हरियाणा के सोनीपत ज़िले में एक गाँव पड़ता है, जिसका नाम है मनौली। इस गाँव के प्रगतिशील किसान अरुण कुमार ने अथक प्रयासों से अपने गाँव की तस्वीर बदली है। आज मनौली गाँव अपने अच्छी गुणवत्ता वाले स्वीट कॉर्न के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि मनौली को ‘स्वीट कॉर्न विलेज’ के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस गाँव ने आधुनिक खेती का जो मॉडल अपनाया है, वो कईयों के लिए मिसाल है। पिछले 20 साल से आधुनिक खेती में महारत हासिल करने वाले अरुण कुमार आज के युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का संदेश देते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने अरुण कुमार से उनके खेती के सफर और फ़ार्मिंग मॉडल पर ख़ास बात की।
कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत शुरू की स्वीट कॉर्न की खेती
अरुण कुमार को खेती-किसानी विरासत में मिली है। पिता के निधन के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा होल्डर अरुण कुमार ने 2001 में खेती में कदम रखा। अरुण कुमार कहते हैं कि उनके एक दोस्त स्ट्रॉबेरी की खेती किया करते थे। उन्होंने ही कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत स्वीट कॉर्न की खेती करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि 2001 में जब उन्होंने स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की थी, उस दौर में गाँव के ज़्यादातर किसान धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों पर ही निर्भर थे। इस कारण पानी का दोहन भी बहुत ज़्यादा होता था। अरुण कुमार को शुरू से ही खेती में प्रयोग करना पसंद है। स्वीट कॉर्न की खेती में उनकी सफलता को देखते हुए गाँव के अन्य किसान भी उनसे जुड़ने लगे। फिर उन्होंने 10 किसानों का एक ग्रुप बनाया और बड़े स्तर पर स्वीट कॉर्न की कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग शुरू कर दी। प्रति एकड़ से 45 क्विंटल स्वीट कॉर्न की पैदावार होने लगी, जिसका दाम करीबन 18 हज़ार रुपये मिला। धान के मुकाबले स्वीट कॉर्न का दाम अच्छा मिलने लगा। इस तरह से गाँव के अन्य किसानों का रुझान भी स्वीट कॉर्न की खेती के प्रति बढ़ने लगा।
साल में दो बार लेते हैं स्वीट कॉर्न की उपज
अरुण कुमार बताते हैं कि स्वीट कॉर्न की खेती करीब 75 दिनों की होती है। यानी महज 75 दिनों में स्वीट कॉर्न की फसल तैयार हो जाती है। इस तरह से साल में दो बार स्वीट कॉर्न की फसल प्राप्त करने लगे। इसके अलावा, गाँव में आलू की खेती भी होने लगी। फसल चक्र अपनाने से खेती में फ़ायदा हुआ। पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर उन्नत खेती में गाँव की सफलता को देखकर आसपास के अन्य गाँवों के लोग भी प्रोत्साहित हुए। आज की तारीख में मनौली गाँव के आसपास के कई गाँव स्वीट कॉर्न की खेती कर अच्छी आमदनी कर रहे हैं। कई साल से कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग कर रहे अरुण कुमार बताते हैं कि फिर एक और कंपनी से फ्रेंच बीन्स के उत्पादन की डिमांड आई। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर फ्रेंच बीन्स की खेती भी शुरू कर दी।
2001 में पहली बार गाँव में आया चेक
आगे अरुण कुमार कहते हैं कि 2001 से पहले उनके गाँव के लोग ये तक नहीं जानते थे कि चेक क्या होता है। 2001 में पहली बार चेक आया। लोगों के बैंक खाते नहीं थे। आज सबके खाते खुले हुए हैं। एक के बाद एक कई प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां संपर्क करने लगीं। स्वीट कॉर्न, फ्रेंच बीन्स और आलू के अलावा, किसान कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के तहत ब्रोकली और शिमला मिर्च की भी खेती करने लगे।
आधुनिक खेती में अपनाई नयी-नयी तकनीकें
अरुण कुमार बताते हैं कि उनके गाँव के कई किसान छतीसगढ़ के रायपुर शहर में एक फ़ार्म विज़िट करने गए। यहाँ उन्होंने नेटाफिम कंपनी द्वारा लगाए गए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के बारे में जाना। फिर गाँव वापस लौटकर खेतों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगवाया और खेती करने लगे। 2008 से लेकर अब तक किसान ड्रिप इरिगेशन तकनीक से ही खेती कर रहे हैं।
