Table of Contents
क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में एक बड़ी आर्थिक क्रांति हो रही है। एक क्रांति जो लोगों की ज़िंदगी बदल रही है, उन्हें आत्मनिर्भर बना रही है और गांव की तकदीर लिख रही है! जी हां, हम बात कर रहे हैं देहरादून के कलसी ब्लॉक की, जहां अदरक की खेती यानि Ginger Farming ने एक नया इतिहास रच दिया है।
एक फसल ने पूरे गांव की अर्थव्यवस्था को बदला
कलसी ब्लॉक का नाम सुनते ही आंखों के सामने हिमालय की हरी-भरी पहाड़ियां, साफ पानी और उपजाऊ खेतों का दृश्य आ जाता है। 270 वर्ग किलोमीटर में फैला ये इलाका कृषि की दृष्टि से बेहद समृद्ध है। यहां की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि चावल, गेहूं, मक्का और सब्ज़ियों की भरपूर पैदावार होती है। और हां, यहां के फलों के बाग़ान भी किसी से कम नहीं। आम, लीची और अमरूद के बाग़ इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। लेकिन, इन सबके बीच एक फसल ने पूरे गांव की अर्थव्यवस्था को बदल कर रख दिया है।
अदरक, जो हर रसोई की शान होती है, जो हमारे खाने का स्वाद बढ़ाती है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होती है! लेकिन यही अदरक गांव के लोगों की जिंदगी बदल रही है।
पारंपरिक पुंझोल विधि (Ginger Farming)
कलसी ब्लॉक के दोमट और आस-पास के गांवों ने अदरक को सिर्फ़ उगाने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे प्रोसेस करके एक मुनाफ़ेदार बिज़नेस में बदल दिया। अदरक सुखाने की पारंपरिक पुंझोल विधि ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाया और उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाया।
पुंझोल विधि आखिर है क्या?
पुंझोल विधि एक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल तरीका है, जो किसी भी अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत पर निर्भर नहीं करता। इसमें अदरक को पहले छीलकर सुखाया जाता है, जबकि दूसरी पारंपरिक विधि सुखझोल में अदरक को बिना छीले ही सुखाया जाता है। इस विधि से सूखी अदरक, जिसे ‘सौंठ’ भी कहते हैं, बेहतर गुणवत्ता की होती है और बाज़ार में इसकी कीमत भी ज़्यादा मिलती है।
कलसी ब्लॉक का यह छोटा सा गांव हर साल करीब 25,000 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता वाली सूखी अदरक बेचता है! और इसकी कीमत 3,000 से 5,000 रुपये प्रति किलोग्राम है। यानी इस गांव के किसान सिर्फ अदरक बेचकर 8 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई कर रहे हैं।
अदरक का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात
इस सफलता को और आगे बढ़ाने के लिए ग्रामीण अब किसान उत्पादक संगठन (FPO) बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। अगर वे अपनी खुद की सहकारी समिति बना लेते हैं, तो वे अपनी सूखी अदरक (Ginger Farming) को बड़े गोदामों में स्टोर कर सकते हैं, इच्छुक खरीदारों के साथ बेहतर दाम पर मोल-भाव कर सकते हैं और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में निर्यात भी कर सकते हैं!
और बात सिर्फ कमाई तक सीमित नहीं है। ये पूरा प्रोसेस रोज़गार के नए अवसर भी पैदा कर रहा है। अदरक को प्रोसेस करने के लिए मशीन ऑपरेटर, तकनीशियन और मज़दूरों की ज़रूरत पड़ती है। इससे गांव के युवाओं को रोज़गार मिल रहा है और वे अपने ही गांव में एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
सिर्फ़ खेती नहीं, बल्कि एक क्रांति है
ये सिर्फ़ खेती नहीं, बल्कि एक क्रांति है। एक ऐसा बदलाव जो ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बना रहा है, उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला रहा है, उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठा रहा है।अगर देश के और गांव भी इसी तरह की सोच अपनाएं, तो भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है।
तो अगली बार जब आप चाय में अदरक डालें, तो याद रखिए… शायद वही अदरक किसी किसान के सपनों को साकार कर रही हो।