क्यों ज़रूरी है फसल में सूक्ष्म पोषक तत्वों (micro nutrients) की कमी को पहचानना और उसकी भरपाई करना?

मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इससे पैदावार प्रभावित हुई है।

संकर और ज़्यादा उपज देने वाली किस्मों के चयन से मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्वों का ज़्यादा दोहन होता है। इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की माँग भी तेज़ी से बढ़ रही है। वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पौधों में उभरने वाले प्रत्यक्ष लक्षणों को सत्यापित किया है। इसकी भरपाई सिर्फ़ सम्बन्धित तत्वों के उपयोग से ही हो सकती है।

पौधों के समुचित विकास के लिए 35 प्राथमिक और सूक्ष्म पोषक तत्वों (micro nutrients)) की ज़रूरत होती है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम जहाँ मुख्य और प्राथमिक तत्व (prime nutrients) कहलाते हैं, वहीं जस्ता (Zink), बोरॉन, कॉपर, आयरन, मैंगनीज, मॉलिब्डेनम आदि को ‘सूक्ष्म पोषक तत्व’ (micro nutrient) कहा जाता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की बहुत छोटी मात्रा की पौधों को ज़रूरत पड़ती है। लेकिन इनकी अहमियत प्राथमिक पोषक तत्वों से कम नहीं है, क्योंकि इनकी कमी से भी पौधों की सेहत प्रभावित होती है।

मिट्टी की जाँच करवाने से उसकी सेहत का पता चलता है। इसीलिए जाँच रिपोर्ट की सिफ़ारिशों के अनुसार खेत में प्राथमिक और सूक्ष्म पोषक तत्वों को डालना बेहद ज़रूरी है। लेकिन यदि मिट्टी की परीक्षण नहीं करवाया गया हो और खड़ी फसल में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण नज़र आये तो सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी निर्धारित मात्रा में बारीक रेत के साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। क्योंकि सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पौधों का विकास, चयापचय (metabolism) और प्रजनन की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

मृदा विज्ञानियों के अनुसार, हाल के वर्षों में मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इससे पैदावार प्रभावित हुई है। संकर और ज़्यादा उपज देने वाली किस्मों के चयन से मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्वों का ज़्यादा दोहन होता है। इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की माँग भी तेज़ी से बढ़ रही है। वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पौधों में उभरने वाले प्रत्यक्ष लक्षणों को सत्यापित किया है। इसकी भरपाई सिर्फ़ सम्बन्धित तत्वों के उपयोग से ही हो सकती है।

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सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पौधों में उभरने वाले प्रत्यक्ष लक्षण

  1. आयरन (iron)

कार्य: यह क्लोरोफिल निर्माण में सहायक होता है। पौधों में सम्पन होने वाले ऑक्सीकरण और अवकरण की क्रिया में यह उत्प्रेरक का कार्य करता है। क्लोरोफिल के विकास और पौधों के भीतर ऊर्जा के संचार में ये अहम भूमिका निभाता है। इसमें कुछ एंजाइम और प्रोटीन भी होते हैं, जो पौधों के साँस लेने की गतिविधि को नियंत्रित करते हैं। पौधों से आयरन को सल्फर का यौगिक बनाकर जोड़ा जाता है।

कमी के लक्षण: क्लोरोफिल के निम्न स्तर के कारण जब पत्ते असमय पीले पड़ने लगे तो ये आयरन की कमी का मुख्य लक्षण है। पत्तियों का पीलापन सबसे पहले ऊपरी पत्तियों पर दिखाई देता है। आयरन की कमी से नयी पत्तियों की भी हरियाली घटने लगती है। इससे पौधे कमज़ोर हो जाते हैं।

निदान: पौधों में आयरन की कमी को दूर करने के लिए 20 से 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में फेरस सल्फेट डालना चाहिए या 0.4 प्रतिशत फेरस सल्फेट और 0.2 प्रतिशत चूने का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

  1. कॉपर (Copper)

कार्य: ‘कॉपर’ या तांबा सबसे स्थूल सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह कार्बोहाइड्रेट और एंड्रोजन चयापचय के लिए आवश्यक है। तांबा, प्रकाश संश्लेषण और श्वसन में नियंत्रण का काम करता है। यह अमीनो अम्ल का प्रोटीन बनाने और संशोधित करने में एक घटक की भूमिका निभाता है।

कमी के लक्षण: इसकी कमी से पौधों की नयी पत्तियों में सिरा सड़न के लक्षण उभरते हैं। बढ़वार कम होना तथा पत्तियों का रंग हरा नहीं होना भी इसका प्रमुख लक्षण है। इसकी कमी से नींबू में डाइवेक, चुकंदर और सेब में सफ़ेद सिरा, छाल खुरदुरा और फटने की समस्या पैदा होती है।

निदान: तांबे की कमी से उबरने के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 20 किग्रा कॉपर सल्फेट को जुताई के समय इस्तेमाल करना चाहिए।

  1. ज़िंक (Zink)

कार्य: यह एंजाइम का मुख्य अवयव होता है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक भी भूमिका निभाता है और नाइट्रोजन के पाचन में सहायक होता है।

