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अब फसलों को मिलेंगे सटीक पोषक तत्व, जानिए IARI के वैज्ञानिक डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय से उन्नत तकनीकों के बारे में

कम लागत और बेहतर उत्पादन में मददगार हैं ये उपकरण

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में एग्रोनॉमी डीवीज़न के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय ने फसलों में पोषक तत्व प्रबंधन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां बताईं।

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समय की मांग है कि पोषक तत्वों का उपयोग बढ़ाया जाए, ताकि न केवल उर्वरकों की मांग को कम किया जा सके, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण भी कम हो। यह तभी संभव है जब फसलों में उचित पोषक तत्व प्रबंधन हो। इसके लिए दिल्ली के पुसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) किसानों को सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के लिए चार ऑपरेटरों का उपयोग करने के लिए कह रही है। ये ऑपरेटर्स  क्या हैं, कैसे कार्य करते हैं, इसपर किसान ऑफ़ इंडिया ने IARI पूसा एग्रोनॉमी डीवीज़न के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय से ख़ास बातचीत की। 

डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय ने बताया कि सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के चार ऑपरेटरों का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के बजाय पौधों को पोषण देना है। उन्होंने कहा कि खाद उर्वरकों का इस्तेमाल तब किया जाए, जब पौधों की ज़रूरत हो। पोषक तत्व प्रबंधन में मृदा की उर्वरता एवं निहित पोषक तत्व आपूर्ति का भी ख्याल रखा जाए। 

सटीक पोषक तत्व प्रबंधन: उपकरण और तकनीक

1. ग्रीन सीकर

डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय का कहना है ग्रीन सीकर फसलों में सामान्यीकृत अंतर वानस्पतिक सूचकांक (Generalized Distance Botanical Index) के आधार पर पौधो में नाइट्रोजन की ज़रूरत को सुनिश्चित करता है। आजकल इस तकनीक का इस्तेमाल काफ़ी हो रहा है।  इस उपकरण के इस्तेमाल से पाया गया है कि यह फसलों में नाइट्रोजन के उपयोग को काफ़ी कम कर सकता है। इस तरह ज़रूरत से अधिक उर्वरक के इस्तेमाल को कंट्रोल किया जा सकता है। फसल में उर्वरक पर लगने वाला लागत खर्च कम होगा। ग्रीन सीकर खेती में लगभग 20 फ़ीसदी नाइट्रोजन बचाता है।

2. क्लोरोफिल मीटर

डॉ. प्रवीन के अनुसार क्लोरोफिल मीटर पारंपरिक पोषण स्तर मूल्यांकन उपकरणों की तुलना में अधिक विश्वसनीय और आसान है। यह पत्तियों के नाइट्रोजन स्तर के आधार पर क्लोरोफिल की मात्रा को दर्शाता है। धान की पत्तियों में जब क्लोरोफिल मीटर का औसत मान 37.5 हो तो 30 किग्रा नाइट्रोजन का प्रयोग करना चाहिए। गेहूं की पत्तियों में मान 42 होने पर उसमें 30 किग्रा नाइट्रोजन मिलाने की सलाह दी जाती है। क्लोरोफिल मीटर के प्रयोग से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 30 किलोग्राम तक नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं।

3. निर्णय समर्थन प्रणालियाँ (Decision Support Systems)

न्यूट्रिएंट एक्सपर्ट, फसलों मे कंप्यूटर आधारित सटीक पोषक तत्व प्रबंधन के लिए डीसीज़न सपोर्ट सॉफ्टवेयर है। यह सॉफ्टवेयर फसलों में पोषण प्रबंधन से जुड़ी चार मुख्य जानकारियां किसानों को देता है। उर्वरक डालने का सही समय, सही मात्रा, सही विधि एवं सही स्रोत के बारे में बताता है। 

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4. लीफ कलर चार्ट (एलसीसी) 

डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय का कहना है लीफ कलर चार्ट आसानी से इस्तेमाल किये जाना वाला उपकरण है। इसमें प्लास्टिक की पट्टी में  हरे रंग के कई पैटर्न बने होते हैं। इनके पैटर्न को एक संकेत के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल नाइट्रोजन प्रबंधन के लिए किया जाता है। फसलों में लीफ कलर चार्ट का उपयोग करने के लिए मक्का, धान, गेहूं की फसल के सबसे पहले कम से कम 10 ऐसे पौधों का चयन करें, जो रोगों और कीटों से मुक्त हों और जिनकी पत्तियां पूरी तरह खुली हों। सुबह (8-10 बजे के बीच) लीफ कलर चार्ट का उपयोग करने का प्रयास करें और यह भी सुनिश्चित करें कि देखते समय सीधी धूप पत्तियों पर न पड़े अन्यथा पत्ती का रंग पत्ती के रंग चार्ट से मेल नहीं खाता। किसी भी प्रकार की गलती की आशंका को कम करने के लिए कोशिश ये होनी चाहिए कि एक ही व्यक्ति लीफ़ कलर चार्ट द्वारा पत्तियों के रंग को मिलाए।

धान मे लीफ कलर चार्ट के अनुसार कितनी पड़नी चाहिए नाइट्रोजन? नीचे दी गई वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई तालिका में देखें। 

  धान के प्रकार लीफ कलर चार्ट वैल्यू प्रतिहेक्टेयर नाइट्रोजन
खरीफ़ धान गैर बासमती ≤ 4 28
खरीफ़ धान बासमती ≤ 3 23
धान की सीधी बुवाई गैर बासमती ≤ 3 23
बोरो धान गैर बासमती ≤ 4 35

 

 

अगर गेहूं की बुवाई निर्धारित समय से की गई है तो 46 किलो प्रति हेक्टेयर अथवा यदि बुवाई देरी से की गई है तो 28 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन पहली सिंचाई पर दें तथा बाकी बचा हुआ नाइट्रोजन लीफ़ कलर चार्ट के निर्धारण के अनुसार दें। इससे नाइट्रोजन की बचत होगी। उन्होंने कहा कि मक्का की फसल में इसका इस्तेमाल करके किसान नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं।

डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय ने कहा कि आज के बदलते परिवेश में उत्पन्न होने वाली नई समस्याओं के लिए पारंपरिक तरीकों के कुछ विकल्प हैं ताकि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कम लागत पर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। साथ ही यह हमारी फसलों की आवश्यकता के अनुसार उर्वरक का निर्धारण करने में मदद करता है। सटीक पोषक तत्व प्रबंधन उपकरण जैसे क्लोरोफिल मीटर, ग्रीन सीकर्समिट्टी , लीफ कलर चार्ट और निर्णय समर्थन प्रणालियाँ किसानों के उपयोगी हैं । इन नई तकनीकों को अपनाकर हम उर्वरकों को भी बचा सकते हैं और अपनी उत्पादन लागत को कम करने के साथ-साथ पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचा सकते हैं। 

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या kisanofindia.mail@gmail.com पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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