Table of Contents
एप्रिकॉट यानि खुबानी की सबसे ज़्यादा खेती लद्दाख में ही होती है और यहां की कुछ महिलाएं FPO के ज़रिए एप्रिकॉट और इससे बने उत्पादों को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे किसानों को फल की अच्छी कीमत मिल सके। किसानों की मदद के लिए जब से सरकार ने FPO गठन की स्कीम चलाई है, इससे किसानों को फ़ायदा पहुंचा है।
FPO किसानों का समूह होता है, जो मिलकर काम करता है, जिससे किसानों को उसकी फसल और उत्पादकों को उसके उत्पादन की सही कीमत मिल सके। सरकार की इसी FPO स्कीम का फ़ायदा उठाकर लद्दाख की महिलाएं भी एप्रिकॉट की खेती (Apricot Cultivation) और उसे बने उत्पादों को बढ़ावा दे रही हैं। लद्दाख के कारगिल इलाके में LRLM Kargil (वन धन विकास केंद्र) नाम का FPO है, जिससे कई महिलाएं जुड़ी हैं। इस FPO से जुड़ी खारून निस्सा ने अपने FPO के उत्पाद और एप्रिकॉट की खेती से जुड़ी कुछ बेहद ज़रूरी बातें साझा कि किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे के साथ।
लद्दाख में होती है सबसे ज़्यादा खुबानी की खेती (Apricot Cultivation In Ladakh)
एप्रिकॉट यानी खुबानी की व्यावसायिक खेती हमारे देश में काफ़ी सीमित है। इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन लद्दाख में होता है। उसके बाद हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में भी एप्रिकॉट का उत्पादन (Apricot Cultivation) होता है। एप्रिकॉट का पौधा सामान्य ऊंचाई का होता है और इसके फल पीले, सफेद, काले, गुलाबी और भूरे रंग को होते हैं। इसके अंदर जो बीज होता है वो बादाम की तरह दिखता है। सूखे हुए खुबानी को ड्राई फ्रूट की तरह उपयोग में लाया जाता है, जबकि इसके ताज़े फलों को खाते हैं, जूस, जैम और जेली भी इससे बनाई जाती हैं। इसके साथ ही खुबानी की चटनी भी बनाई जाती है।
खुबानी की खेती ठंडे मौसम में की जाती है। इसकी खेती शून्य डिग्री तापमान में भी की जा सकती है, लेकिन तापमान इससे नीचे नहीं जाना चाहिए। वहीं गर्मियों में तापमान 16 से 32 डिग्री रहने पर इसके पौधों का विकास सही ढंग से होता है। इससे ज़्यादा तापमान खुबानी की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। इसकी खेती के लिए ज़्यादा बारिश की ज़रूरत नहीं होती है। खुबानी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है और मिट्टी का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए।
लद्दाख में एप्रिकॉट की खेती के बारे में खारून निस्सा बताती हैं कि पहले खुबानी के बीज की बुवाई की जाती है। बीज बोने के बाद पेड़ बनने में 6-7 साल का समय लगता है। उसके बाद ही इस पर फल उगते हैं। बुवाई के समय बीजों को 5 फ़ीट की दूरी पर बोया जाता है। फिर उसमें स्थानीय खाद डाली जाती है और सिंचाई की जाती है। लद्दाख में मार्च-अप्रैल में खुबानी के बीज डाले जाते हैं और हर महीने खाद और पानी समय पर देना पड़ता है, तब जाकर 6-7 सालों में फल आते हैं। सर्दियों के मौसम में इसकी खास देखभाल करनी पड़ती है, इसे ढकना पड़ता है ताकि कीड़े न लगे और जानवर इसे न खा पाए।
एप्रिकॉट से बने उत्पाद (Apricot Products)
