Managing Weeds Naturally: सतपुड़ा जलाशय में साल्विनिया मोलेस्टा अटैक को वैज्ञानिकों ने कैसे किया कंट्रोल,जानिए

साल 2019-20 के दौरान, सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन में 2900 एकड़ का जलाशय (Reservoir) पूरी तरह से साल्विनिया मोलेस्टा की चपेट में आ गया था। इस संक्रमण ने न केवल जलाशय (Reservoir) के पारिस्थितिक संतुलन के लिए बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया।

Managing Weeds Naturally: सतपुड़ा जलाशय में साल्विनिया मोलेस्टा अटैक को वैज्ञानिकों ने कैसे किया कंट्रोल,जानिए

जलीय खरपतवार (Aquatic Weeds) साल्विनिया मोलेस्टा, जिसे आमतौर पर पानी वाले फर्न (Aquatic Ferns) के तौर में जाना जाता है,। इसका हमला भारत के लिए एक परेशानी का सबब बनकर सामने आया। ख़ासकर महत्वपूर्ण प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन में। तेजी से बढ़ने वाला और घने मैट के लिए जाना जाने वाला, साल्विनिया मोलेस्टा ने जल निकाय (water bodies) को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया है। उनके पारिस्थितिक संतुलन को रोकने का काम करता है। इस आक्रामक प्रजाति (invasive species) के प्रभाव का एक उदाहरण मध्य प्रदेश के सारनी में सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन (एसटीपीएस) का जलाशय (Reservoir) है।

सतपुड़ा जलाशय पर संकट

साल 2019-20 के दौरान, सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन में 2900 एकड़ का जलाशय (Reservoir) पूरी तरह से साल्विनिया मोलेस्टा की चपेट में आ गया था। इस संक्रमण ने न केवल जलाशय (Reservoir) के पारिस्थितिक संतुलन के लिए बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया। इसमें खासतौर से मछुआरों की रोज़ी रोटी काफी प्रभावित हुई। ये महुआरे अपनी आय के लिए इसी पर निर्भर थे। घने खरपतवार की चादर ने मछली पकड़ने के काम को बहुत मुश्किल कर दिया। इसकी वजह से मछलियों की संख्या में गिरावट होने लगी।  

हालात की गंभीरता को देखते हुए इस पर तुरंत प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन पर काम करने की ज़़रूरत थी। जलीय खरपतवार(Aquatic Weeds) हटाने के पारंपरिक तरीकों, जैसे कि मशीनों की मदद से और रसायनों की हेल्प के साथ इस पर नियंत्रण  करने की तैयारी की गई।  हालांकि, पानी में इंन्फेक्शन बड़े पैमाने पर होने की संभावना थी। साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान हो सकता था। प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए काफी टिकाऊ और उपयोगी समाधान की ज़रूरत थी। 

आईसीएआर-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय की भूमिका (Role of ICAR-Directorate of Weed Research)

साल्विनिया मोलेस्टा की वजह से गहराए संकट के जवाब में, आईसीएआर-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, (ICAR-Directorate of Weed Research) जबलपुर से प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए एक प्रोएक्टिव सल्यूशन तैयार करने के लिए संपर्क किया। मध्य प्रदेश पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड की ओर से फंड किये गये कंसल्टिंग प्रोजेक्ट की शुरूआत जून 2022 में की गई। इसका उद्देश्य साल्विनिया मोलेस्टा के फैलाव को रोकना था। इसके साथ ही जलाशय के पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना और वहां को मछुआरों पर पड़ रहे सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को भी कम करना है।

निदेशालय ने एक जैविक नियंत्रण रणनीति (Biological Control Strategies) का प्रस्ताव समाने रखा।  जिसमें कीट साइरटोबैगस साल्विनिया को जैव एजेंट (Bioagent) के रूप में इस्तेमाल किया गया। साइरटोबैगस साल्विनिया एक घुन है जो साल्विनिया मोलेस्टा आबादी को नियंत्रित करने में अपनी ताकत के लिए जाना जाता है। वयस्क घुन खरपतवार के बढ़ते प्लाइंट्स (plyants) खाते हैं। जबकि उनके लार्वा, या ग्रब राइज़ोसोम (rhizosome) में घुस जाते हैं, जिससे उसको काफी नुकसान होता है जो खरपतवार का खात्मा करता है, जो प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए सबसे अहम बनकर उभरा। 

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन में जैविक नियंत्रण रणनीतियां (Biological Control Strategies) कैसे काम करती है?

