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केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना (Prime Minister Dhyan Dhaanyan Krishi Yojana) की घोषणा की है। 2025-26 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री की ओर से घोषित इस योजना का उद्देश्य उन 100 ज़िलों में कृषि उत्पादकता को बढ़ाना है, जहां ये औसत से कम है। इसकी जानकारी कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में दिया है।
भारत की अर्थव्यवस्था (Economy of India) का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर निर्भर करता है, जहां लगभग 55 फीसदी जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों में लगी हुई है।
फिर भी, भारत के कई ज़िलों में कृषि उत्पादकता (Agricultural Productivity) औसत से कम है, जिससे किसानों की आय (Farmers Income) पर औसरत स्तर तक भी नहीं पहुंच पा रही।
भारतीय कृषि की वर्तमान स्थिति
भारत कृषि उत्पादन में दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है, लेकिन इसके बावजूद यहां पर कई समस्याएं मौजूद हैं, जिनकी वजह से कृषि क्षेत्र का पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं:
1.कृषि उत्पादकता में असमानता: देश के कई जिलों में कृषि उत्पादकता बहुत कम है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में औसतन प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन 4-5 टन होता है, जबकि बिहार और ओडिशा में यह मात्र 2-2.5 टन तक सीमित रहता है।
2.सिंचाई की असमानता: भारत में 50% से अधिक कृषि भूमि अभी भी वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है, जिससे सूखे के दौरान किसानों की उपज प्रभावित होती है।
3.कृषि ऋण तक सीमित पहुंच: राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) के अनुसार, भारत में लगभग 30 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान अब भी औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर हैं और साहूकारों से ऊंची ब्याज दरों पर ऋण लेने के लिए मजबूर हैं।
4.तकनीकी जागरूकता की कमी: नई कृषि तकनीकों, उन्नत बीजों, ड्रिप सिंचाई और स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों की जानकारी का अभाव के कारण भी किसान की उफज पर प्रभाव डालता है।
प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना के प्रमुख घटक
यह योजना निम्न तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित है:
कृषि उत्पादकता में बढ़ोत्तरी
1.किसानों को उन्नत बीज, जैविक खाद और आधुनिक कृषि उपकरणों की सब्सिडी दी जाएगी।
2.जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों को बढ़ावा दिया जाएगा।
3.उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे तिलहन, दलहन और बागवानी फसलों को बढ़ावा दिया जाएगा।
4.वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
सिंचाई सुविधाओं में सुधार
- इस योजना के तहत सिंचाई परियोजनाओं के विस्तार पर जोर दिया जाएगा।
- वॉटर हारवेस्टिंग को बढ़ाने के लिए तालाबों, कुओं और चेक डैम के निर्माण को बढ़ावा दिया जाएगा।
- More Crop Per Drop के सिद्धांत को अपनाते हुए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा दिया जाएगा।
कृषि ऋण और वित्तीय समावेशन
- छोटे और सीमांत किसानों को रियायती ब्याज दरों पर कृषि ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) कवरेज को बढ़ाया जाएगा।
- लघु और मध्यम कृषि उद्यमों (Agri SMEs) को वित्तीय मदद दी जाएगी जिससे वे कृषि वैल्यू चेन में योगदान दे सकें
योजना पर अमल और टार्गेट ज़िले
ये योजना उन 100 जिलों में लागू की जाएगी, जहां कृषि उत्पादकता, फसल घनत्व और औसत कृषि ऋण प्रवाह कम है। इन जिलों की पहचान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नाबार्ड (NABARD) और कृषि मंत्रालय द्वारा विभिन्न मानकों के आधार पर की जाएगी।
योजना के संभावित लाभ
इस योजना के कार्यान्वयन से निम्नलिखित लाभ होने की संभावना है:
1.कृषि उत्पादकता में 15-20% की वृद्धि: उन्नत बीज, वैज्ञानिक खेती और बेहतर सिंचाई से उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार होगा।
2.किसानों की आय में वृद्धि: लागत में कमी और अधिक उत्पादन से किसानों की आय में 30-40% की वृद्धि हो सकती है।
3.जल उपयोग की दक्षता: जल संरक्षण उपायों के माध्यम से जल संकट वाले क्षेत्रों में भी कृषि संभव होगी।
4.कृषि ऋण प्रवाह में वृद्धि: कम ब्याज दरों और आसान ऋण उपलब्धता से किसानों को साहूकारों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
5.रोजगार सृजन: कृषि आधारित उद्योगों और आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रोत्साहन मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
चुनौतियां और संभावित समाधान
हालांकि यह योजना कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत लाभकारी होगी, लेकिन कुछ प्रमुख चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं:
1.लाभार्थियों की सही पहचान: कई बार सरकारी योजनाओं का लाभ उन किसानों तक नहीं पहुंच पाता जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता होती है। इसे दूर करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म और आधार लिंक्ड लाभ वितरण प्रणाली अपनाई जानी चाहिए।
2.कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी: भ्रष्टाचार को रोकने के लिए निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।
3.कृषि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि तकनीकों को अपनाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
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