कंद से प्याज़ बीज उत्पादन: कोई भी फ़सल तभी अच्छी होगी जब उनके बीज गुणवत्तापूर्ण होंगे। इसीलिए फसल उत्पादन के साथ ही किसानों को बीज उत्पादन पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है, खासतौर पर प्याज़ के। प्याज़ “ऐमारलीडेसी” परिवार का सदस्य है और इसका वैज्ञानिक नाम एलियस सेपा है। हमारे देश में प्याज़ की खपत बहुत अधिक है और इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन भी किया जाता है। किसान भाई अगर प्याज़ की फ़सल से अधिक मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं, तो फ़सल के साथ ही उन्हें इसके बीज उत्पादन की नयी तकनीकों को सीखना होगा। बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक अपनाकर वो प्याज़ की खेती से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
प्याज़ बीज तैयार करना
प्याज़ के बीज उसके कंद ही होते हैं और इनसे ही आगे फ़सल तैयार की जाती है। मगर फ़सल के लिए लगाये गए प्याज़ से ही बीज प्राप्त करना ठीक नहीं है। इसके लिए बीज उत्पादन की उन्नत तकनीक अपनाना ज़रूरी है। इसके तहत कंदों को निकालकर और फ़िर छांटकर अलग कर लिया जाता है। शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाले कंदों की बीज के लिए दोबारा बुवाई की जाती है। ऐसा करने से अशुद्ध या किसी रोग व कीट से ग्रसित प्याज़ की बुवाई से किसान बच जाते हैं, और उन्हें अच्छी और स्वस्थ फसल मिलती है। बुवाई के समय फसल में 5 मीटर की दूरी होना ज़रूरी है। इसके साथ ही, एक हेक्टेयर के खेत में मधुमक्खी के 2-3 बक्से रखना ज़रूरी है, क्योंकि पौधों में फूल आने के दौरान परागकण इन्हीं से मिलते हैं।
प्याज़ बीज उत्पादन के लिए मिट्टी और जलवायु
प्याज़ के बीज उत्पादन के लिए दोमट, बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6 से 7.5 (pH 6 – pH 7.5) के बीच हो उचित होता है। साथ ही, अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए और मिट्टी में जीवांश पदार्थ भरपूर होने चाहिए। कंदों की रोपाई के समय दिन का तापमान 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट और रात का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेट रहना चाहिए।
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प्याज़ बीज की कैसे करें रोपाई
प्याज़ के कंदों को पहले नर्सरी में बिजाई करके पौध तैयार की जाती है और फिर 60 दिनों के बाद इन पौध को खेतों में लगाया जाता है। जिन मातृकंदों (बीज के लिए चुने गए प्याज़) को चुना गया है उनके ऊपर के एक तिहाई भाग को काट दिया जाता है और फिर 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम व मैन्कोजेब के घोल में 5-10 मिनट तक भिगोकर रखने के बाद खेत में रोप दिया जाता है। कंदों को अच्छी तरह से तैयार खेत में समतल क्यारियां बनाकर 60X30 सें.मी. की दूरी पर, 6-7.5 सें.मी. की गहराई में लगाया जाता है। एक हेक्टेयर के लिए करीब 25-30 क्विंटल कंदों की ज़रूरत होती है।
खाद और उर्वरक
उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर ही करें। आमतौर पर खेत तैयार करते समय 50 टन गोबर की सड़ी खाद, 240 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाईट्रेट या 60 किलोग्राम यूरिया, 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 80 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश, 10-12 किलोग्राम पी. एस. बी. कल्चर प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाया जाता है। इसके अलावा एक कि.ग्रा. यूरिया, कंद लगाने के 30 दिन बाद और 35 कि.ग्राम यूरिया कंद लगाने के 45 से 50 दिन बाद छिड़का जाता है। सिंचाई की संख्या, जलवायु और मिट्टी आदि पर निर्भर करती है। आमतौर पर नवंबर-दिसंबर में लगी फसल की सिंचाई 10 दिनों के अंतराल पर, जनवरी-फरवरी में लगी फसल की सिंचाई 7 दिनों के अंतर पर और मार्च में लगी फसल में 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। सिंचाई के लिए टपक विधि का इस्तेमाल करना उचित होगा। खरपतवार नियंत्रण के लिए 4 से 5 हफ़्ते के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें।
फसल की कटाई
सारे प्याज़ बीज के डंठल एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं। ऐसे में इनकी 2-3 बार कटाई की जानी चाहिए। पके हुए डंठल को 4 से 5 सें.मी. लंबी डंडी के साथ काटें और जब ये पूरी तरह से सूख जाए तो खुदाई करके प्याज के बीज प्राप्त कर लें। इस सीज़न में प्राप्त बीजों का उपयोग अगले सीजन में किया जा सकता है।
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