आपने बाज़ार में लाल या जामुनी रंग का एक बड़ा सा एक फल देखा होगा, जिसका नाम बहुत से लोगों को नहीं पता होता। दरअसल, यही ड्रैगन फ्रूट है। किवी की तरह ही ये फल अब हमारे देश में भी काफी लोकप्रिय हो चुका है। इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ को देखते हुए अब इसकी मांग ख़ासतौर पर शहरों में बढ़ रही है।
ड्रैगन फ्रूट मोटापा, डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने के साथ ही आर्थराइटिस में भी फ़ायदेमंद होता है। इस फल का छिलका थोड़ा मोटा होता है और गूदे का रंग सफेद या जामुनी होता है। स्वाद बहुत मीठा तो नहीं होता, मगर ये विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होता है। काले रंग के छोटे-छोटे बीज वाले इस फल में कैलोरी (Calorie)और फैट (Fat) की मात्रा बहुत कम होती है।
ड्रैगन फ्रूट (पिताया) विदेशी फल मैक्सिको, सेंट्रल अमेरिका और साउथ अमेरिका में बड़ी तादाद में खाया जाता है। इसके अलावा थाइलैंड, वियतनाम, इज़रायल और श्रीलंका में भी ये फल बहुत लोकप्रिय है। अब भारतीयों को भी इसका स्वाद रास आ गया है जिससे यहां भी इसकी अच्छी खेती हो रही है।
मिट्टी और जलवायु
अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पी.एच. मान (pH Value) 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। ड्रैगन फ्रूट को अधिक पानी की ज़रूरत नहीं होती है। ऐसे में 40-70 सें.मी. बारिश वाले इलाकों में इसे अच्छी तरह उगााया जा सकता है। अच्छे उत्पादन के लिए 25-30 डिग्री का तापमान उचित होता है। स्ट्रॉबेरी की तरह ही ड्रैगन फ्रूट भी जल्दी खराब होने लगता है इसलिए इसके भंडारण, प्रसंस्करण और परिवहन पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है।
कैसे की जाती है रोपाई?
ड्रैगन फ्रूड की खेती, बीज और पौध, दोनों तरह से की जा सकती है। वैसे पौध यानी कलम से खेती करना बेहतर होता है, क्योंकि इस विधि से पौधे लगाने पर 2 साल बाद ही फल लगने शुरू हो जाते हैं, जबकि बीज लगाने पर फल देर से आते हैं। करीब 4-5 साल बाद ही पौधे फल देने लायक होते हैं। कलम से पौधे लगाने के लिए 20 सें.मी. की कटिंग का उपयोग करें। कटिंग को गड्ढ़े में लगाया जाता है। रोपाई के लिए 50X50X50 सेंटीमीटर के आकार का गड्ढा खोदें। गड्ढों के बीच 2X2 मीटर की दूरी रखें। इन गड्ढों को 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें ताकि कीटाणु नष्ट हो जाएं। इसके बाद इसमें प्रति पौध 10-15 किलो गोबर की खाद और 100 ग्राम सिंगल फॉस्फेट डालें। इसके बाद गड्ढों में पौधों की रोपाई करें। एक हेक्टेयर में करीब 2500 पौधे लगाए जा सकते हैं। पौधों की रोपाई जून-जुलाई या फरवरी-मार्च में की जाती है।
खाद और उर्वरक
रोपाई के बाद के शुरुआती दो साल में प्रति पौधा 300 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम फॉस्फोरस व पोटाश देना चाहिए। जब पौधे बड़े हो जाएं तो प्रति पौधा 540 ग्राम नाइट्रोजन, 720 ग्राम फॉस्फोरस और 300 ग्राम पोटाश हर साल देना चाहिए। इसकी खेती में पानी की भी ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ती है। सर्दियों के मौसम में भी इसके पौधे को महीने में बस दो बार सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि गर्मियों में 8-12 दिन में सिंचाई करनी चाहिए।
फलों का विकास
इसके पौधे थोड़े बहुत कैक्टस की तरह दिखते हैं । चूंकि ये बेल की तरह होते हैं, इसलिए फलों के अच्छे विकास के लिए पौधों को सहारा देने की ज़रूरत है। लकड़ी या कंक्रीट के खंभे बनाकर पौधों को सहारा दिया जा सकता है। जब फल आने लगें तो उसे कपड़े या पॉलीबैग से ढंक देना चाहिए। इससे फलों की न सिर्फ ज़्यादा तापमान से सुरक्षा होती, बल्कि पक्षियों और कीटों से भी वो सुरक्षित रहेंगे । साथ ही ढकने से इनका कुदरती रंग भी पूरी तरह से विकसित होगा।
कितनी होती है उपज और कमाई
ड्रैगन फ्रूट के एक फल का वज़न 250 से 450 ग्राम तक होता है। रोपाई के तीसरे साल में एक हेक्टेयर से 12-15 टन तक फल प्राप्त होने लगता है। अगस्त से सितंबर माह तक 5-6 बार फल प्राप्त होते हैं। बाज़ार में इसका एक फल 90 से 100 रुपए में बिकता है। आमतौर पर दूसरे या तीसरे साल से ही पेड़ों से फल प्राप्त होने लगते हैं । ऐसे में दूसरे साल प्रति हेक्टेयर औसतन 3-4 लाख रुपए और चौथे साल से 6-7 लाख रुपए की कमाई आसानी से होने लगती है। इसके फल जल्दी खराब होने लगते हैं, इसलिए भंडारण की उचित व्यवस्था ज़रूरी है। 8 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर इसे 25-30 दिनों तक लिए रखा जा सकता है।
मूल्य संवर्धन
ड्रैगन फ्रूट को फल के रूप में खाने के साथ ही इससे जैम, आइसक्रीम, जेली, जूस और वाइन आदि बनाकर अतिरिक्त कमाई की जा सकती है। कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
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