LRLM Kargil (वन धन विकास केंद्र) नाम के FPO से जुड़ी लद्दाख की खारून निस्सा ने बताया कि एप्रिकॉट से बीज वाले और बिना बीज वाले दोनों तरह के ड्राईफ़्रूटस हैं। एप्रिकॉट का तेल (Apricot Oil) भी वो बनाते हैं। खारून बताती है कि लद्दाख में लोग एप्रिकॉट यानि खुबानी को फल के रूप में भी खाते हैं, क्योंकि ये बहुत पौष्टिक होता है। एप्रिकॉट का स्वाद तो अच्छा होता ही है, साथ ही ये बहुत पौष्टिक भी होता है, क्योंकि इसमें विटामिन-A, बीटा-कैरोटीन और कैरोटीनॉयड भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो आंखों के लिए फ़ायदेमंद माना जाता है। इसमें पोटैशियम, कॉपर, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस की भी अच्छी मात्रा होती है। लद्दाख के बादाम के बारे में खारून का कहना है कि वैसे तो बादाम की खेती कश्मीर में ज़्यादा होती है, लेकिन लद्दाख में एक खास किस्म का बादाम उगाया जाता है, जिसका स्वाद काफ़ी अलग होता है।
एप्रिकॉट का तेल (Apricot Oil)
LRLM Kargil (वन धन विकास केंद्र) FPO एप्रिकॉट का तेल भी बेचती है। इस बारे में खारून निस्सा बताती हैं कि ये तेल बहुत महंगा बिकता है, क्योंकि इसे बनाने में बहुत मेहनत लगती है। एप्रिकॉट का तेल बहुत ही फ़ायदेमंद और पौष्टिक होता है। लद्दाख में लोग इसे खाते हैं और इससे बच्चों की मालिश भी की जाती है। दवा के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। खुबानी के तेल में विटामिन के और विटामिन सी के साथ ही एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं।
8 साल पहले की शुरुआत
खारुन निस्सा बताती है कि उन्होंने 8 साल पहले ये काम शुरू किया था, लेकिन तब उनके ग्रुप में बहुत कम सदस्य थे। अब उनके FPO में कई ग्रुप हैं। हर ग्रुप में 7-8 सदस्य हैं, जो अपने लेवल पर प्रॉडक्ट्स बनाते हैं। कुछ खेती करते हैं, तो कुछ उत्पाद दूसरों से लिया जाता है। उनके FPO में अब कुल 300 सदस्य हैं। वो बताती हैं कि सरकार की ओर से उन्हें आर्थिक मदद मिलने के साथ ही अपने उत्पाद को किस तरह से बेचें और आगे ले जाएं, इस बारे में भी बताया गया।
लद्दाख की रक्तसे कार्पो खुबानी को GI टैग
लद्दाख में खुबानी की 30 से भी ज़्यादा वैरायटी उगाई जाती हैं, जिसमें रक्तसे कारपो खुबानी बहुत मशहूर है। इसके खास रंग, मिठास और सफेद बीज की वजह से ही ये लोकप्रिय है। इसी वजह से 2022 में इसे जीआई टैग दिया गया है। दरअसल, आमतौर पर खुबानी के बीज भूरे रंग के होते हैं, लेकिन रक्तसे कारपो खुबानी के के बीज सफेद होते हैं, जो इसे बाकी किस्मों से अलग बनाता है।
लद्दाख की मिट्टी और जलवायु खुबानी की खेती के लिए बहुत अच्छी है, तभी तो यहां की खुबानी का स्वाद सबसे अच्छा होता है। अब तो यहां की खुबानी विदेशों में भी निर्यात की जाती है, जिससे किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिल जाती है।
खुबानी के फ़ायदे (Apricot Benefits)
- एप्रिकॉट जब ताज़ा होता है तो इसे फल के रूप में खाते हैं और फिर इसे सुखा देने के बाद ये ड्राईफ्रूट की कैटेगरी में आज जाता है। खुबानी में विटामिन-ए, बी ,सी और विटामिन-ई के साथ पोटेशियम, मैग्नीशियम, कॉपर, फॉस्फोरस भी भरपूर मात्रा में होता है।
- यह फाइबर का भी अच्छा स्रोत है। रोज़ाना इसे खाने से डायबिटीज, आंखों की समस्या और कैंसर जैसे रोगों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही कॉलेस्ट्रोल भी काफी हद तक कंट्रोल में रहता है।
- एप्रिकॉट खाने से त्वचा संबंधी समस्या भी दूर होती है और आयरन की कमी भी पूरी होती है। यह शरीर में खून की मात्रा बढ़ाने में मददगार है।
- खुबानी का तेल झड़ते बालों की समस्या और डैंड्रफ दूर करने में मददगार है। इसे लैवेंडर और पुदीने के तेल के साथ मिलाकर बालों में लगाएं।