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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (Pulses Atmanirbharta Mission) को मंजूरी दे दी है। ये मिशन, जो 2025-26 से 2030-31 तक चलेगा, देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है। इसके लिए 11,440 करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश सरकार करेगी। ये मिशन (Pulses Atmanirbharta Mission) न केवल देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि लगभग 2 करोड़ किसानों की आय में भी बढ़ोतरी करेगा।
एक मिशन, तीन लक्ष्य
इस Pulses Atmanirbharta Mission का टारगेट क्लियर है- 2030-31 तक दलहन का उत्पादन बढ़ाकर 350 लाख टन करना, खेती का रकबा 310 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना और प्रति हेक्टेयर उपज 1130 किलोग्राम तक पहुंचाना। ये टारगेट बहुत ही महत्वाकांक्षी है, क्योंकि आज के वक्त में देश में दालों का उत्पादन लगभग 270-280 लाख टन के आस-पास है, जबकि मांग इससे ज़्यादा है। इसी अंतर को पाटने के लिए भारत को हर साल 15-20 फीसदी दालों का आयात करना पड़ता है, जिस पर कीमती विदेशी मुद्रा खर्च होती है। इस मिशन का उद्देश्य इस आयात निर्भरता को ख़त्म करना है।
सरकार की क्या है रणनीति?
ये मिशन सिर्फ एक स्कीम नहीं, बल्कि दलहन उत्पादन की पूरी value chain (मूल्य श्रृंखला) को मजबूत करने की एक ख़ास रणनीति है। इसकी मुख्य बातें इस तरह से हैं:
बीज क्रांति
उन्नत किस्मों के बीजों तक किसानों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित किए जाएंगे। सबसे खास बात यह है कि नवीनतम किस्मों को तेजी से फैलाने के लिए किसानों को 88 लाख मुफ्त बीज किट दी जाएंगी। ये बीज उच्च उत्पादकता वाले, कीट एवं जलवायु प्रतिरोधी होंगे।
क्षेत्र विस्तार
दलहन का रकबा बढ़ाने के लिए चावल की परती भूमि और अन्य ऐसी जमीनों को लक्षित किया जाएगा, जहां फसल विविधीकरण संभव है। इससे अतिरिक्त 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहन की खेती को बढ़ावा मिलेगा।
कटाई के बाद का प्रबंधन
दालों में सबसे बड़ी समस्या कटाई के बाद होने वाली हानि है। इसे कम करने के लिए 1,000 नई प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना की जाएगी। इन इकाइयों की स्थापना के लिए 25 लाख रुपये तक की सब्सिडी दी जाएगी, जिससे न केवल फसल का नुकसान कम होगा, बल्कि मूल्य संवर्धन से किसानों की आय भी बढ़ेगी।
ख़रीद और एमएसपी
ये मिशन का सबसे अहम और किसानों के फायदे के लिए है। अगले 4 सालों तक, तुअर (अरहर), उड़द और मसूर की 100 फीसदी ख़रीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की जाएगी। ये खरीद NAFED और NCCF जैसी सरकारी एजेंसियां करेंगी। इससे किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव का डर नहीं रहेगा और उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य मिल सकेगा।
क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण
मिशन पूरे देश में एक जैसा नहीं चलेगा। प्रत्येक क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु के अनुसार क्लस्टर बनाए जाएंगे और उनकी ख़ास ज़रूरतों के हिसाब से योजनाएं लागू की जाएंगी। इससे संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा और उत्पादकता बढ़ेगी।
Self Support से Beyond
इस मिशन के सफल होने के सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ भी होंगे। दलहन की फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर उसकी उर्वरता सुधारती हैं, जिससे केमिकल फर्टिलाइज़र पर निर्भरता कम होगी। साथ ही, फसल विविधीकरण (crop diversification) से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने में मदद मिलेगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
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