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए ये परियोजना अक्टूबर 2022 में शुरू की गई थी, जिसमें प्रति हेक्टेयर 22,500 की दर से साइरटोबैगस साल्विनिया बायो एजेंट जारी किए गए थे। इसके शुरूआती मुक्ति को रणनीतिक रूप (Strategic) से सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथ मेल खाने के लिए समयबद्ध किया गया। जो आमतौर पर खरपतवार की कम बढ़ोत्तरी का वक्त होता है, जिससे बायोएजेंट खुद को ज़्यादा प्रभावी ढंग से स्थापित करने की ताकत रखते हैं। 

पूरे जलाशय में बायो एजेंट के फैलाव को ठीक करने के लिए, शुरुआती मुक्ती के बाद मासिक अंतराल पर 3-4 बढ़ोत्तरी की गई। ये बढ़ोत्तरी जैव एजेंट की उचित आबादी को बनाए रखने के लिए काफी अहम थी, ताकि प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाले साल्विनिया मोलेस्टा की आबादी पर बार-बार दबाव डाला जा सके। समय के साथ, घुन पूरे जलाशय में फैल गया। जिससे खरपतवार की चादर धीरे-धीरे कम होती गई। 

इस जैविक नियंत्रण रणनीति के प्रभाव की बारीकी से निगरानी ICAR-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय की ओर से की गई। निगरानी करने वालों ने संकेत दिया कि 18 महीनों के अंदर, साल्विनिया मोलेस्टा संक्रमण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया, जिससे जलाशय में खरपतवार की पूरी तरह से खत्म गये। ये कामयाबी न केवल जैव एजेंट के रूप में साइरटोबैगस साल्विनिया की सफलता को बयां कर रही थी। साथ ही प्रोजेक्ट की प्लानिंग और सही तरीके से अमल का भी प्रमाण थी।

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन और स्थानीय समुदायों के लिए सामाजिक- आर्थिक लाभ

साल्विनिया मोलेस्टा के सफल नियंत्रण से स्थानीय मछुआरों को गहरा सामाजिक-आर्थिक फायदा हुआ। खरपतवार की घनी चादर में कमी आने से जलाशय में मछलियों की संख्या में सुधार होने लगा, जिससे उनकी पकड़ में बढ़ोत्तरी हुई और मछुआरों की आय में सुधार हुआ। इस परिणाम ने जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic Ecosystem) के प्रबंधन में जैविक नियंत्रण (Biocontrol) को सामाजिक-आर्थिक रूप के महत्व को उजागर किया।

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन की परियोजना की सफलता ने ज़्यादा पारंपरिक विधियों के लिए एक टिकाऊ विकल्प के रूप में जैविक नियंत्रण की क्षमता को भी दिखया। जलाशय से खरपतवार को मशीन से हटाने के लिए पांच सालों में 15.0 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत की तुलना में, निदेशालय की ओर से लागू किये गये जैविक नियंत्रण रणनीति बेहतर तरीके से लागत प्रभावी थी, जिसका कुल खर्च सिर्फ 49 लाख रुपये था। इसके अलावा जैविक विधि (Biological method) न केवल कम खर्चीली थी, बल्कि ज़्यादा समय को बचाने वाली, पर्यावरण-अनुकूल और लंबे वक्त तक टिकाऊ भी थी।

टेक्नोलॉजी की पहचान और बढ़ावा

सतपुड़ा जलाशय से साल्विनिया मोलेस्टा के सफल खात्मे को पहचान देने में, सतपुड़ा थर्मल पावर स्टेशन के अधिकारियों ने 3 जुलाई, 2024 को एक कार्यक्रम आयोजित किया। प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन करने वाले वैज्ञानिकों को इस कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। आईसीएआर-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर ने इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों के शानदार काम और जलाशय को साफ करने और स्थानीय मछली पकड़ने वाले लोगो की आजीविका में सुधार लाने में उनके योगदान की सराहना की। 

जैविक नियंत्रण रणनीतियों की सफलता

इस जैविक नियंत्रण रणनीतियों की सफलता ने साल्विनिया मोलेस्टा के साथ समान चुनौतियों का सामना कर रहे दूसरे क्षेत्रों में भी इसके इस्तेमाल को प्रेरित किया है। इस तकनीक का महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई दूसरे जल निकायों में सफलतापूर्वक काम किया। प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए महाराष्ट्र में, इस तकनीक को घोडापेट (110 एकड़), जुनोना झील (750 एकड़), चंद्रपुर ज़िले में एराई बांध (250 एकड़) और गढ़चिरौली जिले में लांजाद तालाब (40 एकड़), हट्टी झील (150 एकड़) में लागू किया गया। छत्तीसगढ़ में, इस तकनीक को दुर्ग जिले में तालपुरी झील (80 एकड़) में लागू किया गया। मध्य प्रदेश में, इसे कटनी जिले में पडुआ गांव के तालाब (50 एकड़) में इस्तेमाल किया गया।

