मौसम आधारित बीमा मॉडल: किसानों के लिए जोखिम कम करने वाला समाधान

मौसम आधारित बीमा मॉडल किसानों को मौसम के जोखिमों से बचाकर सुरक्षित निवेश और खेती में स्थिरता प्रदान करने वाला एक महत्वपूर्ण उपाय है।

मौसम आधारित बीमा मॉडल Weather based insurance model

खेती-किसानी का काम हमेशा से ही मौसम के मिजाज पर निर्भर रहा है। समय पर बारिश न होना या अचानक मौसम में बदलाव से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। इसे ध्यान में रखते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सहारे एक नई पहल की गई है, जिसे मौसम आधारित बीमा मॉडल कहा जाता है। यह मॉडल किसानों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है ताकि वे मौसम के कारण होने वाले जोखिमों से बच सकें और खेती में सुरक्षित निवेश कर सकें।

मौसम आधारित बीमा मॉडल क्या है? (What is weather based insurance model?) 

मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) किसानों की फ़सल को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने का एक आधुनिक तरीका है। इसमें बीमा कवर इस बात पर निर्भर करता है कि किसी क्षेत्र में मौसम का व्यवहार कैसा रहा। यह बीमा मॉडल उन मापदंडों पर आधारित है जो सीधे मौसम से प्रभावित होते हैं, जैसे वर्षा की मात्रा, तापमान, आर्द्रता, और हवा की गति। अगर इन मापदंडों में असामान्यता पाई जाती है, तो किसान को बीमा लाभ मिलता है।

उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए कि एक किसान ने अपनी फ़सल के लिए मौसम आधारित बीमा लिया है, जिसमें यह शर्त रखी गई है कि फ़सल की अच्छी पैदावार के लिए क्षेत्र में एक निश्चित मात्रा में बारिश होनी चाहिए। यदि बीमा पॉलिसी में तय किया गया है कि कम से कम 100 मिमी बारिश ज़रूरी है और उस साल बारिश सिर्फ़ 60 मिमी तक ही होती है, तो यह सूखे की स्थिति मानी जाएगी।

इस स्थिति में, बीमा कंपनी उपग्रह डेटा और मौसम केंद्रों से मिलने वाली सटीक जानकारी के आधार पर तय करेगी कि किसान को मुआवजा मिलना चाहिए। बीमा पॉलिसी में इस तरह के हालात के लिए कवर उपलब्ध होता है, इसलिए किसान को उसके नुकसान की भरपाई के रूप में एक निश्चित राशि मिलती है। यह मुआवजा किसान को आर्थिक रूप से राहत देता है, जिससे वह अगले सीजन में खेती के लिए तैयार हो सकता है और अपने परिवार की जरूरतें पूरी कर सकता है। 

बीमा का काम करने का तरीका (How insurance works)

मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) कैसे काम करता है, इसे समझना बेहद आसान है। यह पूरी प्रक्रिया आधुनिक विज्ञान, तकनीक और डाटा एनालिटिक्स पर आधारित है। आइए इसे सरल भाषा में विस्तार से जानें: 

  1. डेटा संग्रहण (Data Collection)
  • मौसम केंद्रों और उपग्रह प्रणाली का उपयोग: बीमा कंपनियां विभिन्न स्रोतों से मौसम संबंधी डेटा इकट्ठा करती हैं। इसमें स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित मौसम केंद्रों से प्राप्त जानकारी के साथ-साथ उपग्रहों से मिलने वाला डेटा भी शामिल होता है। यह डेटा वर्षा की मात्रा, तापमान, हवा की गति, और आर्द्रता जैसे महत्वपूर्ण मापदंडों को मापता है।
  • कृषि विज्ञान अनुसंधान: खेतों की मिट्टी, फ़सल की स्थिति, और स्थानीय मौसम के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए भी शोध किया जाता है। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया बीमा कंपनियों को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
  1. मौसम पूर्वानुमान (Weather Forecasting)
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग: मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) में आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाता है, जैसे कि बिग डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग। ये तकनीकें पुराने मौसम के रिकॉर्ड और मौजूदा डेटा का विश्लेषण करके आने वाले समय का सटीक पूर्वानुमान लगाती हैं।
  • लंबी और छोटी अवधि की भविष्यवाणी: बीमा कंपनियां मौसम के रुझान का अध्ययन करती हैं और पता लगाती हैं कि किसी विशेष मौसम में फ़सल पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है। यह जानकारी किसानों के लिए बहुत उपयोगी होती है।
  1. बीमा पॉलिसी तैयार करना (Designing Insurance Policies)
  • बीमा कंपनियां अलग-अलग फ़सलों और क्षेत्रों के लिए विशेष बीमा पॉलिसी बनाती हैं। ये पॉलिसी मौसम की स्थिति और स्थानीय जोखिमों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में सूखे की आशंका अधिक होती है, तो बीमा पॉलिसी में उस खतरे को कवर किया जाएगा।
  • कस्टमाइजेशन: पॉलिसी को स्थानीय जलवायु और फ़सल के हिसाब से डिजाइन किया जाता है ताकि किसानों को अधिकतम सुरक्षा मिल सके।
  1. नुकसान का आकलन (Assessment of Loss)
  • जब मौसम में कोई बड़ा बदलाव होता है, जैसे अचानक सूखा पड़ना या भारी बारिश होना, तो बीमा कंपनियां मौसम डेटा का उपयोग करके यह आकलन करती हैं कि फ़सल को कितना नुकसान हुआ है।
  • स्वचालित प्रक्रिया: आधुनिक तकनीक के चलते, यह आकलन प्रक्रिया बहुत तेज और स्वचालित हो गई है। उपग्रह चित्र और सेंसर तकनीक के जरिए फ़सलों की स्थिति का सटीक अंदाजा लगाया जाता है, जिससे नुकसान का आकलन सही समय पर किया जा सकता है।
  1. बीमा मुआवजा जारी करना (Compensation Payment)
  • बीमा कंपनियां नुकसान के आकलन के बाद मुआवजा जारी करती हैं। यह प्रक्रिया पारंपरिक बीमा मॉडल की तुलना में बहुत तेज होती है। किसानों को लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ता, और उनका मुआवजा सीधे उनके बैंक खाते में जमा किया जाता है।
  • पारदर्शिता और सरलता: किसानों को बीमा राशि प्राप्त करने के लिए जटिल प्रक्रियाओं से नहीं गुजरना पड़ता। पूरी प्रक्रिया डिजिटल होती है, जिससे पारदर्शिता और सरलता बनी रहती है। 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विशेषता (Characteristics of the scientific approach)

