करी पत्ते की खेती से वैसा ही व्यावसायिक लाभ मिलता है, जैसा तमाम औषधीय उपज और मसालों की खेती या फलों की बाग़वानी से होता है, क्योंकि करी पत्ते का पौधा एक बार लगाने से इसकी पत्तियों की उपज 10 से 15 साल तक मिलती रहती है।
करी पत्ता एक सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक मसाला है जो औषधीय गुणों से भरपूर है। इसीलिए इसकी पैदावार में हमेशा जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी माँग पूरे साल रहती है। इसके कच्चे और मुलायम पत्ते, पके हुए पत्तों की तुलना में ज़्यादा क़ीमती और उपयोगी होते हैं। करी पत्ते के पौधों की कटाई हर तीसरे महीने की जाती है। इस पर रोग-कीट का प्रकोप भी बहुत कम पड़ता है।
करी पत्ते को मीठी नीम भी कहते हैं, क्योंकि इसकी पत्तियाँ नीम की पत्तियों से काफ़ी मिलती-जुलती नज़र आती है। लेकिन ये नीम की तरह कड़वी नहीं होतीं। करी पत्ते के पेड़ की लम्बाई 14 से 18 फ़ीट तक हो सकती है। लेकिन चूँकि इसकी पत्तियों की माँग ज़्यादा रहती है इसीलिए पेशेवर किसान करी पत्ते के पेड़ की लम्बाई को करीब 2.5 मीटर तक ही बढ़ने देते हैं। किसान ध्यान रखते हैं कि करी पत्ते के पेड़ पर फूल बनने की नौबत नहीं आये क्योंकि फिर इस पेड़ का विकास रुक जाता है।
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करी पत्ते का इस्तेमाल
दक्षिण भारतीय व्यंजनों में तो सदियों से करी पत्ते का इस्तेमाल बहुतायत से होता रहा है, लेकिन अब इसके गुणों के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ने से देश के अन्य इलाकों के भोजन में भी इसकी माँग बढ़ती जा रही है। इसीलिए करी पत्ते की खेती में देश भर के किसानों के लिए आमदनी का एक शानदार और नियमित ज़रिया बनने की ख़ूबियाँ हैं। करी पत्ता न सिर्फ़ भोजन का स्वाद और खुशबू बढ़ाता है, बल्कि इसके अनेक स्वास्थ्यवर्द्धक लाभ भी हैं। इसीलिए करी पत्ता का रोज़मर्रा में जहाँ ख़ूब घरेलू इस्तेमाल होता है, वहीं साबुन निर्माण में इसके सुगन्धित अर्क की औद्योगिक माँग भी रहती है। इसे सब्जियों की तरह आसानी से बाज़ार में बेचा और ख़रीदा भी जाता है।
पोषक तत्वों से भरपूर है करी पत्ता
करी पत्ते में मौजूद पोषक तत्व शरीर को अनेक बीमारियों से दूर रखते हैं। इसमें विटामिन ए, बी, सी, ई, आयरन, कैल्शियम और फॉलिक एसिड की भरपूर मात्रा पायी जाती है। इसे बालों और त्वचा के लिए भी सौन्दर्यवर्धक माना जाता है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे बुखार और गर्मी से राहत मिलती है और भोजन के प्रति होने वाली अरूचि ख़त्म होती है। ये आँखों के लिए भी लाभदायक होते हैं। आयुर्वेदिक उपचार इसके तने का भी में विशेष महत्व है। इस पौधे के पत्ते, छाल और जड़ों का उपयोग देसी दवाइयों में टॉनिक, उत्तेजक, वातहर और क्षुधावर्धक के रूप में किया जाता है। करी पत्ते का उपयोग चटनी और चूरन बनाने में भी होता है।
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कैसे करें करी पत्ते की उन्नत खेती?
