Table of Contents
सैकड़ो सालों से खेती और जंगल (Forestry) के ज़रिये बनने वाले खाद्य उत्पादों से कृषि पद्धतियां (Agricultural Practices) संबंधित हैं। इनको अपना कर ही कई सभ्यताओं का विकास भी हुआ। उत्तम कृषि पद्धतियां या Best Agricultural Practice फसलों के उत्पादन से लेकर उसके बाजार तक ले जानें और बिक्री के तरीकों के बारें में भी है।
हम ये कह सकते हैं कि उत्तम कृषि पद्धतियां कुछ उसूलों और नियमों को साथ लेकर चलती हैं। जिसमें फूड प्रोडक्शन और ट्रांसपोर्टेशन (Transportation) के लिए नई टेक्नोलॉजी को एक साथ लाना शामिल है। ये लोगों को स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के बारें में भी बताता है।
तापमान व पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तम कृषि पद्धतियां (Best Agricultural Practice)
आज के वक्त में कृषि के बदलते तरीकों साथ ही बढ़ते तापमान व पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए उत्तम कृषि पद्धतियां (Best Agricultural Practice) बहुत ही ज़रूरी हैं। ऐसे में मिट्टी के खराब होने और फसल में होने वाली बीमारियों के प्रकोप से बचाव के लिए उन्नत कृषि क्रियाओं को अपनाना बहुत ज़रूरी हो जाता है। फसल लगाने से पहले खेत की तैयारी, ज़मीन का चुनाव, खरपतवार पर नियंत्रण, पौध सरंक्षण, फसल प्रबंधन, फसल कटाई, भंडारण कृषि पद्धतियों (Agricultural Practices) में शामिल है।
उत्तम कृषि पद्धतियों के तहत जब कोई किसान किसी फसल का चयन करता है तो उसे उसको लगाने से लेकर फसल कटाई तक इन महत्वपूर्ण कदमों को उठाना पड़ता है-
- फसल का चयन
- भूमि की तैयारी
- बीज का चयन
- बीज को बोना
- सिंचाई करना
- फसल में बढ़ोत्तरी के तरीके
- फर्टिलाइजेशन
- फसल काटना
उत्तम कृषि पद्धतियों (Best Agricultural Practice) का महत्व
उत्तम कृषि पद्धतियां (Best Agricultural Practice) फसलों के उगाने के लिए खेतों के चयन, बीज बोने, कटाई के बाद उसके भंडारण की तक जिम्मेदारी को बेहतर बनाता है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के खाद्य और कृषि संगठन (AFO) के अनुसार, उत्तम कृषि पद्धतियां (Best Agricultural Practice), फसलों के उत्पादन के बाद होने वाले प्रोसेस पर कई तरीकों से काम करती है, जो पर्यावरण सुरक्षा के साथ आर्थिक और सामाजिक मजबूती देता है। जिसका नतीजा सुरक्षित और बेहतर कृषि उत्पादों के रूप में सामने आता है।
इन सबके साथ ही ये भी अहम है कि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिए आधुनिक तरीकों के साथ काम किया जाए। खेतों में पानी का इस्तेमाल कितना और कैसे करना है, ये भी उत्तम कृषि पद्धतियों में शामिल है। बेहतर उर्वरकों (Fertilizers) के प्रबंधन (management) और कृषि प्रबंधन प्रणालियों को साथ में लाते हुए पर्यावरण में सुधार के लिए इन तरीकों को उत्तम कृषि के लिए अपनाया जाता है।
यहां पर विश्व में प्रमुख उत्तम कृषि-पद्धतियों (Best Agricultural Practice) और तकनीक (Technique) के बारें में बताया गया है-
परती ज़मीन (Fallow land)
बार-बार फसलों के बोने की वजह से मिट्टी के पोषक तत्व या उर्वरता खत्म जाती है। मिट्टी में दोबारा से जान डालने और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उस ज़मीन पर कुछ वक्त के लिए खेती नहीं की जाती है।
फसल का चक्रिकरण (Crop Rotation)
एक ही खेत में अलग-अलग फसलों को बारी-बारी से बोया जाता है, जो क्रॉप रोटेशन के तहत आता है।
मिश्रित कृषि (Mixed Cropping)
मिश्रित कृषि में दो या इससे ज़्यादा फसलों को एक ही कृषि भूमि पर उगाया जाता है, जिससे एक साथ कई फसलों के पोषक तत्वों की भरपाई दूसरी फसलों में भी हो जाए।
दो फसल कृषि (Two-Cropping Agriculture)
इसके अंतर्गत, एक साल के बाद दो फसलों की खेती एक साथ की जाती है।
रिले कृषि (Relay Cropping)
फसल के पक जानें और उसे काटने से पहले जब कोई नई फसल की बुवाई शुरू कर दी जाती है तो उसे रिले कृषि कहा जाता है।
कृषि दक्षता (Agricultural Efficiency)
इसका मतलब ऐसे फसलों से है जो कम वक्त में ज़्यादा प्रोडक्शन की बात करता है। जिससे किसानों को फायदा मिले।
उत्तम कृषि पद्धतियों (Best Agricultural Practice) के 4 पिलर