  1. मौसम विज्ञान: यह विज्ञान मौसम के मिजाज और बदलावों का अध्ययन करता है। इसमें उपग्रह, मौसम केंद्र, और पूर्वानुमान मॉडल्स का इस्तेमाल होता है। ये तकनीकें किसानों को फ़सल की बुवाई और कटाई के समय पर सही फैसले लेने में मदद करती हैं।
  2. उपग्रह तकनीक: किसानों की सुरक्षा के लिए उपग्रह तकनीक का उपयोग होता है। यह तकनीक बड़े पैमाने पर जमीन का आकलन करके फ़सलों की स्थिति और मौसम के मिजाज की सटीक जानकारी देती है।
  3. मशीन लर्निंग: मौसम पूर्वानुमान में अब मशीन लर्निंग का भी इस्तेमाल होता है। यह तकनीक पुराने मौसम के डेटा को देखकर भविष्य के संभावित खतरे पहले से बता सकती है। इससे किसान मौसम के बदलते मिजाज का अंदाजा लगाकर अपने फ़सलों की सुरक्षा कर सकते हैं।

किसानों को मिलने वाले लाभ (Benefits to farmers)

मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। यह न केवल खेती के जोखिम को कम करता है बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बनाता है। आइए, इसे विस्तार से समझें:

