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भारत में कृषि क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं में बदलाव और सुधार की आवश्यकता को महसूस करते हुए, कई संस्थान इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र (NRCM), दरभंगा, मखाने की खेती (Makhana cultivation) और इसके संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मखाना, जिसे आमतौर पर उपवास में खाया जाता है, न केवल सेहत के लिए फ़ायदेमंद है बल्कि यह किसानों के लिए भी एक लाभकारी कृषि व्यवसाय बन चुका है। यह केंद्र मखाने की खेती, उसके उन्नत प्रौद्योगिकी, और मखाना आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने में निरंतर कार्य कर रहा है।
मखाने की खेती में उन्नति का प्रमुख केंद्र (Major center of advancement in Makhana cultivation)
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र (NRCM) का उद्देश्य मखाने की खेती (Makhana cultivation) को अधिक लाभकारी और प्रभावी बनाना है। दरभंगा में स्थित यह केंद्र मखाने की नई किस्मों, मखाना की बागवानी, और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान कर रहा है। इसके द्वारा विकसित उच्च उपज वाली मखाना किस्में और बिना कांटे वाले जल चेस्टनट की किस्में कृषि क्षेत्र में एक नया मोड़ लेकर आई हैं।
मखाने की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने जल संरक्षण और समेकित कृषि पद्धतियों को भी प्रस्तुत किया है। मखाने और मछली पालन को जोड़ने वाली तकनीक भी इस केंद्र द्वारा विकसित की गई है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलता है। इसके अलावा, केंद्र ने मखाना से जुड़े कई उपकरणों जैसे मखाना बीज धोने वाली मशीन, बीज ग्रेडर, प्राथमिक रोस्टिंग मशीन और पॉपिंग मशीन का विकास भी किया है। इन उपकरणों को व्यावसायिक उपयोग के लिए लाइसेंस भी दिया गया है।
मखाने की खेती कैसे की जाती है? (How is makhana cultivated?)
मखाने की खेती (Makhana cultivation) एक जलीय कृषि पद्धति है, जो विभिन्न जलाशयों और तालाबों में की जाती है। मखाने के लिए चिकनी दोमट मिट्टी आदर्श मानी जाती है, और जल स्तर 4-6 फीट तक होना चाहिए। मखाने की खेती के कई तरीके हैं, जिनमें तालाब विधि, सीधी बुवाई और रोपाई विधि प्रमुख हैं।
तालाब विधि: यह मखाने की खेती की पारंपरिक तकनीक है। इसमें पिछले साल के बीज से ही मखाना उगता है, और मछली पालन के साथ तालाब में मखाना की खेती भी होती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त मछली प्राप्त होती है।
सीधी बुवाई: इस विधि में मखाने के स्वस्थ बीजों को दिसम्बर में तालाब में छिड़का जाता है। 35-40 दिन बाद बीज उगने लगते हैं, और दो से ढाई महीने बाद पौधे जल की सतह पर उभर आते हैं। इस विधि में पौधों की दूरी और रोपाई का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
रोपाई विधि: इस विधि में स्वस्थ और नवजात पौधों की रोपाई मार्च से अप्रैल के बीच की जाती है। 2 महीने बाद बैंगनी रंग के फूल पौधों पर दिखाई देने लगते हैं और 35-40 दिन में फल पूरी तरह से पक जाते हैं। इस विधि से मखाने की पैदावार में वृद्धि होती है।
मखाने की नर्सरी कैसे तैयार करें? (How to prepare nursery of makhana)
मखाने की नर्सरी स्थापित करने के लिए चिकनी दोमट मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए खेत में 2-3 बार गहरी जुताई ज़रूरी होती है, और पौधों के विकास के लिए सही मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का उपयोग किया जाता है। दिसंबर में मखाने के बीज डालने के बाद, मार्च के अंत तक पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मखाना नर्सरी के माध्यम से मखाने की खेती (Makhana cultivation) में सुधार और अधिक उत्पादन की संभावना जताई जा रही है।
मखाने की खेती के विस्तार में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र का योगदान (Contribution of National Makhana Research Center in expansion of Makhana cultivation)
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र ने मखाने के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। 2012 से 2023 तक NRCM ने 15,824.1 किलो उच्च उपज वाले मखाना बीज किसानों को वितरित किए हैं, और इसने बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के किसानों को प्रशिक्षित किया है। 3,000 से अधिक किसानों को मखाने की खेती, प्रसंस्करण और विपणन तकनीकों पर प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अलावा, NRCM ने मखाना आधारित उद्योगों को भी प्रोत्साहित किया है, जिससे स्थानीय उद्योगों और किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
मखाने की खेती से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूती (Farming of Makhana strengthens rural economy)
मखाने की खेती (Makhana cultivation) में नवाचार के साथ-साथ सरकारी योजनाओं ने भी किसानों को आर्थिक लाभ पहुँचाया है। मखाने की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की योजनाएँ किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो रही हैं। मखाने की खेती न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर रही है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती दे रही है। मखाने से जुड़े उद्योगों और प्रसंस्करण इकाइयों का विस्तार हो रहा है, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
वित्तीय विवरण NRCM के ख़र्चों और उपलब्धियों का आंकलन (Financial Statement Assessing the Expenditures and Achievements of NRCM)
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र (NRCM) ने मखाने की खेती (Makhana cultivation) में नवाचार और उन्नति के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यहां NRCM द्वारा ख़र्च किए गए धन और इसके द्वारा किए गए कार्यों का एक संक्षिप्त विवरण हैं:
वित्तीय वर्ष | व्यय (लाखों में) |
2023-24 | 265.00 |
2022-23 | 15.95 |
2021-22 | 17.87 |
2020-21 | 23.50 |
2019-20 | 18.00 |
कुल | 340.32 |
इस दौरान, NRCM ने 15,824.1 किलो उच्च उपज वाले मखाना बीज विभिन्न किसानों, KVKs और संस्थाओं को वितरित किए हैं। इन बीजों का लाभ बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों के किसानों को हुआ है।
निष्कर्ष (Conclusion)
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र (NRCM) द्वारा किए गए अनुसंधान और नवाचारों ने मखाने की खेती (Makhana cultivation) को एक नई दिशा दी है। मखाने की खेती (Makhana cultivation) से न केवल किसानों की आय में वृद्धि हो रही है, बल्कि यह भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रहा है। मखाने की खेती के विभिन्न तरीके, जैसे तालाब विधि, सीधी बुवाई और रोपाई विधि, किसानों को अधिक लाभ प्रदान कर रहे हैं। मखाने की नर्सरी और उन्नत तकनीकों के माध्यम से यह उद्योग आगे बढ़ रहा है और किसानों के लिए यह एक लाभकारी कृषि व्यवसाय बन चुका है।
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