खरपतवार प्रबंधन के लिए अलग-अलग स्थानों पर सफल उपयोग

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए अलग-अलग स्थानों पर इसका सफल उपयोग अलग-अलग पारिस्थितिक और भौगोलिक काम (different ecological and geographical contexts) में जैविक नियंत्रण रणनीतियों का बेहतरीन काम और उसके प्रभाव को दिखाया है। इस तकनीक को व्यापक रूप से अपनाना भारत में जलीय खरपतवारों के प्रबंधन, जल संसाधनों की स्थिरता (Sustainability of water resources) को पक्के तौर पर अपनाने  और इन इको सिस्टम पर निर्भर लोगों की आजीविका की रक्षा करने की दिशा में एक अहम कदम है।

 प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन और खरपतवार नियंत्रण (Weed control using science and technology)

मध्य प्रदेश के सारनी में सतपुड़ा जलाशय में साल्विनिया मोलेस्टा का प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन और जैविक नियंत्रण इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि कैसे साइंस और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके पर्यावरण चुनौतियों का समाधान करने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के लिए किया जा सकता है।  

प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 

 

सवाल 1: प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन क्या है ?

जवाब: प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन एक ऐसी रणनीति है जिसमें अवांछित पौधों को दबाते हुए लाभकारी वनस्पति को उगाना या बढ़ावा देना शामिल है।

सवाल 2: जलीय खरपतवार साल्विनिया मोलेस्टा से कैसे मिल सकता है छुटकारा  

जवाब: कीट साइरटोबैगस साल्विनिया को जैव एजेंट (Bioagent) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। साइरटोबैगस साल्विनिया एक घुन है जो साल्विनिया मोलेस्टा आबादी को नियंत्रित करता है। वयस्क घुन खरपतवार के बढ़ते प्लाइंट्स (plyants) खाते हैं। जबकि उनके लार्वा, या ग्रब राइज़ोसोम (rhizosome) में घुस जाते हैं, जिससे उसको काफी नुकसान होता है जो खरपतवार का खात्मा करता है, जो प्राकृतिक रूप से खरपतवार प्रबंधन के लिए सबसे अहम बनकर उभरा। 

सवाल 3: जैविक खरपतवार प्रबंधन कैसे करें?

जवाब: देरी से बीज बोना खरपतवार नियंत्रण का एक प्रभावी तरीका हो सकता है, जो बीज बोने से पहले या कटाई के बाद जुताई के विकल्प प्रदान करता है। मिट्टी को गर्म करने और खरपतवार की वृद्धि को प्रोत्साहित करने के प्रयास में जुताई जल्दी शुरू करनी चाहिए।

सवाल 4: जलीय खरपतवार प्रबंधन कैसे किया जाता है? 

जवाब: जलीय खरपतवार प्रबंधन जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में आक्रामक जलीय पौधों को कंट्रोल करने की एक विधि है। इन पौधों को रोकने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें से कुछ तरीके ये हैं-  

  • रोकथाम करना: तालाब की साफ सफाई और रखरखाव 
  • जैविक विधि: घास कार्प जैसी जैविक विधियों का इस्तेमाल करना। 
  • यांत्रिक तरीके: काटना, जाल लगाना, और रेकिंग करना। 
  • रासायनिक तरीके: जलीय खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल करना।
  • ड्रेजिंग और चेनिंग: यांत्रिक बल से खरपतवारों को जड़ों और प्रकंदों सहित हटाना। 
  • तैरते मलबे के लिए रोकथाम बनाना।

सवाल 5: सबसे ख़तरनाक जलीय खरपतवार कौन सी है?

जवाब: आइकोर्निया क्रेसीपस दुनिया की सबसे ज़्यादा समस्याग्रस्त जलीय खरपतवार है। इसको टेरर ऑफ बंगाल भी कहा जाता है। वृद्धि की बहुत उच्च दर की वजह से वो पूरे जल कायों की सतह को घेर सकती है, उनमें रूकावट या अवरोध पैदा करके दूसरे जलीय जीवों को प्रभावित कर सकती है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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