भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्वपूर्ण स्थान है, इसमें बकरी पालन व्यवसाय से काफ़ी लोग जुड़े हुए हैं। विश्व में भारत भैंस की आबादी में पहले स्थान, बकरियों की संख्या में दूसरे, भेड़ों की संख्या में तीसरे और मुर्गी संख्या में पांचवें स्थान पर है। भारत में लगभग 10.53 करोड़ भैंस, 14.55 करोड़ बकरी, 7.61 करोड़ भेड़ और 68.88 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है।
ऐसे में सीमित जगह में कम लागत के साथ ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने में छोटे पशुओं की अहम भूमिका है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले छोटे किसानों के लिए भेड़-बकरियाँ एवं मुर्गीपालन रोजी-रोटी का साधन व गरीबी से निपटने का मुख्य आधार है।
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चार से पांच महीने के अंदर आमदनी शुरू
ग्रामीण इलाकों में गरीब की गाय कहे जाने वाली बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के तौर पर देखी जाती है। बकरी पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इससे प्राप्त होने वाले उत्पादों से ही उनकी रोजी-रोटी चलती है। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कम लागत के साथ शुरू किया जा सकता है। बुज़ुर्ग, महिला और बच्चे भी इसका रखरखाव आसानी से कर सकते हैं।
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इसके उत्पाद की मांग सालभर बाज़ार में रहती है। बकरी पालन एक ATM की तरह काम करता है, जिसमें दूध की उपलब्धता हमेशा रहती है। बकरी पालन से किसान अपनी आय दोगुनी क्या, तिगुनी भी कर सकते हैं। बकरी पालन का व्यवसाय पशुपालकों को चार से पांच महीने में आमदनी देना शुरू कर देता है।
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बकरी पालन में किन बातों का रखें ध्यान
किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में पशु आनुवंशिकी और प्रजनन (ICAR-CIRG) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एम के सिंह ने बताया कि भारत में बकरी पालन ज़ीरो इनपुट सिस्टम के तहत किया जाता है। यानि कि उनके रखरखाव पर किसान ज़्यादा पैसा खर्च नहीं करते, जिस वजह से बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर 25 से 35 प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
वहीं सही चारा और टीकाकरण न होने के कारण बकरियों की उत्पादक क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है। इन वजहों से किसान को बकरी पालन में नुकसान का सामना करना पड़ता है।