KVK: आख़िर कैसे किसानों के बेहतरीन दोस्त बनते चले गये कृषि विज्ञान केन्द्र?
पुडुचेरी में 1974 में बना पहला KVK तो 2005 में हरेक ज़िले में इसे बनाने की नीति बनी
देश के 742 ज़िलों में से अब तक 731 कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित हो चुके हैं। सरकारों ने KVK में अनेक बुनियादी सुविधाएँ, जैसे दलहन बीज हब, मिट्टी परीक्षण किट, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, एकीकृत कृषि प्रणाली, कृषि मशीनरी और उपकरण, ज़िला कृषि मौसम इकाई आदि को बदलते दौर के साथ मज़बूत किया है। हालाँकि, अभी तक 657 कृषि विज्ञान केन्द्र ही ऐसे हैं जिनके पास अपना प्रशासनिक भवन है, तो 521 ऐसे KVK भी हैं जिनमें किसानों के लिए हॉस्टल की भी सुविधा है।
किसानों का सबसे अच्छा दोस्त उनका नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र ही हैं। किसानों का मार्गदर्शन करके उन्हें कृषि सम्बन्धी वैज्ञानिक गतिविधियों से जोड़ने के लिए देश के हरेक ग्रामीण ज़िले में Krishi Vigyan Kendra (KVK) बनाये हैं। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को परस्पर जोड़कर तथा नये-नये कृषि अनुसन्धानों को अपनाने की ज़मीन तैयार करना है।
KVK के ज़रिये किसानों को स्थानीय भाषा-बोली में खेती-बाड़ी के हरेक पहलू के अलावा मौसम की जानकारी और आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। आमतौर पर कृषि विज्ञान केन्द्रों से मिलने वाली सहुलियत के लिए किसानों से कोई फ़ीस नहीं ली जाती, लेकिन यदि किसानों को कोई पूँजीगत सामान मुहैया करवाया जाता है तो बदले में उन्हें दाम चुकाना पड़ सकता है।
खेती-बाड़ी की दुनिया में ‘फ्रंटलाइन रोल’ है KVK का
खेती-बाड़ी से जुड़े हरेक पहलू के विकास में कृषि विज्ञान केन्द्र की भूमिका अग्रिम मोर्चे यानी ‘फ्रंटलाइन रोल’ वाली है। इसीलिए बदलते दौर के साथ हरेक ज़िले में Krishi Vigyan Kendra की स्थापना को अनिवार्य बनाया जा चुका है। इसका काम राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों की ओर से संचालित कृषि अनुसन्धान संगठनों और किसानों के बीच एक सेतु की भूमिका निभाना है।
अपनी भूमिका और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए KVK अपने ज़िले के चयनित किसानों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। वैसे पूरे ज़िले के किसानों या अन्य खेतीहर आबादी से सम्बन्धित विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार के अन्य विभागों की होती है।
KVKs का क्षेत्राधिकार
देश के सभी कृषि विकास केन्द्र लगातार खेती-बाड़ी में उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। इसके तहत कृषि अनुसन्धान संस्थानों में विकसित नवीनतम तकनीक को किसानों के ख़ास इलाकों के अनुरूप बनाने और उन्हें ज़मीन पर उतारने की दिशा में काम करते हैं। KVKs के ज़रिये ही नयी कृषि प्रणालियों और तकनीकों का ऑन-फार्म परीक्षण किया जाता है।
किसानों के खेतों में अपनी उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिए फ्रंटलाइन प्रदर्शन करना और खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित करना, अपने ज़िले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्र की पहल का समर्थन करना तथा इसके लिए वैज्ञानिक केन्द्र की भूमिका निभाना भी कृषि विज्ञान केन्द्रों का ही दायित्व है।
किसानों को बीज, रोपण सामग्री, जैव एजेंट और उन्नत पशुधन उपलब्ध कराना तथा इसके उत्पादन में पुनः भागीदारी निभाना तथा उपरोक्त सभी उद्देश्यों के लिए किसानों और ग्रामीण समाज में जागरूकता पैदा करना भी कृषि विज्ञान केन्द्र का ही काम है। बीते पाँच साल के दौरान Krishi Vigyan Kendra को अन्य बुनियादी सुविधाओं जैसे दलहन बीज हब, मिट्टी परीक्षण किट, लघु सिंचाई प्रणाली, एकीकृत कृषि प्रणाली इकाइयों, कृषि मशीनरी और उपकरण, ज़िला कृषि-मौसम इकाइयों आदि के रूप में और सक्षम बनाया गया है।
50 साल में बना 727 KVKs का नेटवर्क
देश के 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 742 ज़िलों में से अब तक 731 कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित हो चुके हैं। सरकारों ने KVK में अनेक बुनियादी सुविधाएँ, जैसे दलहन बीज हब, मिट्टी परीक्षण किट, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, एकीकृत कृषि प्रणाली, कृषि मशीनरी और उपकरण, ज़िला कृषि मौसम इकाई आदि को बदलते दौर के साथ मज़बूत किया है।
