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यूकेलिप्टस की खेती (Eucalyptus Farming): यूकेलिप्टस को हमारे देश में गम, सफ़ेदा और नीलगिरि के नाम से भी जाना जाता है। आपने सड़क किनारे अक्सर इसके ऊंचे-ऊंचे पेड़ देखे होंगे। इसका पेड़ लंबाई में 30 से 90 मीटर तक बढ़ता है, मगर चौड़ाई नहीं बढ़ती। इसलिए कम जगह में इसके ज़्यादा पौधे लगाकर किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
यूकेलिप्टस से बनने वाले उत्पाद
भारत में यूकेलिप्टस की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती और अक्सर ये सड़क किनारे ही नज़र आ जाते हैं। जबकि सफ़ेदा के पेड़ की लकड़ी बहुत उपयोगी है। इसे पेटियां, ईंधन, हार्ड बोर्ड, लुगदी, फर्नीचर, पार्टिकल बोर्ड और इमारत बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। यूकेलिप्टस की खेती में लागत और मेहनत दोनों ही कम लगती है, मगर जानकारी के अभाव में किसान सफ़ेदा के पेड़ों से लाभ नहीं कमा पाते।
देश में की ऐसी कंपनियां हैं जो सफ़ेदा के पेड़ों की उपज ले रहे किसानों की बाज़ार की समस्या को कल करने की कोशिश कर रहे हैं। बालाजी एक्शन बिल्डेबल प्राइवेड लिमिटेड नाम की कंपनी न सिर्फ़ किसानों को सफ़ेदा के पौधे किफ़ायती दर पर उपलब्ध कराती है, बल्कि बाज़ार की समस्या भी दूर कर रही है। किसान ऑफ़ इंडिया ने फ़र्म के डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर सतेंद्र शर्मा ने ख़ास बातचीत की। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी कंपनी यूकेलिप्टस की खेती को बढ़ावा दे रही है, जिससे ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को फ़ायदा हो।
यूकेलिप्टस की कई किस्में
सतेंद्र शर्मा बताते हैं कि उनकी फ़र्म मिट्टी के हिसाब से पौधों की किस्में तैयार करती है और किसानों को उसकी जानकारी देते हैं। इसके अलावा, पौधों की देखभाल के बारे में कंपनी के कर्मचारी किसानों को जानकारी देते हैं, ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
यूकेलिप्टस का बाज़ार उपलब्ध
कंपनी पौधों की किस्मों के हिसाब से 5 से 9 रुपए प्रति पौधा बेच रही है। यही नहीं पेड़ तैयार होने के बाद कंपनी मौजूदा बाज़ार कीमत के हिसाब से किसानों से इसे खरीदने का भी समझौता कर रही है, जिससे किसानों को बाज़ार तालाश करने की ज़रूरत नहीं होती। कंपनी किसानों से खरीदने के बाद सफेदा की लकड़ी से पार्टिकल बोर्ड बनाती है।
किसानों को यूकेलिप्टस की उन्नत किस्म
सतेंद्र शर्मा का कहना है कि बड़े-बड़े गांवों में भी सफ़ेदा के पेड़ बाउंड्री के तौर पर अधिक लगाए जाते हैं और ब्लॉक प्लांटेशन बहुत कम होता है। अब उनकी कंपनी कुछ डेमो बनाकर किसानों को ब्लॉक प्लांटेशन के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि उन्हें अधिक मुनाफा हो। उनका कहना है कि कंपनी डेमो देखकर किसानों को विश्वास दिलाती है कि वो भी एग्रो फॉरेस्टी के तौर पर इसे उगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कंपनी लोकल लैब में किसानों के खेत की मिट्टी लेकर उसका सैंपल चेक करते हैं। उसके बाद उन्हें बताते हैं कि उनकी मिट्टी के लिए किस किस्म के पौधे बेहतर होंगे।
यूकेलिप्टस के पौधे किस तापमान में लगाने चाहिए?
यूकेलिप्टस 46 डिग्री सेल्सियस तापमान तक और 20 से 125 सेमी तक वार्षिक वर्षा वाले स्थानों में उग सकता है। सफ़ेदा के पौधों को लगाते समय आपको ध्यान देना चाहिए कि जहां आप इन्हें लगा रहे हैं, वहां जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।
यूकेलिप्टस की खेती में मिट्टी और सिंचाई
सफेदा के पौधों के विकास के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। गहरी परत वाली नम मिट्टी व 6.5 से 7.5 पी.एच. तक की मिट्टी यूकेलिप्टस लगाने के लिए उत्तम होती है।अगर आप इसके पौधे लगाने की सोच रहे हैं तो बारिश के समय रोपाई करें, ऐसे करने से शुरुआत में सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और पौधे भी अच्छी तरह लग जाएंगे।
यूकेलिप्टस के पौध खेतों की मेड़ों में 2-3 मीटर की दूरी पर लगाने चाहिए। बंजर और कम उपजाऊ वाली भूमि पर यूकेलिप्टस का सघन वृक्षारोपण 2 मी. x 2.5 मी. के अंतराल पर किए जाने की सलाह दी जाती है। कतारों के बीच दो साल तक खेती की जा सकती है। कम उपजाऊ भूमि पर भी अच्छा लाभ मिलता है।
यूकेलिप्टस की खेती के साथ अन्य फसलें
यूकेलिप्टस की खेती करने वाले किसान यूकेलिप्टस के पेड़ की कतारों के बीच हल्दी, अदरक, अलसी और लहसुन जैसी कम अवधि की लाभदायक फसलें लगा सकते हैं। ये फसलें यूकेलिप्टस की खेती की लागत को कम करने में मदद करती हैं।
यूकेलिप्टस की खेती में कितना मुनाफ़ा?
यूकेलिप्टस के खेती में लागत बहुत कम आती है और कम चौड़ा होने के कारण एक हेक्टेयर में करीब 3500 पौधे लगाए जा सकते हैं। यूकेलिप्टस के पेड़ों को परिपक्व होने में 6 से 8 साल का वक़्त लग जाता है। यूकेलिप्टस में करीब एक करोड़ रुपये तक की कमाई की जा सकती है।
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