Integrated Pest Management (IPM): एकीकृत कीट प्रबंधन से होगा कीटों से बचाव और मिलेगी अच्छी पैदावार

वैज्ञानिक लखमी चंद ने एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) के चार चरणों पर चर्चा की, जो किसानों को कम लागत में फ़सल प्रबंधन और पर्यावरण सुरक्षा में मदद करते हैं।

Integrated Pest Management एकीकृत कीट प्रबंधन

एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) के मुख्य रूप से चार चरण है जिनके ज़रिए किसान कम लागत में अपनी फ़सलों का प्रबंधन करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। कौन-कौन से है एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) के चरण और कैसे ये किसानों के लिए फ़ायदेमंद है, साथ ही किस तरह से ये हमारी सेहत और पर्यावरण के लिए ज़रूरी है, इन सभी विषयों पर आरसीआईपीएमसी फरीदाबाद के सहायक वैज्ञानिक लखमी चंद ने चर्चा की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदली से।

क्या है एकीकृत कीट प्रबंधन? (What is Integrated Pest Management?)

एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) कीटों को नियंत्रित करने का एक स्थायी तरीक़ा है। जिसमें व्यवहारिक क्रियाओं, यांत्रिक तीरके, जैविक तरीकों और रासायनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, मगर इसमें रसायनों का इस्तेमाल अंतिम विकल्प के रूप में होता है यान बहुत कम। इसलिए इस तकनीक के इस्तेमाल से फ़सल स्वस्थ रहती है और पर्यावरण को भी नुक़सान नहीं पहुंचता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन के चरण (Steps in Integrated Pest Management)

इसके चार चरण इस प्रकार हैं-

  1. व्यवहारिक क्रिया – सहायक वैज्ञानिक लखमी चंद बताते हैं कि इसमें किसानों को पहले व्यवहारिक क्रिया अपनाने के लिए जागरुक किया जाता है, जैसे गर्मियों में गहरी जुताई करने की सलाह दी जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है। साथ ही खरपतवार के बीज भी ऊपर आ जाते हैं और वो निष्क्रिय हो जाता है। इससे खरपतवार आगे नहीं निकलते हैं और फ़सल का अच्छा उत्पादन होता है।

इस चरण में लखमी चंद सीड ट्रीटमेंट की बात भी कहते हैं। उनका कहना है कि बीजोपचार बहुत ज़रूरी है। पहले तो अच्छे बीज चुने और फिर उनका उपचार करके ही बुवाई करें। बीच अच्छे होंगे तो पौधे भी स्वस्थ होंगे जिससे कीट और रोगों का खतरा कम होगा। क्योंकि बीजोपचार से उत्पन्न पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है जिससे जड़ गलन, तना गलन जैसे रोगों की संभावना कम हो जाती है।

  1. यांत्रिक क्रिया- वैज्ञानिक लखमी चंद का कहना है कि जब फ़सल पर कीट या रोग आते हैं तो यांत्रिक क्रियाओं द्वारा उन्हें नियंत्रित किया जाता। कीटों के नियंत्रण के लिए मकैनिकल कंट्रोल किया जाता है, जैसे फेरोमैन ट्रैप का इस्तेमाल। पौधों की पत्तियों और फलों पर लगने वाले माहु और चेपा जैसे रस चूसक कीटों को नष्ट करने के लिए पीला प्रपंच यानी यलो स्टिकी ट्रैप का इस्तेमल किया जाता है। क्योंकि इन कीटों को पीला रंग पसंद होता है, तो वो इस ट्रैप की ओर आकर्षित होते हैं और इस पर लगे चिपचिपे पदार्थ में चिपक जाते हैं, इस तरह से फ़सल सुरक्षित हो जाती है। इसी तरह से थ्रिप्स को नीला रंग पसंद है। प्याज और हरी मिर्च के पौधों में आने वाले थ्रिप्स के लिए नीले प्रपंच यानी नीली रंग के स्टिकी ट्रैप का इस्तेमाल होता है। इसी तरह फल मक्खी के लिए भी ट्रैप होता है। इसके अलावा किसान घर पर ही एक मिश्रण तैयार कर सकते हैं जिससे फलो को कीटों से बचाया जा सकता है। इस मिश्रण को तैयार करने के लिए मिथाइल यूजेनॉललें और इसमें 5 प्रतिशत मेलाथियॉन मिलाएं। इस मिश्रण को फूल आने की अवस्था से ही पौधों में लगाना शुरू कर दें, जिससे एक भी फल कीड़े से खऱाब नहीं होगा। ये तरीक़ा सस्ता और आसान है।

बेकार बोतल का इस्तेमाल- लखमी चंद किसानों को कीट नियंत्रण का किफायती तरीक़ा बताते हैं, उनका कहना है कि पानी पीकर जो बोतल फेंक देते हैं, उसे लें और तीन तरफ से एक इंच का उसमें छेद करें और इसमें लकड़ी का गुटका डाल दें, जिसमें मिथाइल यूजेनॉल और मेलाथियॉन लगा हुआ हो और बोतल में 2 इंच तक पानी डालें, उसमें थोड़ा सा सौंफ पाउडर भी डाल दें और इसे खेत में टांग दें। इससे नर पतंगा इसमें आकर फंस जाएगा।

