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इस बात को जानकर आपको काफ़ी अच्छा लगेगा कि भारत अकेले पूरे विश्व में 60 फ़ीसदी मसालों की आपूर्ति करता है। मतलब कि दुनिया के ज़्यादातार देश यहां के मसालों से अपना खाना तैयार करते हैं।भारत में हर साल तकरीबन 12.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मसालों की खेती की जाती है, जिससे करीब 10.5 लाख टन मसाले का उत्पादन होता है।
मसालों के उत्पादन से किसानों को होने वाले मुनाफे को देखते हुए सरकार भी मसालों की खेती को प्रमोट कर रही है और कई राज्यों में किसानों को सब्सिडी भी दी जा रही है। मसाले की खेती सबसे ज़्यादा दक्षिण भारत में की जाती है और वहां के मसाले बड़े पैमाने पर विदेशों में निर्यात किए जाते हैं।
उत्तर भारत के अधिकांश किसान मसालों की खेती करने से कतराते है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें लागत ज़्यादा आएगी और अगर फसल खराब हो गई तो फिर क्या होगा। ऐसे किसानों को कृषि वैज्ञानिक डॉ. बाबूलाल मीना सलाह देते हैं कि वो प्रशिक्षण लेकर मसालों की खेती शुरू करें। डॉ. बाबूलाल मीना सुपारी मसाला विकास निदेशालय के उपनिदेशक हैं, इसका कार्यालय केरल के कालीकट में है। ये कृषि मंत्रालय के अंतर्गत एक निदेशालय है।
डॉ. बाबूलाल मीना ने मसालों की खेती से जुड़ी बहुत अहम जानकारियां किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से शेयर की हैं।
मसालों की खेती को लेकर किसानों को प्रोत्साहित
कृषि वैज्ञानिक डॉ. बाबूलाल मीना बताते हैं कि मसालों की खेती के लिए किसानों को प्रमोट करने के लिए सुपारी मसाला विकास निदेशालय हर साल ट्रेड फेयर में आता है और यहां अलग-अलग मसालों के पौधे रखे जाते हैं। हर साल कुछ किसान प्रेरित होकर कोई न कोई पौधा यहां से ले जाकर लगाते हैं और फिर बताते हैं कि उन्होंने कौन सा पौधा लगाया और उसका क्या रिजल्ट आया।
डॉ. मीना ने बताया कि मसालों की सबसे ज़्यादा खेती केरल में होती है, मगर उत्तर भारत के किसानों के लिए वहां से पौधे लाना संभव नहीं है, इसलिए पूसा में भी अब मसालों के पौधे रखे जाने लगे हैं, जहां से किसान और आम लोग भी मसालों के पौधे खरीद रहे हैं।
गरम मसाले की खुशबू वाला पौधा ऑलस्पाइसेस
ऑलस्पाइस एक बहुत ही ख़ास पौधा है जिसमें से कई मसालों की खुशबू एक साथ आती है, खासतौर पर दालचीनी, लौंग और जायफल की। इस पौधे में आमतौर पर मई में फूल आना शुरू होते हैं और अगस्त तक फल आ जाते हैं। बहुत सारे फल गुच्छों में पैदा होते हैं। इसके दाने छोटे और गोल होते हैं। कच्चे फल का रंग हरा होता है और पक जाने पर ये काला हो जाता है।
आमतौर पर इसके फल को कच्चा ही तोड़ा जाता है। फिर इसे धूप में सुखाकर भूरा किया जाता है। इसकी पत्तियों का इस्तेमाल भी खाना बनाने में किया जाता है। कच्ची पत्तियों को धूप में सुखाकर तेज पत्ते की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉ. बाबूलाल मीना बताते हैं कि आमतौर पर दक्षिण भारत में उगने वाले इस पौधे को दिल्ली में भी बहुत से लोगों ने लगाया है और रिजल्ट भी अच्छा आया है। दिल्ली और केरल में तो इसमें फल आते हैं, मगर हर जगह इसके फल नहीं आते है। ऐसे में इसके पत्ते से काम चल जाता है। इसे खाना बनाते वक्त डालने पर गरम मसाले की खुशबू आती है।
किचन गार्डन में लगाएं ये बुश कालीमिर्च
डॉ. बाबूलाल मीना बताते हैं कि किचन गार्डन में लोग बुश कालीमिर्च का पौधा लगा सकते हैं। और एक पौधे से ही उनके पूरे साल की कालीमिर्च की ज़रूरत पूरी हो जाएगी। बुश कालीमिर्च की ख़ासियत ये है कि इसे गमले में आसानी से उगाया जा सकता है और जब एक बार फसल आने लगती है, तो पूरे साल फसल आराम से आती है।
कैसे सुपारी की खेती फ़ायदेमंद?
