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कपड़ों और दूसरी चीज़ों की तरह ही भोजन खरीदते समय कीमत से ज़्यादा ध्यान उसकी गुणवत्ता का रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे हमारी सेहत जुड़ी हुई है, मगर आमतौर पर लोग ऐसा नहीं करते हैं। ऐसे में लोगों की सोच और केमिकल वाली खेती के मॉडल को बदलने की एक छोटी सी पहल की है ज्योति अवस्थी ने Eat Right Basket के साथ। ज्योति ने कब कि इस कंपनी की शुरुआत, क्या है इसका मकसद, कैसे ये किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर रही है और कैसे ये कंपनी बिना किसी मशीन के प्रोसेसिंग का काम कर रही है? इस बारे में कंपनी की फाउंडर ज्योति अवस्थी ने खुद किसान ऑफ इंडिया को बताया।
बदलाव की सोच के साथ शुरुआत
ज्योति अवस्थी अपने सफर के बारे में बताते हुए कहती हैं कि 10 साल पहले बदलाव की सोच के साथ उन्होंने एक ब्रांड बनाया Eat Right Basket, जो 150 स्थानीय किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती के मॉडल पर काम कर रहा है। इस कंपनी का है हर एक उत्पाद शुद्ध, स्वस्थ और बिना किसी केमिकल के हो, साथ ही किसानों को खेती के सही तरीके सिखाना और लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित खाना मुहैया कराना भी Eat Right Basket का मकसद है। ताकि हर प्लेट में शुद्धता हो और पर्यावरण को भी फायदा हो।
ज़हर वाले भोजन से सुरक्षा
ज्योति बताती हैं कि Eat Right Basket की शुरुआत इस सोच के साथ हुई कि किस तरह से आम जनता को सुरक्षित भोजन मुहैया कराया जा सके। जिस तेज़ी से आज के दौर में बीमारियां बढ़ रही है इसका एक कारण है पेस्टिसाइड, स्प्रे और केमिकल भी है जिनका खेती में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है और इनकी वजह से ही हमारे भोजन में ज़हर घुल रहा है। इसलिए उन्होंने खेती के साथ अपना काम शुरू किया और एक मॉडल ऑर्गेनिक फार्म विकसित करने की कोशिश की।
जैविक खेती का मॉडल
ज्योति कहती है कि उन्होंने अपनी खेती का मॉडल शुरू किया, क्योंकि उन्हें खुद को साबित करना था और किसानों को भी ये बताना था कि जैविक खेती की जा सकती है। पिछले कुछ दशकों में किसानों के बीच ये आम धारणा बन गई है कि बिना यूरिया और पेस्टिसाइड के खेती नहीं की जा सकती है। इस वजह से खेती महंगी भी हो गई है और दूषित भी, जिसका हमारे भोजन पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है।
इसलिए ज्योति ने जैविक खेती का मॉडल खड़ा किया और साथ ही जब किसानों ने इसकी सफलता को देखा तो वो खुद इससे जुड़ने के लिए तैयार हो गए और आज 150 किसान उनके साथ सीधे जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश की जलवायु में जो भी चीज़ें उग सकती हैं, जैसे रोज़मर्रा के खाने में इस्तेमाल होने वाला गेहूं, सरसों, सब तरह की दालें, ज्वार, बाजरा आदि सब किसान जैविक तरीके से उगा रहे हैं। यही नहीं केले और पपीते के साथ भी एक्सपेरिमेंट किया जो सफल रहा, तो किसान इसके ऊपर भी काम कर रहे हैं।
फार्मर्स नेटवर्क से जुड़े हैं
किसी भी ब्रांड या कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए नेटवर्किंग बहुत ज़रूरी है, इसलिए तो ज्योति ने देश के अन्य ऑर्गेनिक फार्मर नेटवर्क को भी अपने साथ जोड़ा। उनका कहना है कि जब कोई अच्छा खाने लगता है तो उसे सब कुछ अच्छा चाहिए अपने भोजन में। सबकी डिमांड को देखते हुए इस देश में जो भी अच्छे फार्मर्स नेटवर्क है उनके साथ जुड़ते हुए Eat Right Basket का उन्होंने विस्तार किया।
