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काशीपुर, ओडिशा के रायगढ़ जिले में स्थित एक आदिवासी ब्लॉक है, जहां केंद्रीय बागवानी प्रयोग केंद्र (ICAR-IIHR), भुवनेश्वर ने आदिवासी उप-योजना (TSP) परियोजना शुरू की। इस परियोजना के तहत काशीपुर के 9 ग्राम पंचायतों के 21 गांवों से 450 से ज्यादा आदिवासी किसान परिवारों को इसमें शामिल किया गया।
इन आदिवासी किसानों की मुख्य आजीविका कृषि और वन उत्पादों पर निर्भर थी, और वे सिर्फ़ अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती करते थे। यह इलाका ऊबड़-खाबड़ और ढलान वाला है, जिससे यहां वार्षिक फ़सलों की खेती करना बहुत मुश्किल और कम फ़ायदे वाला था। इसके अलावा, बार-बार खेतों की जुताई करने से मिट्टी का कटाव बढ़ने लगा था, जिससे भूमि की उर्वरता और उत्पादन क्षमता में लगातार कमी आ रही थी।
आम की खेती से एक अहम कदम की शरुआत (An important step begins with mango cultivation)
आम की खेती को आदिवासी किसानों की आय बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका माना गया। फलों की खेती की संभावना को देखते हुए, आदिवासी किसानों को (हरपाल) समुदाय की मदद से आम आधारित खेती की नई पद्धतियां अपनाई गईं। केंद्रीय बागवानी प्रयोग केंद्र (ICAR-IIHR) ने आदिवासी किसानों के लिए आम की खेती को एक समग्र दृष्टिकोण से लागू किया, जिसमें उत्पादन की सही तकनीक, Post-harvest management of mango, कौशल सुधार और विपणन की प्रभावी रणनीतियां शामिल थीं। लाभार्थियों को ज़रूरी कृषि उपकरण और तकनीकी मदद प्रदान की गई, साथ ही वैज्ञानिक तरीकों से उत्पादन और फ़सल-उपरांत प्रबंधन की प्रशिक्षण भी दी गई।
आदिवासी किसानों के सामने फ़सल-उपरांत प्रबंधन की चुनौतियां (Post-harvest management challenges faced by tribal farmers)
आदिवासी किसानों के लिए आम की कटाई एक महत्वपूर्ण काम था, और यह ज्यादातर महिलाएं करती थीं। लेकिन इन किसानों को आम की परिपक्वता, कटाई का सही तरीका, ग्रेडिंग, गर्म पानी से उपचार, पैकिंग और विपणन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके कारण, आम के फल के बाद काफी नुक़सान (25-30%) हो जाता था, जिससे किसानों को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ता था। Post-harvest management of mango में कई महत्वपूर्ण तकनीकियों की कमी थी, जिनकी वजह से नुक़सान हुआ था।
गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन की तकनीकें (Techniques of quality management)
आम की गुणवत्ता और उसके विपणन मूल्य को बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। इनमें आम की परिपक्वता का सही तरीके से पता लगाना, आम हार्वेस्टर का इस्तेमाल करना, और फल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्लास्टिक क्रेट में आम का परिवहन शामिल था। इसके अलावा, फल के आकार के आधार पर (ग्रेड I, II और III) ग्रेडिंग की गई।
फलों को पकाने के लिए कम खर्चीली तकनीक जैसे एथिलीन गैस (एथरेल और कास्टिक सोडा) का इस्तेमाल किया गया। आम को एंथ्रैक्नोज और फल मक्खी से बचाने के लिए 52 डिग्री सेल्सियस पर 10 मिनट के लिए गर्म पानी से उपचार किया गया। इसके बाद, फलों को अच्छे तरीके से पैक किया गया, जिससे उनकी शेल्फ लाइफ और विपणन मूल्य दोनों में बढ़ोतरी हुई। इन सभी सुधारों ने Post-harvest management of mango को सफल बना दिया और आदिवासी किसानों को लाभ दिया।