  1. जोखिम में कमी (Risk Reduction)
  • प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा: खेती में सबसे बड़ा खतरा प्राकृतिक आपदाएं हैं, जैसे सूखा, बाढ़, बेमौसम बारिश, आंधी-तूफान, आदि। मौसम आधारित बीमा मॉडल किसानों को इन आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। जब भी मौसम में अचानक बदलाव आता है और फ़सल को नुकसान होता है, तो बीमा कंपनियां किसानों को मुआवजा देती हैं, जिससे वे भारी नुकसान से बच सकते हैं।
  • मौसम के अनिश्चित व्यवहार से राहत: भारत में कई जगहों पर मौसम का मिजाज बहुत अनिश्चित होता है। इस बीमा मॉडल से किसानों को यह भरोसा मिलता है कि यदि मौसम प्रतिकूल हो जाता है, तो उन्हें आर्थिक सहायता अवश्य मिलेगी।
  1. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)
  • आय में स्थिरता: फ़सल ख़राब होने पर किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ता है, जिससे उनकी आय प्रभावित होती है। मौसम आधारित बीमा किसानों को आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है। यदि उनकी फ़सल ख़राब हो जाती है, तो उन्हें मुआवजा दिया जाता है, जिससे उनकी आय में कोई बड़ा झटका नहीं लगता।
  • सुरक्षित निवेश: किसान अपनी खेती में जो भी निवेश करते हैं, जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, आदि, वह सुरक्षित रहता है। बीमा का लाभ मिलने से वे अपनी अगली फ़सल के लिए तैयारी कर सकते हैं और आर्थिक संकट से बच सकते हैं।
  1. सटीक और तेज़ मुआवजा (Timely and Accurate Compensation)
  • स्वचालित प्रक्रिया: मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) में मुआवजा देने की प्रक्रिया पारंपरिक बीमा की तुलना में बहुत तेज है। फ़सल नुकसान का आकलन आधुनिक तकनीक, जैसे उपग्रह चित्र और सेंसर डेटा के माध्यम से होता है। इससे किसानों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता और उन्हें तुरंत सहायता मिल जाती है।
  • डिजिटल भुगतान: किसानों को मुआवजा सीधे उनके बैंक खाते में जमा किया जाता है। इससे न केवल पारदर्शिता बनी रहती है बल्कि भ्रष्टाचार की संभावना भी कम हो जाती है। किसानों को कहीं भी जाकर मुआवजा प्राप्त करने के लिए धक्के नहीं खाने पड़ते।
  1. पारदर्शिता और भरोसा (Transparency and Trust)
  • सरल और पारदर्शी प्रक्रिया: बीमा प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और किसानों के लिए आसान है। उपग्रह और मौसम केंद्रों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर बीमा कंपनियां नुकसान का आकलन करती हैं, जिससे किसी भी तरह की हेरफेर की संभावना नहीं रहती। किसान इस प्रक्रिया पर भरोसा कर सकते हैं और आसानी से अपनी बीमा राशि प्राप्त कर सकते हैं।
  • भरोसेमंद प्रणाली: सरकार और बीमा कंपनियों द्वारा मिलकर काम किए जाने से यह मॉडल किसानों के लिए भरोसेमंद बनता है। किसानों को यह यकीन होता है कि उनका बीमा कवर सही समय पर और बिना किसी परेशानी के मिलेगा।
  1. फ़सल उत्पादन में सुधार (Improvement in Crop Production)
  • बेहतर योजना बनाने में सहायक: किसानों को मौसम की जानकारी और बीमा कवर होने से वे अपनी फ़सल की योजना बेहतर तरीके से बना सकते हैं। उन्हें यह पता होता है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में उनके पास सुरक्षा का एक माध्यम है, जिससे वे जोखिम उठाने में हिचकिचाते नहीं हैं और नई कृषि तकनीकों को अपनाने का साहस कर सकते हैं।
  • नई तकनीकों का प्रयोग: बीमा कवर मिलने से किसानों को फ़सल उत्पादन में नई तकनीकों और उन्नत कृषि विधियों को अपनाने का प्रोत्साहन मिलता है। वे अधिक उत्पादकता और बेहतर गुणवत्ता वाली फ़सलें उगा सकते हैं।
  1. मानसिक शांति (Peace of Mind)
  • तनाव कम होता है: खेती एक जोखिमभरा व्यवसाय है, और मौसम के बदलते मिजाज से किसान अक्सर तनाव में रहते हैं। मौसम आधारित बीमा किसानों को मानसिक शांति प्रदान करता है, क्योंकि उन्हें यह पता होता है कि किसी भी आपदा की स्थिति में उन्हें आर्थिक सहायता जरूर मिलेगी। इससे वे अपनी खेती पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
  • परिवार का भरण-पोषण: जब फ़सल ख़राब होती है, तो इसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है। बीमा कवर से किसान अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर पाते हैं और बच्चों की पढ़ाई, घर के खर्चे, आदि में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। 

सरकार की पहल और योगदान 

भारत सरकार ने किसानों की सुरक्षा के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से किसानों को बचाना है।

  1. प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY): यह योजना फ़सलों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए बनी है। किसानों को नाममात्र प्रीमियम पर बीमा उपलब्ध कराया जाता है, और नुकसान की स्थिति में मुआवजा सीधे उनके खाते में जमा किया जाता है। इसमें उपग्रह डेटा, मौसम केंद्र, और आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाता है ताकि नुकसान का आकलन सटीक हो सके।
  2. रेशम बीमा योजना: यह विशेष बीमा योजना उन किसानों के लिए है जो रेशम उत्पादन करते हैं। इसका उद्देश्य रेशम के कीड़ों के पालन में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कवर करना है।
  3. वेदर बेस्ड क्रॉप इंश्योरेंस स्कीम (WBCIS): यह योजना फ़सलों के लिए मौसम के अनुसार बीमा कवर प्रदान करती है। इसमें बारिश, तापमान, हवा की गति, और अन्य मौसम संबंधित कारकों के आधार पर बीमा लाभ मिलता है। इससे किसानों को मौसम से संबंधित जोखिमों का सामना करने में आसानी होती है।
  4. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN): भले ही यह योजना सीधे बीमा से जुड़ी नहीं है, लेकिन यह किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए बेहद अहम है। इसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है, जिससे वे खेती के लिए ज़रूरी संसाधन जुटा सकें।

निष्कर्ष (conclusion)

मौसम आधारित बीमा मॉडल (Weather based insurance model) और सरकार की फ़सल बीमा योजनाएँ किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आधुनिक तकनीक के सहारे ये मॉडल किसानों को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने और उनकी आय को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं। सरकार और वैज्ञानिक समुदाय के प्रयासों से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि किसानों को सटीक जानकारी और मुआवजा सही समय पर मिले। किसानों को चाहिए कि वे इन योजनाओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी लें और अपने हित में इनका लाभ उठाएं।  

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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