मेंथा की अच्छी फसल के लिए ज़रूरी है कीट प्रबंधन

खुशबूदार मेंथा जिसे पुदीना या पेपरमिंट भी कहा जाता है कि खेती भारत के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है, मगर किसानों को कीट व रोगों की वजह से फसल की भारी हानि का सामना भी करना पड़ता है।

मेंथा

किसी भी दूसरी फसल की तरह ही मेंथा की फसल पर भी कीट व रोगों का बहुत असर होता है। खासतौर पर गर्मियों के मौसम में, ऐसे में कीटों का सही प्रबंधन बहुत ज़रूरी है वरना किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। मेंथा का इस्तेमाल वैसे तो कई चीज़ों में किया जाता है, मगर मुख्य रूप से इसका उत्पादन मेंथा ऑयल बनाने के लिए किया जाता है। इसके खुशबू बहुत तरोताज़ा होती है, इसलिए कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी पेपरमिंट का इस्तेमाल किया जाता है। मेंथा की फसल पर किन कीटों का प्रकोप होता है और उससे बचाव कैसे किया जा सकता है, आइए, जानते हैं।

माहू कीट

यह कीट पौधों के नरम हिस्सों पर हमला करके उसका रस चूसता है। इस कीट का असर फरवरी से मार्च के बीज रहता है। इनके असर से पौधों का विकास रुक जाता है। इस कीट से बचाव के लिए किसान एक प्रतिशत मैटासिस्टॉक्स 25 ईसी का घोल बनाकर खेतों में छिड़क सकते हैं।

लालड़ी

यह कीट पत्तियों को खाकर खोखला कर देता है जिससे उनसे पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। इससे बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़कें।

मेंथा
तस्वीर साभार: ourgardenworks

बालदार सूंडी

यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहकर उसे खाता है जिससे पत्तियों में तेल की मात्रा कम हो जाती है। इससे बचाव के लिए डाइक्लोरवॉस या फेनवेलरेट का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

जालीदार कीट

यह कीट चौड़े काले रंग के होता जो मेंथा की पत्तियों पर हमला करता है और पत्तियों व तने का 400-500 मिलि प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाइमेथोएट का छिड़काव कर सकते हैं।

पत्ती धब्बा रोग

यह रोग होने पर पत्तियों पर भूरे धब्बे होने लगते हैं जिससे उनकी भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है। इस वजह से पौधों का विकास भी रुक जाता है और पत्तियां पीली होकर गिरने लग जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए किसान 0.2 से 0.3 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, डाइथेन एम-45 का घोल पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन बार छिड़क सकते हैं।

मेंथा
तस्वीर साभार: gardenforindoor

दीमक

मेंथा की फसल खराब होने की एक वजह दीमक भी है। दीमक ज़मीन के अंदर से पौधों में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजग से पौधे धीरे-धीरे मुरझाने लगते हैं और उनका सही विकास नहीं हो पाता है। दीमक से बचाने के लिए खेत की सही समय पर सिंचाई करने के साथ ही खरपतवारों को खत्म करना भी ज़रूरी है।

मेंथा की खेती वैसे तो पूरे देश में की जाती है, लेकिन इसका सबसे अधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और पंजाब में होता है। यूपी में तो इसे हरा सोना कहा जाता है, क्योंकि इसकी अच्छी फसल से कमाई भी अच्छी होती है। मेंथा ऑयल जिसकी पूरी दुनिया में ज़बर्दस्त मांग है इसके उत्पादन में भारत दुनिया में नंबर वन है। एक हेक्टेयर में लगी मेंथा से करीब 150 किलो ग्राम तेल निकलता है। यदि सही तरीके से खेती की जाए उत्पादन 250-300 किलो तक भी हो सकता है। बाज़ार में मेंथा का तेल 1000 रुपए प्रति लीटर तक में बिकता है। इस तरह देखें तो किसान एक हेक्टेयर से ही 3 लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।

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