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किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करने के साथ ही उनके उत्पादों को FPO के ज़रीये बेचकर जगन्नाथ तिलगाम छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसानों को आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं। जगन्नाथ तिलगाम जो खुद भी एक किसान हैं, उन्होंने ही FPO यानि किसान उत्पादक संगठन की शुरुआत की और अपने साथ दूसरे आदिवासी किसान साथियों को जोड़कर उन्हें विकास के रास्ते पर ले जाने का काम कर रहे हैं।
जगन्नाथ तिलगाम अपने FPO गठन के माध्यम से किसानों की जैविक फसल को बेचने के लिए अलग-अलग जगहों पर नाबार्ड या कृषि विभाग की ओर से आयोजित एक्सपो में जाते हैं।अपने FPO की शुरुआत और किसानों को ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित करने के अपने सफ़र के बारे में उन्होंने किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता अक्षय दुबे से बात की।
क्या होता है FPO?
जगन्नाथ तिलगाम की कहानी जानने से पहले आइए, ये जान लेते हैं कि FPO होता क्या है और ये कैसे काम करता है। FPO यानि ‘किसान उत्पादक संगठन’ किसानों का बनाया एक स्वयं सहायता समूह होता है, जहां एक किसान ही दूसरे किसान की मदद करते हैं।
किसान उत्पादक संगठनों से जुड़कर छोटे किसानों को सस्ते दामों पर बीज, खाद, उर्वरक, कीटनाशक, मशीनरी, ग्रीन हाउस, पॉलीहाउस, कृषि तकनीक, मार्केट लिंकेज, ट्रेनिंग, नेटवर्किंग, आर्थिक मदद और तकनीकी सहयोग आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
एक FPO गठन के लिए कम से कम 11 किसान होने चाहिए। इससे जुड़कर किसानों को आपसी सहयोग से लोन, फसल की बिक्री, पैकेजिंग, ट्रांसपोर्टेशन, मार्केटिंग वगैरह की सुविधा मिलती है। किसान FPO से जु़ड़कर खुद का एग्री बिज़नेस भी शुरू कर सकते हैं।
FPO गठन के ज़रिए जैविक खेती को बढ़ावा
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले के रहने वाले किसान जगन्नाथ तिलगाम ने बताया कि उन्होंने कबीरधाम ऑर्गेनिक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नाम से एक FPO गठन किया है। हाल ही में दिल्ली में लगे एग्री एक्सपो में वो जीरा शंकर राइस, ब्लैक राइस, रागी, कोदो, कुटकी वगैरह उत्पाद लेकर पहुंचे थे, जो जैविक तरीके से उगाए गए थे। जगन्नाथ FPO के डायरेक्टर हैं। उनका कहना है कि नाबार्ड का जहां भी स्टॉल लगता है वो वहां जाकर अपने FPO के ज़रिए उत्पाद बेचते हैं।
कैसे खड़ा किया FPO?
FPO के लिए किसानों को जोड़ने का काम और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरित करना जगन्नाथ के लिए आसान नहीं था। वो कहते हैं कि FPO के बारे में उन्हें जानकारी कृषि विभाग से मिली। शुरुआत में कृषि विभाग ने ही उन्हें बताया गया कि FPO कैसे बनाना है। फिर 10 लोगों को मीटिंग के लिए बुलाया गया और उनके साथ चर्चा की गई। उन्हें समझाया गया कि FPO गठन से उन्हें अपने उत्पाद सीधे मार्केट में बेचने में आसानी होगी, जिससे मुनाफ़ा अधिक होगा।
साथ ही किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करना भी थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि ज़्यादातर किसानों को यही लगता है कि बिना यूरिया के फसल अच्छी नहीं होगी, मगर धीरे-धीरे कोशिश करके किसानों को भी समझा लिया गया और अब इलाके के आदिवासी किसान रागी, कोदो, कुटकी, ब्लैक राइस, जीरा शंकर चावल को जैविक तरीके से उगा रहे हैं। अब वो यूरिया की जगह गोबर, पत्ते, सढ़ी हुई घास-फूंस, वर्मीकंपोस्ट के ज़रिए ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं।
बेहतरीन खुशबू वाला जीरा शंकर चावल
छत्तीसगढ़ का जीरा शंकर राइस पूरी दुनिया में अपनी बेहतरीन खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर है। जगन्नाथ बताते हैं कि इलाके में इस चावल का बहुत महत्व है और पुराने ज़माने से ही लोग इसे बहुत मज़े के साथ खाते आ रहे हैं। इस चावल के दाने ज़ीरे की तरह बहुत छोटे-छोटे होते हैं और पकने पर मुलायम, चमकदार और बहुत स्वादिष्ट लगते हैं।
इसकी ख़ास बात ये है कि इसे पकने में 10 मिनट से भी कम का समय लगता है और ठंडा होने के बाद भी ये चावल मुलायम बना रहता है। इस चावल की सबसे अधिक खेती छत्तीसगढ़ के सिवनी ज़िले में की जाती है और ये चावल ज़िले की पहचान बन गया है। इस चावल की करीब 12000 हेक्टेयर क्षेत्र में जीराशंकर धान लगाई जाती है।
ब्लैक राइस की ख़ासियत
छत्तीसगढ़ के करीबधाम ज़िले के आदिवासी किसान मिलेट्स के साथ ही जिस ब्लैक राइस की खेती कर रहे हैं, वो सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है और इसकी कीमत भी सामान्य चावल से कई गुना ज़्यादा है। जानकारों का कहना है कि ब्लैक राइस में दूसरे चावलों की तुलना में सबसे ज़्यादा रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है।
इसके साथ ही इसमें कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता है, जबकि फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। ये हार्ट अटैक और स्ट्रोक की संभावना को भी कम करता है। इसके अलावा, दिल की सेहत का ख्याल रखता है, वज़न कम करने में मददगार है। इतने फ़ायदे होने की वजह से ही इसकी मांग बढ़ रही है जिससे किसान भी इसकी खेती के लिए प्रेरित हुए हैं।
बिक्री का काम FPO के ज़रिए
जगन्नाथ तिलगाम अपने इलाके के आदिवासी किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करके उनके जीवन स्तर में सुधार की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही FPO के माध्यम से उनकी बाज़ार की दिक्कत को भी दूर कर रहे हैं, क्योंकि अब किसानों के गुणवत्तापूर्ण अनाज को बेचने की समस्या नहीं होगी, बिक्री का काम FPO के ज़रिए आसानी से हो जाएगा। पौष्टिक अनाज की जैविक खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होगी और आम लोगों को अच्छी सेहत का तोहफ़ा मिलेगा।
जगन्नाथ तिलगाम का कहना है कि अलग-अलग जगह लगने वाले स्टॉल्स में जाकर उन्हें फ़ायदा ही होता है, क्योंकि वहां एक-दूसरे से मिलकर अपने उत्पाद के बारे में बात कर सकते हैं, मार्केटिंग प्लान बना सकते हैं, जो उत्पाद उनके पास नहीं है वो दूसरों से ले सकते हैं।
जगन्नाथ आगे कहते हैं कि आजकल जिस केमिकल युक्त खेती की वजह से जिस तरह से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है और कैंसर जैसी घातक बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है, उसे देखते हुए पौष्टिक अनाजों की जैविक खेती समय की मांग बन गई है और अब हर किसान को कोशिश करनी चाहिए कि वो सिर्फ ऑर्गेनिक तरीके से ही खेती करें।