते हैं मदद

सुनीला कहती हैं कि जिन किसानों के साथ वो काम नहीं कर रही हैं, उनमें से भी कइयों के फ़ोन आते हैं और वो बताते हैं कि दो-ढ़ाई साल बाद भी फल नहीं आ रहे हैं। इसका मतलब ये है कि उन्हें सही पौधा नहीं दिया गया है, या उसमें क्या डालना है ये नहीं बताया गया। ऐसे किसानों की भी उनकी कंपनी मदद करती है।

वो कहती हैं कि ड्रैगन फ़्रूट की खेती को हमेशा मुनाफ़े वाला बताया जाता है, लेकिन कोई ये नहीं बताता कि किस तरह के फल से उपज अच्छा मिलेगा और आपको किन बातों का ध्यान रखना होगा ताकि समय पर फल आए। ये बाज़ार में 400-500 रुपए प्रति किलो बिकता है, लेकिन वो अच्छी वैरायटी वाला फल होता है।

वहीं फल बेचने के साथ ही किसान प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग भी ले सकते हैं, जिससे ज़्यादा उपज होने पर जूस, जैम बनाकर बेच सकें। इसका फ़ायदा ये भी होगा कि मान लीजिए अगर फल का साइज़ छोटा है तो जैम, जूस बनने के बाद साइज़ मायने नहीं रखेगा और कीमत अच्छी मिलेगी।

वैज्ञानिकों के साथ ड्रैगन फ़्रूट पर रिसर्च 

डॉ. सुनीला की कंपनी वैज्ञानिकों के साथ रिसर्च करके ड्रैगन फ़्रूट (Dragon Fruit) की खेती कर रही हैं और साथ ही किसानों को ट्रेनिंग से लेकर उत्पाद बेचने तक किसानों की मदद कर रही हैं। वो देशभर के वैज्ञानिकों से बात करके ड्रैगन फ़्रूट की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां जुटा रही हैं, जिससे किसानों को इसकी खेती के बारे में और बेहतर तरीके से जागरूक किया जा सके।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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