सुपारी की खेती सबसे ज़्यादा कर्नाटक में होती है। इसके अलावा तमिलनाडू, केरल, अंडमान, पश्चिम बंगाल, असम राज्यों में भी बड़े पैमाने पर सुपारी को उगाया जाता है। डॉ. मीना बताते हैं कि सुपारी का आमतौर पर माउथ फ्रेशनर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही इसके पत्तों से प्लेट, कप वगैरह तैयार किया जाता है और बड़े पैमाने पर इसे एक्सपोर्ट किया जाता है। इसका बहुत बड़ा बिज़नेस है।
यही नहीं सुपारी के पेड़ से निकलने वाले नेचुरल कलर प्राकृतिक ड्राई का काम करते हैं। इससे कपड़ों को ब्राउन, डार्क ब्राउन और ब्लैक रंग में रंगा जा सकता है। सुपारी के इन्हीं यूज की वजह से डॉक्टर मीना मानते हैं कि इसकी खेती से किसानों को बहुत फायदा होता है।
उत्तर भारत के मसाले
गरम मसालों की अधिकांश खेती जहां दक्षिण भारत में की जाती है, वहीं उत्तर भारत में लहसुन, अदरक, जीरा, धनिया, हल्दी जैसे मसाले बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं। डॉक्टर मीना का कहना है कि आमतौर पर ये धारणा है कि ज़्यादा कीमती मसाले साउथ में होते है, मगर ऐसा नहीं है। उत्तर भारतीय मसाला ज़ीरा का भाव भी एक हजार रुपए तक है। मसाले का मार्केट में क्या क्या रेट है और आपका इंटरनेशनल मार्केट कैसा है, इस पर निर्भर करती है।
हर तरह से किसानों की मदद के लिए ट्रेड फेयर
डॉक्टर मीना बताते हैं कि उनका विभाग किसानों को हर साल प्रमोट करने के मकसद से ही ट्रेड फेयर में आते हैं, और वो किसानों से अपील करते हैं कि वो यहां आएं, उनका स्टॉल देखें और मसालों की खेती से जुड़ी जो भी उनकी दुविधा या समस्या है विभाग उसे दूर करेगा।
ट्रेनिंग व सेमिनार के ज़रिए मसालों की खेती की जानकारी
डॉक्टर मीना ने बताया कि किसानों की हर तरह से मदद दी जाती है। कृषि विभाग की समन्वित बागवानी विभाग के तहत योजना चलाई जाती है जिसमें किसानों को उत्पादन में मदद के लिए अच्छी पौध सामग्री देने के साथ ही ट्रेनिंग व सेमिनार के ज़रिए अहम जानकारी दी जाती है ताकि वो अधिक उत्पादन कर सके। यही नहीं, उन्हें नई तकनीक की जानकारी भी दी जाती है।
कहां से मसालों की खेती की ट्रेनिंग?
डॉक्टर मीना बताते हैं कि हर कृषि विश्ववद्यालय से उनके विभाग का प्रॉपर लिंक रहता है। वहां एक प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर अपॉइंट किया जाता है। अगर किसी किसान को मसालों की खेती करनी है और इससे जुड़ी कोई जानकारी उन्हें चाहिए, तो वो इनसे मिलकर जानकारी ले सकता है, वे प्रशिक्षण में भी किसानों की मदद करेंगे।
कब करें मसालो की बुवाई?
वैसे तो मसालों की बुवाई का समय थो़ड़ा अलग होता है, मगर डॉक्टर मीना कहते हैं कि आमतौर पर मसालों की खेती के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा होता है। बारिश शुरू होते है जून-जुलाई में अदरक, हल्दी, कालीमिर्च, लौंग, इलायची जैसे मसालों की बुवाई कर दी जाती है। हर फसल के तैयार होने की टाइमिंग अलग होती है। कालीमिर्च में जुलाई से फूल आने लगते हैं और दिसंबर से मार्च तक इसकी तुड़ाई करके सुखा लिया जाता है। अदरक, हल्दी की भी मार्च तक तुड़ाई करके सुखा लिया जाता है।
मसालों की खेती पर सब्सिडी
देश के विभिन्न राज्यों के किसानों को मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उद्यानिकी विभाग की ओर से उन्हें सब्सिडी भी दी जा रही है। इसके लिए किसान अपने नज़दीकि कृषि निदेशालय या कृषि विज्ञान केन्द्र से संपर्क कर सकते हैं।
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