कोरोना महामारी में औषधीय पौधों की मांग बढ़ गई है। औषधीय उत्पादों की मांग किसानों के लिए बहुत फ़ायदेमंद साबित हो रही है। उत्पादन कम और मांग अधिक होने के कारण किसानों को औषधीय फसलों के अच्छे दाम भी मिल रहे हैं। यही कारण है कि किसानों का रुझान औषधीय खेती की ओर लगातार बढ़ रहा है। एक ऐसा ही औषधीय पौधा है गिलोय। आयुर्वेद में औषधि के रूप में गिलोय का इस्तेमाल सदियों से हो रहा है, लेकिन आम लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता और बढ़ी कोविड-19 के आने के बाद। कोरोना की शुरुआत में इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए लगभग हर कोई गिलोय का जूस पीने लगा।
दरअसल, बेल की तरह फैलने वाला गिलोय सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है और कई तरह की बीमारियों से बचाने में मदद करता है। गिलोय की मांग आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनियों में अधिक है इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा है। सरकार भी औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा दे रही है।

गिलोय की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
गिलोय का पौधा बहुत मज़बूत होता है। इसलिए गिलोय की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में संभव है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में इसका विकास तेज़ी से होता है। नम जलवायु इसके विकास के लिए उपयुक्त होती है। फरवरी से लेकर सितंबर तक का महीना गिलोय की खेती के लिए उपयुक्त होता है। जहां गिलोय का पौधा लगा रहे हैं, वहाँ पानी जमा नहीं होना चाहिए।
गिलोय की खेती के लिए नर्सरी
गिलोय के पौधों की नर्सरी भी प्लास्टिक बैग में आसानी से तैयार की जा सकती है। बैग में इसकी कटिंग लगाकर नर्सरी बनाई जा सकती है। गिलोय अगर एक बार अच्छी तरह लग जाए तो बहुत तेज़ी से फैलता है। इसके पत्तों का आकार पान के पत्तों की तरह ही होता है, मगर गिलोय का स्वाद कड़वा होता है। आमतौर पर गिलोय की बेल दूसरे पेड़ों का सहारा लेकर ऊपर चढ़ती है और जिस पेड़ पर यह चढ़ती है उसके गुण भी गिलोय में आ जाते हैं। नीम के पेड़ पर उगने वाले गिलोय को नीम गिलोय कहा जाता है और यह बहुत गुणकारी माना जाता है। इसके अलावा, सहजन के पेड़ पर चढ़ने वाला गिलोय भी सेहत के लिए फ़ायदेमंद होता है।

खेत में गिलोय लगाना
खेत में गिलोय का पौधा लगाने से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करके खरपतवार आदि हटा देने चाहिए। फिर प्रति हेक्टेयर 10 टन उर्वरक और नाइट्रोजन की आधी खुराक (75 Kg) खेत में डालनी चाहिए। इससे पौधों का विकास अच्छी तरह होता है। गिलोय की गांठ सहित तनों की कटिंग को सीधे खेत में लगाया जा सकता है। अच्छी पैदावार के लिए पौधों से पौधों की दूरी 3 मीटर रखें। गिलोय को बढ़ने के लिए सहारे की ज़रूरत पड़ती है, इसके लिए आप लकड़ी की खपच्चियां (डंडे) लगा सकते हैं। गिलोय के पौधों को अधिक सिंचाई व निराई-गुड़ाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है। गिलोय के पौधे की एक और ख़ासियत है कि इसपर किसी तरह के कीट का प्रकोप नहीं होता है।
कटाई के बाद भंडारण
आमतौर पर गिलोय के तने की कटाई अक्टूबर में की जाती है। इसे सावधानी पूर्वक छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर अच्छी तरह छाया में सुखाकर जूट के बोरे में भरकर ठंडे स्थान पर रखा जाता है।
नीम चढ़े गिलोय की मांग है अधिक
नीम पर चढ़ा गिलोय औषधिय गुणों से भरपूर होता है और आयुर्वेदिक दवा बनाने में इसका इस्तेमाल होता है। इसलिए इसकी मांग बहुत अधिक है। गिलोय डायबिटीज़ से लेकर हृदय रोग, डेंगू और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत मददगार है।

गिलोय की खेती से मिट्टी की सुरक्षा
गिलोय का पौधा मिट्टी के क्षरण को रोकता है। बंजर, परती व पथरीली भूमि पर गिलोय की खेती करके पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है और भूमि के कटाव को रोका जा सकता है।
जिस जगह पर गिलोय की बेल उगती है, उस जगह पर मिट्टी भी सुरक्षित तथा संरक्षित रहती है। गिलोय के पत्तों से मिट्टी की ऊपरी सतह ढक जाती है, जिससे मिट्टी का प्रदूषित होने से बचाव होता है। बंजर भूमि, परती भूमि एवं पथरीली जमीन पर भी गिलोय की खेती को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे पर्यावरण व भूमि कटाव में मदद मिलती है। गिलोय की जड़ गिलोय की जड़ों में बारीक रेशे होते हैं। रेशों के साथ मृदा का संरक्षण करने में भी मदद मिलती है।

औषधीय पौधों की खेती को लेकर ट्रेनिंग और सब्सिडी
औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार भी किसानों की मदद कर रही है। आत्मनिर्भरत भारत अभियान के तहत दिए गए आर्थिक पैकेज में औषधीय खेती को प्रोत्साहित करने के लिए 4000 करोड़ रुपए दिए गए हैं। राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा दे रही हैं। इसमें बीज पर अनुदान से लेकर प्रशिक्षण तक की व्यवस्था शामिल है। किसान अपने जिले के बागवानी विभाग से संपर्क कर इस संबंध में अधिक जानकारी ले सकते हैं।
भारतीय बाज़ार में सालाना करोड़ों रुपये के हर्बल उत्पादों का कारोबार होता है। एक आंकड़ें के मुताबिक, देश में हर्बल उत्पादों का बाज़ार करीबन 50 हज़ार करोड़ रुपये का है, जिसमें सालाना 15 फ़ीसदी की दर से वृद्धि हो रही है। कोरोना काल से पहले 35 रुपये में बिकने वाली तुलसी अब 40 से 45 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है। घृतकुमार (एलोविरा) की मांग बढ़ने के चलते 35 रुपये प्रति किलो बिकने वाला पल्प अब 40 रुपये और 40 रुपये प्रति लीटर बिकने वाला जूस अब 50 रुपये में बिक रहा है। वहीं बाज़ार में गिलोय जूस की कीमत 200 से 300 रुपये प्रति लिटर है। भृंगराज पाउडर के एक किलो पैकेट की कीमत 400 से 500 रुपये है। मोगरे तेल की कीमत 1500 से 5000 रुपये प्रतिकिलो तक जाती है। शंखपुष्पी सीरप के 450 मिलीलीटर पैकेट की कीमत 200 से 240 रुपये के आसपास रहती है। ऐसे में जड़ी-बूटियों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना एक बड़ा कदम है। इससे दवाओं की उपलब्धता के मामले में देश आत्मनिर्भर भी होगा।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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