गाँव में लगे हैं 50 पॉलीहाउस
फिर 2011 आते-आते सरंक्षित खेती की तकनीकें भी अपनानी शुरू कर दीं। गाँव में पॉलीहाउस तकनीक से ककड़ी से लेकर रंगीन शिमला मिर्च और लिलियम,जरबेरा जैसे कई फूलों की खेती भी होने लगी। पिछले साल ही पॉलीहाउस में टमाटर भी लगाए। 40 रुपये प्रति किलो की दर से टमाटर की बिक्री हुई। आज मनौली गाँव में लगभग 50 पॉलीहाउस लगे हैं। हर साल नयी फसल तैयार की जाती है। नये-नये इनोवेशन अपनाए जाते हैं।
पॉलीहाउस की वजह से स्वीट कॉर्न की उपज 11 महीने, ककड़ी साल के 12 महीने और शिमला मिर्च की उपज 8 महीने तक मिलती रहती है। अरुण कुमार बताते हैं कि अब गाँव की 70 फ़ीसदी ज़मीन पर स्वीट कॉर्न और कई तरह की सब्जियों की खेती होती हैं, बाकी तीस फ़ीसदी में धान की खेती की जाती है। इस वजह से पानी की भी खूब बचत होती है। प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ मिट्टी की सेहत भी अच्छी रहती है।
FPO से लगभग 200 किसान जुड़े
2016 में मनौली ग्राम संपदा फ़ार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के नाम से एक किसान उत्पादक संगठन (Farmers Producer Organisation, FPO) बनाया गया। इस FPO से 5 गाँवों के लगभग 200 किसान जुड़े हुए हैं। कुल मिलाकर दो हजार एकड़ में ये किसान काम करते हैं। अब तक करीबन 15 देशों के लोग उनके वहाँ का फ़ार्मिंग मॉडल देखने आ चुके हैं।
FPO से जुड़े हर शख्स की भूमिका तय
अरुण कुमार बताते हैं कि उनके FPO से जितने भी किसान जुड़े हैं, हर किसी की अपनी-अपनी ख़ासियत है। उसी के आधार पर काम बांटा गया है। कई फसल प्रबंधन से जुड़े हैं, तो कई सब्सिडी और योजनाओं को कैसे लागू करना है, इसका काम देखते हैं। वहीं, युवाओं को मार्केटिंग के काम में लगाया हुआ है। अरुण कुमार ने बताया कि आगे उनका लक्ष्य अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार तक ले जाने का है। इस लक्ष्य में उनका बेटा उनके साथ है। अरुण कुमार के बेटे ने फ़ूड टेक्नॉलजी से बीटेक किया हुआ है।
एक पॉलीहाउस में ही हज़ार से ऊपर किसान करते हैं काम
अरुण कुमार कहते हैं कि आज के कुछ युवा खेती करने से कतराते हैं, लेकिन उनके गाँव के युवा सरंक्षित खेती से कई तरह की फसलों की उपज ले रहे हैं। गाँव से कोई युवा नौकरी की तलाश में दूसरे शहर नहीं गया। पॉलीहाउस में ही अच्छी ख़ासी तादाद में लोग रोज़ काम करते हैं। इस तरह से रोज़गार के अवसर आसपास होने से युवाओं का रुझान खेती में बढ़ा है। गाँवों में युवाओं को खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए क्लास और ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए जाते हैं।
20 साल से कर रहे कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग
2001 से कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग कर रहे अरुण कुमार कहते हैं कि आज की तारीख में करीबन 10 कंपनियां सीधा खेतों से माल ले जाती हैं। आज़ादपुर मंडी, रिलायंस फ्रेस, मदर डेयरी और मिल्क बास्केट जैसी जानी-मानी कंपनियों में उपज जाती है। अरुण कुमार कहते हैं वो 20 साल से कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग कर रहे हैं और उनका अनुभव बहुत अच्छा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग ने उनके गाँव के साथ-साथ कई गाँवों की तस्वीर बदली है। वो कहते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग में मार्केट ढूंढने जैसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। एक किसान को बस अपनी उपज की गुणवत्ता और उत्पादन पर ध्यान देना होता है।
80 फ़ीसदी तक का मुनाफ़ा
अरुण कुमार कहते हैं कि जिस तरह से सीमा पर जवान होता है, एक किसान भी अपने खेत में वैसे ही कार्य करता है। उन्होंने बताया कि उनके गाँव में कोई बेरोज़गार नहीं है। कोई खाली नहीं बैठा है। पूरे साल सब खेती के कार्य में लगे रहते हैं। अरुण कुमार ने बताया कि आधुनिक खेती ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। उन्हें लागत से 80 फ़ीसदी तक का मुनाफ़ा प्राप्त होता है।
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