हालाँकि, अभी तक 657 कृषि विज्ञान केन्द्र ही ऐसे हैं जिनके पास अपना प्रशासनिक भवन है, तो 521 ऐसे KVK भी हैं जिनमें किसान के लिए हॉस्टल की भी सुविधा है। वर्तमान में KVK में 68.44 फ़ीसदी पदों पर कर्मचारी तैनात हैं। बाक़ी जगह खाली हैं। हालाँकि, हरेक KVK में आवश्यक बुनियादी संसाधन को सुलभ करवाने का लक्ष्य हमेशा रहा है।
देश के सबसे अधिक ज़िलों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा 89 Krishi Vigyan Kendra हैं, जबकि दो ज़िलों वाले राज्य गोवा में 2 और एक-एक ज़िला वाले केन्द्र शासित प्रदेशों लक्षद्वीप और चंडीगढ़ में एक-एक Krishi Vigyan Kendra काम कर रहे हैं। प्रत्येक KVK के लिए स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या 16 है। इसमें एक वरिष्ठ वैज्ञानिक-सह-प्रमुख, छह विषय विशेषज्ञ, एक फार्म प्रबन्धक, दो कार्यक्रम सहायक, दो प्रशासनिक कर्मचारी, एक ट्रैक्टर चालक, एक जीप चालक और दो कुशल सहायक कर्मचारी शामिल हैं।
बीते पाँच दशकों के दौरान ICAR की कार्ययोजना और वित्त पोषण के तहत कृषि विज्ञान केन्द्रों के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क ने खेती-बाड़ी की तस्वीर बदलने में अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योदगान दिया है।
जैसे- तकनीकी सम्पदा और प्रशिक्षित कर्मियों की भारी संख्या जैसे बहुमूल्य संसाधन का निर्माण, खेती-बाड़ी से सम्बन्धित स्थानीय विशेषताओं के अनुरूप तकनीकों का विकास, नवीनतम और अग्रणी तकनीकों का प्रदर्शन, खेती-बाड़ी से जुड़े सभी हितधारकों के बीच नयी क्षमताओं का सृजन, खेती-बाड़ी में वैज्ञानिक तकनीक के इस्तेमाल को लेकर जागरूकता फैलाने की भूमिका और खेती-बाड़ी से जुड़ी योजनाओं को बनाने, उन्हें लागू करने तथा उनके मूल्यांकन में सहभागी बनना।
कृषि अनुसन्धान से जुड़ी संस्थाएँ और बजट
खेड़ी-बाड़ी के हरेक पहलू से जुड़ी मौजूदा तकनीक को उन्नत करने, नये उपकरणों और तकनीकों को विकसित करने तथा किसानों को उन्नत किस्म के बीज मुहैया करवाने का काम पूरे देश में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के तहत किया जाता है। देश भर में ICAR की छतरी तले ही खेती-किसानी से जुड़ी तमाम अनुसन्धान की गतिविधियाँ संचालित होती हैं।
इस काम को ICAR के मातहत काम करने वाले 103 अनुसन्धान संस्थानों (4 डीम्ड विश्वविद्यालयों सहित), 63 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, 3 केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालयों, 11 कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसन्धान संस्थान (Agricultural Technology Application Research Institute, ATARI) और 731 कृषि विज्ञान केन्द्रों के मिलीजुली कोशिशों से अंज़ाम दिया जाता है।
इन सभी संस्थाओं का सामूहिक लक्ष्य देश के कृषि उत्पादन बढ़ाने और कृषि उत्पादकता में होने वाले नुकसान को कम से कम करने के लिए अनुसन्धान और विकास गतिविधियाँ चलाना है, ताकि खेती-बाड़ी के काम में लगे करोड़ किसानों की आमदनी में सुधार लाया सके, कृषि उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल हो सके और यथासम्भव इसके निर्यात को बढ़ाया जा सके।
अब सवाल ये है कि आख़िर इन सैंकड़ों कृषि अनुसन्धान संस्थानों में केन्द्र सरकार सालाना कितनी रक़म खर्च करती है? इस सवाल के जबाब में कृषि मंत्रालय ने संसद को बताया कि मोदी सरकार ने वर्ष 2021-22 के दौरान कृषि अनुसन्धान कार्यों के लिए क़रीब 8,514 करोड़ (बजट अनुमान) रुपये आवंटित किये हैं। इसी रक़म के दायरे में रहकर केन्द्र सरकार से जुड़े कृषि अनुसन्धान संस्थानों को काम करना होता है।
KVK का इतिहास
सबसे पहले वर्ष 1964-66 के दौरान मौजूद शिक्षा आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि ग्रामीण इलाकों में कृषि और इससे सम्बद्ध क्षेत्रों में व्यावसायिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। इसके लिए प्री और पोस्ट मैट्रिक स्तर पर विशेष संस्थानों की स्थापना का व्यापक प्रयास करने का सुझाव दिया गया। ऐसे संस्थानों को ‘कृषि पॉलिटेक्निक’ का नाम देने का भी मशविरा था।