कीमत ही नहीं गुणवत्ता भी देखें
ज्योति कहती हैं कि आमतौर पर हमारे यहां लोग भोजन को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं। हम जो खा रहे हैं वो कैसे उगता है ये जानना ज़रूरी है, क्योंकि जब तक इससे कनेक्ट नहीं होंगे तो हम अपने भोजन के प्रति लापरवाह रहेंगे, जैसा कि आजकल लोग हो चुके हैं। इस सोच को व्यापक तौर पर फैलाने, लोगों के बीच अच्छे भोजन पर चर्चा शुरू करने, हमारे लिए क्या सही है क्या नहीं सही है जैसी ज़रूरी बातों पर कंपनी फोकस करती है।
इसके साथ ही प्रोडक्शन साइड में किसानों को ये बताती है कि उनके खेतों के लिए क्या सही है और क्या नहीं, ताकि वो सुरक्षित भोजन उगा सके और जमीन साथ ही पूरे पर्यावरण के स्वास्थ्य पर काम कर सकें। उनका कहना है कि विज़न तो बड़ा है, लेकिन ये एक छोटी शुरुआत है आगे बहुत कुछ करना है।
पारंपरिक तरीके से प्रोसेसिंग
Eat Right Basket के प्रोसेस्ड उत्पाद पूरी तरह से शुद्ध होते हैं। ज्योति अवस्थी बताती हैं कि उनके यहां किसी भी तरह की मशीन और केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है। पुराने पारंपरिक तरीके से ज़ीरो एनर्जी प्रोसेसिंग के ज़रिए दाल, आटा आदि तैयार किया जाता है। अपनी कंपनी के नाम के बारे में वो कहती हैं कि जैसा नाम से ही साफ ज़ाहिर होता है जो अच्छा है हम वही खाए, यही उनकी कंपनी की सोच है और इसी पर वो आगे काम कर रहे हैं।
क्यों होती है महंगी
आमतौर पर हम सबने देखा है कि कोई भी ऑर्गेनिक उत्पाद सामान्य उत्पाद से महंगा होता है, तो भला ऐसा क्यों। इसे बारे में ज्योति कहते हैं कि आमतौर पर हमारे दिमाग में कंपार्टमेंट्स बने होते हैं, इसलिए खाने की चीज़ों पर जहां ज़्यादा डिस्काउंट होता है उसे खरीदे लेते हैं, सब्ज़ी वाले से कई चीज़ें मुफ्त में उठा लेते हैं, बिना ये सोचे कि उसे किस तरह से उगाया गया है और हमारी सेहत पर इसका क्या असर होगा।
लोग जब घर, गाड़ी खरीदते हैं, बच्चे के स्कूल में एडमिशन के लिए लिस्ट देखते हैं तो अपने बजट से ज़्यादा खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं, क्योंकि वो ब्रांड कॉन्शियस हैं। ऐसे में जब लोग भोजन को भी ब्रांड की तरह देखने लगेंगे, सुरक्षा और अपनी सेहत के साथ भी इसे जोड़ने लगेंगे तब ये नहीं सोचेंगे कि हमने महंगा खरीद लिया। जहां तक जैविक उत्पादों की कीमत अधिक होने का सवाल है तो यकीनन ये महंगी है और कंपनी कोशिश करती है कि इसकी कीमत को कम रखा जाए।
लेकिन जैविक खेती की अपनी कुछ चुनौतियां हैं, जैसे कि एक तो ए बहुत लंबा प्रोसेस है। खेतों को डिटॉक्ट करके ऑर्गेनिक की श्रेणी में लाने के लिए किसानों 3 साल इंतज़ार करना पड़ता है। प्रोडक्शन अचानक से कम हो जाता है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है और जो सबसे बड़ा खर्च है वो है कि कैसे खरपतवार को हाथ से निकाला जाता है, इसमें सबसे ज़्यादा खर्च होता है। इसलिए जैविक चीज़ें थोड़ी महंगी होती है। दरअसल, किसान अपनी मेहनत और खर्च से खेती के हर स्तर पर भोजन को केमिकल के दुष्प्रभाव से बचा रहा होता है।
आज के दौर में जहां फल, सब्ज़ियों से लेकर अनाज तक में धड़ल्ले से केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है Eat Right Basket की आर्गेनिक को बढ़ावा देने की पहल निश्चय ही सराहनीय है।
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