जलवायु: करी पत्ते के पौधे की बढ़वार गर्मी और नमी से भरपूर जलवायु में सबसे अच्छी होती है। इसे भरपूर धूप वाले तापमान की आवश्यकता होती है। सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री और गर्मियों में अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी इसके पौधों का शानदार विकास होता है। करी पत्ते के पौधों को समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई पर भी उगाया जा सकता है।
मिट्टी: करी पत्ते की खेती के लिए उचित जल प्रबन्धन वाली उपजाऊ ज़मीन की ज़रूरत होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके लिए जलभराव वाली चिकनी काली मिट्टी उपयुक्त नहीं होती। बारिश के मौसम में जल भराव होने की वजह से करी पत्ते के पौधों में कई तरह के रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है।
खेत की तैयारी: एक बार करी पत्ता का पौधा लगाने के बाद कई वर्षों तक पैदावार मिलतती है। इसीलिए बुआई से पहले खेत का अच्छी और गहरी जुताई करनी चाहिए। कल्टीवेटर से दो से तीन जुताई करके खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। समतल खेत में तीन से चार मीटर की दूरी पर पंक्तिबद्ध तरीके से हल्के गड्ढे तैयार कर लें। फिर गड्ढों में पुरानी गोबर की खाद और जैविक उर्वरक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर उन्हें गड्ढों में 15 दिन पहले भर दें। मिट्टी भरने के बाद गड्ढों की सिंचाई करें।
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करी पत्ता की उन्न किस्में: वैसे तो ज़्यादातर किसान करी पत्ते की स्थानीय किस्मों को पसन्द करते हैं। लेकिन कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ ने इसकी दो उन्नत किस्में भी विकसित की हैं। DWD-1 और DWD-2 नामक इन किस्मों में क्रमशः 5.22 और 4.09 प्रतिशत करी पत्ते के तेल की मात्रा पायी जाती है। दोनों ही किस्मों की पत्तियाँ तेज़ सुगन्ध से भरपूर हैं और बाज़ार में अच्छा दाम देती हैं।
जैविक उर्वरक का इस्तेमाल: करी पत्ते का औषधियों और मसालों में उपयोग होता है, इसलिए इसकी खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने से हमेशा बचना चाहिए। इसीलिए पौधों की बुआई के लिए गड्ढों की तैयारी के वक़्त ही प्रति एकड़ करीब 200 क्विंटल पुरानी और सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। इसके बाद हर तीसरे महीने हरेक पौधों को दो से तीन किलोग्राम की दर से जैविक कम्पोस्ट खाद देने से करी पत्तों की भरपूर उपज प्राप्त होती है।
बीज रोपाई का तरीका: करी पत्ते के पौधे को ज़्यादातर किसान बीज के माध्यम से लगाना पसन्द करते हैं। हालाँकि, इसकी कलम भी लगायी जा सकती है। दोनों तरीकों की पैदावार समान होती है। करी पत्ते के बीजों को गड्ढों में बोने से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित करना चाहिए। इसके लिए बीजों को रोपाई से पहले 2-3 घंटे तक गोमूत्र में भिगोना चाहिए। हरेक गड्ढे में दो से तीन उपचारित बीजों को सतह से 3-4 सेंटीमीटर नीचे गाड़ना चाहिए।
बीज रोपाई का समय: करी पत्ता के बीजों की रोपाई सर्दी के मौसम को छोड़कर कभी भी कर सकते हैं लेकिन मार्च का वक़्त सबसे अनुकूल है। मार्च में बोये गये बीज के पौधे सितम्बर-अक्टूबर तक पहली कटाई के लायक हो जाते हैं।