अच्छी कृषि पद्धतियों (Best Agricultural Practice) के 4 पिलर्स माने जाते हैं, जिनके इस्तेमाल के कुछ मूल सिद्धांत हैं। इन पिलर्स का पालन करके किसान उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों जो उनके लिए किफायती भी हैं, अपना सकते हैं –
पिलर 1: आर्थिक सिद्धांत (Economic Theory)
इसमें कृषि कारोबार को बनाए रखने के साथ बेहतर आजीविका के लिए योगदान देना शामिल है। लोगों के फायदेमंद नीतियों को बनाना और उसका मैनेजमेंट, समीक्षा (Review) करना, वार्षिक रिपोर्ट और वित्तीय योजनाओं (Financial Plans) जैसे काम शामिल होते हैं।
पिलर 2: पर्यावरण को मज़बूती (Strengthening the Environment)
प्राकृतिक संसाधनों को आधार में रखकर आगे बढ़ना उत्तम कृषि पद्धति का एक पिलर है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कृषि उत्पादन में होने वाले जोखिमों को आंकना, लागत का रिकॉर्ड , मिट्टी और उसकी परतों को कीट-मुक्त रखने के लिए उसमें डालने वाले केमिकल्स का रिकॉर्ड रखना शामिल है।
पिलर 3: सामाजिक पहचान (Social Identity)
इसका मतलब समाज की सांस्कृतिक मांगों को पूरा करना है। खेत को फसल के लिए तैयार करने से लेकर कटाई तक में लगने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य का ध्यान, रसायनों और कीटनाशकों से होने वाले नुकसान से बचाना, वक्त पर मजदूरी देना इसमें शामिल है। उचित जानकारी और कौशल प्रशिक्षण भी इसमें शामिल होता है।
पिलर 4: खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता (Food Safety and Quality)
इसका मतलब आर्थिक कुशलता के साथ सुरक्षित और पौष्टिक खाने का उत्पादन करना है।
देश के सफ़ल किसानों की कहानियां-
यहां पर हम कुछ सफल किसानों के बारें में बता रहे हैं जिन्होंने उत्तम कृषि पद्धतियों और उसके पिलर्स का अपनाकर उपज को तो बढ़ावा दिया, साथ ही बाजार में अपने उत्पादों की मांग पैदा की। परंपराओं और नई टेक्नोलॉजी को साथ लेकर चलने वाले प्रोग्रेसिव किसान आज के वक्त में उन्नत खेती कर रहे हैं-
कश्मीर की मशरूम किसान नीलोफर
नीलोफर जान जो कश्मीर के पुलवामा की एक असाधारण किसान हैं। जिन्होंने उत्तम कृषि पद्धतियों (Best Agricultural Practice) को अपनाते हुए और नई तकनीकों की जानकारी के साथ आगे बढ़कर एक मशरूम किसान के रूप में अपना नाम फेमस किया। दो साल में मशरूम की खेती को दोगुना बढ़ाकर 200 बोरियों का मशरूम प्रोडक्शन कर रही हैं।
अब नीलोफर भारत के बड़े शहरों के साथ ही विदेशों में भी अपने उगाए मशरूमों को एक्सपोर्ट करने के प्रयास में हैं।
पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने वाले रवि शर्मा
हिमाचल प्रदेश के रहने वाले युवा किसान रवि शर्मा ने भी उत्तम कृषि पद्धतियों (Best Agricultural Practice) को अपनाया और पॉलीहाउस के ज़रिये फूलों की खेती शुरू की। रवि पारंपरिक खेती से हटकर कुछ करना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने पॉलीहाउस में कार्नेशन फूलों की खेती को चुना।
जैविक खेती (Organic Farming) के तरीको के साथ स्यूडोमोनास और ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल कर मिट्टी की सेहत को सुधारा। आज के वक्त में उनका सालाना टर्नओवर 30-35 लाख रुपये है।
मिक्स फ़सल उगाने वाले मिजोरम के किसान
नॉर्थ-ईस्ट स्टेट मिज़ोरम के किसान गन्ने के साथ पपीते की खेती कर मिश्रित कृषि (Mixed Cropping) का बेहतरीन उदाहरण पेशकर रहे हैं। इनकी कृषि को देखने के लिए भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के कृषि वैज्ञानिक मिजोरम गये थे, जहां उन्होंने दो फसलों को एक साथ उगाने की नई तकनीकों के बारें में वहां के किसानों को बताया, जिससे उनकी उपज में और इज़ाफा हो। बता दें कि गन्ने की ही तरह पपीते की खेती में भी पानी पड़ता है।
पूर्वांचल का मौसम भी पपीते की फसल के लिए बेहद अनुकूल है। पतीते के उन्नत बीज को चुनने और पपीते की बुआई से पहले वैज्ञानिक तरीकों से खेत को तैयार किया जाता है। मिश्रित कृषि के ज़रिये किसानों की आमदनी में इज़ाफा हो रहा है। जो उत्तम कृषि पद्धति (Best Agricultural Practice) का बेहतरीन उदाहरण पेश करता है।