कमी के लक्षण: मिट्टी में ज़िंक की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और तने की लम्बाई घट जाती है। ज़िंक की कमी से धान में खैरा नामक रोग होता है। इसकी कमी से आम, नींबू और लीची में लिटिल लीफ तथा सेब और आड़ू में रोजेट की समस्या उत्पन्न होती है। मक्का के पौधे की नयी पत्तियाँ सफ़ेद रंग की निकलती हैं। इसे सफ़ेद कली कहते हैं। ज़िंक की कमी से पौधों के फूलने-फलने में देरी हो सकती है।

निदान: मिट्टी में ज़िंक की कमी को दूर करने के लिए प्रति हेक्टेयर 15 से 30 किग्रा ज़िंक सल्फेट का छिड़काव करें या  0.5 प्रतिशत ज़िंक सल्फेट और 0.2 प्रतिशत चूने का घोल बनाकर पत्तियों में छिड़काव करना चाहिए।

  1. मैंगनीज (Manganese)

कार्य: प्रकाश संश्लेषण या क्लोरोफिल निर्माण के दौरान नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड को पचाने में मैंगनीज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान राइबोफ्लेविन, एस्कॉर्बिक एसिड, कैरोटीन और इलेक्ट्रॉन परिवहन में भी मैंगनीज की ज़रूरत पड़ती है। यह वसा बनाने वाले एंजाइम को भी सक्रिय करता है।

कमी के लक्षण: मैंगनीज की कमी से पत्तियों में छोटे-छोटे क्लोरोसिस के धब्बे बन जाते हैं। इसकी कमी से चुकंदर में चित्तीदार पीला रोग और ओट में ग्रेस्पाइक नामक रोग होता है।

निदान: मैंगनीज सल्फेट का 10 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए या पर्णीय छिड़काव के लिए 0.4 प्रतिशत मैंगनीज सल्फेट और 0.3 प्रतिशत चूने के घोल का छिड़काव करें।

  1. बोरॉन (Boron)

कार्य: बोरॉन की प्राथमिक भूमिका पौधों की कोशिकाओं की दीवारों के निर्माण से सम्बन्धित है। ये दलहनी फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाली ग्रंथियों के निर्माण में सहायक होता है। यह पौधों में पानी सोखने की क्रिया को नियंत्रित करता है। बोरॉन की कमी से शुगर ट्रांसपोर्ट, फ्लावर रिटेंशन, पराग का निर्माण और अंकुरण के अलावा अनाज का उत्पादन भी कम हो जाता है। इसकी कमी मुख्य रूप से ज़्यादा बारिश वाले इलाकों में अम्लीय, रेतीली और कम कार्बनिक पदार्थों वाली मिट्टी में पायी जाती है।

कमी के लक्षण: बोरॉन की कमी से पत्तियाँ मोटी होकर मुड़ जाती हैं। पौधों का विकास धीमा पड़ जाता है और पत्तियाँ पीली या लाल हो जाती हैं। इसकी कमी को अक्सर पौधों के प्रजनन अंगों के बांझपन और विकृति से जोड़ा जाता है। बोरॉन की कमी से आम में आन्तरिक सड़न, आँवला में फल सड़न, अंगूर में हेन और चिकन, चुकंदर में आन्तरिक गलन, शलजम, मूली और गाजर में ब्राउन हार्ट, फूलगोभी में भूरापन, फल का फटना और आलू की पत्तियों में स्थूल रोग हो जाता है।

निदान: बोरॉन की कमी दूर करने के लिए प्रति हेक्टेयर 0.2 प्रतिशत बोरेक्स या बोरिक एसिड का 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। सामान्य बोरॉन उर्वरक बोरेक्स (10.5% B) और बोरिक एसिड (20% B) हैं।

  1. मॉलिब्डेनम (molybdenum)

कार्य: मॉलिब्डेनम की नाता एंजाइमों से है। इसकी कमी से नाइट्रोजन और सल्फर का पाचन तथा प्रोटीन संश्लेषण प्रभावित हो सकता है। फल और अनाज के गठन में मॉलिब्डेनम की अहम प्रभाव है। पौधों को इसकी इतनी कम मात्रा चाहिए कि ज़्यादातर किस्में इसकी कमी के लक्षणों को प्रदर्शित नहीं करतीं।

कमी के लक्षण: कुछ सब्जियों की फसलों में मॉलिब्डेनम की कमी में अनियमित पत्ती ब्लेड का निर्माण होता है। इसकी कमी से पत्तियों की शिराओं के मध्य हरिमाहीनता या क्लोरोसिस हो जाती है। इसकी कमी से फूलगोभी में व्हिपटेल और नींबू वर्गीय पौधों की पत्तियों में पीला धब्बा रोग होता है।

निदान: मॉलिब्डेनम की कमी को दूर करने के लिए सोडियम मॉलिब्लेडेट को 0.2 से 0.6 किग्रा प्रति हेक्टेयर भूमि में जुताई के समय डालें। अमोनियम मॉलिब्डेट और सोडियम मॉलिब्डेट को प्रति हेक्टेयर एक से 2.3 किग्रा की दर से मिट्टी में डाला जाना चाहिए और यदि पर्णीय छिड़काव करना पड़े तो इसी का 0.01 से 0.035 प्रतिशत का घोल बनाकर उपयोग किया जा सकता है।

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