आदिवासी महिलाओं का योगदान और विपणन प्रक्रिया (Contribution of tribal women and marketing process)
इन सुधारों के बाद, आदिवासी महिलाएं अब आम की कटाई सही समय पर और डंठल के साथ करने लगीं। वे आम को प्लास्टिक क्रेट में भरकर संग्रहण बिंदु तक पहुंचाने लगीं। हरपाल संगठन की मदद से, विभिन्न गांवों से फल इकट्ठा किए गए, और महिलाएं इन फलों को ग्रेड करती थीं। फिर इन फलों का गर्म पानी से उपचार किया गया और उन्हें भुवनेश्वर भेजने के लिए ट्रकों में लोड किया गया।
ओडिशा सरकार के बागवानी निदेशालय ने फलों को पकाने के लिए एथिलीन गैस से राइपेनिंग चैंबर भी प्रदान किया। अंत में, फलों को छांटकर प्लास्टिक क्रेट में पैक किया गया और भुवनेश्वर मंडी में भेजा गया। इस पूरी प्रक्रिया को Post-harvest management of mango के अंतर्गत किया गया, जिससे आम की गुणवत्ता और विपणन योग्य मात्रा में सुधार हुआ।
आदिवासी किसानों की आय में हुई वृद्धि (Increase in the income of tribal farmers)
इस बदलाव के परिणामस्वरूप, आम की गुणवत्ता और विपणन योग्य आम का अधिशेष बढ़ा। पहले, किसान जो स्थानीय बाजार में 10-12 रुपये प्रति किलो आम बेचते थे, अब वे बेहतर गुणवत्ता वाले आम को 20-25 रुपये प्रति किलो में बेचने लगे। साथ ही, विपणन चैनल ने उन्हें भुवनेश्वर मंडी में रोजाना 50-60 क्विंटल आम की आपूर्ति करने में मदद की। इस प्रक्रिया ने आदिवासी किसानों को न सिर्फ़ अपनी आम की खेती से अच्छा मूल्य दिलवाया, बल्कि फ़सल-उपरांत नुक़सान भी 25-30% से घटकर 10% से कम हो गया। Post-harvest management of mango ने किसानों के लिए आर्थिक स्थिति में सुधार किया।
आदिवासी किसानों के जीवन में आम की खेती का परिवर्तनकारी प्रभाव (Transformative effect of mango farming in the lives of tribal farmers)
इन सुधारों ने आदिवासी किसानों की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार किया और आम की खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना दिया। काशीपुर, रायगढ़ के संसाधन-संपन्न आदिवासी किसानों के चेहरों पर मुस्कान लाने में यह कदम बहुत प्रभावी साबित हुआ। अब आदिवासी समुदाय के लोग आत्मनिर्भर और सशक्त महसूस करते हैं। ओडिशा सरकार और स्थानीय समाज के सहयोग से, आम की खेती ने न केवल उनकी आय बढ़ाई, बल्कि उनके जीवन स्तर को भी बेहतर बनाया।
Post-harvest management of mango के प्रभावी तरीकों ने आदिवासी किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से परिचित कराया, जिससे उनकी खेती में न सिर्फ़ लाभ हुआ, बल्कि वे आत्मनिर्भर बने और कृषि में स्थिरता भी प्राप्त की। आम के फ़सल-उपरांत प्रबंधन के प्रभावी तरीकों ने आदिवासी किसानों को एक नई दिशा दी, जिससे उनकी आय और जीवन स्तर दोनों में सुधार हुआ।
आदिवासी समुदाय के लिए एक नई उम्मीद (A new hope for the tribal community)
आम की खेती, ख़ासकर आदिवासी किसानों के लिए, एक नई उम्मीद की किरण बन गई है। यह परियोजना न केवल उनकी आय में वृद्धि का कारण बनी, बल्कि आदिवासी किसानों को यह समझने का अवसर भी मिला कि वे अपनी खेती से अधिकतम लाभ कैसे उठा सकते हैं। अब आदिवासी किसान आम की खेती को एक नियमित और लाभकारी पेशे के रूप में देखते हैं, और इसके प्रभावी प्रबंधन से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। Post-harvest management of mango ने आदिवासी समुदाय के लिए स्थिर और समृद्ध भविष्य का रास्ता खोला है।
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