जिन लोगों को ये लगता है कि इसमें तो मित्र कीट भी फंस सकते हैं, तो लखमी चंद स्पष्ट करते है कि इसमें शत्रु मादा की कीट की ही ल्यूर लगाई जाती है, तो इसलिए वही नर पतंगा इसमें आता है। इसके अलावा किसान घर पर ही कीट ट्रैप तैयार कर सकते हैं। इसके लिए कोई कार्ड बोर्ड या टिन के डिब्बे को स्लेट की साइज़ का काटकर पीले रंग से पेंट कर दें और सूखने पर व्हाइट ग्रीस लगाकर खेत में टांग दें। जब कीट चिपक जाए तो उसे धोककर दोबारा सफेद ग्रीस लगाकर खेत में टांग दें। किसानों के लिए सस्ता और बेहतरीन उपाय है।

  1. जैविक नियंत्रण- लखमी चंद बताते हैं कि जैविक नियंत्रण तकनीक में जिन चीज़ों का इस्तेमाल कया जाता है वो हमारे पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य को खराब नहीं करते हैं। मिट्टी को उपचारि करने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग होता है। वो कहते हैं कि बीज के साथ ही मिट्टी को भी उपचारित करने से रोग व कीट कम लगते हैं। मिट्टी उपचारित करने के लिए पुराने गोबर की खाद में ट्राइकोडर्मा डालें और उसे पराली या जूट की बोरी से ढंक दें। छाया में 35-40 दिन में उस पर हरे रंग की लेयर बन जाएगी मतलब उसमें ट्राइकोडर्मा आ गया, 20 किलो रख लें और उसे मिट्टी में डालकर जुताई कर दें। एक ट्रॉली गोबर की पुरानी खाद में 2 किलो ट्राइकोडर्मा डाल दें और इसमें से 20 किलो रख लें और बाकी मिट्टी में मिला दें। फिर बचे हुए 20 किलो को दोबारा पुरानी गोबर की खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकात है। यानी आपको बार-बार ट्राइकोडर्मा खऱीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी

नीम की खली से मिश्रण बनाकर भी चने की सूंडी, रस चूसक कीड़े, तंबाकू की सूंडी को नियंत्रित किया जा सकता है। इस मिश्रण को बनाने के लिए नीम के बीज को एकत्र कर लें, जो आमतौर पर मई-जून में गिरते हैं। फिर इन बीजों को छाया में सुखा लें, जब भी फ़सल पर छिड़काव की ज़रूरत पड़े तो। 1 एकड़ के लिए 5 किलो और एक हेक्टेयर के लिए 12 किलो बीज लेना है। एक एकड़ के लिए 5 किलो बीज लें और उसे एक सूती कपड़े में बांधकर पानी में 3-4 घंटे के लिए भिगो दें ।

फिर उसे पीसकर लेप तैयार करें और इसे सूती कपड़े में बांधकर पानी में डाल दें फिर उसे निचोड़ दें जिससे उसका अर्क निकल जाता है। नीम की खली को भी खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। एक एकड़ के लिए 10 लीटर मिश्रण तैयार हुआ है, इसमें 90 लीटर पानी और मिलाना है, साथ ही इसमें 100 ग्राम कपड़े धोने का पाउडर मिलाएं ताकि मिश्रण फ़सल पर चिपक जाएं। अब इसे पौधों पर स्प्रे करें, इससे कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। 

  1. रासायनिक नियंत्रण- वैज्ञानिक लखमी चंद का कहना है कि ये अंतिम विकल्प है। जब फ़सल को 10-15 प्रतिशत से ज़्यादा क्षति हो रही होती है, तब रासायनिक नियंत्रण को अपनाया जाता है। वो किसानों को सलाह देते हैं कि रसायानों का सुरक्षित और विवेकपूर्ण तरीके इस्तेमाल करना चाहिए। सही फ़सल पर सही कीटनाशक का इस्तेमाल करें और उस पर दिए निर्देशों को पढ़कर जितनी मात्रा बताई गई है उतनी ही मात्रा का छिड़काव करें। सही समय पर इसे डालना भी ज़रूरी है यानी धूप ज़्यादा न हो या जब धूप ढल जाए तब इसे डालें। इसके अलावा बारिश के आसार हो तब भी कीटनाशकों का छिड़काव न करें, क्योंकि अगर बारिश हो गई तो वो धुलकर मिट्टी में मिल जाएंगे और कीटों पर असर नहीं होगा।

एकीकृत कीट प्रबंधन कितना लाभकारी है किसानों के लिए (How beneficial is integrated pest management for farmers)

वैज्ञानिक लखमी चंद का कहना है कि आजकल रसायनिक उर्वरक और कीटनाशों की कीमत बहुत अधिक हो गई है जिससे खेती की लागत बढ़ रही है। ऐसे में IPM का बहुत महत्व है, आज रसायनों का इस्तेमाल करके इंसानों की सेहत, मिट्टी, पानी और पर्यावरण सबको नुक़सान पहुंच रहा है। ऐसे में एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) अपनाना किसानों के लिए लाभकारी है, क्योंकि इस तकनीक में ज़रूरत होने पर ही केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है जिससे किसानों के पैसे की बचत होती है और फ़सल भी स्वस्थ रहती है।

किसानों के फ़सल की से पहले ही कीटों को नियंत्रित कर लिया जाता है बायो पेस्टिसाइड के इस्तेमाल से, जो पर्यावरण और फ़सल दोनों को सुरक्षित रखता है। एकीकृत कीट प्रबंधन (Integrated Pest Management) अपनाने से किसानों को कम खर्च में अच्छी उपज मिलती है।

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