सिंचाई और देखभाल: भरपूर धूप और उपजाऊ मिट्टी के अलावा करी पत्ते के पौधे का सिंचाई भी पर्याप्त चाहिए। गर्मियों में फसल की नियमित सिंचाई करें और सर्दियों में हल्की सिंचाई। सिंचाई के वक़्त उर्वरक बिलकुल नहीं दें। सिंचाई के बाद पनपने वाले खरपतवारों को निराई करके निकाल दें। इसे साल में 1 से 2 बार ही निराई की ज़रूरत पड़ती है। निराई के वक़्त पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें, ताकि उनकी जड़ें खुली नहीं रहें।
करी पत्ते की कटाई: आमतौर पर बुआई के बाद हर तीसरे महीने पर करी पत्ता का पौधा कटाई के लिए तैयार होता रहता है। यानी, हर तिमाही में किसान को करी पत्ते की खेती से नकद आमदनी हो जाती है। वैसे आवश्यकतानुसार इसकी पत्तियाँ किसी भी समय तोड़ी जा सकती हैं। करी पत्ते के पौधों की कटाई करते समय इन्हें ज़मीन से आधा फीट ऊँचाई पर ही काटें। इससे पौधों और उसकी डालियों को फिर से बढ़ने में ज़्यादा समय नहीं लगता। करी पत्ता के पौधों पर फूल आने से पहले ही उन्हें काट लेना चाहिए क्योंकि एक बार फूल बनने के बाद पौधों का विकास थम जाता है।
करी पत्ते की पैदावार, सुखाना और भंडारण: करी पत्ते की खेती में प्रति हेक्टेयर 2 से 4 टन पत्तियों की उपज हासिल होती है। तोड़ी गयी पत्तियों को छायादार जगह में सुखा चाहिए और इस दौरान उन्हें अलटते-पलटते रहना चाहिए ताकि वो सड़े नहीं और उनकी क्वालिटी ख़राब नहीं हो। वर्ना बाज़ार में उचित दाम नहीं मिलेगा। ख़राब पत्तियों को छाँटकर अलग कर लेना चाहिए क्योंकि यदि स्वस्थ पत्तियों के साथ मिलाकर इसका चूर्ण बनाया जाएगा तो उसकी भी ख़ुशबू और क्वालिटी गिर जाएगी। सूखी पत्तियों को सूखे स्थान वाले गोदाम में रखना चाहिए। करी पत्तियों के लिए कोल्ड स्टोरेज की आबोहवा उपयुक्त नहीं होती।
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करी पत्ते की खेती में रोग और कीट नियंत्रण
आमतौर पर करी पत्ते के पौधे पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है, लेकिन कई बार मौसम परिवर्तन की वजह से कुछ कीट पनप जाते हैं। ये कीट और इनका लार्वा, पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। चूँकि करी पत्ता एक व्यावसायिक उपज भी है, इसलिए इसकी पत्तियों को कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के पानी का छिड़काव करें।
जड़ गलन: जल भराव की दशा में यदि जड़ गलन का रोग लग जाए तो इससे पूरा पौधा बर्बाद हो जाता है। इस रोग का लक्षण शुरूआत में पाली पत्तियों के रूप में दिखता है जो जल्द ही सूखकर गिरने लगती हैं। जड़ गलन का सबसे अच्छा बचाव तो यही है कि करी पत्ते के खेत में पानी जमा नहीं होने दें। फिर भी तात्कालिक इलाज़ के रूप में पौधों की जड़ों में ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करना चाहिए।
दीमक: मिट्टी में रहने वाले दीमक किसी भी पौधे की तरह करी पत्ते की जड़ों को भी नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसकी वजह से पौधे की पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं और धीरे-धीरे सूखकर पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। यदि खेत में दीमक के हमले की आशंका हो तो इससे रोकथाम के लिए बुआई के वक़्त ही बीज को क्लोरोपाइरीफॉस से उपचारित करना चाहिए। यदि खड़ी फसल में दीमक के संकेत नज़र आएँ तो प्रति लीटर पानी में क्लोरोपाइरीफॉस की 2 मिलीलीटर मात्रा के घोल का पौधे की जड़ों में छिड़काव करना चाहिए।
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