शिक्षा आयोग की रिपोर्ट पर वर्ष 1966-72 के दौरान गहन चर्चा हुई। इसमें शिक्षा मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, योजना आयोग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य सम्बद्ध संस्थाओं के विशेषज्ञ शामिल थे। आख़िर में ICAR ने ऐसे कृषि विज्ञान केन्द्रों स्थापित करने का विचार रखा, जहाँ पेशवर किसानों, स्कूल छोड़ने वाले विद्यार्थियों और क्षेत्रीय स्तर के कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा सके।
इसके बाद, कृषि शिक्षा से सम्बन्धित ICAR की स्थायी समिति ने अगस्त 1973 में पाया कि प्रस्तावित कृषि विज्ञान केन्द्रों (KVK) को ‘राष्ट्रीय महत्व’ की संस्था का दर्ज़ा मिलना चाहिए क्योंकि इसकी बदौलत न सिर्फ़ कृषि उत्पादन में तेज़ी लाने की कोशिशें होंगी बल्कि गाँवों की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में भी इसकी अहम भूमिका होगी। फिर ICAR ने KVK की स्थापना के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाने का ज़िम्मा सेवा मन्दिर, उदयपुर के डॉ मोहन सिंह मेहता की अध्यक्षता वाली एक समिति को सौंपा।
पुडुचेरी में 1974 में बना पहला KVK
मेहता समिति की रिपोर्ट के आधार पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत सन् 1974 में पुडुचेरी (पांडिचेरी) में देश के पहले Krishi Vigyan Kendra की स्थापना हुई। इसे तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा गया। इसके बाद ICAR के प्रस्ताव के मुताबिक, योजना आयोग ने पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों की स्थापना को मंज़ूरी दी। 1979 में 12 और KVK की स्थापना उसी साल कृषि उपज उपकर कोष बनाकर की गयी। छठी पंचवर्षीय योजना के तहत ICAR की आम सभा ने सन् 1981 में 14 KVK को मंज़ूरी दी।
सन् 1984 में ICAR ने कृषि विकास केन्द्रों के कामकाज़ और योगदान की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय मूल्यांकन समिति बनायी। इस समिति ने देश में ज़्यादा से ज़्यादा कृषि विकास केन्द्रों की स्थापना और विस्तार की ज़ोरदार सिफ़ारिश की। नतीज़तन छठी पंचवर्षीय योजना के अन्त तक देश में 89 KVK काम करने लगे। सातवीं योजना के तहत जहाँ 20 नये Krishi Vigyan Kendra बने वहीं इनके योगदान और क़ामयाबी को देखते हुए देश के बाक़ी ज़िलों में भी KVK की स्थापना की माँग ने ज़ोर पकड़ लिया।
2005 में हुआ हरेक ज़िले में KVK की स्थापना का एलान
योजना आयोग ने साल 1992-93 में 74 नये KVKs की स्थापना को मंज़ूरी दी। आठवीं योजना (1992-97) में भी 78 नये KVKs स्थापित हुए और योजना के अन्त तक देश में काम कर रहे KVKs की संख्या 261 हो गयी। नौवीं योजना में 29 KVKs बनाये गये और इनकी कुल संख्या 290 पर जा पहुँची। KVKs के लिहाज़ से सबसे बड़ा बदलाव 15 अगस्त 2005 को प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण के ज़रिये आया। इसमें 2007 के अन्त तक देश के प्रत्येक ग्रामीण ज़िले में कम से कम एक KVK की स्थापना की बात की गयी।
इस तरह, दसवीं योजना के आख़िर तक देश में कुल KVKs की संख्या 551 हो गयी। यही सिलसिला आगे भी जारी रहा। अब तक देश में KVKs की संख्या 731 हो चुकी है। ये सभी किसी न किसी राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (SAU), केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालयों (CAU), ICAR के संस्थानों, राज्य सरकारों के शैक्षणिक संस्थानों या ग़ैर सरकारी संगठनों के तहत काम कर रहे हैं। इनमें से 38 KVK राज्य सरकारों के मातहत काम करते हैं तो 66 ऐसे हैं जिन्हें ICAR के अनुसन्धान संस्थानों के नियंत्रण में रखा गया है।
देश के 103 KVKs का संचालन ग़ैर सरकारी संगठनों (NGOs) के हवाले है तो 506 ऐसे हैं जो विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के तहत काम करते हैं। इसी तरह, 3-KVKs का संचालन केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के पास है तो 3 ऐसे ही हैं जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) चलाते हैं। बाक़ी बचे 7-KVKs को डीम्ड विश्वविद्यालय तथा 5-KVKs को अन्य शैक्षणिक संस्थानों की ओर से चलाया जा रहा है।