एग्री-स्टार्टअप Bhukripa Farms: इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होते ही जहां छात्र बड़ी-बड़ी कंपनियों में नौकरी पाने की जद्दोजहद में जुट जाते हैं, वहीं उत्तराखंड के सूरज रावत (Suraj Rawat) ने खेती से जुड़ा बिज़नेस करने की सोची और अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर वो सफल भी हुए।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने क्यों चुना खेती से जुड़े एग्री-स्टार्टअप को और कैसे खड़ा किया Bhukripa Farms। इस बारे में विस्तार से उन्होंने चर्चा की किसान फ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली के साथ।
कब हुई शुरुआत?
सूरज बताते हैं कि 2019 में जब उनकी मैकेनिकल इंजीनियरिंग बस पूरी ही होने वाली थी, तो उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर बिज़नेस करने की सोची। वो कहते हैं कि उनके दिमाग में ये बात थी कि एक अच्छा बिज़नेस शुरू करना है, और लगा कि एक से डेढ़ लाख में मशरूम उगाने का बिज़नेस (Mushroom Processing Startup) शुरू किया जा सकता है, क्योंकि मशरूम इक्कीसवीं सदी का बहुत ही इनोवेटिव फ़ूड है। इस तरह से 2019 में Bhukripa Farms नाम की कंपनी की शुरुआत हुई।
प्रोसेस्ड उत्पाद बनाए
आगे वो बताते हैं कि जब उन्होंने बिज़नेस शुरू किया तो धीरे-धीरे समझ आया कि मशरूम सीज़नल क्रॉप है। इसलिए इसके बाय-प्रॉडक्ट्स तैयार करना बेहतर है क्योंकि ये बहुत जल्दी खराब हो जाता है। ऐसे में सबसे पहले तो उनकी कंपनी ने इसका अचार बनाया और लोगों को ये बहुत पसंद आया। मार्केट रिसर्च में सूरज को पता लगा कि इसकी बहुत मांग है और लोगों को इसका टेस्ट पसंद आ रहा है, तो धीरे-धीरे इसकी कीमत कम की, ताकि हर कोई इसका स्वाद चख सके।
अचार की कैटेगरी
सूरज रावत बताते हैं कि उन्हें मशरूम की प्रोसेसिंग से बहुत फ़ायदा हुआ। तभी तो उन्होंने चार अलग-अलग कैटेगरी जैसे पहाड़ी, ट्रेडिशनल, स्पेशल, मशरूम, पहाड़ी स्पेशल नाम से अचार लॉन्च किए।
सूरज रावत का जुड़ाव पहाड़ से है, तो इसलिए उन्होंने सोचा कि वहां के लोगों के लिए कुछ किया जाए। किसान और व्यापारियों के बीच कम्यूनिकेशन गैप बहुत होता है जिससे किसानों को फसल की सही कीमत नहीं मिल पाती है। ऐसे में उनकी कंपनी सीधे किसानों से फसल खरीदती है और अच्छी कीमत देती है। इतना ही नहीं, उनकी मशरूम की खेती का आइडिया भी पहाड़ के लोगों के लिए फ़ायदेमंद है, क्योंकि वहां जंगली जानवर खुले खेत में फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बंद कमरे में मशरूम उगाना स्वरोजगार का अच्छा विकल्प है।
पहाड़ी उत्पादों को बचाने की पहल
सूरज का कहना है कि उनकी कंपनी न सिर्फ़ मशरूम के अचार बना रही हैं, बल्कि थिमला जैसे कुछ पहाड़ी उत्पाद जो लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं, उन्हें फिर से जिंदा करने के लिए उसका अचार भी बेच रही है।
कृषि विभाग और कार्यालयों से मिला सहयोग
सूरज का कहना है कि जब उन्होंने स्टार्टअप शुरू किया तो उत्पाद की मार्केटिंग की समस्या हुई, मगर देहरादून के बागवानी डिपार्टमेंट का उन्हें बहुत सहयोग मिला। जब भी उन्हें अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने में कोई दिक्कत आई, तो सरकार की कुछ योजनाओं के तहत लोन, सब्सिडी लेकर उनकी मुश्किल आसान हो गई। यही नहीं उनके उत्पादों को सरकार के आउटलेट में बेचा जाने लगा, सरकारी स्टॉल पर प्रॉडक्ट डिस्प्ले करने का मौका मिला, जिससे मार्केटिंग में बहुत मदद मिली।
युवाओं को संदेश
सूरज का कहना है कि आप अगर कोई भी बिज़नेस या काम शुरू करना चाहते हैं, तो समय से शुरुआत ज़रूरी है। इसके साथ ही निरंतरता बनाए रखना भी ज़रूरी है। उनका कहना है कि उन्होंने अपना काम लगातार जारी रखा। हार्ड कोर मार्केटिंग की, कस्टमर से सीधा डील की और 3 साल में अपनी कंपनी को आगे लेकर आए। आज उनकी कंपनी का सालाना रेवन्यू 12 लाख रुपए का है जिसमें से 80 फीसदी रेवन्यू प्रोसेसिंग से आता है।
मशरूम में प्रोटीन की मात्रा
सूरज रावत कहते हैं कि वो सीज़नल मशरूम (Seasonal Mushrooms) उगाते हैं। उत्तर भारत में बटन, ओएस्टर, मिल्की मशरूम की खेती होती है, जो मौसम के हिसाब से की जाती है। ओएस्टर मशरूम की लाइफ़ 2-3 दिन ही होती है। ऐसे में वो इसे सुखाकर पाउडर के रूप में बेचते हैं। उनका कहना है कि सूखा मशरूम ज़्यादा पौष्टिक होता है। साधारण 100 ग्राम मशरूम में 3 ग्राम प्रोटीन होता है, जबकि सूखे 100 ग्राम मशरूम में 30 ग्राम प्रोटीन मिलता है। यही नहीं ओएस्टर मशरूम विटामिन बी 12 का भी बेहतरीन स्रोत है। इसे पाउडर के रूप में आटे, दाल या किसी भी दूसरी चीज़ में मिलाकर खा सकते हैं।